Sunday, March 16, 2025

सदा सुहागन रहो

मीना की दादी गांव से आई तो मीना की मां किरन ने जैसे अपनी सास के पैरों को हाथ लगाया तो उसकी सास ने किरन को “सदा सुहागन रहो” का आशीर्वाद दिया! यह सब मीना बहुत बार देख चुकी सी। बहुत सारे बुजुर्ग हर औरत यही आशीर्वाद देते थे। इस बार मीना से रहा नहीं गया। वो अपनी मां से बोली “ये क्या मम्मी, आप जब भी दादी के पैर छूते हो दादी सदैव यही आशीर्वाद देती हैं कि सदा सुहागन रहो। क्या दादी ये नहीं कह सकती सुखी रहो, खुश रहो। ऐसे तो दादी सदा सुहागन का आशीर्वाद इन डायरेक्टली अपने बेटे को दे रही हैं?
तो इसमें गलत क्या है। उनके बेटे मेरे पति भी तो हैं। मेरा हर सुख उन्हीं के साथ है। अगर वो हैं तो मै हूं। इसका मतलब औरत का अपना कोई वजूद नहीं है? ओह हो, कहां की बात कहां लेकर जा रही है। पति का होना पत्नी के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह होता है। ये बात तुम अभी नहीं समझोगी।
लेकिन मम्मी…..लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मेरे पास तुम्हारे फालतू सवालों का जवाब नहीं, जा कर अपनी पढ़ाई करो। मीना अपने कमरे चली गई। कमरे में जाकर खुद से बातें करने लगी। ये भी कोई बात हुई, पति न हो गया भगवान हो गया , सारा दिन पीछे पीछे घूमते रहो, पसंद की सब्जी बनाओ, व्रत रखो, कहीं जाना हो तो पूछ कर जाओ, औरत को किस बात कि आजादी है फिर? आशीर्वाद भी ऐसे मिले कि सीधे सीधे पति के नाम हो , हुंह… मैं तो नहीं मानूंगी हर बात, बराबर की बनकर रहूंगी। पुराने सब बातें मैं नहीं मानूंगी… अगर इज्जत मिलेगी तो ही इज्जत दूंगी। नहीं तो एक की चार सुनाऊंगी।
हमेशा ऐसी बातें सोचने और करने वाली मीना की भी एक दिन शादी हो गई। उसका पति नील उसे सिर आंखों पर रखता। मीना भी उसकी हर बात मानती। उसकी पसंद का खाना बनाती। जो कपड़े नील मीना के लिए पसंद करता, वही मीना की पसंद बन जाती। अब जब भी किरन फोन करती तो मीना अपनी बातें कम नील की बातें ज्यादा करती। किरन यह सोचकर मुस्कराने लगती…. जो बेटी हमेशा कहती थी, औरत का भला पति के बिना कोई वजूद ही नहीं है? आज उसी बेटी का पति उसकी पूरी दुनिया बना हुआ है। बेटी जमाई एक साथ बहुत खुश थे। यह सोच किरन बहुत खुश थी।
एक साल बाद उनकी खुशियां दुगनी हो गईं। जब उनके घर एक प्यारे से बेटे अंश ने जन्म लिया। अंश अभी एक साल का भी नहीं हुआ था…नील के साथ एक हादसा हो गया। उसको बहुत चोटें लगीं। सिर्फ चेहरे को छोड़ कर पूरा शरीर पट्टियों से बंधा पड़ा था। मीना का रो रो कर बुरा हाल था। उसे अंश को संभालने का भी होश नहीं था। किरन कभी बेटी को संभालती, कभी अंश को। दिन रात भगवान से प्रार्थना करती। तीन दिन हो गए थे, नील के शरीर में कोई हलचल नहीं हुई थी। तीन दिन बाद गांव से मीना के दादा दादी आए। मीना भाग कर उनके पास गई और उनके पैरों में गिर पड़ी। दादी ने उठाने की बहुत कोशिश की, मीना गिड़गिड़ाने लगी।
दादी मुझे भी वह आशीर्वाद दीजिए, जो आप मम्मी को देती थीं। बेटी की ऐसी हालत देख कर किरन की रुलाई छूट गई। दादी भी रोने लगी और रोती हुई आवाज में दादी ने पोती के सिर पर हाथ रखते हुए कहा- सदा सुहागन रह मेरी बच्ची, सदा सुहागन रह।
दादी का इतना कहना था कि नर्स आ कर बोली, मरीज के शरीर में हरकत हुई है। सबकी आंखो में एक चमक आ गई। मीना भी अब आशीर्वाद की ताकत को समझ गई थी। उसने दादी को गले लगाया और बोली- धन्यवाद दादी। और भागकर नील के कमरे की तरफ चली गई। वह आशीर्वाद की ताकत देख चुकी थी।

