Monday, November 18, 2019

जीवन जीने की कला

विश्व में अन्य जीवधारियों की अपेक्षा मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन को अपनी मनोवृत्ति के अनुरूप ही व्याख्यायित करता है। सामान्यतः जीवन एक 'जय-यात्रा' है, जिसका शुभारंभ जन्म होने से और समाप्ति मृत्यु होने पर होती है। खाने और सोने का नाम जीवन न होकर सदैव प्रगति पथ पर बढ़ते रहने की लगन ही जीवन है। जीवन न तो भोग की वस्तु है और न ही किसी की स्थायी संपदा है। सच तो यह है कि प्रभु की कृपा से ही यह मानव देह केवल उपयोग के लिए ही प्राप्त हुई है। इसलिए व्यक्ति को प्रभु प्रदत्त मानव देह का सदुपयोग करते हुए अपने जवन को सार्थक करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
जीवन एक स्वप्निल संसार न होकर कार्य - युद्ध - क्षेत्र जैसा ही है। जीवन आदर्शवाद न होकर यथार्थ के अधिक निकट है। वह (जीवन) यथार्थ और आदर्श का समन्वित रूप है। यही समन्वित रूप ही मानव - जीवन के सुख की आधारशिला है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के प्रत्येक पल का अपना महत्व है। व्यक्ति की परिस्थितियों से ही उसकी स्थिति का निर्माण होता है। वास्तविक जीवन तो व्यक्ति के कर्तव्य पालन में ही होता है। अतीत के चिंतन को त्याग कर वर्तमान के प्रति सजग रहते हुए भविष्य को सुधारना और संवारना ही मानव जीवन का लक्ष्य होना चाहिए। ऐसा शास्त्र सम्मत वेदविहित और गुरू के आदेशों का पूर्ण निष्ठा और विश्वास के साथ आचरणों में लाने से ही संभव हो सकता है। इस प्रकार व्यक्ति को आत्म - प्रकाश के अनेक अवसर प्रतिदिन प्राप्त होंगे और इसी आत्म - प्रकाश के कारण ही वह (व्यक्ति) इहलोक और परलोक में भी महिमामंडित हो सकता है। 
सभी व्यक्तियों में जीवित रहने की स्वाभाविक आकांक्षा होती है। इसके लिए वे सदैव प्रयासरत भी रहते हैं किंतु महत्वपूर्ण यह नहीं कि व्यक्ति कितनी लंबी जिंदगी जीता है। महत्वपूर्ण तो यह है कि वह अपने जीवन को किन-किन महान उद्देश्यों को अपना आदर्श मानते हुए अपने लक्ष्य तक पहुँचा है। जीवन की सार्थकता व्यक्ति के ऐसे ही आदर्शों और सिद्धान्तों के साथ ही बुद्धि और विवेक के समुचित उपयोग पर आधारित होती है। जीवन - यात्रा की सार्थकता का मूल्यांकन व्यक्ति के वर्ष, माह और दिनों के आधार पर किया जाता है। सौ वर्षों का निष्क्रिय, निरर्थक और उद्देश्यहीन जीवन की तुलना में बुद्धि, विवेक और अनुभव का पूर्ण मनोयोग से अपने सात्विक उद्देश्यों और श्रेष्ठ आदर्शों के प्रति सजग और तत्पर रहते हुए अल्पकालिक आयु वाला व्यक्ति अधिक सार्थक सिद्ध हो सकता है?
वस्तुतः जीवन जीने की एक कला है, जिसका आधार है व्यक्ति के श्रेष्ठ आदर्श, सात्विक उद्देश्य और कार्य पूर्ति के लिए निष्ठा से, परिपूर्ण उदात्त चिंतन। इन्हीं विशिष्टओं के आधार पर व्यक्ति अपने जीवन जीने की कला के रहस्य को सहजता से समझ सकता है।


