Thursday, July 25, 2019

भारतीय शोधकर्ताओं ने विकसित किया जहरीले रसायनों का डेटाबेस

नई दिल्ली  (इंडिया साइंस वायर): पर्यावरण या फिर दैनिक जीवन से
जुड़े उत्पादों के जरिये हर दिन हमारा संपर्क ऐसे रसायनों से होता है, जो सेहत के
लिए हानिकारक होते हैं। इस तरह के रसायन उपभोक्ता उत्पादों से लेकर
कीटनाशकों, सौंदर्य प्रसाधनों, दवाओं, बिजली की फिटिंग से जुड़े सामान, प्लास्टिक
उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों समेत विभिन्न चीजों में पाए जाते हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसे रसायन का एक विस्तृत डेटाबेस तैयार किया है, जो
मानव शरीर में हार्मोन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं, जिससे शारीरिक
विकास, चयापचय, प्रजनन, प्रतिरक्षा और व्यवहार पर विपरीत असर पड़ सकता
है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ऐसे रसायनों को स्वास्थ्य से जुड़ा प्रमुख
उभरता खतरा बताया है। इस खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है
कि हार्मोन्स के तंत्र को प्रभावित करने वाले ये रसायन पर्यावरण में मौजूद जहरीले
रसायनों का सिर्फ एक उप-समूह है।
यह डेटाबेस रसायनों की कोई आम सूची नहीं है, बल्कि यह स्वास्थ्य पर रसायनों के
कारण पड़ने वाले प्रभाव पर केंद्रित शोधों के आधार पर तैयार की गई एक विस्तृत
सूची है। इनमें से अधिकतर शोधों में रसायनों का परीक्षण मनुष्य के अलावा अन्य
जीवों पर भी किया गया है। चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं
ने यह डेटाबेस विकसित किया है।
इस डाटाबेस को विकसित करने के दौरान अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों से जुड़े 16
हजार से अधिक वैज्ञानिक अध्ययनों की पड़ताल की गई है। इस अध्ययन में मनुष्य
के हार्मोन तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाले 686 रसायनों के बारे में शोधकर्ताओं को
पता चला है। इनके संदर्भ 1796 शोध पत्रों में पाए गए हैं, जो रसायनों के कारण
हार्मोन्स में होने वाले बदलावों की पुष्टि करते हैं। DEDuCT नामक इस डेटाबेस का
पहला संस्करण प्रकाशित किया जा चुका है, जिसे निशुल्क देखा जा सकता है।


इसके अंतर्गत रसायनिक पदार्थों को सात वर्गों में बांटा गया है, जिनमें मुख्य रूप से
उपभोक्ता उत्पाद, कृषि, उद्योग, दवाएं एवं स्वास्थ्य क्षेत्र, प्रदूषक, प्राकृतिक स्रोत
और 48 उप-श्रेणियां शामिल हैं। डेटाबेस में शामिल करीब आधे रसायनों का संबंध
उपभोक्ता उत्पादों की श्रेणी से जुड़ा पाया गया है। डेटाबेस में पहचाने गए 686
संभावित हानिकारक रसायनों में से केवल 10 रसायन अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण
एजेंसी की सुरक्षित रसायन सामग्री सूची (एससीआईएल) में शामिल हैं।
कौन-सा हार्मोन अवरोधक रसायन, किस मात्रा में मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित
कर सकता है, इसकी जानकारी इस डेटाबेस में मिल सकती है। इसके साथ ही, यह
भी पता लगाया जा सकता है कि अध्ययनों में रसायन का परीक्षण मनुष्य या फिर
किसी अन्य जीव पर किया गया है। रसायनों की मात्रा की जानकारी महत्वपूर्ण है
क्योंकि कई रसायनों की बेहद कम मात्रा से भी शरीर पर बुरा असर पड़ सकता है।
इस डेटाबेस से किसी पदार्थ की रासायनिक संरचना, भौतिक रासायनिक गुण और
रसायनों के आणविक विवरणक प्राप्त किए जा सकते हैं।


चेन्नई स्थित गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं की टीम


अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे, गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता अरिजित
सामल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "हमने विभिन्न शोध पत्रों में प्रकाशित
प्रायोगिक प्रमाण के आधार पर अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों की पहचान की है,
और उनकी खुराक की जानकारी के साथ-साथ उनके प्रतिकूल प्रभावों का संकलन


किया है। यह जानकारी इन रसायनों द्वारा अंतःस्रावी व्यवधान के तंत्र को समझने
की दिशा में विष विज्ञान अनुसंधान में उपयोगी हो सकती है।"
यह डेटाबेस नियामक एजेंसियों, स्वास्थ्य अधिकारियों और उद्योग के लिए उपयोगी
हो सकता है। इसके अलावा, इसका उपयोग अंतःस्रावी अवरोधक रसायनों के लिए
मशीन लर्निंग-आधारित भविष्यसूचक उपकरण विकसित करने में किया जा सकता
है। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह डेटाबेस इन रसायनों पर केंद्रित अन्य उपलब्ध
संसाधनों की तुलना में अधिक व्यापक है और इसमें रसायनों की खुराक पर विस्तृत
जानकारी है, जो अन्य किसी डेटाबेस में नहीं मिलती।
सामल ने कहा कि, "विष विज्ञान विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों के अलावा, यह डेटाबेस
आम जनता के लिए भी उपयोगी हो सकता है। यह एक ऐसा संसाधन है, जिसका
उपयोग दैनिक जीवन में इन हानिकारक रसायनों के अंधाधुंध उपयोग के खिलाफ
जागरूकता बढ़ाने में हो सकता है।"
गणितीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ता इससे पहले भारतीय जड़ी-बूटियों में पाए
जाने वाले फाइटोकेमिकल्स का ऑनलाइन डेटाबेस विकसित कर चुके हैं। इस
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में अरिजित सामल के अलावा, भगवती शण्मुगम,
कार्तिकेयन, जननी रविचंद्रन, कार्तिकेयन मोहनराज, आर.पी. विवेक अनंत शामिल
थे। इस डेटाबेस से संबंधित रिपोर्ट शोध पत्रिका साइंस ऑफ द सोशल एन्वायरमेंट
में प्रकाशित की गई है। (इंडिया साइंस वायर)


नैनो तकनीक से बढ़ायी जा सकेगी टायरों की मजबूती

नई दिल्ली | (इंडिया साइंस वायर): किसी उबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी
का टायर अचानक पंक्चर हो जाए तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। भारतीय
शोधकर्ताओं ने इस मुश्किल से निजात पाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसी
तकनीक विकसित की है, जो टायरों की परफार्मेंस बढ़ाने में उपयोगी साबित हो
सकती है।
केरल स्थित महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो-साइंस ऐंड
नैनो-टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने रबड़ से बनी हाई-परफार्मेंस नैनो-कम्पोजिट
सामग्री विकसित की है, जिसका उपयोग टायरों की भीतरी ट्यूब और इनर
लाइनरों को मजबूती प्रदान करने में किया जा सकता है।
नैनो-क्ले और क्रियाशील नैनो-क्ले तंत्र के उपयोग से इनर लाइनर बनाने के लिए
विकसित फॉर्मूले को गैस अवरोधी गुणों से लैस किया गया है। इससे टायरों के इनर
लाइनर की मजबूती बढ़ायी जा सकती है। इंटरनेशनल ऐंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर
फॉर नैनो-साइंस ऐंड नैनो-टेक्नोलॉजी (आईआईयूसीएनएन) ने टायर निर्माता कंपनी
अपोलो टायर्स के साथ मिलकर प्रौद्योगिकी का पेटेंट कराया है। कंपनी जल्द ही इस
तकनीक का उपयोग हाई-परफार्मेंस टायर बनाने में कर सकती है।


प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल और डॉ साबू थॉमस (बाएं से दाएं)


ट्यूब वाले टायरों ग्रिप अच्छी होती है, पर ये टायर जल्दी पंक्चर हो जाते हैं और
पंक्चर होने के बाद कुछ क्षणों में सपाट होकर सतह से चिपक जाते हैं। इसके
विपरीत, ट्यूबलेस टायरों में अलग से कोई ट्यूब नहीं होती, बल्कि यह टायर के
अंदर ही टायर से जुड़ी रहती है, जिसे इनर लाइनर कहा जाता है। ट्यूबलेस टायरों
की एक खासियत यह है कि पंक्चर होने के बाद इनमें से हवा धीरे-धीरे निकलती है।
हालांकि, बार-बार पंक्चर होने की परेशानी इन टायरों के साथ भी जुड़ी हुई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस नैनो तकनीक की मदद से टायर को अधिक मजबूत
एवं टिकाऊ बनाया जा सकेगा।
गाड़ियों के टायर को अधिक टिकाऊ बनाने से जुड़ी तकनीक को विकसित करने
वाले वैज्ञानिकों की टीम का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी विश्वविद्यालय के उप-
कुलपति डॉ साबू थॉमस ने बताया कि "पॉलिमर नैनो-कम्पोजिट विकसित करते हुए
कार्बन नैनोट्यूब्स, ग्रेफीन और नैनो-क्ले जैसे नैनोफिलर्स के प्रसार से जुड़ी चुनौतियों
से निपटने में ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे अत्याधुनिक उपकरण
मददगार साबित हुए हैं।"


ट्रांसमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी


विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के नैनो मिशन द्वारा समर्थित आईआईयूसीएनएन
नैनो-उपकरणों के तकनीकी विकास और निर्माण से जुड़े अनुसंधान कार्यक्रमों को
बढ़ावा देता है। इस तरह के अनुसंधान कार्यक्रमों में स्वास्थ्य देखभाल,
ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस और रक्षा अनुप्रयोग शामिल हैं। विज्ञान और प्रौद्योगिकी
विभाग के सहयोग से इस केंद्र को ट्रासंमिशन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे परिष्कृत
उपकरणों से सुसज्जित किया गया है, जिसकी मदद से नैनो स्तर के नमूनों की
आंतरिक संरचना को भी देखा जा सकता है।
आईआईयूसीएनएन कई प्रमुख नैनो तकनीकों पर काम कर रहा है। आंतरिक
अनुप्रयोगों और अत्यधिक तापमान एवं आर्द्रता वाले वातावरण में उपयोग होने
वाले उच्च क्षमताओं की नैनो-संरचनाओं से बने एपोक्सी मिश्रण से जुड़ी तकनीकें
इनमें शामिल हैं। इन तकनीकों का उपयोग आमतौर पर एयरोस्पेस, जल शुद्धिकरण


फिल्टर्स, तापीय स्थिरता, नैनो-फिलर्स और वियरेबल डिवाइसेज इत्यादि में
उपयोग हो सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से भविष्य में उन्नत
प्रौद्योगिकियों का विकास किया जा सकता है, जिसकी मदद से अग्रणी किस्म के
उत्पाद बनाए जा सकते हैं। डॉ साबू थॉमस के अलावा शोधकर्ताओं में
आईआईयूसीएनएन के निदेशक प्रो. नंदकुमार कलरिक्कल शामिल थे। (इंडिया साइंस
वायर)
Keywords : flattened tyres, Nanotechnology, Nano Mission,


वक्त

मौत  ने  भी  अपने  रास्ते बदल डाले,

मैं जिधर चला उसने कदम वहाँ डाले।

 

जब - जब लगा मेरे जख्म भरने लगे,

पुराने वक्त की यादों ने फिर खुरच डाले।

 

मैं बहुत परेशान था पैरो के छालों से,

मंजिल ने फिर भी रास्ते बदल डाले।

 

रौशनी झरोखों से भी आ जाती मगर,

वक्त की हवा ने उम्मीद के दिए बुझा डाले।

 

वक्त  के  हाथों  में  सब  कठपुतली  हैं,

उसके धागों के आगे लगते सब नाचने गाने,

 

मैं मंजर बदलने की आश में चलता रहा।

साल दर साल फिर भी बढ़ते रहे राह के जाले।।

 

धुन्ध दुःखो की इस कदर जीवन पर बढ़ी,

खुद ही छूटते चले गए सभी साथ देने वाले,

 

एक जगह रुककर कभी जीना नहीं शीखा था।

मजबूरियों ने एक ही जगह पर कदम बांध डाले,

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

मोबाइल 09582488698

65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001

Sunday, July 21, 2019

नई तकनीक से चुनौतियों के हल खोजने वाले उद्यमियों को पुरस्कार

उमाशंकर मिश्र
नई दिल्ली, 18 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): किसी दिव्यांग को ऐसा कृत्रिम अंग मिल जाए
जो दिमाग के संकेतों से संचालित हो तो इसे तकनीक पर आधारित एक महत्वपूर्ण सामाजिक
योगदान माना जाएगा। बिट्स पिलानी के कंप्यूटर साइंस के दो छात्रों उज्ज्वल कुमार झा और
सिद्धांत डांगी ने ऐसे ही बायोनिक हाथ का नमूना पेश किया है, जो दिमाग के संकेतों से
संचालित होता है। इस बायोनिक हाथ के प्रोटोटाइप को इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम 2.0 के
तहत राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित यूनिवर्सिटी चैलेंज प्रतियोगिता में 10 लाख रुपये का पुरस्कार
मिला है। इन दोनों छात्रों ने बताया कि उनका प्रोटोटाइप फिलहाल विकास के दूसरे चरण में है
और इस पुरस्कार राशि की मदद से वे इसे अधिक बेहतर बना सकेंगे।
सामाजिक एवं औद्योगिक समस्याओं के समाधान के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित ऐसे
नवाचारों के लिए इस वर्ष इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के तहत ओपन इनोवेशन चैलेंज में 16
स्टार्ट-अप कंपनियों और यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत 20 अकादमिक संस्थानों की टीमों को
क्रमशः 25 लाख रुपये और 10 लाख रुपये का पुरस्कार दिया गया है। इन विजेताओं को 2400
आवेदकों द्वारा प्रस्तुत किए गए नवाचारों में से चुना गया है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बुधवार को ये पुरस्कार नई
दिल्ली में प्रदान किए हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, लाइफ साइंसेज, संचार, बायोटेक्नोलॉजी,
स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, रोबोटिक्स, कचरा प्रबंधन, जल प्रबंधन और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों के
नवाचार इनमें मुख्य रूप से शामिल हैं।
इस अवसर पर बोलते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि "स्टार्टअप का विस्तार और उन्हें
एक स्थापित कारोबारी मॉडल के रूप में स्थापित करना प्रमुख चुनौती है। उद्योग जगत सफल
स्टार्टअप में अगर किसी निर्धारित राशि का निवेश करता है तो विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
भी ऐसे स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए समान राशि का निवेश करने का फैसला जल्दी ही ले
सकता है।"
पुरस्कृत नवाचारों में आईआईटी-बॉम्बे के शोधकर्ता आदर्श के. द्वारा बनाया गया स्मार्ट
स्टेथेस्कोप, आईआईटी-कानपुर के छात्र नचिकेता देशमुख द्वारा विकसित बिजली ट्रांसफार्मर को


अधिक टिकाऊ बनाने की तकनीक, नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के छात्र रवि प्रकाश द्वारा
दूध उत्पादकों द्वारा दूध सप्लाई करने के लिए बनायी गई स्मार्ट बाल्टी और कानपुर फ्लावरिंग
स्टार्टअप के नचिकेत कुंतला द्वारा मंदिरों से फेंके जाने वाले अपशिष्ट फूलों से अगरबत्ती बनाने
की तकनीक शामिल हैं।


विजेताओं को पुरस्कार प्रदान करते हुए प्रोफेसर आशुतोष शर्मा


यह पुरस्कार विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन और टाटा ट्रस्ट
की पहल पर आधारित है। इसका उद्देश्य भारत में नवाचारों के लिए अनुकूल वातावरण
विकसित करना है। इसके तहत, ओपन इनोवेशन चैलेंज और यूनिवर्सिटी चैलेंज नामक दो
प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इसके अलावा, चयनित उद्यमियों को उद्योग जगत के
साथ मिलकर काम करने का अवसर भी मिलता है। इस वर्ष चयनित स्टार्टअप विजेताओं में से
तीन कंपनियों के साथ लॉकहीड मार्टिन ने कारोबारी करार किया है।
प्रोफेसर शर्मा ने बताया कि “सरकार देश में स्टार्टअप केंद्र स्थापित करने जा रही है। करीब 150
करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किए जाने इन केंद्रों से स्टार्टअप कंपनियों को संसाधन एवं


सहयोग मिल सकेगा। भविष्य में इस तरह के कुल 20 केंद्र स्थापित किए जाने हैं। इस वर्ष ऐसे
तीन केंद्र शुरू हो जाएंगे और फिर हर साल 3-4 केंद्र स्थापित किए जाने की योजना है।”



इंडिया इनोवेशन ग्रोथ प्रोग्राम के यूनिवर्सिटी चैलेंज में पुरस्कृत बिट्स पिलानी के छात्रों द्वारा विकसित प्रोटोटाइप
ओपन इनोवेशन चैलेंज के विजेताओं में एस्ट्रोसेज लैब्स, आयु डिवाइसेज, बीएबल हेल्थ,
बायोलमेड इनोवेशन्स, बीएनजी स्प्रे सॉल्यूशन्स, सी इलेक्ट्रिक ऑटोमोटिव ड्राइव्स, कॉग्निएबल,
सिका ऑन्कोसॉल्यूशन्स, कानपुर फ्लावरसाइक्लिंग, न्यूबवेल नेटवर्क्स, ओसस
बायोरिन्यूएबल्स, टैन90 थर्मल सॉल्यूशन्स, टेरेरो मोबिलिटी, अनबॉक्स लैब्स, वार्ता लैब्स और
विडकेयर इनोवेशन्स शामिल हैं।
यूनिवर्सिटी चैलेंज के अंतर्गत पुरस्कृत विजेताओं में सिद्धांत डांगी और उज्जवल झा के अलावा,
आईआईटी-मद्रास के आयुष पारसभाई मनियर एवं ध्यानेश्वरन सेनगोत्तुवेल, आईआईटी-कानपुर
के अयन चक्रबर्ती, अखिल बी. कृष्णा एवं पर्वराज पचोरे, शेरे कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ
एग्रीकल्चर साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी और आईआईटी-खड़गपुर के शंखा कर्माकर शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)