एक व्यक्ति बहुत नास्तिक था,उसको भगवान पर विश्वास नहीं था,एक बार उसका एक्सीडेंट हो गया वह सड़क किनारे पड़ा हुआ लोगो को मदद के लिए पुकार रहा था!पर कलयुग का इन्सान किसी इन्सान की जल्दी से मदद नहीं करता वह लोगों को बुला-बुला कर थक गया लेकिन कोई मदद के लिए नहीं आया ! तभी उसके नास्तिक मन ने कृष्ण को गुहार लगाई उसी समय एक सब्जी वाला गुजरा और उसको गोद में उठाया और अस्पताल पहुंचा दिया,और उसके परिवार वालों को फ़ोन कर अस्पताल बुलाया सभी परिवार वालो ने उस सब्जी वाले को धन्यवाद दिया और उसका नाम पूछा ! तो उसने अपना नाम बांके बिहारी बताया और उसके घर का पता भी लिखवा लिया और बोले जब यह ठीक हो जाएगा तब आपसे मिलने आएंगे ! वह व्यक्ति कुछ समय बाद ठीक हो गया फिर कुछ दिनों बाद वह अपने परिवार के साथ सब्जी वाले से मिलने निकला और बांके बिहारी जी का नाम पूछते हुए उस पते पर पहुंचा लेकिन उसको वहां पर प्रभु का मन्दिर मिलता है वह अचंभित हो जाता है और अपने परिवार के साथ मन्दिर के अन्दर जाता है फिर भी वह पुजारी से नाम लेकर पूछता है कि बांके बिहारी कहा मिलेंगे,पुजारी हाथ जोड़कर मुर्ति की और इशारा करके कहता है,कि यहां यही एक बांके बिहारी है उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं और अपनी नास्तिक गलती पर क्षमा मांगता है और बांके बिहारी जी के दर्शन कर जब लोटने लगता है तभी उसकी निगाह एक बोर्ड पर पड़ती है जिस पर एक वाक्य लिखा था कि... "इन्सान ही इन्सान के काम आता है उससे प्रेम करते रहो" मैं तो स्वयं तुम्हें मिल जाऊंगा..!!
Saturday, April 12, 2025
Sunday, April 6, 2025
पराई बेटी
सुजाता जी थोड़ी सी मायूस हो गयी, अभी बेटी को भेज कर ।
यूँ तो खुश भी बहुत थी, आज कल। अभी बेटे की शादी जो हुई है बहू भी उनकी पसन्द की है, और बेटी अपने परिवार में खुश है।
अब तो उनकी जिम्मेदारियां लगभग खत्म हो गयी है, पर फिर भी बेटी एक बार घर रहकर जाए तो दिल पर जोर तो पड़ता ही है इसीलिए न चाहते हुए भी.. कभी कभी आंखें छलछला रही थी ।
अचानक उन्हें एक याद आया, एक लिफाफा जो अंजू उन्हें जाते हुए थमा गयी थी कि मम्मी इसे फुर्सत में बैठकर पढ़ना, और विचार करना ।
ऐसे भागदौड़ में नही । लेकिन सब्र कहां था उन्हें..??? जल्दी से उसे खोला देखा तो एक खत था उसे खोला औऱ पढ़ने बैठ गयी ।
माँ !! बहुत खुश हूँ ... कि आप अब माँ से एक सास भी बन गयी।
यूँ तो मेरी शादी के बाद ही आप सास बन गयी थी लेकिन फिर भी सास बहू के रिश्ते की अलग बात है ।
मैं जानती हूँ, आप एक अच्छी माँ होने के साथ साथ अच्छी सास भी बनेंगी । पर फिर भी कुछ बातें है जो मैं आपसे कहना चाहती हूँ , जो मैंने खुद देखी और महसूस की है।
बहुत कोशिश की. आपसे खुद कहूँ , पर हिम्मत नही जुटा पायी तो इस खत में लिख दिया ।
जानती हूँ, मैं आपकी एकलौती बेटी हूँ . जिसके कारण आप मुझे बहुत प्यार करती है, आपकी हर चीज मेरी पसन्द से ही होती है..
