Saturday, March 15, 2025

निष्कामता ही परमार्थ

एक दिन राजा भोज गहरी निद्रा में सोये हुए थे। उन्हें उनके स्वप्न में एक अत्यंत तेजस्वी वृद्ध पुरुष के दर्शन हुए।राजन ने उनसे पुछा- महात्मन !! आप कौन हैं?

वृद्ध ने कहा- राजन !! मैं सत्य हूँ और तुझे तेरे कार्यों का वास्तविक रूप दिखाने आया हूँ। मेरे पीछे-पीछे चल आ और अपने कार्यों की वास्तविकता को देख!

राजा भोज उस वृद्ध के पीछे-पीछे चल दिए। राजा भोज बहुत दान, पुण्य, यज्ञ, व्रत,  तीर्थ,कथा-कीर्तन करते थे, उन्होंने अनेक तालाब, मंदिर, कुँए,बगीचे आदि भी बनवाए थे।राजा के मन में इन कार्यों के कारण अभिमान आ गया था।वृद्ध पुरुष के रूप में आये सत्य ने राजा भोज को अपने साथ उनकी कृतियों के पास ले गए।वहाँ जैसे ही सत्य ने पेड़ों को छुआ,सब एक-एक करके सूख गए,बागीचे बंज़र भूमि में बदल गए।राजा इतना देखते ही आश्चर्यचकित रह गया।फिर सत्य राजा को मंदिर ले गया।सत्य ने जैसे ही मंदिर को छुआ,वह खँडहर में बदल गया।वृद्ध पुरुष ने राजा के यज्ञ,तीर्थ,कथा,पूजन,दान आदि के लिए बने स्थानों, व्यक्तियों आदि चीजों को ज्यों ही छुआ, वे सब राख हो गए।।राजा यह सब देखकर विक्षिप्त-सा हो गया।

सत्य ने कहा- राजन !! यश की इच्छा के लिए जो कार्य किये जाते हैं,उनसे केवल अहंकार की पुष्टि होती है,धर्म का निर्वहन नहीं।सच्ची सदभावना से निस्वार्थ होकर कर्तव्यभाव से जो कार्य किये जाते हैं,उन्हीं का फल पुण्य के रूप मिलता है और यह पुण्य फल का रहस्य है। इतना कहकर सत्य अंतर्धान हो गए।राजा ने निद्रा टूटने पर गहरा विचार किया और सच्ची भावना से कर्म करना प्रारंभ किया,जिसके बल पर उन्हें ना सिर्फ यश-कीर्ति की प्राप्ति हुए बल्कि उन्होंने बहुत पुण्य भी कमाया। 

 शिक्षा-मित्रों !! सच ही तो है,सिर्फ प्रसिद्धि और आदर पाने के नज़रिये से किया गया काम पुण्य नहीं देता। हमने देखा है कई बार लोग सिर्फ अखबारों और न्यूज़ चैनल्स पर आने के लिए झाड़ू उठा लेते हैं या किसी सफाई कर्मचारी (हरिजन) के पूजन व चरण छू लेते हैं। खाना खा लेते हैं,ऐसा करना पुण्य नहीं दे सकता, असली पुण्य तो हृदय से की गयी सेवा से ही उपजता है, फिर वो चाहे हज़ारों लोगों की की गयी हो या बस किसी एक व्यक्ति की..!!

सुप्रभातं सुमंगलं। हम बदलेंगे,युग बदलेगा। आपका हरपल मंगलमय हो।

शादी से पहले बात करना क्यों ज़रूरी है?

कॉलेज खत्म होने के बाद, मेरे पापा मेरे लिए रिश्ता ढूंढ रहे थे, लेकिन मैं आगे पढ़ाई करना चाहती थी। जब मैंने घर में अपनी इच्छा जाहिर की, तो पापा ने साफ कह दिया—"शादी कर लो, शादी के बाद भी पढ़ सकती हो।" उनका मानना था कि सही उम्र निकल गई, तो अच्छा लड़का नहीं मिलेगा।
फिर अनीश का रिश्ता आया। वह देखने में ठीक-ठाक थे, परिवार भी संपन्न था। जब पापा ने तस्वीर दिखाई, तो मुझे कोई खास दिलचस्पी नहीं हुई। पहली मुलाकात में भी हमें बस एक-दूसरे को देखने का मौका दिया गया, लेकिन बात करने की इजाजत नहीं मिली।
कुछ दिनों बाद मैंने अपनी भाभी से कहा कि मैं शादी से पहले अनीश से बात करना चाहती हूँ। जब उन्होंने भैया से यह बात रखी, तो उन्होंने तुरंत टोक दिया—"हमारी शादी से पहले भी बात नहीं हुई थी, फिर इसे क्या जल्दी है?" भाभी ने समझाया कि अब जमाना बदल गया है, शादी से पहले बातचीत बेहद जरूरी है।
पापा ने जब यह बात अनीश के परिवार से की, तो उनका व्यवहार अचानक बदल गया। उन्होंने गुस्से में कहा,
"हमारे यहाँ शादी से पहले लड़का-लड़की बात नहीं करते। अगर आपको ये गलत लगता है, तो रिश्ता यहीं खत्म कर सकते हैं!"
पापा डर गए कि रिश्ता टूटने से समाज में बदनामी होगी, और मैंने भी उनकी बात मान ली।
शादी के बाद जो हुआ, उसने मेरी दुनिया हिला दी…
शादी हो गई। सुहागरात पर सब कुछ सामान्य था, लेकिन अगली सुबह जो हुआ, उसने मुझे हिला कर रख दिया।
अनीश ने कहा,
"मेरा छोटा भाई भी तुम्हारे साथ संबंध बनाना चाहता है।"
मैं सन्न रह गई 😨। गुस्से में कहा, "आपको शर्म नहीं आती अपनी पत्नी के बारे में ऐसी बातें करते हुए?"
लेकिन जो जवाब मिला, वो और भी भयावह था…
"इसमें गलत क्या है? मैं भी अपनी भाभी के साथ संबंध बना चुका हूँ, और हमारे घर में यह आम बात है!"
मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। जब मैंने ससुराल के दूसरे लोगों से मदद मांगी, तो उनका भी वही जवाब था—"जैसा पति कहे, वही करो। हमारे घर की यही परंपरा है।"
अब मेरे सामने दो ही रास्ते थे—या तो इस नरक में जिऊं, या फिर वहां से भाग निकलूं।
कैसे बची इस नर्क से? 😢🏃‍♀️
मैंने अपने पापा को फोन किया और कहा, "अगर एक पल और यहाँ रही, तो मुझे अपनी जान देनी पड़ेगी।"
पापा घबरा गए। पहले तो समझाने लगे कि "शादी में एडजस्ट करने में समय लगता है", लेकिन मैंने अपनी भाभी को सब कुछ बता दिया।
मेरी भाभी मेरी सबसे बड़ी ताकत बनीं। उन्होंने मेरे भाई को समझाया कि ऐसे गंदे परिवार भी होते हैं।
जब मेरे ससुराल का फोन आया, तो मैंने साफ़ कहा—
"मैं वहाँ नहीं लौटूंगी, जहाँ पूरा परिवार एक ही औरत पर हक जताना चाहता हो!"
मेरे ससुर ने धमकी दी कि "अगर वापस नहीं आई, तो पुलिस में शिकायत कर देंगे!"
लेकिन मेरे भाई ने गुस्से में जवाब दिया—"अगर पुलिस तक जाना है, तो हम भी तैयार हैं!"
चार साल बाद…
आज इस घटना को चार साल हो चुके हैं।
मेरी ज़िंदगी बर्बाद होने की एक ही वजह थी—
💔 शादी से पहले मुझे बात करने का मौका नहीं मिला!
अगर मैं पहले ही अनीश से बात कर पाती, तो शायद इस नरक में जाने से बच सकती थी।
समाज में आज भी यह सोच बनी हुई है कि अगर लड़की शादी से पहले लड़के से बात करना चाहे, तो उसे कैरेक्टरलेस समझा जाता है। लेकिन वही समाज तब चुप रहता है, जब शादी के बाद लड़की की जिंदगी नर्क बन जाती है।
सबक जो हर लड़की को जानना चाहिए 🙏
💡 शादी से पहले कुंडली मिलाएं या न मिलाएं, लेकिन एक-दूसरे से बात ज़रूर करें!
💡 अगर होने वाला जीवनसाथी बातचीत से भी डरता है, तो वहां रिश्ता मत जोड़िए।
💡 शादी सिर्फ घर-परिवार की मर्यादा निभाने के लिए नहीं होती, बल्कि जीवनभर के साथ और सम्मान के लिए होती है।
अगर आपकी शादी की बात चल रही है, तो इस कहानी को एक सबक की तरह याद रखें। सही समय पर सही सवाल पूछने से आप अपनी जिंदगी बचा सकती हैं।