मजदूर किसानों अब जागो

इस वसुधा का श्रेष्ठ तपस्वी 
पुरुषार्थी- सच्चा - इन्सान।
निशिदिन कठिन तपस्या करता,
कहलाता मजदूर किसान।।
 दिन में दिनकर ज्वाला बरसे,
 चाहे हिमकर हिमपात करें।
 या ऋतुराज धरा पर आकर
 उनके श्रम पर राज करें।
अगणित रातों को जाग-जाग
जीवन सुख निद्रा, त्याग-त्याग।
हल-फल से मिट्टी फाड़-फाड़
नन्हें बीजों को गाड़-गाड़
 निज श्रम का ध्वज फहराने हित
 उस पर पाटा चलवाते हो।
 श्रम सीकर से अभिसिंचित कर,
 नव-जीवन उसमें लाते हो।।
शीत-शिशिर में ठिठुर-ठिठुर,
पानी से खेत पटाते हो।
कम्बल, लिहाफ, स्वेटर विहीन।
खेतों में निशा बिताते हो।।
 मजदूर जो ठंडी रातों में,
 अस्थियों को अस्त्र बनाते हैं।
 हेमन्त शिशिर ऋतुओं से लड़
 गेहूँ-सरसों उपजाते हैं।।
सोने सम सुन्दर दानों को,
हर महलों तक पहुँचाते हैं।
श्रम के फलदान के एवज में
बस तिरस्कार ही पाते हैं।
 फिर जेठ दोपहरी में तप-तप,
 गन्ने की फसल उगाते हैं।
 अपने गुड़-शक्कर शीरा खा,
 सबको चीनी भेजवाते हैं।
पश्चिम से आता गर्म पवन,
जब दीरघ दाध बढ़ाता है।
तब झुलस-झुल कर खेतों में
श्रम-तप का धर्म निभाता है।।
 श्रम की गर्मी तन का सम्बल,
 जाड़ों में बन जाता कम्बल।
 श्रम-श्वेद तरल बन आता है
 तपता तन, तर कर जाता है।।
पावस ऋतु में नित भीग-भीग
कम्पित हो लेव लगाते हो।
झुक-झुक घुटनों की टेक लिये,
कीचड़ में धान उगाते हो।
 कुछ दिवस गये सारा कीचड़,
 हरियाली में छिप जाता है।
 श्रम तेरा छिपा हुआ उसमें
 बाली -बनकर लहराता है।।
हे श्रम साधक, जग के दधिचि,
श्रम-सीकर खेतों में उलीचि।
जग को सर्वस्व समर्पित कर,
बन जाते मरु के मृग -मरीच।।
 तन के मांसों का जला -जला,
 खेतों में भस्म बनाते हो।
 भस्मों में भस्माभूत हुये,
 सूखा तन ले, घर आते हो।।
शस्य विकास, सुरक्षा हित,
ना दिवस-निशा तूने जाना।
बाढ़ अकाल बड़ विपदा से,
ना कभी हार तूने माना।।
 अगणित दैवी विपदा झेले,
 जल -जला, ज्वाला, जल से खेले
 जब-जब भीषण विध्वंस हुआ,
 उससे उन्नत उत्कर्ष हुआ।।
भू को भूकंप हिलाता है,
भीषण विध्वंस मचाता है।
तेरे अदम्य पौरुष समक्ष,
वह नतमस्तक हो जाता है।
 संकट - विपदा जब -जब आयी,
 बस क्षणिक क्लान्त ही कर पायीं
 तेरे अनुपम धीरज समक्ष
 विपदा ने सदा मात खायी।।
आवाहन
मजदूर किसानों अब जागो,
तू दानी हो कुछ मत मांगों।
हक कभी न मांगे जाते हैं,
भुजबल से छीने जाते हैं।।
 पांडव मांगे थे पांच गाँव,
 पा सके न कोई एक गाँव।
 रण में जब अस्त्र धार आये,
 आशा हक से ज्यादा पाये।
हो एक साथ यदि जग जाओ।
किंचित मन मंथन कर पाओ।
निज स्वाभिमान के रक्षाहित
हल लेकर हलधर बन जाओ।
 तूँ सचमुच हो शेषावतार,
 धरणी को धारण करते हो।
 पर गुहतर भार लिये जग का
 सब मौन भाव से सहते हो।।
अपने सहस्र फन को समेट,
बस एक बार फुफकार करो।
तू क्या हो किंचित स्मरण कर,
हे हलधर बस हुंकार भरो।
 दिग्पालों तक हिल जायेंगे,
 तेरे समक्ष झुक जायेंगे।
 ऊँचे आसन पर बैठे सब,
 काले कौवे उड़ जायेंगे।।
मतदान से जिन्हें बनाते हो,
ऊँचे आसन बैठाते हो।
जो सचमुच तेरे सेवक हैं,
उनके सेवक बन जाते हो।।
 तन से श्रम-सीकर बहा-बहा
 खुशियों के दीप जलाते हो।
 जग को खुशियों से जग-मग कर
 खुद धन - तम में सो जाते हो।।
तू दीन-बन्धु मन के महेश,
तू विध्न विनाशक हो गणेश।
निज श्रम ताप से कल्याण करो।
दीनों दुखियों की भूख हरो।।
 तू सच्चे -सन्त पुजारी हो,
 हर आदर के अधिकारी हो।
 क्यों उपेक्षित रह जाते हो।
 रह मौन सभी सह जाते हो।।


