Monday, March 17, 2025

हनुमान चालिसा का रहस्य

रामायण काल में जब हनुमान जी माता सीता को ढूंढ़ते हुए लंका में पहुंचे, तो उन्होंने वहां शनिदेव को उल्टा लटके देखा। कारण पूछने पर शनिदेव ने बताया कि ‘मैं शनि देव हूं और रावण ने अपने योग बल से मुझे कैद कर रखा है।’ तब हनुमान जी ने शनिदेव को रावण के कारागार से मुक्ति दिलाई।


शनि देव ने हनुमान जी से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले, ‘कलियुग में मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फल नही दोगे।’ तभी से शनिवार को हनुमान जी की पूजा की जाती है।


हनुमान चालीसा का पूरा पाठ करने में लगभग पाँच मिनट लगते हैं ! यह लेख थोड़ा लम्बा है, कृपया निश्चिंत हो कर ही इसे पढ़ें !


बुरी आत्‍माओं को भगाएं : - हनुमान जी अत्‍यंत बलशाली थे और वह किसी से नहीं डरते थे। हनुमान जी को भगवान माना जाता है और वे हर बुरी आत्‍माओं का नाश कर के लोगों को उससे मुक्‍ती दिलाते हैं। जिन लोगों को रात मे डर लगता है या फिर डरावने विचार मन में आते रहते हैं, उन्‍हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिये।


साढे़ साती का प्रभाव कम करें : - हनुमान चालीसा पढ़ कर आप शनि देव को खुश कर सकते हैं और साढे साती का प्रभाव कम करने में सफल हो सकते हैं। कहानी के मुताबिक हनुमान जी ने शनी देव की जान की रक्षा की थी, और फिर शनि देव ने खुश हो कर यह बोला था कि वह आज के बाद से किसी भी हनुमान भक्‍त का कोई नुकसान नहीं करेगें।


पाप से मुक्‍ती दिलाए : - हम कभी ना कभी जान बूझ कर या फिर अनजाने में ही गल्‍तियां कर बैठते हैं। लेकिन आप उसकी माफी हनुमान चालीसा पढ़ कर मांग सकते हैं। रात के समय हनुमान चालीसा को 8 बार पढ़ने से आप सभी प्रकार के पाप से मुक्‍त हो सकते हैं।


बाधा हटाए: - जो भी इंसान हनुमान चालीसा को रात में पढे़गा उसे हनुमान जी स्‍वंय आ कर सुरक्षा प्रदान करेगें।


बचपन से ही हमें सिखाया गया है कि अगर कभी भी मन अशांत लगें या फिर किसी चीज से डर लगे तो, हनुमान चालीसा पढ़ो। ऐसा करने से मन शांत होता है और डर भी नहीं लगता। सनातन हिंदू धर्म में हनुमान चालीसा का बड़ा ही महत्‍व है। हनुमान चालीसा पढ़ने से शनि ग्रह और साढे़ साती का प्रभाव कम होता है। हनुमान जी राम जी के परम भक्त हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर हनुमान जी जैसी सेवा-भक्ति विद्यमान है। हनुमान-चालीसा एक ऐसी कृति है, जो हनुमान जी के माध्यम से व्यक्ति को उसके अंदर विद्यमान गुणों का बोध कराती है। इसके पाठ और मनन करने से बल बुद्धि जागृत होती है। हनुमान-चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति खुद अपनी शक्ति, भक्ति और कर्तव्यों का आंकलन कर सकता है।


जानिए हनुमान चालीसा की किस चौपाई से क्या चमत्कार होते हैं !