फिर चाहे वो घर के पर्दे ,चादर , पेंट हो या आपकी साड़ियां, ज्वैलरी कुछ भी , आज तक आपने मेरे बिना नही लिया । शादी के बाद भी हम हमेशा साथ साथ ही बाजार गए ।
पर अब मैं चाहती हूँ कि आप ये मौका भाभी को दें. उनकी पसन्द न पसन्द का मान रखे ।
आप चाहे तो मैं उनके साथ हर समय मौजूद रहूँगी । पर उनके साथ या उनके पीछे, उनसे पहले या उनके विरोध में कभी नही । जब तक उनकी कोई बहुत बड़ी गलती न हो.
क्योंकि ..... अब इस घर पर उनका हक है , मैं जानती हूँ आपको ये सब जानकर तकलीफ होगी. और शायद आश्चर्य भी !
क्योंकि..!!! मैंने आपको बहुत कुछ है जो कभी नही बताया ।
पर ... माँ , मैं पिछले 5 सालों से ये सब देखती आ रही हूँ , मेरे ही ससुराल में मेरी बातों , मेरी भावनाओं , या पसन्द का कोई महत्व नही है.
सिर्फ और सिर्फ मेरी दोनो नन्दो को इसका हक़ है , मैं वहां तो कुछ नही कर पाती पर मैंने ये पहले ही से सोच लिया था कि अपनी भाभी के साथ ये सब नही होने दूंगी ,
मैं कभी भी उनके जैसी नन्द नही बनूंगी न ही खुद जैसी अपनी भाभी को बनने दूंगी ।
अब वो घर उनका है , उससे जुड़े फैसले लेने का हक़ भी उनका. चाहे वो छोटी बातें हो या बड़ी. उनकी सहमति सर्वोपरि है ।
मैं भुगत चुकी हूँ , आप जानती है , माँ मैं जब अपने ही कमरे में कुछ बदलाव करती हूँ , तो दीदी मुझसे कैसे बात करती है ।
या घर में मैं कोई भी नई चीज ले आऊं तो उसके लिए मुझे कैसे सुनाया जाता है...
हमारे यहां ये सब नही चलता , आपके मायके में होगा..!!! ये शब्द तो हर दिन लगभग मैं 3-4 बार सुनती हूँ ।
जब मैं उन्हें अपने साथ चलने को बोलती हूँ, तब भी उनके अलग अलग नखरे होते है ।
कभी ..... आज नही भाभी. या आप अपनी पसंद से ही ले आइए न !! साथ न जाने के ढेरों बहाने होते है । इसीलिए अब मैं खुद सब करने लगी हूँ , किसी की परवाह किये बिना ।
आप जानती है , जब भैया मुझसे मिलने आते है न तो घर में सबका मुंह देखने लायक होता है ।
अगर उसके हाथ में कोई बड़ा सा गिफ्ट या सामान देख ले तो सब खुश हो जाते है खाली हाथ उनका आना किसी को गंवारा नही.
कहते है अभी पिछले हफ्ते ही तो आया था , कोई खास काम था क्या ....??? मैं जानती हूँ इसीलिए उन्होंने अब घर आना भी कम कर दिया ।
मुझे यकीन है कि भैया ने ये बात आपको नही बताई होगी । इसीलिए आप प्लीज भाभी के मायके से किसी के आने पर तानाकशी न करिएगा ।
क्योंकि मैं इसका दर्द जानती हूँ , और घरवालों से मिलने की खुशी भी ।
कभी उन्हें ये मत कहिएगा कि घर से क्या सीख कर आई है ?? जो भी नही आता प्यार से सिखाइयेगा , जैसे आपने मुझे सिखाया था ।।
बस यही कहना था आपसे कि माँ !! अब मैं पराई होना चाहती हूँ !! आपकी अंजू
सुजाता जी की आंखें भर आयी , गला रुंध गया, मुंह से एक शब्द नही निकल रहा था ।
उनकी छोटी सी अंजू आज इतनी बड़ी हो गयी कि अपनी माँ को ही उसने इतनी सारी सीख दे डाली । और खुद सालों से क्या क्या सहन कर रही है, इसकी भनक भी कभी नही लगने दी ।
सुजाता जी ने अंजू से बात करने के लिए फ़ोन उठाया, उधर से हेल्लो की जवाब में सन्नाटा था तो इधर एक कंपकपी थी।
सेवा का सौभाग्य
यदि जीवन में सेवा का सौभाग्य मिलता हो तो सेवा सभी की करना लेकिन आशा किसी से भी ना रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य भगवान ही दे सकते हैं इंसान नहीं। जगत से अपेक्षा रखकर कोई सेवा की गई है तो वो एक ना एक दिन निराशा का कारण जरूर बनेगी।
श्रेष्ठ तो यही है कि अपेक्षा रहित होकर सेवा की जाए। यदि सेवा का मूल्य ये दुनिया अदा कर दे, तो समझ जाना वो सेवा नहीं हो सकती। सेवा कोई वस्तु थोड़ी है जिसे खरीदा-बेचा जा सके। सेवा पुण्य कमाने का साधन है प्रसिद्धि कमाने का नहीं।
दुनिया की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात नहीं, गोविन्द की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात है। श्री सुदामा जी के जीवन की सेवा-समर्पण का इससे ज्यादा और श्रेष्ठ फल क्या होता, दुनिया जिन ठाकुर के लिए दौड़ती है वो उनके लिए दौड़े हैं। प्रभु के हाथों से एक ना एक दिन सेवा का फल अवश्य मिलेगा।
Tuesday, April 1, 2025
सत्संग की महिमा
एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। सिपाहियों को पता चला तो उन्होंने उसके पदचिह्नों का पीछा किया। पीछा करते-करते वे नगर से बाहर आ गये। पास में एक गाँव था। उन्होंने चोर के पदचिह्न गाँव की ओर जाते देखे। गाँव में जाकर उन्होंने देखा कि एक संत सत्संग कर रहे हैं और बहुत से लोग बैठकर सुन रहे हैं। चोर के पदचिह्न भी उसी ओर जा रहे थे।सिपाहियों को संदेह हुआ कि चोर भी सत्संग में लोगों के बीच बैठा होगा। वे वहीं खड़े रह कर उसका इंतजार करने लगे।
सत्संग में संत कह रहे थे- जो मनुष्य सच्चे हृदय से भगवान की शरण चला जाता है, भगवान उसके सम्पूर्ण पापों को माफ कर देते हैं।
गीता में भगवान ने कहा हैः
सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को त्याग कर तू केवल एक मुझ सर्वशक्तिमान सर्वाधार परमेश्वर की ही शरण में आ जा। मैं तुझे सम्पूर्ण पापों से मुक्त कर दूँगा, तू शोक मत कर।
वाल्मीकि रामायण में आता हैः
जो एक बार भी मेरी शरण में आकर 'मैं तुम्हारा हूँ' ऐसा कह कर रक्षा की याचना करता है, उसे मैं सम्पूर्ण प्राणियों से अभय कर देता हूँ – यह मेरा व्रत है।
इसकी व्याख्या करते हुए संतश्री ने कहा : जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया। अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया।
अगर कोई दुराचारी सेदुराचारी भी अनन्य भक्त होकर मेरा भजन करता है तो उसको साधु ही मानना चाहिए। कारण कि उसने बहुत अच्छी तरह से निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।
चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था। उस पर सत्संग की बातों का बहुत असर पड़ा। उसने वहीं बैठे-बैठे यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि अभी से मैं भगवान की शरण लेता हूँ, अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। मैं भगवान का हो गया। सत्संग समाप्त हुआ। लोग उठकर बाहर जाने लगे। बाहर राजा के सिपाही चोर की तलाश में थे। चोर बाहर निकला तो सिपाहियों ने उसके पदचिह्नों को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया।
