Friday, October 29, 2021

**दीपावली**

दीपावली का त्यौहार आया      

   खुशियों का बहार लाया 
अपनों का साथ और प्यार लाया
  सुख समृद्धि का बहार लाया
दीपावली का त्यौहार आया
हर चेहरे पर मुस्कान लाया
घर आंगन को दीपों से सजाया
दीए जलाकर रोशनी फैलाया
दीपावली का त्यौहार आया
मिठाई,पटाखों से 
हर्षोल्लास के साथ
दीपावली पर्व मनाया
दीपावली का त्यौहार आया

         प्रस्तुति 
     कृष्णा चौहान
  अमेरी,तह.-बरमकेला

# दावत #

हमारे गाँव में एक बुड्ढे थे जिनका नाम बनी सिंह था ।जब मैंने उन्हें पहली बार देखा तब में सिर्फ दस साल का हूँगा ।

लोग उनकें बारे में बहुत भला बुरा कहते थे और वास्तव में वे थे भी बहुत बूरे ।उनके बारे में एक बात तो प्रचलित थीं कि जब उनका परिवार साजे में रहता था तो वही अपने सभी भाईयों में मुखिया थे और उनके भाई उनपर आंख बंद कर के विश्वास करते थे ।एक दिन सभी भाईयों ने मिलकर छ बिघा जमीन खरीदी और बेनामा कराने सभी भाईयों ने बनीं सिंह जो मुखिया थे उन्हें तहसील भेज दिया और कोई भी भाई उनके साथ नहीं गया|बनी सिंह ने बिना किसी को बताए तीन बिघा जमीन अपने नाम करा ली और घर आकर कह दिया कि मैं पिता जी के नाम बेनामा करा आया ।सभी ने कहा चलो अच्छा है, आखिर छ बिघा जमीन खरीद ली चलो बच्चों के काम आएगी|दिन धीरे धीरे बितते चले गए।ये तीन भाई थे|एक दिन बीच वाला जिसका नाम राज सिंह था कही गया और फिर कभी लौटकर नहीं आया।उसके तीन लडके और दो लडकियाँ थी।एक लड़का पन्द्रहा साल जिसका नाम मुकेश था, दूसरा धर्मेश जो बारहा साल और तीसरा टिन्नू जो लगभग दस साल का था और दोनों लडकियाँ लता और रेखा और भी छोटी थी। अब बच्चे तो सभी लगभग छोटे ही थे।अब माँ और सबसे छोटे भाई ने कई दिनों तक खोजा और पुलिस में भी कम्पलेन्ट कराई पर कोई सूराक ना मिला जब काफी दिन हो गयें तो माँ और बच्चों ने भी सब्र कर लिया अब गाँव कि औरतें भी मुंह पर ही कहने लगीं कि जिन्दा होता तो आ जाता अब ये चूडियाँ तोड़ डाल, मंगलसूत्र उतार फेक और सिन्दूर मिटा दें पर पत्नी को ऐसा कभी नहीं लगा कि उसका पती नहीं रहा उसकों तो हमेशा यही लगा कि कहीं गया है आ जाएगा।पर बाहर की औरतों के ताने सुन सुन कर वो भी परेशान थी।उसे भी उनकी बातों पर विश्वास होने लगा कि उसका पति शायद कभी ना आए और वो विधवा कि जिंदगी जीने को तैयार हो गई।अब जैसे ही वह अपनीअपनी माथे कि बिंदिया हटाने चली तभी बडे़ लडके ने उसे रोक दिया और उसका जवाब सुनकर किसी कि कुछ कहने कि हिम्मत ना हुई और जो औरतें वहाँ थी वो भी चुप ही वहाँ से चली गई।उस दिन के बाद उसकी माँ ने कभी भी अपने माथे कि बिंदिया, मांग का सिन्दूर हटाने की बात नहीं कि।