वैसे तो हनुमान चालीसा की हर चौपाई और दोहे चमत्कारी हैं लेकिन कुछ ऐसी चौपाइयां हैं जो बहुत जल्द असर दिखाती हैं। ये चौपाइयां सर्वाधिक प्रचलित भी हैं समय-समय में काफी लोग इनका जप करते हैं। यहां जानिए कुछ खास चौपाइयां और उनके अर्थ। साथ ही जानिए हनुमान चालीसा की किस चौपाई से क्या चमत्कार होते हैं…


रामदूत अतुलित बलधामा। अंजनिपुत्र पवनसुत नामा।।


यदि कोई व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है तो उसे शारीरिक कमजोरियों से मुक्ति मिलती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि हनुमानजी श्रीराम के दूत हैं और अतुलित बल के धाम हैं। यानि हनुमानजी परम शक्तिशाली हैं। इनकी माता का नाम अंजनी है इसी वजह से इन्हें अंजनी पुत्र कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी को पवन देव का पुत्र माना जाता है इसी वजह से इन्हें पवनसुत भी कहते हैं।


महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।


यदि कोई व्यक्ति हनुमान चालीसा की केवल इस पंक्ति का जप करता है तो उसे सुबुद्धि की प्राप्ति होती है। इस पंक्ति का जप करने वाले लोगों के कुविचार नष्ट होते हैं और सुविचार बनने लगते हैं। बुराई से ध्यान हटता है और अच्छाई की ओर मन लगता है। इस पंक्ति का अर्थ यही है कि बजरंगबली महावीर हैं और हनुमानजी कुमति को निवारते हैं यानि कुमति को दूर करते हैं और सुमति यानि अच्छे विचारों को बढ़ाते हैं।


बिद्यबान गुनी अति चातुर। रामकाज करीबे को आतुर।।


यदि किसी व्यक्ति को विद्या धन चाहिए तो उसे इस पंक्ति का जप करना चाहिए। इस पंक्ति के जप से हमें विद्या और चतुराई प्राप्त होती है। इसके साथ ही हमारे हृदय में श्रीराम की भक्ति भी बढ़ती है। इस चौपाई का अर्थ है कि हनुमानजी विद्यावान हैं और गुणवान हैं। हनुमानजी चतुर भी हैं। वे सदैव ही श्रीराम के काम को करने के लिए तत्पर रहते हैं। जो भी व्यक्ति इस चौपाई का जप करता है उसे हनुमानजी की ही तरह विद्या, गुण, चतुराई के साथ ही श्रीराम की भक्ति प्राप्त होती है।


भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्रजी के काज संवारे।।


जब आप शत्रुओं से परेशान हो जाएं और कोई रास्ता दिखाई न दे तो हनुमान चालीसा का जप करें। यदि एकाग्रता और भक्ति के साथ हनुमान चालीसा की सिर्फ इस पंक्ति का भी जप किया जाए तो शत्रुओं पर विजय प्राप्ति होती है। श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है। इस पंक्ति का अर्थ यह है कि श्रीराम और रावण के बीच हुए युद्ध में हनुमानजी ने भीम रूप यानि विशाल रूप धारण करके असुरों-राक्षसों का संहार किया। श्रीराम के काम पूर्ण करने में हनुमानजी ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे श्रीराम के सभी काम संवर गए।


लाय संजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।


इस पंक्ति का जप करने से भयंकर बीमारियों से भी मुक्ति मिल सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है और दवाओं का भी असर नहीं हो रहा है तो उसे भक्ति के साथ हनुमान चालीसा या इस पंक्ति का जप करना चाहिए। दवाओं का असर होना शुरू हो जाएगा, बीमारी धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी। इस चौपाई का अर्थ यह है कि रावण के पुत्र मेघनाद ने लक्ष्मण को मुर्छित कर दिया था। तब सभी औषधियों के प्रभाव से भी लक्ष्मण की चेतना लौट नहीं रही थी। तब हनुमानजी संजीवनी औषधि लेकर आए और लक्ष्मण के प्राण बचाए। हनुमानजी के इस चमत्कार से श्रीराम अतिप्रसन्न हुए।


श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवताओं में से एक हैं। शास्त्रों के अनुसार माता सीता के वरदान के प्रभाव से बजरंग बली को अमर बताया गया है। ऐसा माना जाता है आज भी जहां रामचरित मानस या रामायण या सुंदरकांड का पाठ पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से किया जाता है वहां हनुमानजी अवश्य प्रकट होते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं। यदि कोई व्यक्ति पूरी हनुमान चालीसा का पाठ करने में असमर्थ रहता है तो वह अपनी मनोकामना के अनुसार केवल कुछ पंक्तियों का भी जप कर सकता है।