‘‘याद्दाश्त के धनी व्यक्ति’’

दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हुए हैं जो अपनी विचित्र व आश्चर्यजनक प्रतिभा के बल पर संसार को आश्चर्यचकित करते रहें। याद्दाश्त के धनी ऐसे लोग ही हैं जिसकी विलक्षण प्रतिभा का दुनिया ने लोहा माना है जिनकी बराबरी आज तक कोई नहीं कर सका।
1.  इजिप्ट के बादशाह नासर के पास 20 हजार गुलाम थे बादशाह को सभी गुलामों के नाम, जन्म, स्थान, जाति, आयु और पकड़े जाने की तारीख सब कुछ जुबानी याद थी।
2. बंगलौर के महादेवन ने 899 अंको की संख्या को दो घंटे 0 मिनट में हल कर दिया।
3.  डेनमार्क के एक बैंक क्लर्क ने लगभग 3 हजार जमाकर्ताओं के बहीखाते जल जाने के बाद जबानी ही उनके नाम, स्थान, धनराशि का हिसाब सही-सही बता दिया।
4. शतरंज का जादूगर अमरीकी खिलाड़ी हैरानैल्सन एक साथ बीस शतरंज के खिलाड़ियों की चालें याद रखता था।
5. राष्ट्रपति रुजवेल्ट के सेक्रेटरी जेसए फिरली को 20 हजार महत्वपूर्ण लोगों के नाम पते, पद जुबानी याद थे।
6.  राजा भोज के दरबारी श्रुतिधर में यह गुण थे कि वह 45 मिनट तक सुने हुए प्रसंग को पुनः ज्यों का त्यों शब्दशः सुना सकते थे। 
7. दक्षिण अफ्रीका के फील्ड मार्शल स्मट्स के पुस्तकालय में अत्यंत उच्चकोटि की दस हजार पुस्तकें थीं। सभी पुस्तकों की एक -एक पंक्तिया उनको याद थी।


सिर का दर्द

सर्दी लगने से दर्द होता है तो तुलसी की चाय पिलायेें और केसर, जावित्री, सोंठ, बालछड़ को मिलकर सिर पर लेप करें। गर्मी में होता हो तो मिश्री मिलाकर सौंफ का अर्क या गुलाब का अर्क पिलाए और बादाम, चन्दन, कपूर, कलमी शोरा, गेरू पीसकर सिर पर लेप करें।
बालों के रोग
1. सिर में रूसी होना
(1) नारियल के तेल में नीबू मिलाकर बालों में लगायें।
(2) 700 ग्राम नारियल तेल में  ग्राम कपूर मिलाकर सूखे बालों में लगायें।
2. बालों के झड़ने पर
(1) रीठें के पानी या शैम्पू से बालों को धायें।
(2) एक चम्मच नींबू के रस में दो चम्मच नारियल तेल मिलाकर उंगलियों से बालों की      
   जड़ में धीरे-धीरे लगायें। बालों का झड़ना रुक जायेगा।
3. बालों का सफेद होना
(1) एक या दो चम्मच सूखे - आंवले का चूर्ण रात में सोने से पूर्व लें बालों में सफेदी 
   आना रुकेगा।
(2) नीबू के रस से सिर में मालिश करने से बालों का सफेद होना बंद हो जाता है। 