Saturday, March 15, 2025

बगुला भगत

 🌳  (शिक्षास्पद कहानी)🌳

एक वन प्रदेश में एक बहुत बडा तालाब था। हर प्रकार के जीवों के लिए उसमें भोजन सामग्री होने के कारण वहां नाना प्रकार के जीव, पक्षी, मछलियां, कछुए और केकडे आदि वास करते थे। 

पास में ही बगुला रहता था, जिसे परिश्रम करना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था। उसकी आंखें भी कुछ कमज़ोर थीं। मछलियां पकडने के लिए तो मेहनत करनी पडती हैं, जो उसे खलती थी। इसलिए आलस्य के मारे वह प्रायः भूखा ही रहता।

 एक टांग पर खडा यही सोचता रहता कि क्या उपाय किया जाए कि बिना हाथ-पैर हिलाए रोज भोजन मिले। एक दिन उसे एक उपाय सूझा तो वह उसे आजमाने बैठ गया।

बगुला तालाब के किनारे खडा हो गया और लगा आंखों से आंसू बहाने। एक केकडे ने उसे आंसू बहाते देखा तो वह उसके निकट आया और पूछने लगा 'मामा, क्या बात है भोजन के लिए मछलियों का शिकार करने की बजाय खडे आंसू बहा रहे हो?'

बगुले ने ज़ोर की हिचकी ली और भर्राए गले से बोला

'बेटे, बहुत कर लिया मछलियों का शिकार। अब मैं यह पाप कार्य और नहीं करुंगा। मेरी आत्मा जाग उठी हैं। इसलिए मैं निकट आई मछलियों को भी नहीं पकड रहा हूं। तुम तो देख ही रहे हो।'

केकडा बोला 'मामा, शिकार नहीं करोगे, कुछ खाओगे नहीं तो मर नहीं जाओगे?'

बगुले ने एक और हिचकी ली 'ऐसे जीवन का नष्ट होना ही अच्छा है बेटे, वैसे भी हम सबको जल्दी मरना ही है। मुझे ज्ञात हुआ है कि शीघ्र ही यहां बारह वर्ष लंबा सूखा पडेगा।'

बगुले ने केकडे को बताया कि यह बात उसे एक त्रिकालदर्शी महात्मा ने बताई हैं, जिसकी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती। केकडे ने जाकर सबको बताया कि कैसे बगुले ने बलिदान व भक्ति का मार्ग अपना लिया हैं और सूखा पडने वाला हैं।

उस तालाब के सारे जीव मछलियां, कछुए, केकडे, बत्तखें व सारस आदि दौडे-दौडे बगुले के पास आए और बोले 'भगत मामा, अब तुम ही हमें कोई बचाव का रास्ता बताओ। अपनी अक्ल लडाओ तुम तो महाज्ञानी बन ही गए हो।'

बगुले ने कुछ सोचकर बताया कि वहां से कुछ कोस दूर एक जलाशय हैं जिसमें पहाडी झरना बहकर गिरता हैं। वह कभी नहीं सूखता। यदि जलाशय के सब जीव वहां चले जाएं तो बचाव हो सकता हैं। अब समस्या यह थी कि वहां तक जाया कैसे जाएं? बगुले भगत ने यह समस्या भी सुलझा दी 'मैं तुम्हें एक-एक करके अपनी पीठ पर बिठाकर वहां तक पहुंचाऊंगा क्योंकि अब मेरा सारा शेष जीवन दूसरों की सेवा करने में गुजरेगा।'

सभी जीवों ने गद्-गद् होकर ‘बगुला भगतजी की जै’ के नारे लगाए।

अब बगुला भगत के पौ-बारह हो गई। वह रोज एक जीव को अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाता और कुछ दूर ले जाकर एक चट्टान के पास जाकर उसे उस पर पटककर मार डालता और खा जाता। कभी मूड हुआ तो भगतजी दो फेरे भी लगाते और दो जीवों को चट कर जाते तालाब में जानवरों की संख्या घटने लगी। चट्टान के पास मरे जीवों की हड्डियों का ढेर बढने लगा और भगतजी की सेहत बनने लगी। खा-खाकर वह खूब मोटे हो गए। मुख पर लाली आ गई और पंख चर्बी के तेज से चमकने लगे। उन्हें देखकर दूसरे जीव कहते 'देखो, दूसरों की सेवा का फल और पुण्य भगतजी के शरीर को लग रहा है।'