केवल हनुमान चालीसा ही नहीं सभी देवी-देवताओं की प्रमुख स्तुतियों में चालिस ही दोहे होते हैं? विद्वानों के अनुसार चालीसा यानि चालीस, संख्या चालीस, हमारे देवी-देवीताओं की स्तुतियों में चालीस स्तुतियां ही सम्मिलित की जाती हैं। जैसे श्री हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा, शिव चालीसा आदि। इन स्तुतियों में चालीस दोहे ही क्यों होते हैं ? इसका धार्मिक दृष्टिकोण है। इन चालीस स्तुतियों में संबंधित देवता के चरित्र, शक्ति, कार्य एवं महिमा का वर्णन होता है।

चालीस चौपाइयां हमारे जीवन की संपूर्णता का प्रतीक हैं, इनकी संख्या चालीस इसलिए निर्धारित की गई है क्योंकि मनुष्य जीवन 24 तत्वों से निर्मित है और संपूर्ण जीवनकाल में इसके लिए कुल 16 संस्कार निर्धारित किए गए हैं। इन दोनों का योग 40 होता है। इन 24 तत्वों में 5 ज्ञानेंद्रिय, 5 कर्मेंद्रिय, 5 महाभूत, 5 तन्मात्रा, 4 अन्त:करण शामिल हैं।

सोलह संस्कार इस प्रकार हैं :- 1. गर्भाधान संस्कार 2. पुंसवन संस्कार 3. सीमन्तोन्नयन संस्कार 4. जातकर्म संस्कार 5. नामकरण संस्कार 6. निष्क्रमण संस्कार 7. अन्नप्राशन संस्कार 8. चूड़ाकर्म संस्कार 9. विद्यारम्भ संस्कार 10. कर्णवेध संस्कार 11. यज्ञोपवीत संस्कार 12. वेदारम्भ संस्कार 13. केशान्त संस्कार 14. समावर्तन संस्कार 15. पाणिग्रहण संस्कार 16. अन्त्येष्टि संस्कार

भगवान की इन स्तुतियों में हम उनसे इन तत्वों और संस्कारों का बखान तो करते ही हैं, साथ ही चालीसा स्तुति से जीवन में हुए दोषों की क्षमायाचना भी करते हैं। इन चालीस चौपाइयों में सोलह संस्कार एवं 24 तत्वों का भी समावेश होता है। जिसकी वजह से जीवन की उत्पत्ति है।

राम राघव राम राघव राम राघव रक्षमाम कृष्ण केशव कृष्ण केशव कृष्ण केशव पाहिमाम आपका हर पल मंगलमय हो आनन्ददायक हो।

भोजन के अंत में पानी पीना जहर

 हमारे आयुर्वेद में बताया गया हैं कि भोजन के अंत में पानी पीना जहर के समान हैं । ऐसा क्यों ? चलिये आज इसको हम विज्ञान की कसौटी पर कसने का एक सार्थक प्रयास करते हैं।