ठहाका

गाँव की एक नई नवेली दुल्हन अपने पति से अंग्रेजी भाषा सीख रही थी, पर वह अभी 'सी' अक्षर पर ही अटकी हुई थी क्योंकि उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि 'सी' को कभी 'च' कभी 'क' तो कभी 'स' क्यों बोला जाता है।
एक दिन वह अपने पति से बोली आपको पता है चलचत्ता के चुली भी च्रिचेट खेलते हैं।  उसके पति ने यह सुनकर समझाया कि यहाँ सी को 'च' से नहीं 'क' से बोलते हैं। ऐसे कहते हैं कलकत्ता के कुली भी क्रिकेट खेलते हैं। पत्नी ने अपने पति से पूछा वह कुन्नीलाल कोपड़ा तो फायरमैन है न? तो पति ने फिर समझाया यहाँ सी को 'च' बोलते हैं चुन्नीलाल चोपड़ा तो चेयरमैन है न। 
थोड़ी देर बाद पत्नी बोली आपका चोट चैप दोनों चाॅटन के हैं। पति अब जरा तेज आवाज में बोला तुम समझती क्यों नहीं यहाँ 'सी' को 'क' बोलते हैं, कोट, कैप, दोनों काॅटन के है।
पत्नी फिर बोली कंडीगढ़ में कंबल किनारे कर्क है। पति को गुस्सा आ गया, वह बोला बेवकूफ यहाँ सी को च बोलते हैं चण्डीगढ़ में चम्बल किनारे चर्च है। पत्नी सहमते हुए धीरे से बोली चरेन्ट लगने से चंडक्टर और च्लर्क मर गए।
पति ने अपना सिर पीट लिया और बोला ये सारी बातें क से बोली जायेंगी- करन्ट लगने से कंडक्टर और क्लर्क मर गए।
पत्नी धीरे से बोली अजी तुम गुस्सा क्यों कर रहे हो? देखो-देखो केन्टीमीटर का केल और कीमेन्ट कितना मजबूत है।
पति जोर से चीखा अब तुम बोलना बन्द करो वरना मैं पागल हो जाऊँगा यहाँ 'सी' को 'स' बोलते हैं सेन्टीमीटर का सेल और सीमेन्ट कितना मजबूत है। 
पत्नी बोली इस 'सी' से मेरा सिरदर्द करने लग गया है अब मैं चेक खाकर चाॅफी के साथ चैप्सूल खाकर सो जाऊँगी।
जाते-जाते पति बड़बड़ाता गया तुम केक खाओ पर मेरा सिर न खाओ तुम काॅफी पिओ पर मेरा खून न पिओ तुम कैप्सूल खाओ पर मेरा चैन न खाओ। 


अपने शरीर की क्रियाएँ

क्या आप जानते हैं कि हमारी आँखों की माँस-पेशियाँ एक दिन में कितनी गति करती हैं। या फिर लार ग्रन्थियों से रोजाना कितनी बार लार निकलती है। आमतौर पर लोगों को अपने शरीर की ऊपरी बनावट के बारे में पता होता है, परन्तु उसकी सूक्ष्म या फिर उसकी अंदरूनी बनावट की जानकारी नहीं होती है। तो आइए जाने मनुष्य के शरीर से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी......
हमारी लार ग्रन्थियों से 1.5 लीटर लार प्रतिदिन निकलती है।
मानव शरीर का कवच त्वचा है। अपने जीवन काल में हर व्यक्ति लगभग 18 किलोग्राम त्वचा धारण करता है।
उंगलियों के नाखून -0.05 से. मीटर एक सप्ताह में बढ़ते हैं।
हमारा मस्तिष्क विभिन्न प्रकार की दस हजार गंधो का भंडारण पहचान और स्मरण रख सकता है।
मानव शरीर की सबसे लम्बी हड्डी फीमर और सबसे छोटी हड्डी स्टिप है, जो कान की हड्डी होती है।
पुरुष या स्त्री के शरीर पर बालों की संख्या औसतन पाँच मिलियन होती है। 
हमारे गुर्दे प्रतिमिनट 100 मि.ली. रक्त छानते हैं। इस प्रकार एक दिन में पूरे शरीर का रक्त बीस बार छाना जाता है।
छीक का वेग सौ मील प्रति घंटा तक होती है। उसके जोर के कारण शरीर को गहरा धक्का लगता है। 
फेफड़े में कुल तीन लाख मिलियन रक्त कोशिकाएं होती हैं। जो फैलाने पर चैबीस हजार किलोमीटर तक लम्बी हो सकती हैं। 


