Wednesday, April 26, 2023

खामोशी

लगभग 12ध्13 वर्षों के बाद गांव लौटा था। कुछ खास बदलाव नहीं था। हां,कुछ पक्के मकान अवश्य बन गए थे। बाजार जो पहले छोटा हुआ करता था,अब थोड़ा बड़ा हो गया है।

हमारी पुरानी हवेली नुमा घर की शक्ल थोड़ी बदली बदली सी लग रही थी।

परिवार के लोगों के चेहरों में कुछ कुछ परिवर्तन दिख रहा था। उम्र के अनुसार तो यह स्वाभाविक भी था।

ताऊ,चाची, चचेरे भाई बहन सभी की उम्र बढ़ गई थी। कुछ की शादी और कुछ के बच्चे भी थे। इतने वर्षो बाद अचानक मेरे आने से पुराने लोग जो मुझे बचपन से जानते थे,उनके चेहरों पर मिली जुली प्रतिक्रिया थी।

छोटे लोग जो मुझे पहली बार देख रहे थे,उनकी आंखों में एक अजीब सा अजनबीपन दिख रहा था। उनकी नजरों में मैं अपने लिए कुछ अच्छा महसूस नही कर पा रहा था।

ताऊ  जी ने मेरे ठहरने के लिए उपर वाले कमरे को ठीक करने के लिए कह कर कहीं चले गए। उनका अचानक मेरे वर्षों बाद आने के बाद भी बिना ज्यादा कुछ बात चित किए,कहीं चले जाना,मुझे समझ में नहीं आया।

मुझे ऊपर वाले कमरे का रास्ता मालूम था,इस लिए बिना किसी की प्रतीक्षा किए अपना बैग उठा कर सीढियों पर चढ़ गया।

खाने के वक्त एक छोटी सी बच्ची ने दरवाजे से आवाज लगा कर पूछा कि मैं खाना ऊपर ही खाऊंगा या नीचे सब के साथ...?

परिवार के लोगों के साथ मेरा पहला अनुभव अच्छा नहीं था कि सब के साथ खाना खाऊं,मगर अकेले ऊपर में खाना भी अच्छा नही था।

जब मैं नीचे आया तब शयन के पुरानी सी डाइनिंग टेबल पर सभी ने पहले ही खाना शुरू कर दिया था।

मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। चाची ने मेरे प्लेट को मेरी ओर सरका कर इशारा कर दिया दिया कि मैं खुद हीं परोस लूं।

मेरा खाना खत्म भी नही हुआ था कि बाकी लोग प्लेट साफ कर एक एक कर चले गए। मेरी आदत धीरे धीरे खाने की थी।

मैने गौर किया,यहां कोई भी मुझ से बात करने से कतरा रहा था। बस आठ दस साल की एक लड़की थी,जिसको मेरी जिम्मेदारी दी गई थी। वही थोड़ी थोड़ी देर पर आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती थी। बाकी घर के लगभग आधा दर्जन से भी ज्यादा लोग मुझे कोई अहमियत नहीं दे रहे थे। ताऊ जी कभी कभी टुकड़ों में कुछ पूछ लेते,मैं भी उसी अंदाज में जवाब दे देता।

शाम के वक्त मुझे अपने पुराने शहर को देखने की इक्षा हुई। मैं कपड़े बदल रहा था उसी समय वह बच्ची चाय का प्याला लिए कमरे के बाहर से आवाज लगाई। मैने उसे अंदर आ जाने के लिए कहा। मगर वह बाहर ही खड़ी रही। मैं शीशे में अपने बाल संवारते हुए फिर से अंदर आने को कहा तब वह सकुचाई सी अंदर आ गई।

 मैने उसे गौर से देखा, उसका चेहरा कुछ जाना जाना सा लगा । मैने उसके हाथ से चाय का कप ले कर पलंग पर बैठते ही पूछा ष् तुम कौन हो,क्या नाम है तुम्हारा...?

उसने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा ष् मेरा नाम तनु है ष्

ष् तुम किसकी बेटी हो..ष् मैने पूछा पर

वह बिना कुछ बोले लगभग भागती हुई कमरे से बाहर चली गई।

मैं आश्चर्य से दरवाजे के हिलते पर्दे को देखता रहा,जो उसके जोर से झटकने के कारण हिल रहा था।

यह शहर मेरे लिए अजनबी नहीं था। यही मेरी जन्मस्थली है। यहां मैने बचपन और आरंभिक जवानी के दिन  बिताए थे। बाबूजी, मां,भाई,बहन के साथ यहां अनेक वर्ष बिताए थे।

फिर बाबूजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया,तब हम लोग वहां शिफ्ट हो गए।

इस शहर में मेरे बचपन के कई दोस्त थे। कई दोस्तों की शक्ल याद थी कुछ का भूल गया था मगर नाम याद था।

इन्ही दोस्तों में एक खास था विनोद।

उसके घर का रास्ता मुझे याद था।

मेरे पांव उसकी ओर बढ़ गए।

विनोद के दरवाजे पर एक बुजुर्ग की पीठ मुझे दिखी। मेरी आवाज पर वह मुड़ा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। विनोद एकदम बूढ़ा हो गया था। ऊसके सफेद बाल,बेतरतीब उजली दाढ़ी,गाल धसे हुए,शरीर बीमारों जैसी। मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था, जबकि उसने पहली नजर में ही मुझे पहचान लिया था। 

बात बात में उसने मेरी सेहत की तारीफ की तथा पूछा कि मैं किस तरह अपनी सेहत को मेंटेन करता हूं..?

इसका जवाब मेरे पास सिवाय हंस देने के और कुछ नही था।

हम घंटो बतियाते रहे। बचपन और जवानी को याद करते रहे। उन्ही यादों में उसने एक ऐसी बात याद दिला दी जिसने मुझे बुरी तरह बेचैन कर दिया।

देर रात जब मैं ताऊ जी के घर वापस लौटा तब मेरी नजर घर के चारो ओर किसी को  ढूंढ रही थी। मैं कमरे में आ कर बेचैनी से उस बच्ची का इंतजार कर रहा था जो मेरा खयाल रख रही थी । बाहर थोड़ी सी खटक की आवाज होती तो मैं चैक कर खड़ा हो जा रहा था। रात काफी हो चुकी थी इस लिए कोई नहीं आया। घर से जाते वक्त मैंने ताऊ जी को बोल दिया था कि रात का खाना मैं बाहर ही खाऊंगा। इस लिए किसी के पूछने की जरूरत भी नहीं थी।

मुझे नींद नही आ रही थी। मन बेचैन था। एक अपराध बोध से मैं घिरा जा रहा था। 

मुझे विनोद की बात याद आ रही थी,जिसे सुन कर मैं बेचैन हो गया था।

विनोद ने मुझे दस बारह वर्ष पुरानी बातों को याद दिला कर गहरे भंवर में छोड़ दिया था। 

उसने बताया कि दस वर्ष की वह बच्ची मनु की बेटी है। मनु जो हमारे पड़ोस में रहती थी। हमारा और उसका छत साथ में जुड़ा था।मनु,कॉलेज के जमाने में मुझसे एक तरफा प्यार करती थी। उस जमाने में प्यार को लोग पाप की नजर से देखते थे। एक रात मैं छत पर मनु से मिल कर समझा रहा था कि हमारा परिवार वर्षों से पड़ोसी की तरह रहा है। इस तरह का रिश्ता किसी के लिए भी उचित या स्वीकार्य नहीं होगा। 

तभी पड़ोसी द्वारा देख लेने के बात बात बहुत बिगड़ गई थी। 

अगले दिन ताऊ जी ने मुझे मेरे बाबूजी के पास दूसरे शहर भेज दिया।

हम दोनो को रात में छुप कर मिलने की बात आग की तरह पूरे समाज में फैल गई थी। मनु लड़की थी इस लिए उसकी बड़ी बदनामी हुई। उस जमाने में किसी लड़की के दामन में लगे दाग की सजा पूरी उम्र दे कर चुकानी पड़ती थी।

इसी बदनामी के कारण मनु और ताऊ के घर वालों ने आपसी समझौता कर बदनामी के डर के कारण मनु की शादी हमारे चचेरे भाई रजत के साथ कर दी थी।

मनु और रजत की शादी एक धोखे के तहत ताऊ ने करवाया था। रजत को काफी समय से टी बी की बीमारी थी,जिसे ताऊ जी ने छुपा कर रखा था। टी बी के कारण रजत की शादी कहीं हो नही सकती थी। इस लिए मौके का फायदा उठा कर उसकी शादी मनु से कर दी गई। मेरी समझ में आज आ रहा था कि ताऊ ने मुझे शहर से क्यों चले जाने के लिए मजबूर किया था। अगर मैं वहां मौजूद होता तो मनु के साथ यह अन्याय नहीं होने देता।

 शादी के दो वर्ष बाद मनु को एक बेटी हुई। उसके एक वर्ष के पश्चात रजत की टी बी के कारण मृत्यु हो गई। 

मनु कम उम्र में विधवा और एक बेटी की मां बन कर अपना जीवन ताऊ के रहमो करम पर जीने किए मजबूर थी।

इसी लिए जब मैं पहली बार उस मासूम सी बच्ची को देखा तो उसकी शक्ल पहचानी सी लगी। वह बिल्कुल अपनी मां मनु पर गई थी।

उस रात विनोद से मिल कर लौटने के बाद मेरी आंखों में नींद नही थी। मेरी नजरें घर में प्रवेश करते हीं मनु को ढूंढ रही थी। मनु को या तो ताऊ जी के घर वालों ने मेरे सामने आने से मना कर दिया था,या वह खुद मेरा सामना नहीं करना चाहती थी।

मुझे अफसोस हो रहा था कि मेरी वजह से मनु की जिंदगी बरबाद हो गई थी। मैं खुद को मनु का दोषी समझने लगा था।