बड़े लडके मुकेश ने कहा, पापा ही तो यहाँ नहीं है, मैं और तेरे दोनों छोटे बेटे तो है, तू हमारे ऊपर सुहागन रहेगी, सिन्दूर लगाएगी, मंगल सूत्र पहनेगी और बिंदिया लगाएगी।कुछ दिनों बाद बनीं सिंह का सबसे छोटा भाई जयपाल भीअपनी टयूबेल पर सिंचाई करते समय बिजली से करंट लग जाने के कारण मर गया और उसने भी दो छोटे छोटे बच्चे छोडे ।अब बस सारे बच्चों के ताऊ बनी सिंह ही बचे और बनी सिंह के केवल एक लड़का शिवकुमार था। धीरे धीरे सभी बच्चे बडे़ हो गयें , लगभग सभी पच्चीस साल के आस पास हो चुकें थे और बनी सिंह बिल्कुल बुड्ढे, अब बटवारे का समय आया क्योंकि सभी भाईयों के बच्चों को उनके हिस्से की जमीन मिलनी थी|सभी खेतों का बटबारा हुआ।उस छ बिघा जमीन का भी होना था, अब बनी सिंह बोले इस छ बिघा जमीन में से उस समय तीन बिघा तो मैने अलग ली थी।ये मेरेे नाम पर है और शेष तीन बिघा में से हम सभी बांट लेते हैं।मुकेश जो उस समय सबसे बड़ा था उसे कुछ कुछ याद था कि छ बिघा जमीन साजे में ली गई थी, उसने ये कहा भी पर बनीं सिंह ने कहा तुम छोटे थे तुम्हें कुछ नहीं पता और उसकी बात दबा दी। शिवकुमार को भी सब सच्चाई पता थी पर लालच में उसने कुछ नहीं बताया और बनीं सिंह ने तीन बिघा जमीन कि बेईमानी कर ली, साजे में बनी सिंह ने अपना घर भी बनाया था वो भी ये कहकर ले लिया कि ये मैंने अपने पैसों से बनाया था इसलिए ये भी मेरा है अब बस बनी सिंह के दोनों भाईयों के बच्चों को थोड़ी सी जमीन मिली बाकी कुछ नहीं।बिना बाप के बच्चे अपनी अपनी जमीन पर झोपड़ी डालकर रहने लगे और उसी जमीन पर खेती करने लगे।बनी सिंह को गाँव के सभी लोग बेईमान कहने लगे और बनी सिंह था भी बेईमान। बनी सिंह अब बिल्कुल बुडढा हो गया था।बनी सिंह कि एक आदत और भी थी कि पूरे गाँव में कोई भी खुशी होने पर बनी सिंह के घर में दुख मनाया जाता था क्योंकि उसे सब कि खुशी से जलन होती थी।बनी सिंह कि इज्जत इतनी खराब हो चुकी थी कि लोग कहते थे, हे भगवान इसे उठा ले। पर वह भी मरने वाला नहीं था नव्वे साल पार करकर भी नहीं मरा लोगों कि वदुआ का भी उस कोई असर नहीं।अब गाँव के बच्चे और बड़े उसके मुह पर ये कहने लगे कि बाबा अपने मरने कि दावत जल्दी कराओ, बहुत दिनों से दावत नहीं खाई।बनी सिंह उनपर चिल्लाता और गालियाँ देता पर वे भी रोज बनी सिंह से उसके मरने कि दावत मांगते।बनी सिंह ने अपनी जवानी के दिनों में एक जमीन बीस हजार में अपनी ससुराल में खरीदी थी जो अब उसपर सरकारी फैक्ट्री बनने के कारण सरकार ने एक करोड़ में खरीद ली और बनी सिंह को बुढ़ापे में एक करोड़ मिल गयें।अब बनी सिंह ने सोचा कि मेरी एक लड़की जो गरीब घर में है और उसका पति शराबी हैं तो पचास लाख रुपये में उसे दे देता हूँ वो भी अमीर हो जाएगी और खुशी से रहने लगेगी बाकी तो शिवकुमार के है ही।उसने यह बात शिवकुमार को बताई, उसे यह बात पसंद न आई।वह सारा पैसा हडपना चाहता था इसलिए उसने एक योजना बनाई।बनी सिंह बुडढा तो था ही इसलिए उसे दिखाई भी कम देता था, शिवकुमार ने बनी सिंह कि चैक बुक से चैक लेकर एक करोड़ रुपये भरे और बनी सिंह से झूठ बोलकर उस पर हस्ताक्षर करा लिए और अपने खाते में चैक लगाकर सारा धन अपने खाते में डाल दिया। कुछ दिनों बाद बनी सिंह अपने पौते को लेकर जो लगभग सोलह साल का था बैंक गया और पचास लाख खाते से निकालने के लिए बैक मेनेजर से बात कि तब बैंक मैनेजर ने बताया कि आपके खाते में तो एक भी पैसा नहीं है, कुछ दिनों पहले आपके दिए चैक के आधार पर हमने एक करोड़ रुपये शिवकुमार नाम के खाते में भेज दिए।इतना सुनते ही बनी सिंह को सब समझ आ गया और तुरंत ही दिल का दौरा पड गया|बनी सिंह को अस्पताल में भर्ती करवा गया।उसके दौरे के बारे में सुनते ही गाँव में खुशी की लहर आ गई परन्तु अभी किसी को बनी सिंह की दावत मिलने वाली नहीं थी।वह बच गया और घर आ गया परन्तु अब उसने खाट पकड़ ली क्योंकि उसे अपने ही लडके की बेईमानी से गहरा सदमा पहुँचा और तब उसे समझ आया कि जैसी करनी बैसी भरनी।अब वह स्वयं भी अपने मरने कि दुआ मांगने लगा पर भगवान भी उसे बुलाना नहीं चाहते थे।वह भी उसे खाट में गला गला कर उसके किए कि सजा दे रहे थे।लोग अभी भी उससे कहते कि तुम तो बहुत बेशर्म हो दिल के दोरे से भी नही मरे, अरे अब तो मरने कि दावत दो।बनी सिंह को रोज यही ताने सुनने पडते और तो और उसके बहु बेटे भी उसके मुह पर कहते अब तो मर जा बुड्ढे, हम कब तक तुझे खाट पर खाने को दे।लोग रोज उसके पौते से कहते, अरे जल्दी घर जा तेरे बाबा मर गए और वो घर जाता तो बाबा को जिंदा पाता।इसी प्रकार कि मजाक लोग रोज करते|एक दिन पौता खेतों में काम कर रहा था और भी लोग आस पास अपने खेत में काम कर रहे थे, तभी एक आदमी उसके पास आया और बोला तेरे बाबा मर गए जल्दी घर जा|उसके उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और काम करता रहा, आदमी ने कहा, सच में तेरे बाबा मर गए, में मजाक नही कर रहा, अभी गाँव से फोन आया है मेरे पास, तू घर जा।उसे विशवास न था उसे बस मजाक लग रहा था, पर आदमी के बहुत समझाने पर वह घर जाने को तैयार हो गया, पर उसे अभी भी मजाक लग रहा था, पर जब वह घर पहुंचा उसके बाबा सच में मर चुकें थे और इस तरह गांव के लोगों को बनी सिंह के मरने कि दावत नसीब हुई

नितिन राघव
सलगवां बुलन्दशहर
उत्तर प्रदेश

नए आविष्कारों और नवाचार परिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकार को सार्वजनिक निजी भागीदारी में एक साथ काम करना ज़रूरी

भारत को तात्कालिक आत्मनिर्भर बनाने अनेकता में एकता, एक और एक ग्यारह कहावतें धरातल पर उतारने उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकार में सार्वजनिक निजी भागीदारी ज़रूरी - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में वर्तमान समय में कोविड महामारी के मौजूद रहने के बीच अति सावधानी, प्रोटोकाल का पालन करते हुए और ज़ज़बे जांबाज़ी के साथ दीपावली का पर्व मनाने की तैयारियां, खरेदी, बाजारों ने भीड़ भाड़ देखने को मिल रही है, जिसके लिए भारतीय नागरिक पिछले साल से तरस रहे थे। इस माहौल के बीच आत्मनिर्भर भारत बनाने की भी बार-बार हर मौके पर गूंज होती है। हमारे माननीय पीएम महोदय भी करीब-करीब हर संबोधन में वोकल फॉर लोकल के लिए अपील करते हुए देखे गए हैं। आत्मनिर्भर भारत हो भी क्यों ना!!! यह हमारे हर भारतीय के लिए एक गर्व, सीना चौड़ा करने वाली बात है !!! परंतु साथियों इसको कामयाब बनाने के लिए, भारत में प्रचलित कहावतें है, अनेकता में एकता, एक और एक ग्यारह को वास्तविक धरातल पर लाकर क्रियान्वयन करना होगा!! साथियों बाद अगर हम, एक और एक ग्यारह, कहावत की करें तो हम इसमें उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकार को शामिल कर तीनों की ताकत को एक कर उनसे उत्पन्न नए अविष्कारों और नवाचार परिस्थितिकी तंत्र को विकसित और मजबूत करके वैश्विक बाजार पर अपनी मजबूत छाप छोड़ सकते हैं। क्योंकि भारतीयों की बुद्धि कौशलता तो पहले से ही जग प्रसिद्ध, विश्व प्रसिद्ध है!! बस!! ज़रूरत है इन तीनों क्षेत्रों की बुद्धि कौशलता को एक मंच पर आने की!! याने उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकार की सार्वजनिक, निजी भागीदारी से हर क्षेत्र में एक साथ काम करना जिसमें तीनों हितधारकों की ज्ञान सुज़न, अविष्कार और नवाचार के माध्यम से देश में सामाजिक, आर्थिक विकास को गति देने और प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निहत है। साथियों बात अगर हम इस मुद्दे को समझने की करें तो हमें दो-तीन दशक पीछे जाएं तो घरेलू गैस, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया चैनल, पथ और हवाई परिवहन, बैंकिंग क्षेत्र,शिक्षा क्षेत्र इत्यादि सहितअनेक क्षेत्र सरकारी नियंत्रण में थे!! और हम आज की स्थिति देखें तो सार्वजनिक, निजी भागीदारी में इनकी सेवा की क्वालिटी और प्रौद्योगिकी विस्तार तकनीकी में रात और दिन का फ़रक नजर आता है!! कंपटीशन बढ़ी है जिससे फ़ायदा जनता को काफी हद तक मिला है !! साथियों बात अगर हम वर्तमान डिजिटलाइजेशन युग करें तो हम तेज़ी से आत्मनिर्भर भारत, एक नए भारत को की ओर बढ़ रहे हैं जिसमें इन ज्ञान सृजन, अविष्कार और नवाचारका अति तात्कालिक महत्व है, जिसे तालमेल से साकार कर नई दिशा देना तीनों महाशक्तियों को मिलकर देना है। साथियों बात अगर हम दिनांक 27 अक्टूबर 2021 को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पीएम कार्यालय राज्य मंत्री के एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी की विज्ञप्ति के अनुसार उन्होंने भी इस मुद्दे पर,आज यहां कहा है कि वैज्ञानिक नवाचार में शिक्षा क्षेत्र (अकादमिक) और उद्योग को आवश्यक हितधारक बनाने के लिए एक संस्थागत तंत्र विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नवाचार के तिहरे कुंडली प्रतिदर्श अर्थात ट्रिपल हेलिक्स मॉडल यानी उद्योग,विश्वविद्यालयों और सरकार में तीनों हितधारकों की ज्ञान सृजन, आविष्कार और नवाचार के माध्यम से देश में सामाजिक-आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निहित  है। उन्होंने कहाकि एक मज़बूत आईपी पोर्टफोलियो के साथ वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) सबसे बड़ा सरकारी वित्त पोषित संगठन होने के नाते  विश्वविद्यालयों में नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत कर सकता है और इस साझेदारी से न केवल विश्वविद्यालयों और सीएसआईआर को लाभ होगा बल्कि इससे प्रेरित होकर उद्योग नए आविष्कारों और नवाचारों को लाकर विकास को भी गति दे सकेंगे। उन्होंने सीएसआईआर से इनोवेशन पार्क जैसे जुड़ाव के उपयुक्त मॉडल लाने का आह्वान किया,जहां एक ओर यह विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय संस्थानों के उत्कृष्ट मौलिक अनुसंधान का लाभ उठाएगा वहीं, दूसरी ओर  यह प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक प्रयोगों और प्रसार में उद्योगों को मजबूत करेगा। उन्होंने आगे कहा कि इससे अंतः विषयी  और परस्पर अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा मिलेगा  जिससे अंततोगत्वा नवाचार के अनुपात को प्रोत्साहन भी मिलेगा उन्होंने कहा, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के नेतृत्व में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (सीएसआईआर) के पुन: स्थापन की रिपोर्ट को सार्वजनिक निजी भागीदारियों (पीपीपीज) और नवाचार पार्क तैयार करने के संदर्भ के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे विश्वविद्यालयों सीएसआईआर और उद्योग को एक साथ साझेदारी करने की अनुमति  मिलती है। साथ ही इससे भारत को दुनिया में एक अग्रणी वैज्ञानिक शक्ति बनाने के लिए अगले 25 वर्षों में देश के सतत विकास के लिए नवाचार और प्रौद्योगिकियों को लचीलेपन और चपलता के साथ आगे उपयोग की उस समय अनुमति मिलती है जब देश  स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे कर रहा  हो। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करेंगे तो हम पाएंगे कि नए अविष्कारों और नवाचार परिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने, उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकार को सार्वजनिक, निजी भागीदारी में एक साथ काम करना ज़रूरी है तथा भारत को तात्कालिक आत्मनिर्भर देश बनाने अनेकता में एकता, एक और एक ग्यारह कहावतें धरातल पर उतारने के लिए उद्योग, विश्वविद्यालयों और सरकारों में सार्वजनिक निजी भागीदारी अत्यंत ज़रूरी हैं। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Saturday, October 23, 2021

तेज़ी से फ़लफूल रहा झोलाझाप डॉक्टर का गोरख धंधा


अलीगंज/एटा। आज हमारे देश प्रदेश में झोलाछाप डॉक्टरों की बाढ़ सी आ गयी है ऐसे में एथिकल व अच्छे डॉक्टरों को स्वास्थ्य सेवा देने का मौका ही नही मिल पा रहा है। ऐसा ही एक मामला थाना क्षेत्र के अंर्तगत देखने को मिला है जहां एक झोलाछाप डॉक्टर अबैध व मानक विहीन क्लीनिक बनाकर अपना गोरख धंधा बहुत ही तेजी से चला रहा है। सूत्रों से मिली जानकारी के  मुताबिक़ थाना क्षेत्र के मोहल्ला गही अलीगंज कस्बा में एल एस मेमोरियल क्लीनिक के नाम से मानक विहीन व अबैध रूप से एक क्लीनिक चलाया जा रहा है जहां पर क्लीनिक के मालिक झोलाछाप डॉ मानवेन्द्र सिंह का दावा है कि हर मरीज की पुरानी से पुरानी बीमारी की दवा गारंटी से दी जाती है और ऑनलाइन भी मरीज ठीक किये जाते हैं। सही मायने में देखें तो भोले भाले गरीब लोगों की जेब काटी जाती है। आपको बता दें इस क्लीनिक के मालिक झोलाछाप डॉ मानवेन्द्र सिंह बहुत ही शातिर व चालाक किस्म का व्यक्ति हैं जो कि स्वास्थ्य विभाग को चकमा दे मानक विहीन अबैध रूप से पूरा क्लीनिक बनाकर सरकार व स्वास्थ्य विभाग की आंखों में धूल झोंक रहा है और गरीब जनता को इस महामारी में दौर में लूट व पेट काट रहा है। अब देखना यह है कि उस झोलाछाप डॉक्टर व मानक विहीन क्लीनिक पर क्या जिला प्रशासन का डंडा चलता है की नही? वही लोगों का कहना है कि ऐसे झोलाछाप डॉक्टर राज्य, प्रशासन व समाज के साथ धोखाधड़ी करते हुए बिना चिकित्सीय योग्यता व मानक विहीन अवैध रूप से क्लीनिक खोलकर चिकित्सा व्यवस्था को चला रहे हैं ऐसे झोलाछाप डॉक्टरों पर तत्काल प्रभाव से कार्यवाही होनी चाहिए।