Tuesday, November 5, 2024

अभागा राजा और भाग्यशाली दास

एक बार एक गुरुदेव  अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे। 

एक विशाल नदी जो की सदाबहार थी उसके दोनों तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था! नदी के इधर एक राजा था राजा को बड़ा अहंकार था कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता वहाँ एक दास भी था बहुत ही विनम्र और सज्जन!

एक बार राजा और दास दोनों नदी के पास गये राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की इच्छा व्यक्त की दो नावें थी रात का समय था एक नाव में राजा सवार हुआ और दूसरी में दास सवार हुआ। दोनों नाव के बीच में बड़ी दूरी थी!

राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा की दास नदी के उसपार से इधर आ रहा है! दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा तो राजा ने कहा की तुम रातभर मन्दिर मे थे! दास ने कहा की हाँ और राजाजी क्या मनोहर देव प्रतिमा थी पर आप क्यों नही आये!

अरे मैंने तो रात भर चप्पू चलाया पर .....

गुरुदेव ने शिष्य से पूछा वत्स बताओ की राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उस पार न पहुँचा? ऐसा क्यों हुआ? जब की उसपार पहुँचने में एक घंटे का समय ही बहुत है! 

शिष्य - हे नाथ मैं तो आपका अबोध सेवक हूँ मैं क्या जानूँ आप ही बताने की कृपा करे देव!

ऋषिवर - हे वत्स राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नहीं खोला और  इसी तरह लोग जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहते है पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नही फेंकेंगे, आसक्ति की रस्सी को नहीं काटेंगे तब तक नाव देव मंदिर तक नहीं पहुंचेगी

हे वत्स जब तक जीव स्वयं को सामने रखेगा तब तक उसका भला नहीं हो पायेगा! ये न कहो की ये मैंने किया, ये न कहो की ये मेरा है, ये कहो की जो कुछ भी है वो सद्गुरु और समर्थ सत्ता का है मेरा कुछ भी नही है जो कुछ भी है सब उसी का है!

 जो अहंकार से ग्रसित है वो राजा बनकर चलता है और जो दास बनकर चलता है वो सदा लाभ में ही रहता है! 


संस्कार क्या है...

एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: "बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: "मां मैं इसका बदला लूंगा।"

मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये", पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"

"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।

*हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!

उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली मे

 खाना है बचा लो….

मैं उस दिन भी एक शादी में बाउंसर के रूप में मौजूद था। आजकल का चलन हो गया है कि शादियों में हम बाउंसरों को काम दिया जाने लगा है, हम शादी में अव्यवस्था होने से रोकते हैं, मेरे साथ मेरे तीन साथी और थे उसी शादी में। मैं टीम लीडर हूँ।

मैं काफी देर से अपनी वैन में बैठा ड्रोन के ज़रिए , शादी की गहमा गहमी देख रहा था। मैं लड़की वालों की तरफ से इंगेज किया गया था। मुझे एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी की कुछ अजीब बातें दिखाईं दीं।

पहली बात तो उसने जो खाना खाया, वो अपनी प्लेट में एक एक चीज ले जा रहा था, उन्हें खाकर ही फिर से आ रहा था। उसने खाना खत्म किया।

वो काफ़ी देर तक खाने की कैटरिंग की कतार को देखता रहा। फिर वो कैटरिंग के लोगों को जा जाकर निर्देष देने लगा। फिर उसने खुद एक स्टाल पर खड़े होकर कमान संभाल ली। मुझे कुछ अजीब लग रहा था, मुझे लग रहा था ये कुछ ज्यादा ही केयरिंग हो रहा है कहीं कोई खाने का खोमचा गायब न कर दे। मैंने अपने एक साथी को वैन में बुलाया और मैं उसकी जगह शादी के टेंट में आ गया। मैं घूमते हुए उस आदमी के पास पहुँचा, उसका अभिवादन किया और फिर उसे इशारे से बुलाया।

वो मेरे पास आ गया, मैंने उससे कहा आपसे बात करनी है जरा मेरे साथ आइए। वो मेरे साथ हो लिया। मैं उसे अपनी वैन के पास ले आया, वहाँ ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। "मैं काफी देर से आपको वॉच कर रहा हूँ, आप कैटरिंग स्टाल पर क्या कर रहे थे, आप शादी में आये हुए मेहमान लग रहे हैं घराती तो हैं नहीं, आखिर इरादा क्या है आपका ?"मैंने कहा, पर कहने में सख्ती थी । मेरी बात सुनकर वो हँसने लगा, फिर संजीदा हुआ, मुझे अजीब लगा उसका व्यवहार। 