राजा ने चोर से पूछाः इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है? चोर ने दृढ़ता पूर्वक कहाः "महाराज ! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की।"
सिपाही बोलाः "महाराज ! यह झूठ बोलता है। हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं। इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे साफ सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है।" राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा।
चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया। फिर उसके ऊपर गर्म करके लाल किया हुआ लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले। लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा ने सोचा कि 'वास्तव में इसने चोरी नहीं की, यह निर्दोष है।'
अब राजा सिपाहियों पर बहुत नाराज हुआ कि "तुम लोगों ने एक निर्दोष पुरुष पर चोरी का आरोप लगाया है। तुम लोगों को दण्ड दिया जायेगा।" यह सुन कर चोर बोलाः "नहीं महाराज ! आप इनको दण्ड न दें। इनका कोई दोष नहीं है। चोरी मैंने ही की थी।" राजा ने सोचा कि यह साधु पुरुष है, इसलिए सिपाहियों को दण्ड से बचाने के लिए चोरी का दोष अपने सिर पर ले रहा है। राजा बोलाः तुम इन पर दया करके इनको बचाने के लिए ऐसा कह रहे हो पर मैं इन्हें दण्ड अवश्य दूँगा।
चोर बोलाः "महाराज ! मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ, चोरी मैंने ही की थी। अगर आपको विश्वास न हो तो अपने आदमियों को मेरे पास भेजो। मैंने चोरी का धन जंगल में जहाँ छिपा रखा है, वहाँ से लाकर दिखा दूँगा।" राजा ने अपने आदमियों को चोर के साथ भेजा। चोर उनको वहाँ ले गया जहाँ उसने धन छिपा रखा था और वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख दिया। यह देखकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ।
राजा बोलाः अगर तुमने ही चोरी की थी तो परीक्षा करने पर तुम्हारा हाथ क्यों नहीं जला? तुम्हारा हाथ भी नहीं जला और तुमने चोरी का धन भी लाकर दे दिया, यह बात हमारी समझ में नहीं आ रही है।
ठीक-ठीक बताओ, बात क्या है ? चोर बोलाः महाराज ! मैंने चोरी करने के बाद धन को जंगल में छिपा दिया और गाँव में चला गया। वहाँ एक जगह सत्संग हो रहा था। मैं वहाँ जा कर लोगों के बीच बैठ गया। सत्संग में मैंने सुना कि ''जो भगवान की शरण लेकर पुनः पाप न करने का निश्चय कर लेता है, उसको भगवान सब पापों से मुक्त कर देते हैं। उसका नया जन्म हो जाता है।'' इस बात का मुझ पर असर पड़ा और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया कि
" अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। "
अब मैं भगवान का हो लिया कि 'अब मैं कभी चोरी नहीं करूँगा। अब मैं भगवान का हो गया। इसीलिए तब से मेरा नया जन्म हो गया। इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की, इसलिए मेरा हाथ नहीं जला। आपके महल में मैंने जो चोरी की थी, वह तो पिछले जन्म में की थी।
कैसा दिव्य प्रभाव है सत्संग का ! मात्र कुछ क्षण के सत्संग ने चोर का जीवन ही पलट दिया। उसे सही समझ देकर पुण्यात्मा, धर्मात्मा बना दिया। चोर सत्संग-वचनों में दृढ़ निष्ठा से कठोर परीक्षा में भी सफल हो गया और उसका जीवन बदल गया। राजा उससे प्रभावित हुआ, प्रजा से भी वह सम्मानित हुआ और प्रभु के रास्ते चलकर प्रभु कृपा से उसने परम पद को भी पा लिया।
सत्संग पापी से पापी व्यक्ति को भी पुण्यात्मा बना देता है।
जीवन में सत्संग नहीं होगा तो आदमी कुसंग जरूर करेगा।
कुसंग व्यक्ति से कुकर्म करवा कर व्यक्ति को पतन के गर्त में गिरा देता है लेकिन सत्संग व्यक्ति को तार देता है, महान बना देता है। ऐसी दिव्य शक्ति है सत्संग में !
राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो और आनन्ददायक हो।🙏