मैं कमरे में टहलता हुआ अपनी और मनु की बीती जिंदगी के बारे में सब कुछ याद करने की कोशिश करने लगा।

कॉलेज के दिनो की बात थी। हम सभी दोस्त अभी अभी जवान हुए थे।

मेरे पड़ोस में हमारी हमउम्र मीनाक्षी रहती थी। उसके घर वाले और हम सभी पड़ोसी उसे प्यार से मीनू कह कर बुलाते थे। वह थी तो साधारण शक्ल सूरत की मगर उसका व्यवहार,उसके सलीके,बात करने का ढंग और सबसे ज्यादा उसकी तमीज उसे बेहद खूबसूरत बनाती थी।

वह मुझसे ज्यादा लगाव रखती थी,क्योंकि हम नजदीक के पड़ोसी थे ।

हम एक ही क्लास में थे। वह पढ़ने में तेज थी,इस लिए मैं उससे हमेशा सहायता लेता रहता था।

एक बार उसकी एक सहेली ने बताया कि मीनू मुझे पसंद करती है। मुझे आश्चर्य और गुस्सा दोनो साथ ही आया। क्योंकि मनु को मैने कभी उस नजर से नहीं देखा था। उसका और हमारा परिवार वर्षों से एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहते आए थे। इस लिए मेरे मन में कभी भी मनु के लिए ऐसा ख्याल  नहीं आया। 

कई दिनो तक मैं उससे कतराता रहा। कतराने की वजह यह थी कि उसके और हमारे परिवार में गहरे संबंध थे। हम सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे। इस लिए हमारे

परिवारों में यह मालूम होना किसी के लिए ठीक नहीं था।

मीनू कई दिनों तक कॉलेज नही आई। मुझे उसको समझाना था। उसके कॉलेज नही आने से मुझे परेशानी होने लगी। 

वह अपने घर के बरामदे या छत पर जहां वह हमेशा दिखती थी,वहां भी आना छोड़ दिया था।

उसके इस तरह अचानक गायब हो जाने से मुझे भी बेचैनी होने लगी थी।

मगर मेरी यह बेकरारी उसे समझाने के लिए नही बल्कि उसके साथ हमेशा बिताने,उसके लगातार संपर्क में आने से मुझे उसकी आदत सी हो गई थी,जो अचानक बंद हो गई थी। यह बेचैनी उस तरह की थी। मुझे लगने लगा था कि कहीं मुझे भी उससे लगाव तो नहीं हो रहा है....?

एक रात मैं छत पर बैठा था। काली रात थी। कुछ साफ साफ देख पाना कठिन था। थोड़ी देर बाद मेरी नजर मीनू के छत की ओर मुड़ी। वह कब से वहां खड़ी थी,मालूम ही नहीं चला।

वह मुझे ही देख रही थी। 

कई दिनो से मैं उसे ढूंढ रहा था। हम दोनो का छत लगा हुआ था। मगर उसके लिए बीच की दीवार लांघना संभव नहीं था और तब मैं भी नही चाहता था कि हम दोनो परिवार के बीच मर्यादा की दीवार मनु लांघे।

मगर चुकी मुझे उसके मन में मेरे लिए  बनी इश्क की दीवार गिराना था,इस लिए छत की दीवार लांघ गया।

मैं उसके बिलकुल पास खड़ा था। वह पहली बार एक टक मेरी आंखों में झांक रही थी। उसकी आंखों का तेज  मेरे हौसले को कमजोर करती महसूस होने लगी थी। जल्द ही उसकी पलकों के पोर गीले हो गए। मैं समझ गया कि उसकी सहेली ने मेरी नाराजगी के बारे में बता दिया था। वह बिल्कुल खामोश थी। हां आंसुओं ने अब पलकों के बांध को तोड़ दिया था।

मुझसे कुछ कहा नहीं जा रहा था। उसे कैसे समझाऊं कि जो उसके दिल में है,उसे हम दोनो के परिवारों को किसी भी तरह मंजूर नहीं होगा। मैं उसे समझा नही पा रहा था कि थोड़ी देर पहले तक मेरे दिल में उसके लिए वह नहीं था,जो उसके दिल में है।

मेरी जुबान भी धोखा देने लगी थी। उसकी आंखों में अपने लिए सिद्दत, मुझे कमजोर कर चुकी थी।

फिर भी जो मुमकिन नहीं था उसे पालना उचित नहीं था।

मैने ज्यों ही कुछ कहने के लिए अपनी जुबान खोलनी चाही,उसने उंगली के इशारे से रोक दिया।

थोड़ी देर बाद उसने सिसकती हुई आवाज में कहा ष् मैं जानती हूं,आपके लिए मेरी सोच एक तरफा है। मैं ही पागल हो गई थी। आपकी कोई गलती नहीं है। आप सोचते होंगे कि यह मेरा बचपना है,मगर सच तो यह है कि मैं आपको बचपन से ही चाहती रही हूं। मुझे मालूम है कि आपका दिल साफ है,आपने कभी मुझे उस नजर से नहीं देखा। इस लिए आप अपनी नजरों में कभी शर्मिंदा नहीं होना ष्। इतना कहते कहते अपनी हथेली से चेहरा छुपा कर रो पड़ी।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मनु ने जो कहा,इस वक्त वह कितना सच था..? क्या मैं अब भी मनु को चाहने से खुद को मना कर सकता था...?