"अजीर्णे भेषजं वारि , जीर्णे वारि बलप्रदम।
भोजने चाऽमृतम् वारि , भोजनान्तें विषप्रदम् ।।"
इस श्लोक के अनुसार अपच की अवस्था में पानी औषध के समान होता है । भोजन पचने के बाद की अवस्था में पानी बल प्रदान करता है तो भोजन के बीच में घूंट भर थोड़ा सा जल अमृत के समान होता है ,जबकि भोजन के बाद में पिया हुआ पानी जहर के समान होता है।
भोजन करने के बाद हमारे पेट के जठर में जाकर खाना पचने की प्रक्रिया शुरू करता है। यह जठर हमारे शरीर की नाभि के बांई ओर एक थैली नुमा छोटा सा अंग है । वर्तमान की अपनी लोक भाषा में इसको हम आमाशय कहते हैं। जठर में एक प्रकार की हल्की अग्नि प्रदीप होती है। जब भूख लगती है तब वास्तव में आमाशय में वो अग्नि ही हमें संकेत करती है कि शरीर के लिए ईंधन भेजा जाए, गाङी रिजर में आ गई हैं।
आपने महसूस किया होगा कि जब अच्छी भूख लगती है तो कैसा भी भोजन कर लिया जाए बहुत मीठा भी लगता है और पच भी जाता है। जठर की अग्नि भोजन के एक घंटे बाद तक प्रदीप्त रहती हैं।
हमारी पुरानी बोली में इसको जठराग्नि कहते हैं। 1 घंटे तक जठराग्नि को अपना काम करने के लिए ऊपर से कुछ भी डालना अग्नि को बंद करने का कारण बनता है। इसलिए भूख अनुसार जब भोजन पूर्ण हो जाए तो हमें अपना भोजन बंद कर देना चाहिए । तब जठराग्नि अपनी प्रक्रिया 1 घंटे में आराम से चला कर भोजन से प्राप्त मात्रा में आहार रस हमारे शरीर के विभिन्न अंगों को भेजता है ।अब अगर जठराग्नि की चलती हुई प्रक्रिया के ऊपर हमने लोटा भरकर ठंडा पानी डाल दिया तो पेट की अग्नि बुझ जाएगी। जिसके चलते भोजन के उत्तम पाचन की प्रक्रिया तो एकदम रूक जायेगी।
वैसे आपने भी देखा होगा अग्नि के ऊपर पानी डालने से आग बुझ जाती है ।इसी भांति पेट की जठर अग्नि भी पानी डालने से बुझ जाएगी और भोजन जठर में अपने नियत समय 1 घंटे में पच नहीं पाएगा और जब 1 घंटे से अधिक समय तक भोजन वहां पर रहेगा तो भोजन अंदर पड़ा पड़ा खराब होगा, गैस कारक होगा। गंधनुमा होगा जिसकी गैस ऊपर व नीचे दोनों जगह से निकलनी शुरू हो जाएगी। इसलिए भोजन के अंत में कभी भी पानी नहीं पिएं।
हमारे ऋषिजनों के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान पर आधुनिक वैज्ञानिक भी सर झुकाकर सैल्यूट कर रह हैं ये देर से ही सही पर लाईन पर तो आ ही गये।