जीवन और संगीत 

साहित्य संगीत कला विहीनः,
साक्षात् पशुः पुच्छ विषाणहीनः।
जीवन से तात्पर्य मानव जीवन से है। पशु-पक्षी जीवन से नहीं। संगीत से तात्पर्य केवल शास्त्रीय-संगीत ही नहीं, बल्कि भाव संगीत, चित्रपपट संगीत, लोक संगीत आदि से भी है। खास तौर से भारतीय जीवन के पग-पग में संगीत बना रहता है। जन्म से मृत्यु तक यह हमारे साथ बना रहता है। जिस क्षण बालक इस संसार से प्रथम परिचय प्राप्त करता है तो वह संगीत द्वारा (रोने के रूप में) अपना आभार प्रकट करता है और जिस समय मनुष्य इस संसार से विदा लेता है, संगीत के द्वारा उसे पावन राम-नाम की महिमा बताई जाती है। इतना ही नहीं, मानव के इतिहास में जब भाषा का जन्म तक नहीं हुआ था, उस समय आपस मे भावो का आदान-प्रदान संगीत द्वारा ही सम्भव था मैक्समूलर ने ठीक ही कहा है कि संगीत का जन्म भाषा से कही पूर्व हुआ है यहाँ पर संगीत का व्यापक अर्थ लिया गया है
भारतीय जीवन मे 16 संस्कार माने गये हैं, जैसे नामकरण, कर्ण-छेदन, मुन्डन, विद्यारम्भ, यज्ञोपवीत (जनेऊ), विवाह आदि। इनमें से प्रत्येक का प्रारम्भ और अन्त संगीत से होता है। ऐसा कोई त्यौहार नहीं है जहाँ संगीत न हो, बल्कि संगीत के बिना त्यौहार अधूरा रह जाता है। छोटा बड़ा कोई भी उत्सव मनाया जाए, उसमें संगीत का रहना आवश्यक होता है, चाहे संगीत प्रार्थना तक ही क्यों न सीमित हो दिन भर के कठोर परिश्रम के बाद सायंकाल वंशी की एक छोटी सी धुन ग्रामीणांे का सारा श्रम हर लेती है जब फसल तैयार होती है तो उनका हर्षोल्लास होली के रूप मे प्रकट होता है। वे जिस खुशी और आत्मीयता से गले मिलते, रग छिड़काने और अबीर-बुक्का लगाते हैं, देखते ही बनता है। किन्तु उनके हर्ष की चरम सीमा उस समय पहुँचती है जब वे गांव के कोने-कोने में ढोलक लेकर अपनी - अपनी धुन में मस्त रहते हैं। मानों पूरे वर्ष की सारी थकावट निकाल रहे हों।
संगीत केवल विनोद की वस्तु नहीं बल्कि ऐसी चिर स्थाई आनंद है जिसमें हमें आत्मसुख मिलता है। इसलिए संगीत भक्ति का अभिन्न अंग रहा है। जितने भी अच्छे भक्त हुये हैं, सभी संगीत के ज्ञाता और साधक थे। भारत का कौन ऐसा व्यक्ति होगा जिसने सूर, तुलसी, मीरा आदि का नाम न सुना हो उनके प्रत्येक पद में भाव है कि मनुष्य आनन्द विभोर हो जाता है। स्व. डा. राजेन्द्र प्रसाद के शब्दों में हमारे साधु-संतों की संगीत साधना का ही यह प्रभाव था कि कबीर, सूर, तुलसी, मीरा, तुकाराम, नरसी मेहता ऐसी कृतियाँ कर गये लो 'हमारे और संसार के साहित्य में सर्वदा ही अपना विशिष्ट स्थान रखेंगी।'