मैने धीरे से उसके चेहरे से उसकी हाथों को हटा कर सिर्फ इतना कहा ष् तुम्हारी सारी बातें सही नहीं है। तुम एक अच्छी लड़की हो। हमारे परिवार के संबंध वर्षो पुराने हैं। थोड़ी देर पहले तक मैं इसी सोच से परेशान था कि यह हमारे लिए उचित नही है। मगर.......

तभी एक खटके की आवाज पर हम दोनो की नजर सामने की छत की ओर गई। वहां हम दोनो कि पाडोसन बिंदु चाची पता नहीं कब से यह सब देख रही थी। हम दोनो घबरा कर अलग हो गए। मनु जल्दी जल्दी सीढ़ियों की तरफ चली गई। वह जाते जाते इतना कह गई कि ष् आप घबराना नहीं। अगर बात बढ़ी भी तो मैं सब कुछ अपने सर पर ले लूंगी ,आप कुछ मत कहना ष्

मैं भी अपनी छत पर लौट आया।

अगले दिन हमारे घर में दोनो परिवारों की पंचायत लगी थी। मुझसे पूछा गया तो मैंने ना हां किया और न ना कहा,बस खामोशी अख्तियार कर ली। वैसे भी मनु से मिलने के बाद मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

अगले दिन मेरे ताऊ जी ने मुझे शहर छोड़ कर मेरे बाबूजी के पास चले जाने का फरमान सुना डाला।

मुझे भी लगा कि मनु की इज्जत के लिए यही ठीक है।

मैं वहां से हमेशा के लिए चला गया।

रात के किस पहर तक मैं अपनी बीती जिंदगी को याद करता रहा,पता ही नहीं चला।

सुबह नींद खुली तो दिन चढ़ आया था। आंख खुलते ही मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। मुझे मनु की बेटी की प्रतीक्षा थी। मुझे लग रहा था कि मेरे लिए सुबह की चाय वही ले कर आयेगी। काफी वक्त बीत जाने के बाद जब वह नहीं आई तब मैं खुद ही नीचे उतर कर ताऊ जी के पास आ गया। ताऊ जी के कमरे तक पहुंचने के रास्ते में हर जगह मेरी नजर मनु को ढूंढ रही थी। मगर न तो मनु दिखी और न ही उसकी बेटी।

मैं ताऊ जी के पास बैठा था। ताऊ जी अखबार पलट रहे थे,मगर उनका ध्यान मेरी तरफ था। वह और मैं दोनो ही कुछ बोलना चाह रहे थे।

अंत में ताऊ जी ने ही खामोशी तोड़ी। उन्होंने कहा ष् तनु अपनी मां के साथ नानी के पास गई है। थोड़ी देर में नौकर को बुलाया है,वही चाय और नाश्ता बना देगा। कुछ देर इंतजार कर सकते हो न..?

मैने ष् हां ष् में सर हिलाया और थोड़ी देर में लौटने की बात कह कर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर बाद मैं मनु के पिता दरवाजे पर खड़ा सोच रहा था कि कॉल बेल बजाऊं की तभी दरवाजा अपने आप खुल गया। सामने सफेद साड़ी में मनु खड़ी थी। हम दोनो एक दूसरे को गुनहगारों की तरह देख रहे थे। हम में से कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। थोड़ी देर हम यूं ही खड़े रहे। फिर मनु को एहसास हुआ और वह दरवाजे से हट कर मुझे अंदर आने दिया। मैं ड्राइंग रूम में आ कर कुर्सी पर बैठ गया, जबकि मनु दरवाजे के पास ही सर झुकाए खड़ी रही।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद मैने पूछा ष् तुम कैसी हो मनु...?ष्

उसने धीरे से कहा ष् आप देख तो रहे हैं,अच्छी भली हूं ष्

मैने इधर उधर देखते हुए पूछा ष् कोई दिख नही रहा है। चाचा चाची सब कहां हैं ष्?

ष् पापा को गुजरे पांच साल हो गए और मां बाजार गई है ष् उसने जवाब दिया।

मैने उसे बैठने के लिए कहा मगर वह खड़ी ही रही।

मैने फिर पूछा ष् तुम्हारी बेटी बिलकुल तुम्हारी तरह दिखती है,कहां है ष्?