Friday, March 14, 2025

खेलत सुन्दर स्याम सखिन सँग ब्रज रस-होरी

 🌹खेलत सुन्दर स्याम सखिन सँग ब्रज रस-होरी॥


🌹भरि पिचकारी चोवा-चंदन रँग भरि केसर-रोरी।

डारत सखियन-अंग स्याम, नटवर-तन सब मिलि गोरी।

मच्यौ घमसान घनौ री॥


🌹भूमि लाल, नभ-लाल, ललित रँग सब दिसि लाल छयौ री।

लाल लता-तरु, लाल, सुमन-फल, निधुबन लाल भयौ री॥


आन कोउ रँग न रह्यौ री॥


🌹मोर-चकोर लाल भए, अलि-कुल रंग गुलाल लह्यौ री।

लाल निकुंज, लाल सुक-कोकिल, लाल रसाल बन्यौ री॥


लाल ही बीज बयौ री॥


🌹लाल दिवस-निसि, लाल सूर्य-ससि, लाल छितिज सु छयौ री।

लाल सलिल काङ्क्षलदी सोभित, लाल बयार बह्यौ री॥


लाल दधि-दूध-मह्यौ री॥


🌹लाल स्वर्नजुत, लाल सु-मरकत बसन-बेस बनयौ री॥

लाल अलक, दृग-पलक लाल भइँ, लाल सु-बचन कह्यौ री।

लाल ही लाल सुन्यौ री॥


🌹ललना-लाल लाल भए दोऊ, सखी लाल रँग बोरी।

नील-पीत पट, चुनरी-पगरी—सबै लाल रँग घोरी॥


सकल जग लाल भयौ री॥

लकड़ी का कटोरा

एक वृद्ध व्यक्ति अपने बहु-बेटे के यहाँ शहर रहने गया। उम्र के इस पड़ाव पर वह अत्यंत कमजोर हो चुका था, उसके हाथ कांपते थे और दिखाई भी कम देता था।

 वो एक छोटे से घर में रहते थे, पूरा परिवार और उसका चार वर्षीया पोता एक साथ डिनर टेबल पर खाना खाते थे। 


लेकिन वृद्ध होने के कारण उस व्यक्ति को खाने में बड़ी दिक्कत होती थी। कभी मटर के दाने उसकी चम्मच से निकल कर फर्श पे बिखर जाते तो कभी हाँथ से दूध छलक कर मेजपोश पर गिर जाता।


बहु-बेटे एक-दो दिन ये सब सहन करते रहे पर अब उन्हें अपने पिता की इस काम से चिढ होने लगी। “हमें इनका कुछ करना पड़ेगा”, लड़के ने कहा।


बहु ने भी हाँ में हाँ मिलाई और बोली, “आखिर कब तक हम इनकी वजह से अपने खाने का मजा किरकिरा करते रहेंगे, और हम इस तरह चीजों का नुक्सान होते हुए भी नहीं देख सकते।”


अगले दिन जब खाने का वक़्त हुआ तो बेटे ने एक पुरानी मेज को कमरे के कोने में लगा दिया, अब बूढ़े पिता को वहीं अकेले बैठ कर अपना भोजन करना था।

 यहाँ तक कि उनके खाने के बर्तनों की जगह एक लकड़ी का कटोरा दे दिया गया था, ताकि अब और बर्तन ना टूट-फूट सकें।


बाकी लोग पहले की तरह ही आराम से बैठ कर खाते और जब कभी-कभार उस बुजुर्ग की तरफ देखते तो उनकी आँखों में आंसू दिखाई देते। 

यह देखकर भी बहु-बेटे का मन नहीं पिघलता, वो उनकी छोटी से छोटी गलती पर ढेरों बातें सुना देते। वहां बैठा बालक भी यह सब बड़े ध्यान से देखता रहता, और अपने में मस्त रहता।


एक रात खाने से पहले, उस छोटे बालक को उसके माता -पिता ने ज़मीन पर बैठ कर कुछ करते हुए देखा, “तुम क्या बना रहे हो ?” 

पिता ने पूछा, बच्चे ने मासूमियत के साथ उत्तर दिया- अरे मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूँ, ताकि जब मैं बड़ा हो जाऊं तो आप लोग इसमें खा सकें।


और वह पुनः अपने काम में लग गया। पर इस बात का उसके माता -पिता पर बहुत गहरा असर हुआ, उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला और आँखों से आंसू बहने लगे।

 वो दोनों बिना बोले ही समझ चुके थे कि अब उन्हें क्या करना है। उस रात वो अपने बूढ़े पिता को वापस डिनर टेबल पर ले आये, और फिर कभी उनके साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया।


शिक्षा:-

असल शिक्षा शब्दों में नहीं हमारे कर्म में छुपी होती है। अगर हम बच्चों को बस ये उपदेश देते रहे कि बड़ों का आदर करो… सबका सम्मान करो… और खुद इसके उलट व्यवहार करें तो बच्चा भी ऐसा ही करना सीखता है।

 इसलिए कभी भी अपने पेरेंट्स के साथ ऐसा व्यवहार ना करें कि कल को आपकी संतान भी आपके लिए लकड़ी का कटोरा तैयार करने लगे..!!