बगुला भगत मन ही मन खूब हंसता। वह सोचता कि देखो दुनिया में कैसे-कैसे मूर्ख जीव भरे पडे हैं, जो सबका विश्वास कर लेते हैं। ऐसे मूर्खों की दुनिया में थोडी चालाकी से काम लिया जाए तो मजे ही मजे हैं। बिना हाथ-पैर हिलाए खूब दावत उडाई जा सकती है संसार से मूर्ख प्राणी कम करने का मौक़ा मिलता है बैठे-बिठाए पेट भरने का जुगाड हो जाए तो सोचने का बहुत समय मिल जाता हैं।

बहुत दिन यही क्रम चला। एक दिन केकडे ने बगुले से कहा 'मामा, तुमने इतने सारे जानवर यहां से वहां पहुंचा दिए, लेकिन मेरी बारी अभी तक नहीं आई।'

भगतजी बोले 'बेटा, आज तेरा ही नंबर लगाते हैं, आजा मेरी पीठ पर बैठ जा।'

केकडा खुश होकर बगुले की पीठ पर बैठ गया। जब वह चट्टान के निकट पहुंचा तो वहां हड्डियों का पहाड देखकर केकडे का माथा ठनका। वह हकलाया 'यह हड्डियों का ढेर कैसा है? वह जलाशय कितनी दूर है, मामा?'

बगुला भगत ठां-ठां करके खूब हंसा और बोला 'मूर्ख, वहां कोई जलाशय नहीं है। मैं एक- एक को पीठ पर बिठाकर यहां लाकर खाता रहता हूं। आज तू मरेगा।'

केकडा सारी बात समझ गया। वह सिहर उठा परन्तु उसने हिम्मत न हारी और तुरंत अपने जंबूर जैसे पंजों को आगे बढाकर उनसे दुष्ट बगुले की गर्दन दबा दी और तब तक दबाए रखी, जब तक उसके प्राण पखेरु न उड गए।

फिर केकडा बगुले भगत का कटा सिर लेकर तालाब पर लौटा और सारे जीवों को सच्चाई बता दी कि कैसे दुष्ट बगुला भगत उन्हें धोखा देता रहा।

इस कहानी से क्या सीखें: ये कहानी भी हमें 2 महत्वपूर्ण सीख देती है।

1. दूसरों की बातों पर आंखें मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए, वास्तविक परिस्थिति के बारे में पहले पता लगा लेना चाहिए, हो सकता है सामने वाला मनगढंत कहानियाँ बना रहा हो और आपको लुभाने की कोशिश कर रहा हो।

2. कठिन से कठिन परिस्थिति और मुसीबत के समय में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिए और धीरज व बुद्धिमानी से कार्य करना चाहिए।


निष्कामता ही परमार्थ

एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।राजन ने उनसे पुछा- महात्मन !! आप कौन हैं?

वृद्ध ने कहा- राजन !! मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!

राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत,  तीर्थ,कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए,बगीचे आदि भी बनवाए थे।राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था।वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए।वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ,सब एक-एक करके सूख गए,बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए।राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया।सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ,वह खँडहर में बदल गया।वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ,तीर्थ,कथा,पूजन,दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।

सत्य ने कहा- राजन !! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं,उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है,धर्म का निर्वहन नहीं।सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं,उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है। इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए।राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया। 

 शिक्षा-मित्रों !! सच ही तो है,सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी सफाई कर्मचारी (हरिजन) के पूजन व चरण छू लेते हैं। खाना खा लेते हैं,ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है, फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की..!!

सुप्रभातं सुमंगलं। हम बदलेंगे,युग बदलेगा। आपका हरपल मंगलमय हो।

शादी से पहले बात करना क्यों ज़रूरी है?