उसने एक कुटिल मुस्कान के साथ मेरी आंखों में  देखते हुए कहा ष् आपको मेरी शक्ल याद थी,जो आपने अंदाजा लगा लिया..? वह भी मां के साथ ही गई है ष्

उसके इस कटाक्ष का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं शर्मिंदा भी था।

मैने फिर मनु से पूछा ष् बिना कॉल बेल बजाए ही तुमने दरवाजा खोल दिया ष्

उसने सकुचाते हुए कहा ष् मैं जानती थी,आप आयेंगे ष्

मैं थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर पूछा ष् तुम अचानक ताऊ जी के घर से यहां क्यों चली आई ?ष् 

उसने कोई जवाब नही दिया मगर उसकी खामोशी ने सब कुछ बता दिया। ताऊ जी ने ही उसे और तनु को अपने घर से मनु की मां के पास भेज दिया था,ताकि उसका सामना मुझसे ना होने पाए।

थोड़ी देर रुकने के बाद वह अंदर जा कर ग्लास में पानी ले आई।

इस बार मेरे एक बार कहने पर वह सामने के कुर्सी पर बैठ गई।

उसने पूछा ष् आपकी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुन कर बहुत दुख हुआ ष्

मैने उससे पूछा ष् तुम्हे कैसे मालूम हुआ ..?

ष् खानदान तो एक ही है। भले ही आपको किसी की खबर की जरूरत नही पड़ी हो,मगर सभी आपकी तरह नहीं होते हैं...ष्

मैं समझ रहा था कि मनु ने मुझ पर तंज किया है। मगर मैने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने फिर पूछा ष् आपके तो बच्चे भी नहीं हैं,फिर जिंदगी कैसे कटती है..?

मैने धीरे से कहा ष् शायद मुझे तुम्हारी आह लगी थी ष्

मैने नजरें उठा कर उसकी और देखा। उसकी आंखे गीली हो रही थी।

मुझसे और बैठा नही जा रहा था। मैने उसे कहा ष् चाची को मेरा प्रणाम कहना ष् और मैं कमरे से बाहर निकल गया।

ताऊ जी मुझ पर नाराज हो रहे थे। मै उन्हे बिना बताए ही मनु से मिलने चला गया था। उनसे मेरी लंबी बहस हुई। दुनियादारी की,संबंधों की,।

उन्होंने ने मुझे मनु की बरबाद हो गई जिंदगी का दोषी ठहराया।

मैने भी रजत के टी बी होने की बात छुपा कर मनु की जिंदगी तबाह करने का ताना दिया।

लड़ाई घंटों चली। इस युद्ध के बीच में मनु की मां को भी शामिल किया गया।

अंत में एक नायाब फैसला हुआ।

उस फैसले के एक हफ्ते के बाद हमारी गाड़ी जिसमे मैं अकेला यहां आया था,अब लौटते वक्त मेरे साथ मनु और हमारी बेटी तनु भी थी......

पोडी मसाला

* दक्षिण भारत में एक गरीबपरवर मसाला लगभग सभी सूबों में समान रूप से लोकप्रिय है
* इसे सूखा और लगभग सभी व्यंजनों के साथ खाया जाता है
* इसका नामकरण अंग्रेजों ने 'गन पाउडर' अर्थात् बारूद मसाला किया था जो काफी सटीक लगता है
* कई जगह इसे दक्षिण भारतीय भोजन का पर्याय समझा जाता है
* दिल्ली में गनपाउडर नामक रेस्त्रां खोला गया था जो अपने सामिष तथा निरामिष व्यंजनों के लिए बहुत जल्दी मशहूर हो गया था
* तमिलनाडु में यह मसाला 'मिलागपोडी' नाम से जाना जाता है ( मिलागु तमिल भाषा में काली मिर्च का नाम है) तो कर्नाटक में सिर्फ इडली पोडी इसकी पहचान है
* केरल में इसका बिरादर 'चम्मनपोडी' है
* केरल वाले संस्करण में नारियल के बुरादे को प्रमुख स्थान दिया जाता है
* समुद्र के तटवर्ती क्षेत्र में सूखी छोटी मछलियों या नन्हे झींगोवाली पोडी भी तैयार की जाती है
* इस मसाले में हल्की खटास के लिए इमली का जरा सा अंश भी मौजूद रहता है
* इस मसाले में काफी तीखापन लाल मिर्च का होता है
* साथ ही हींग के जरा से पुट के साथ काफी मात्रा उरद की दाल की रहती है
* कर्मकांडी ब्राह्मण लहसुन से परहेज करते हैं पर चेट्टीनाडु के संपन्न राजसी वणिक काली मिर्च और करी पत्ते की त्रिवेणी लहसुन के साथ पेश करते हैं
* पोडी का शाब्दिक अर्थ है सूखा खुरदुरा पिसा मसाला
* इसे जरा सा तिल या नारियल का तेल अथवा घी मिलाकर गीली चटनी की तरह भी बरता जाता है
* इडली के साथ पोडी मिल जाए तो बहुत सारे इडलीप्रेमियों को न तो सांभर की चाहत बचती है न नारियल की गीली चटनी की!
* इसे आप किसी भी व्यंजन में ऊपर से बुरककर उसे स्वादानुसार तीखा बना सकते हैं
* खान-पान के जानकारों का मानना है कि पोडी का आविष्कार हमारे पुरखों ने टिकाऊ किफायती चटनी बनाने के लिए किया
* कुछ और न मिले तो चावल पर घी या तेल उडेलकर मात्र पोडी से काम चल जाता है
* यह एक प्रकार से चाट मसाला और उत्तर भारतीय गरम मसाले का काम एक साथ करता है
* सांभर मसाले की शक्ल भले ही इससे मिलती हो पर पोडी में धनिया, जीरा, हल्दी आदि नहीं डाले जाते हैं हां कुछ लोग मेथी दाने को भूनकर इसमें शामिल कर लेते हैं
* पोडी के अनेक प्रकार आंध्र प्रदेश में मिलते हैं
* कहीं कहीं जरा सा गुड मिलाकर इसे मीठा भी बनाने की कोशिश की जाती है
* वहीं गोंगुरा नामक हरी पत्तियों को भी सुखाकर विशेष पोडियों में मिलाया जाता है
* कलाकौशल इसमें निहित है कि सभी चीजें तवे पर कोरी भून ली जाएं ताकि उनमें जरा भी नमी न बची रहे और खराब होने की कोई चिंता न करनी पडे़
* कुछ समय पहले तक घर-घर में पोडी पीसी जाती थी पर आजकल फैक्ट्री में तैयार पैकेटबंद पोडी का चलन छोटे-छोटे कस्बों में भी बढ़ा है
* प्रवासी भारतीयों के लिए एमटीआर इसे बडे़ पैमाने पर निर्यात करती है
* एमटीआर अर्थात माविला टिफिनरूम जो अपनी मुंह में रखते ही घुल जाने वाली इडलियों के लिए मशहूर रहा है, जिनका रस लेने के लिए कभी राजा-रंक-फकीर सभी को लाइन लगानी पड़ती थी
* अधिकांश शौकीनों का मानना है कि इनकी पोडी का नुस्खा घर के स्वाद की याद दिलाता है हालांकि कुछ का कहना है कि विदेश में बसे भारतवंशियों के स्वादानुसार पोडी के उत्पादन ने इसकी गुणवत्ता को प्रभावित किया है
* हर किसी मसाला मिश्रण की तरह पोडी को घर पर तैयार करना बेहतर है जरा से श्रम से कुछ महीने तक टिकने वाला गन पाउडर मसाला हासिल हो जाता है
* याद रखें बारूद की तरह इसे भी नमी सिलाप से बचाने की जरूरत है
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Tuesday, April 18, 2023

सबक

जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई नोकरी की खोज । ये नहीं वो, दूर नहीं पास । ऐसा करते करते 2 3 नोकरियाँ छोड़ते एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई।

फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का चेक। वह बैंक में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले शून्यों का अंतहीन खेल। 2- 3 वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और शून्य बढ़ गए। उम्र 25 हो गयी।
और फिर विवाह हो गया। जीवन की राम कहानी शुरू हो गयी। शुरू के एक 2 साल नर्म, गुलाबी, रसीले, सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए।
और फिर बच्चे के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना बैठना खाना पीना लाड दुलार ।
समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते करना घूमना फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला।
बच्चा बड़ा होता गया। वो बच्चे में व्यस्त हो गयी, मैं अपने काम में । घर और गाडी की क़िस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में शुन्य बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी
इतने में मैं 35 का हो गया। घर, गाडी, बैंक में शुन्य, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा।
इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वि आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही चालीस बयालीस के हो गए। बैंक में शुन्य बढ़ता ही गया।
एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो गुजरे दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।"
उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि "तुम्हे कुछ भी सूझता है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे बातो की सूझ रही है ।"
कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी।
तो फिर आया पैंतालिसवा साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी।
बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में शुन्य बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका कॉलेज ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया परदेश।
उसके बालो का काला रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे चश्मा भी लग गया। मैं खुद बुढा हो गया। वो भी उमरदराज लगने लगी।
दोनों पचपन से साठ की और बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे।
अब तो गोली दवाइयों के दिन और समय निश्चित होने लगे। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापिस आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे।
एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक के फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था। जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा।
उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना। और आप भी वही रह लेना। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया।
मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी दिया बाती ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी "चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं "
वो तुरंत बोली " अभी आई"।
मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा ख़ुशी से चमक उठा।आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गयी और मैं निस्तेज हो गया। हमेशा के लिए !!
उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी "बोलो क्या बोल रहे थे?"
लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल ठंडा पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था।
क्षण भर को वो शून्य हो गयी।
" क्या करू ? "
उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक दो मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। इश्वर को प्रणाम किया। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी।
मेरा ठंडा हाथ अपने हाथो में लिया और बोली
"चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे ? क्या बातें करनी हैं तुम्हे ?" बोलो !!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!......
वो एकटक मुझे देखती रही। आँखों से अश्रु धारा बह निकली। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था।
क्या ये ही जिन्दगी है ? नहीं ??
जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।

Friday, April 7, 2023

14 वर्ष के वनवास में #श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके

 14 वर्ष के वनवास में #श्रीराम प्रमुख रूप से 17 जगह रुके, देखिए यात्रा का नक्शा

प्रभु श्रीराम को 14 वर्ष का वनवास हुआ। इस वनवास काल में श्रीराम ने कई ऋषि-मुनियों से शिक्षा और विद्या ग्रहण की, तपस्या की और भारत के आदिवासी, वनवासी और तमाम तरह के भारतीय समाज को संगठित कर उन्हें धर्म के मार्ग पर चलाया। संपूर्ण भारत को उन्होंने एक ही विचारधारा के सूत्र में बांधा, लेकिन इस दौरान उनके साथ कुछ ऐसा भी घटा जिसने उनके जीवन को बदल कर रख दिया।
1.तमसा नदी : अयोध्या से 20 किमी दूर है तमसा नदी। यहां पर उन्होंने नाव से नदी पार की।
2.श्रृंगवेरपुर तीर्थ : प्रयागराज से 20-22 किलोमीटर दूर वे श्रृंगवेरपुर पहुंचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा पार करने को कहा था। श्रृंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है।
3.कुरई गांव : सिंगरौर में गंगा पार कर श्रीराम कुरई में रुके थे।
4.प्रयाग : कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुंचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा जाता है।
5.चित्रकूणट : प्रभु श्रीराम ने प्रयाग संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर पहुंच गए चित्रकूट। चित्रकूट वह स्थान है, जहां राम को मनाने के लिए भरत अपनी सेना के साथ पहुंचते हैं। तब जब दशरथ का देहांत हो जाता है। भारत यहां से राम की चरण पादुका ले जाकर उनकी चरण पादुका रखकर राज्य करते हैं।
6.सतना : चित्रकूट के पास ही सतना (मध्यप्रदेश) स्थित अत्रि ऋषि का आश्रम था। हालांकि अनुसूइया पति महर्षि अत्रि चित्रकूट के तपोवन में रहा करते थे, लेकिन सतना में 'रामवन' नामक स्थान पर भी श्रीराम रुके थे, जहां ऋषि अत्रि का एक ओर आश्रम था।
7.दंडकारण्य: चित्रकूट से निकलकर श्रीराम घने वन में पहुंच गए। असल में यहीं था उनका वनवास। इस वन को उस काल में दंडकारण्य कहा जाता था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर दंडकाराण्य था। दंडकारण्य में छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं आंध्रप्रदेश राज्यों के अधिकतर हिस्से शामिल हैं। दरअसल, उड़ीसा की महानदी के इस पास से गोदावरी तक दंडकारण्य का क्षेत्र फैला हुआ था। इसी दंडकारण्य का ही हिस्सा है आंध्रप्रदेश का एक शहर भद्राचलम। गोदावरी नदी के तट पर बसा यह शहर सीता-रामचंद्र मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर भद्रगिरि पर्वत पर है। कहा जाता है कि श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान कुछ दिन इस भद्रगिरि पर्वत पर ही बिताए थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में सिर्फ यहीं पर जटायु का एकमात्र मंदिर है।
8.पंचवटी नासिक : दण्डकारण्य में मुनियों के आश्रमों में रहने के बाद श्रीराम अगस्त्य मुनि के आश्रम गए। यह आश्रम नासिक के पंचवटी क्षेत्र में है जो गोदावरी नदी के किनारे बसा है। यहीं पर लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक काटी थी। राम-लक्ष्मण ने खर व दूषण के साथ युद्ध किया था। गिद्धराज जटायु से श्रीराम की मैत्री भी यहीं हुई थी। वाल्मीकि रामायण, अरण्यकांड में पंचवटी का मनोहर वर्णन मिलता है।
9.सर्वतीर्थ : नासिक क्षेत्र में शूर्पणखा, मारीच और खर व दूषण के वध के बाद ही रावण ने सीता का हरण किया और जटायु का भी वध किया था जिसकी स्मृति नासिक से 56 किमी दूर ताकेड गांव में 'सर्वतीर्थ' नामक स्थान पर आज भी संरक्षित है। जटायु की मृत्यु सर्वतीर्थ नाम के स्थान पर हुई, जो नासिक जिले के इगतपुरी तहसील के ताकेड गांव में मौजूद है। इस स्थान को सर्वतीर्थ इसलिए कहा गया, क्योंकि यहीं पर मरणासन्न जटायु ने सीता माता के बारे में बताया। रामजी ने यहां जटायु का अंतिम संस्कार करके पिता और जटायु का श्राद्ध-तर्पण किया था। इसी तीर्थ पर लक्ष्मण रेखा थी।
10.पर्णशाला: पर्णशाला आंध्रप्रदेश में खम्माम जिले के भद्राचलम में स्थित है। रामालय से लगभग 1 घंटे की दूरी पर स्थित पर्णशाला को 'पनशाला' या 'पनसाला' भी कहते हैं। पर्णशाला गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीताजी का हरण हुआ था। हालांकि कुछ मानते हैं कि इस स्थान पर रावण ने अपना विमान उतारा था। इस स्थल से ही रावण ने सीता को पुष्पक विमान में बिठाया था यानी सीताजी ने धरती यहां छोड़ी थी। इसी से वास्तविक हरण का स्थल यह माना जाता है। यहां पर राम-सीता का प्राचीन मंदिर है।
11.तुंगभद्रा : सर्वतीर्थ और पर्णशाला के बाद श्रीराम-लक्ष्मण सीता की खोज में तुंगभद्रा तथा कावेरी नदियों के क्षेत्र में पहुंच गए। तुंगभद्रा एवं कावेरी नदी क्षेत्रों के अनेक स्थलों पर वे सीता की खोज में गए।
12.शबरी का आश्रम : तुंगभद्रा और कावेरी नदी को पार करते हुए राम और लक्ष्मण चले सीता की खोज में। जटायु और कबंध से मिलने के पश्चात वे ऋष्यमूक पर्वत पहुंचे। रास्ते में वे पम्पा नदी के पास शबरी आश्रम भी गए, जो आजकल केरल में स्थित है। शबरी जाति से भीलनी थीं और उनका नाम था श्रमणा। 'पम्पा' तुंगभद्रा नदी का पुराना नाम है। इसी नदी के किनारे पर हम्पी बसा हुआ है। पौराणिक ग्रंथ 'रामायण' में हम्पी का उल्लेख वानर राज्य किष्किंधा की राजधानी के तौर पर किया गया है। केरल का प्रसिद्ध 'सबरिमलय मंदिर' तीर्थ इसी नदी के तट पर स्थित है।
13.ऋष्यमूक पर्वत : मलय पर्वत और चंदन वनों को पार करते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत की ओर बढ़े। यहां उन्होंने हनुमान और सुग्रीव से भेंट की, सीता के आभूषणों को देखा और श्रीराम ने बाली का वध किया। ऋष्यमूक पर्वत वाल्मीकि रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा के निकट स्थित था। ऋष्यमूक पर्वत तथा किष्किंधा नगर कर्नाटक के हम्पी, जिला बेल्लारी में स्थित है। पास की पहाड़ी को 'मतंग पर्वत' माना जाता है। इसी पर्वत पर मतंग ऋषि का आश्रम था जो हनुमानजी के गुरु थे।
14.कोडीकरई : हनुमान और सुग्रीव से मिलने के बाद श्रीराम ने वानर सेना का गठन किया और लंका की ओर चल पड़े। तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो लगभग 1,000 किमी तक विस्तारित है। कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में स्थित है, जो पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से घिरा हुआ है। यहां श्रीराम की सेना ने पड़ाव डाला और श्रीराम ने अपनी सेना को कोडीकरई में एकत्रित कर विचार विमर्ष किया। लेकिन राम की सेना ने उस स्थान के सर्वेक्षण के बाद जाना कि यहां से समुद्र को पार नहीं किया जा सकता और यह स्थान पुल बनाने के लिए उचित भी नहीं है, तब श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम की ओर कूच किया।
15..रामेश्वरम : रामेश्वरम समुद्र तट एक शांत समुद्र तट है और यहां का छिछला पानी तैरने और सन बेदिंग के लिए आदर्श है। रामेश्वरम प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ केंद्र है। महाकाव्य रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने के पहले यहां भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का शिवलिंग श्रीराम द्वारा स्थापित शिवलिंग है।
16.धनुषकोडी : वाल्मीकि के अनुसार तीन दिन की खोजबीन के बाद श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान ढूंढ़ निकाला, जहां से आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो। उन्होंने नल और नील की मदद से उक्त स्थान से लंका तक का पुनर्निर्माण करने का फैसला लिया। धनुषकोडी भारत के तमिलनाडु राज्य के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक गांव है। धनुषकोडी पंबन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। धनुषकोडी श्रीलंका में तलैमन्नार से करीब 18 मील पश्चिम में है।
17.'नुवारा एलिया' पर्वत श्रृंखला : वाल्मीकिय-रामायण अनुसार श्रीलंका के मध्य में रावण का महल था। 'नुवारा एलिया' पहाड़ियों से लगभग 90 किलोमीटर दूर बांद्रवेला की तरफ मध्य लंका की ऊंची पहाड़ियों के बीचोबीच सुरंगों तथा गुफाओं के भंवरजाल मिलते हैं। यहां ऐसे कई पुरातात्विक अवशेष मिलते हैं जिनकी कार्बन डेटिंग से इनका काल निकाला गया है।
श्रीलंका में नुआरा एलिया पहाड़ियों के आसपास स्थित रावण फॉल, रावण गुफाएं, अशोक वाटिका, खंडहर हो चुके विभीषण के महल आदि की पुरातात्विक जांच से इनके रामायण काल के होने की पुष्टि होती है। आजकल भी इन स्थानों की भौगोलिक विशेषताएं, जीव, वनस्पति तथा स्मारक आदि बिलकुल वैसे ही हैं जैसे कि रामायण में वर्णित किए गए हैं।