"चार महीने पहले मेरी बेटी की भी शादी थी।" उसने ठंडी आह भरी।"मेरे यहाँ दो हज़ार लोगों का खाना बना था । हम सही से मैनेज नहीं कर पाए, लोग भी ज्यादा आ गए । बहुत सा खाना वेस्ट कर दिया गया, लोगों ने खाया कम थालियों में छोड़ा ज्यादा । बारात नाचने गाने में लेट हो गई और बारात जब तक खाने पर आती बहुत से खाने के आईटम कम पड़ गए । मेरे समधी नाराज हो गए , बारात के खाने को लेकर बेटी को जब तब ताने मिलते हैं।"

ये कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं और गला भर्रा गया , " मैं सोचता हूँ कि मेरे यहाँ खाने के मामले में सही कंट्रोल और निगरानी रख ली जाती तो मेरी जो इज्जत गई वो बच जाती । अब मेरी कोशिश रहती है कि जिस किसी भी शादी में जाता हूँ , वहाँ खाने को बेमतलब वेस्ट न करके बचाया जाए । इससे न केवल खाना बचेगा बल्कि किसी की इज्जत बची रहेगी , तो सोचता हूँ भाई 'खाना है बचा लो..' अब जाऊँ मैं ? आपकी इजाजत हो तो थोड़ा खाने की स्टाल पर निगरानी रख लूँ।" कहकर वो वहाँ से चला गया ।

मुझे लग रहा था हम चार के अलावा एक पाँचवां बाउंसर और भी है, काश उस जैसे पचास आदमी और हों तो सौ जनों का खाना बचाया जा सकता है। मैंने उसके पीठ पीछे उसके लिए ताली बजाई और फिर से वैन में बैठकर ड्रोन उड़ाने लगा।

उतना ही लो थाली में, व्यर्थ न जाए नाली मे।

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है!!

आपका हर पल मंगलमय हो।

Sunday, November 3, 2024

गोवर्धन

गोवर्धन पूजा का पर्व बहुत शुभ माना जाता है। इसे अन्नकूट पूजन के नाम से भी जाना जाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो इंद्र देव पर भगवान कृष्ण की जीत का प्रतीक है। इस साल गोवर्धन पूजा २ नवंबर को यानी आज मनाई जा रही है।
गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है जिसमें श्री गिरिधर गोपालजी को ५६ प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। यह पर्व दीपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है। कूट का अर्थ होता है पर्वत। अन्नकूट का अर्थ है अन्न का पर्वत।
🌿🌼 भगवान् कृष्ण को छप्पन भोग क्यों लगाते हैं ?
बालकृष्णकी अष्टयाम सेवाका विधान है, इसके अन्तर्गत उन्हें आठ बार भोग भी लगाया जाता है। भगवान् श्रीकृष्णको ५६ प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे ५६ भोग कहा जाता है। बालगोपालको लगाये जानेवाले इस भोगकी बड़ी महिमा है। भगवान् श्रीकृष्णको अर्पित किये जानेवाले ५६ भोगके सम्बन्धमें कई रोचक कथाएँ हैं।
🌿🌼 १. एक कथा के अनुसार माता यशोदा बालकृष्णको एक दिनमें अष्ट प्रहर भोजन कराती थीं। एक बार जब इन्द्रके प्रकोपसे सारे व्रजको बचानेके लिये भगवान् श्रीकृष्णने गोवर्धन पर्वतको उठाया था, तब लगातार ७ दिन तक भगवान्ने अन्न-जल ग्रहण नहीं किया।
८वें दिन जब भगवान्ने देखा कि अब इन्द्रकी वर्षा बन्द हो गयी है, तब सभी व्रजवासियोंको गोवर्धन पर्वतसे बाहर निकल जानेको कहा, तब दिनमें ८ प्रहर भोजन करनेवाले बालकृष्णको लगातार ७ दिनतक भूखा रहना उनके व्रजवासियों और मैया यशोदाके लिये बड़ा कष्टप्रद हुआ। तब भगवान्‌के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धाभक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियोंसहित यशोदा माताने ७ दिन और अष्ट प्रहरके हिसाबसे ७०८-५६ व्यंजनोंका भोग बालगोपालको लगाया।
🌿🌼 २. एक अन्य मान्यताके अनुसार ऐसा कहा जाता है कि गोलोकमें भगवान् श्रीकृष्ण राधिकाजीके साथ एक दिव्य कमलपर विराजते हैं। उस कमलकी ३ परतें होती हैं। इसके तहत प्रथम परतमें ८, दूसरीमें १६ और तीसरीमें ३२ पंखुड़ियाँ होती हैं। इस प्रत्येक पंखुड़ीपर एक प्रमुख सखी और मध्यमें भगवान् विराजते हैं, इस तरह कुल पंखुड़ियोंकी संख्या ५६ होती हैं। यहाँ ५६ संख्याका यही अर्थ है। अतः ५६ भोगसे भगवान् श्रीकृष्ण अपनी सखियोंसंग तृप्त होते हैं।
🌿🌼 ३. एक अन्य श्रीमद्भागवत कथाके अनुसार गोपिकाओंने श्रीकृष्णको पतिरूपमें पानेके लिये १ माह तक यमुनामें भोरमें ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायिनी माँकी पूजा-अर्चना की, ताकि उनकी यह मनोकामना पूर्ण हो। तब श्रीकृष्णने उनकी मनोकामना- पूर्तिकी सहमति दे दी। तब व्रत-समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होनेके उपलक्ष्यमें ही उद्यापनस्वरूप गोपिकाओंने ५६ भोगका आयोजन करके भगवान् श्रीकृष्णको भेंट किया।
छप्पन भोग (भगवान्‌ को चढ़ाये जानेवाले व्यंजनोंके नाम) हिन्दू धर्म में भगवान्‌ को छप्पन भोगका प्रसाद चढ़ाने की बड़ी महिमा है। भगवान्‌को लगाये जानेवाले भोगके लिये ५६ प्रकारके व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है।
छप्पन भोग में परिगणित व्यंजनोंके नाम इस प्रकार हैं-
१-भक्त (भात), २-सूप (दाल), ३-प्रलेह (चटनी), ४-सदिका (कढ़ी), ५-दधिशाकजा (दही- शाककी कढ़ी), ६-शिखरिणी (सिखरन), ७-अवलेह (लपसी), ८-बालका (बाटी), ९-इक्षु खेरिमी (मुरब्बा), १०-त्रिकोण (शर्करायुक्त), ११-बटक (बड़ा), १२- मधुशीर्षक (मठरी), १३-फेणिका (फेनी), १४-परिष्टश्च (पूरी), १५-शतपत्र (खाजा), १६-सधिद्रक (घेवर), १७-चक्राम (मालपूआ), १८-चिल्डिका (चिल्ला), १९-सुधाकुंडलिका (जलेबी), २०-घृतपूर (मेसू), २१- वायुपूर (रसगुल्ला), २२-चन्द्रकला (पगी हुई), २३- दधि (दहीरायता), २४-स्थूली (थूली), २५-कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), २६-खंड मंडल (खुरमा), २७-गोधूम (गेहूँका दलिया), २८-परिखा, २९-सुफलाढ्या (सौंफयुक्त), ३०-दधिरूप (बिलसारू), ३१-मोदक (लड्डू), ३२-शाक (साग), ३३-सौधान (अधानौ अचार), ३४-मंडका (मोठ), ३५-पायस (खीर), ३६ दधि (दही), ३७-गोघृत (गायका घी), ३८- हैयंगवीनम (मक्खन), ३९-मंडूरी (मलाई), ४०-कूपिका (रबड़ी), ४१-पर्पट (पापड़), ४२-शक्तिका (सीरा), ४३ लसिका (लस्सी), ४४-सुवत, ४५-संधाय (मोहन), ४६-सुफला (सुपारी), ४७-सिता (इलायची), ४८- फल, ४९-ताम्बूल, ५०-मोहनभोग, ५१-लवण, ५२- कषाय, ५३-मधुर, ५४-तिक्त, ५५-कटु, ५६-अम्ल।
आज हमें भी गिरिधरनागरजी की कृपा से गोवर्धन पूजन और अन्नकूट की सेवा का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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