कॉलेज खत्म होने के बाद, मेरे पापा मेरे लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे, लेकिन मैं आगे पढ़ाई करना चाहती थी। जब मैंने घर में अपनी इच्छा जाहिर की, तो पापा ने साफ कह दिया—"शादी कर लो, शादी के बाद भी पढ़ सकती हो।" उनका मानना था कि सही उम्र निकल गई, तो अच्छा लड़का नहीं मिलेगा।
फिर अनीश का रिश्ता आया। वह देखने में ठीक-ठाक थे, परिवार भी संपन्न था। जब पापा ने तस्वीर दिखाई, तो मुझे कोई खास दिलचस्पी नहीं हुई। पहली मुलाकात में भी हमें बस एक-दूसरे को देखने का मौका दिया गया, लेकिन बात करने की इजाजत नहीं मिली।
कुछ दिनों बाद मैंने अपनी भाभी से कहा कि मैं शादी से पहले अनीश से बात करना चाहती हूँ। जब उन्होंने भैया से यह बात रखी, तो उन्होंने तुरंत टोक दिया—"हमारी शादी से पहले भी बात नहीं हुई थी, फिर इसे क्या जल्दी है?" भाभी ने समझाया कि अब जमाना बदल गया है, शादी से पहले बातचीत बेहद जरूरी है।
पापा ने जब यह बात अनीश के परिवार से की, तो उनका व्यवहार अचानक बदल गया। उन्होंने गुस्से में कहा,
"हमारे यहाँ शादी से पहले लड़का-लड़की बात नहीं करते। अगर आपको ये गलत लगता है, तो रिश्ता यहीं खत्म कर सकते हैं!"
पापा डर गए कि रिश्ता टूटने से समाज में बदनामी होगी, और मैंने भी उनकी बात मान ली।
शादी के बाद जो हुआ, उसने मेरी दुनिया हिला दी…
शादी हो गई। सुहागरात पर सब कुछ सामान्य था, लेकिन अगली सुबह जो हुआ, उसने मुझे हिला कर रख दिया।
अनीश ने कहा,
"मेरा छोटा भाई भी तुम्हारे साथ संबंध बनाना चाहता है।"
मैं सन्न रह गई 😨। गुस्से में कहा, "आपको शर्म नहीं आती अपनी पत्नी के बारे में ऐसी बातें करते हुए?"
लेकिन जो जवाब मिला, वो और भी भयावह था…
"इसमें गलत क्या है? मैं भी अपनी भाभी के साथ संबंध बना चुका हूँ, और हमारे घर में यह आम बात है!"
मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। जब मैंने ससुराल के दूसरे लोगों से मदद मांगी, तो उनका भी वही जवाब था—"जैसा पति कहे, वही करो। हमारे घर की यही परंपरा है।"
अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे—या तो इस नरक में जिऊं, या फिर वहां से भाग निकलूं।
कैसे बची इस नर्क से? 😢🏃‍♀️
मैंने अपने पापा को फोन किया और कहा, "अगर एक पल और यहाँ रही, तो मुझे अपनी जान देनी पड़ेगी।"
पापा घबरा गए। पहले तो समझाने लगे कि "शादी में एडजस्ट करने में समय लगता है", लेकिन मैंने अपनी भाभी को सब कुछ बता दिया।
मेरी भाभी मेरी सबसे बड़ी ताकत बनीं। उन्होंने मेरे भाई को समझाया कि ऐसे गंदे परिवार भी होते हैं।
जब मेरे ससुराल का फोन आया, तो मैंने साफ़ कहा—
"मैं वहाँ नहीं लौटूंगी, जहाँ पूरा परिवार एक ही औरत पर हक जताना चाहता हो!"
मेरे ससुर ने धमकी दी कि "अगर वापस नहीं आई, तो पुलिस में शिकायत कर देंगे!"
लेकिन मेरे भाई ने गुस्से में जवाब दिया—"अगर पुलिस तक जाना है, तो हम भी तैयार हैं!"
चार साल बाद…
आज इस घटना को चार साल हो चुके हैं।
मेरी ज़िंदगी बर्बाद होने की एक ही वजह थी—
💔 शादी से पहले मुझे बात करने का मौका नहीं मिला!
अगर मैं पहले ही अनीश से बात कर पाती, तो शायद इस नरक में जाने से बच सकती थी।
समाज में आज भी यह सोच बनी हुई है कि अगर लड़की शादी से पहले लड़के से बात करना चाहे, तो उसे कैरेक्टरलेस समझा जाता है। लेकिन वही समाज तब चुप रहता है, जब शादी के बाद लड़की की जिंदगी नर्क बन जाती है।
सबक जो हर लड़की को जानना चाहिए 🙏
💡 शादी से पहले कुंडली मिलाएं या न मिलाएं, लेकिन एक-दूसरे से बात ज़रूर करें!
💡 अगर होने वाला जीवनसाथी बातचीत से भी डरता है, तो वहां रिश्ता मत जोड़िए।
💡 शादी सिर्फ घर-परिवार की मर्यादा निभाने के लिए नहीं होती, बल्कि जीवनभर के साथ और सम्मान के लिए होती है।
अगर आपकी शादी की बात चल रही है, तो इस कहानी को एक सबक की तरह याद रखें। सही समय पर सही सवाल पूछने से आप अपनी जिंदगी बचा सकती हैं।