Sunday, March 16, 2025

सदा सुहागन रहो

मीना की दादी गांव से आई तो मीना की मां किरन ने जैसे अपनी सास के पैरों को हाथ लगाया तो उसकी सास ने किरन को “सदा सुहागन रहो” का आशीर्वाद दिया! यह सब मीना बहुत बार देख चुकी सी। बहुत सारे बुजुर्ग हर औरत यही आशीर्वाद देते थे। इस बार मीना से रहा नहीं गया। वो अपनी मां से बोली “ये क्या मम्मी, आप जब भी दादी के पैर छूते हो दादी सदैव यही आशीर्वाद देती हैं कि सदा सुहागन रहो। क्या दादी ये नहीं कह सकती सुखी रहो, खुश रहो। ऐसे तो दादी सदा सुहागन का आशीर्वाद इन डायरेक्टली अपने बेटे को दे रही हैं?
तो इसमें गलत क्या है। उनके बेटे मेरे पति भी तो हैं। मेरा हर सुख उन्हीं के साथ है। अगर वो हैं तो मै हूं। इसका मतलब औरत का अपना कोई वजूद नहीं है? ओह हो, कहां की बात कहां लेकर जा रही है। पति का होना पत्नी के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह होता है। ये बात तुम अभी नहीं समझोगी।
लेकिन मम्मी…..लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मेरे पास तुम्हारे फालतू सवालों का जवाब नहीं, जा कर अपनी पढ़ाई करो। मीना अपने कमरे चली गई। कमरे में जाकर खुद से बातें करने लगी। ये भी कोई बात हुई, पति न हो गया भगवान हो गया , सारा दिन पीछे पीछे घूमते रहो, पसंद की सब्जी बनाओ, व्रत रखो, कहीं जाना हो तो पूछ कर जाओ, औरत को किस बात कि आजादी है फिर? आशीर्वाद भी ऐसे मिले कि सीधे सीधे पति के नाम हो , हुंह… मैं तो नहीं मानूंगी हर बात, बराबर की बनकर रहूंगी। पुराने सब बातें मैं नहीं मानूंगी… अगर इज्जत मिलेगी तो ही इज्जत दूंगी। नहीं तो एक की चार सुनाऊंगी।
हमेशा ऐसी बातें सोचने और करने वाली मीना की भी एक दिन शादी हो गई। उसका पति नील उसे सिर आंखों पर रखता। मीना भी उसकी हर बात मानती। उसकी पसंद का खाना बनाती। जो कपड़े नील मीना के लिए पसंद करता, वही मीना की पसंद बन जाती। अब जब भी किरन फोन करती तो मीना अपनी बातें कम नील की बातें ज्यादा करती। किरन यह सोचकर मुस्कराने लगती…. जो बेटी हमेशा कहती थी, औरत का भला पति के बिना कोई वजूद ही नहीं है? आज उसी बेटी का पति उसकी पूरी दुनिया बना हुआ है। बेटी जमाई एक साथ बहुत खुश थे। यह सोच किरन बहुत खुश थी।
एक साल बाद उनकी खुशियां दुगनी हो गईं। जब उनके घर एक प्यारे से बेटे अंश ने जन्म लिया। अंश अभी एक साल का भी नहीं हुआ था…नील के साथ एक हादसा हो गया। उसको बहुत चोटें लगीं। सिर्फ चेहरे को छोड़ कर पूरा शरीर पट्टियों से बंधा पड़ा था। मीना का रो रो कर बुरा हाल था। उसे अंश को संभालने का भी होश नहीं था। किरन कभी बेटी को संभालती, कभी अंश को। दिन रात भगवान से प्रार्थना करती। तीन दिन हो गए थे, नील के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई थी। तीन दिन बाद गांव से मीना के दादा दादी आए। मीना भाग कर उनके पास गई और उनके पैरों में गिर पड़ी। दादी ने उठाने की बहुत कोशिश की, मीना गिड़गिड़ाने लगी।
दादी मुझे भी वह आशीर्वाद दीजिए, जो आप मम्मी को देती थीं। बेटी की ऐसी हालत देख कर किरन की रुलाई छूट गई। दादी भी रोने लगी और रोती हुई आवाज में दादी ने पोती के सिर पर हाथ रखते हुए कहा- सदा सुहागन रह मेरी बच्ची, सदा सुहागन रह।
दादी का इतना कहना था कि नर्स आ कर बोली, मरीज के शरीर में हरकत हुई है। सबकी आंखो में एक चमक आ गई। मीना भी अब आशीर्वाद की ताकत को समझ गई थी। उसने दादी को गले लगाया और बोली- धन्यवाद दादी। और भागकर नील के कमरे की तरफ चली गई। वह आशीर्वाद की ताकत देख चुकी थी।

Saturday, March 15, 2025

बगुला भगत

 🌳  (शिक्षास्पद कहानी)🌳

एक वन प्रदेश में एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे। 

पास में ही बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी। इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता।

 एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'

बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला

'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'

केकडा बोला 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'

बगुले ने एक और हिचकी ली 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।'

बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।

उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'

सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।

अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।'

बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।

बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा 'मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।'

भगतजी बोले 'बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।'

केकडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया 'यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?'

बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला 'मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।'

केकडा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए।

फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।

इस कहानी से क्या सीखें: ये कहानी भी हमें 2 महत्वपूर्ण सीख देती है।

1. दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियाँ बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।

2. कठिन से कठिन परिस्थिति और मुसीबत के समय में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए और धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए।