Tuesday, November 5, 2024

ढाई अक्षर

 काफी बरसों पहले पढ़ा था..!

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।

     ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय॥


      अब पता लगा है कि, ढाई अक्षर हैं क्या ?


तब से मन शांत हो गया.


ऐसा ज्ञान सिर्फ सनातन संस्कृति मे ही मिलेगा


 2½ अक्षर के ‘ब्रह्मा’ और, ढाई अक्षर की ‘सृष्टि’. ``

`

 ढाई अक्षर के ‘विष्णु’ और ढाई अक्षर की ‘लक्ष्मी’. 

``` ढाई अक्षर की ‘दुर्गा’ और ढाई अक्षर की ‘शक्ति’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्रद्धा’ और ढाई अक्षर की ‘भक्ति’. 


 ढाई अक्षर का ‘त्याग’ और ढाई अक्षर का ‘ध्यान’. 


 ढाई अक्षर की ‘इच्छा’ और ढाई अक्षर की ‘तुष्टि’. 


 ढाई अक्षर का ‘धर्म’ और ढाई अक्षर का ‘कर्म’. 


 ढाई अक्षर का ‘भाग्य’ और, ढाई अक्षर की ‘व्यथा’. 


 ढाई अक्षर का ‘ग्रन्थ’ और ढाई अक्षर का ‘सन्त’.


 ढाई अक्षर का ‘शब्द’ और ढाई अक्षर का ‘अर्थ’. 


 ढाई अक्षर का ‘सत्य’ और ढाई अक्षर की ‘मिथ्या’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्रुति’ और ढाई अक्षर की ‘ध्वनि’. 


 ढाई अक्षर की ‘अग्नि’ और ढाई अक्षर का ‘कुण्ड’. 


 ढाई अक्षर का ‘मन्त्र’ और ढाई अक्षर का ‘यन्त्र’. 


 ढाई अक्षर की ‘श्वांस’ और ढाई अक्षर के ‘प्राण’. 


 ढाई अक्षर का ‘जन्म’ और ढाई अक्षर की ‘मृत्यु’. 


 ढाई अक्षर की ‘अस्थि’ और ढाई अक्षर की ‘अर्थी’. 


 ढाई अक्षर का ‘प्यार’ और ढाई अक्षर का ‘युद्ध’. 


 ढाई अक्षर का ‘मित्र’ और, ढाई अक्षर का ‘शत्रु’.


 ढाई अक्षर का ‘प्रेम’ और ढाई अक्षर की ‘घृणा’. 


 ‘जन्म' से लेकर ‘मृत्यु’ तक हम, बंधे हैं ढाई अक्षर में. 


ढाई अक्षर ही *वक्त* में और ढाई अक्षर ही *अन्त* में.'''


  समझ न पाया कोई भी, रहस्य क्या है ढाई अक्षर में. ```


पंचभीखम की कथा

          एक साहूकार के बेटे की बहू थी, जो बहुत सुबह उठकर कार्तिक के महीने में रोजना गंगा जी नहाने जाती। पराए पुरुष का मुँह नहीं देखती। एक राजा का लड़का था। जब भी रोजाना गंगा जी नहाने जाता और सोचता कि मैं इतनी सुबह नहाने आता हूँ तो भी मेरे से पहले कौन नहा लेता है।          

पाँच दिन कार्तिक के रह गए। उस दिन साहूकार की बहू तो नहा के जा रही थी, राजा का बेटा आ रहा था। खुढ़का सुनकर वह जल्दी-जल्दी जाने लगी, तो उसकी माला-मोचड़ी छूट गई। राजा आया उसने सोचा जब माला-मोचड़ी इतनी सुंदर है तो इसे पहनने वाली कितनी सुंदर होगी, सारी नगरी में राजा के लड़के ने हेलो फिरा दिया कि जिसकी यह माला-मोचड़ी है, वह मेरे पास पाँच दिन आएगी, तब मैं उसकी माला-मोचड़ी दूँगा।

          साहूकार के बेटे की बहू ने कहलवा दिया कि मैं पाँच दिन आऊँगी, पर किसी को साख भरने के लिए बैठा दियो। राजा ने गंगा जी पर बिछावन करके, एक तोते को पिंजरे में टांग कर रख दिया। वह सुबह आई, पहली पैड़ी पर पैर रखा, वह बोली कि 'हे कातक ठाकुर-राय दामोदर-पांचू पांडू-छठो नारायण-भीसम राजा" उस पापी को नींद आ जाए। मैं सत की हूँ तो मेरा सत रखना। राजा को नींद आ गई और वह नहा-धोकर जाने लगी, तो तोते (सुवा) से बोली कि 'सुवा-सुवा सुवटा-गल घालूँगी हार-साख भरिए मेरा वीरा। 'सुवा बोला कि कोई वीर भी साख भरा करता है ? जब वह बोली कि सुवा-सुवा सुबटा-पग घालूँगी नेवर साख भरिये मेरा देवर।' सुवा ने कहा अच्छा भाभी मैं साख भरूँगा। वह तो कहकर चली गई।

          राजा हड़बड़ाकर उठा, सुवा से पूछा, 'सुवा-सुवा वह आई थी, कैसी थी ?' सुवा बोला, 'आभा की सी बिजली, होली की सी झल, केला की सी कामनी, गुलाब का सा रंग।' राजा ने सोचा कि कल मैं अपनी उँगली चीर के बैठ जाऊँगा, तो नींद नहीं आएगी। दूसरे दिन उँगली चीर के बैठ गया। वह आई उसने वैसे ही प्रार्थना करी, बस उसको नींद आ गई। नहा के जाने लगी तो सुवा ने साख भरा दी। राजा ने उठते ही फिर सुवा से पूछा। सुवा ने कल जैसा ही जवाब दे दिया।

          उसने सोचा, कल तो मैं आँख में मिर्च डालकर बैठ जाऊँगा। तीसरे दिन आँख में मिर्च डालकर बैठ गया, सारी रात हाय-हाय करके बिताई। वह आई, उसने वैसे ही प्रार्थना की, राजा को नींद आ गई। नहा के सुवा से साख भराके चली गई। राजा ने सोचा कि कल तो मैं काँटों की सेज बिछाकर बैठूँगा चौथे दिन काँटों की सेज पर बैठकर हाय-हाय करता रहा, पर जब पर वह आई उसको नींद आ गई वह प्रार्थना करके नहा के, सुवा से साख भरा के चली गई पाँचवे दिन राजा आग जलाकर उसकी राख पर बैठ गया। वह उस दिन भी प्रार्थना करती आई कि आज भी मेरा सत रख दियो।

          राजा को नींद आ गई उसने सुवा से साख भरा ली और कहा कि उस पाजी से कह दियो, मेरे पाँच दिन पूरे हो गए हैं। अब मेरी माला-मोचड़ी मेरे घर भेज देगा। राजा ने उठते ही सुवा पूछा वह आई थी क्या ? सुवा बोला आई थी, अपनी माला-मोचड़ी मँगाई है।

          थोड़े दिन बाद राजा के कोढ़ निकल आए, त्राहि-त्राहि पुकारने लगा। पुरोहित को बुलाकर पूछा कि सारे शरीर में जलन कैसे लग गई। पुरोहित बोला कि यह कोई पतिव्रता स्त्री का पाप धरा है, जिससे लगी है। राजा ने पूछा कि अब कैसे ठीक होगा। पुरोहित बोला कि उसको तुम धर्म की बहन बनाओ और उसके नहाए हुए जल से नहाओगे, तो तुम्हारा जलन, कोढ़ ठीक होगा।

          राजा माला-मोचड़ी लेकर उसके घर गया और साहूकार से बोला कि ये तेरी बहू गंगा पर भूल गई थी, यह उसे दे दो और कह देना कि अपने नहाए हुए जल मुझे नहला दे। साहूकार बोला कि वह तो पराए पुरुष का मुँह नहीं देखती, तू इस नाली के नीचे बैठ जा, वह नहाएगी तो तेरे ऊपर पानी पड़ जाएगा। राजा नाली के नीचे बैठ गया। वह नहायी तो जल गिरने से उसकी काया कंचन-सी हो गई।

          *'हे पचंभीखम देवता, जैसे साहूकार की बहू का सत 

रखा, ऐसा सबका रखियो।*


अभागा राजा और भाग्यशाली दास

एक बार एक गुरुदेव  अपने शिष्य को अहंकार के ऊपर एक शिक्षाप्रद कहानी सुना रहे थे। 

एक विशाल नदी जो की सदाबहार थी उसके दोनों तरफ दो सुन्दर नगर बसे हुये थे! नदी के उस पार महान और विशाल देव मन्दिर बना हुआ था! नदी के इधर एक राजा था राजा को बड़ा अहंकार था कुछ भी करता तो अहंकार का प्रदर्शन करता वहाँ एक दास भी था बहुत ही विनम्र और सज्जन!

एक बार राजा और दास दोनों नदी के पास गये राजा ने उस पार बने देव मंदिर को देखने की इच्छा व्यक्त की दो नावें थी रात का समय था एक नाव में राजा सवार हुआ और दूसरी में दास सवार हुआ। दोनों नाव के बीच में बड़ी दूरी थी!

राजा रात भर चप्पू चलाता रहा पर नदी के उस पार न पहुँच पाया सूर्योदय हो गया तो राजा ने देखा की दास नदी के उसपार से इधर आ रहा है! दास आया और देव मन्दिर का गुणगान करने लगा तो राजा ने कहा की तुम रातभर मन्दिर मे थे! दास ने कहा की हाँ और राजाजी क्या मनोहर देव प्रतिमा थी पर आप क्यों नही आये!

अरे मैंने तो रात भर चप्पू चलाया पर .....

गुरुदेव ने शिष्य से पूछा वत्स बताओ की राजा रातभर चप्पू चलाता रहा पर फिर भी उस पार न पहुँचा? ऐसा क्यों हुआ? जब की उसपार पहुँचने में एक घंटे का समय ही बहुत है! 

शिष्य - हे नाथ मैं तो आपका अबोध सेवक हूँ मैं क्या जानूँ आप ही बताने की कृपा करे देव!

ऋषिवर - हे वत्स राजा ने चप्पू तो रातभर चलाया पर उसने खूंटे से बँधी रस्सी को नहीं खोला और  इसी तरह लोग जिन्दगी भर चप्पू चलाते रहते है पर जब तक अहंकार के खूंटे को उखाड़कर नही फेंकेंगे, आसक्ति की रस्सी को नहीं काटेंगे तब तक नाव देव मंदिर तक नहीं पहुंचेगी

हे वत्स जब तक जीव स्वयं को सामने रखेगा तब तक उसका भला नहीं हो पायेगा! ये न कहो की ये मैंने किया, ये न कहो की ये मेरा है, ये कहो की जो कुछ भी है वो सद्गुरु और समर्थ सत्ता का है मेरा कुछ भी नही है जो कुछ भी है सब उसी का है!

 जो अहंकार से ग्रसित है वो राजा बनकर चलता है और जो दास बनकर चलता है वो सदा लाभ में ही रहता है! 


संस्कार क्या है...

एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया, इस पर घोड़ी बोली: "बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: "मां मैं इसका बदला लूंगा।"

मां ने कहा "राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये", पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।

एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।

इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: "मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया....इस पर घोडी हंस कर बोली: बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"

"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"

यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं।

*हमारे कर्म ही 'संस्‍कार' बनते हैं और संस्कार ही प्रारब्धों का रूप लेते हैं! यदि हम कर्मों को सही व बेहतर दिशा दे दें तो संस्कार अच्छे बनेगें और संस्कार अच्छे बनेंगे तो जो प्रारब्ध का फल बनेगा, वह मीठा व स्वादिष्ट होगा।🙏🙏

जो प्राप्त है-पर्याप्त है

जिसका मन मस्त है

उसके पास समस्त है! आपका हर पल मंगलमय हो!