Saturday, July 27, 2024

पीपल

           देव वृक्ष 


सनातन धर्म में माना जाता है कि प्रकृति के कण-कण में भगवान वास करते हैं और पेड़-पौधे प्रकृति का ही एक अंश हैं। पेड़-पौधों के पूजने की प्रक्रिया सनातन धर्म में सदियों पहले से चली आ रही है। पेड़-पौधों का पूजन करके मनुष्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। वैसे तो धरती पर सभी पेड़ पौधे वनस्पतियां किसी ने किसी रूप में प्रकृति व जीव जगत के लिए लाभकारी व कल्याणकारी है। लेकिन उनमें से भी कुछ ऐसे पौधे हैं जो जीव जगत के लिए विशेष लाभकारी व अतिआवश्यक है। और हमारी संस्कृति में कुछ पेड़-पौधों को शास्त्रों में देव वृक्ष की उपाधियां प्राप्त है।शास्त्र मान्यताओं के अनुसार इन वृक्षों का पूजन करने से देवी- देवताओं की कृपा प्राप्त होती है। आइए जानते हैं इन देव वृक्षों के बारे में-:


🌳पीपल का वृक्ष-: 


* हमारी धर्म संस्कृति में पीपल के पेड़ को पवित्र माना जाता है। शास्त्र मान्यताओं के अनुसार, पीपल के पेड़ में 33 कोटि देवी- देवताओं का वास होता है। 


* पीपल के पेड़ में भगवान श्रीहरि विष्णु का वास माना जाता है, भगवान श्री कृष्ण ने भागवत गीता में भी पीपल के पेड़ का जिक्र किया है। पीपल के पेड़ की पूजा करने से आरोग्य व सुख- संपन्नता का वरदान प्राप्त होता है और व्यक्ति के जीवन से सभी तरह के कष्ट दूर होते हैं। 


* पीपल का पेड़ एक ऐसा पेड़ है जो पशु पक्षियों का विशेष आश्रय दाता  है। बड़ी मात्रा में पक्षी इस पर घोसला बनाकर व इसके फल खाकर अपना जीवन यापन करते हैं। उसके साथ ही साथ यह पेड़ पूरे जीव जगत को भरपूर ऑक्सीजन देता है।


* शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा उपासना भी कल्याणकारी मानी गई है। इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा उपासना करने से रोग- दोष इत्यादि कष्टों से  निवारण होता है।


* वैसे तो पीपल का पेड़ लगाने से सभी ग्रह अनुकूल होते हैं लेकिन विशेष कर यदि जन्म कुंडली में बृहस्पति या शनि ग्रह कमजोर व अशुभ स्थिति में है तो उस व्यक्ति को पीपल का पेड़ एक उचित नक्षत्र- वार और तिथि के दिन लगाने पर व्यक्ति को गुरु व शनि ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती है।


अभी बरसात का मौसम चल रहा है और यदि आपके पास उचित व्यवस्था है तो आप एक पीपल का पेड़ अवश्य लगाएं या लगवाएं।।

प्राइमरी शिक्षक की व्यथा

 शिक्षक : सर पढ़ाना है

साहब: पहले DBT निपटाओ


शिक्षक: अब पढ़ाएं सर

साहब: जिनका आधार नहीं बना है उनका आधार बनवाओ


शिक्षक:सर अब तो पढ़ाएं

साहब: जिन अभिभावकों के खाते में पैसा नही आया उनके खाते में आधार लिंक का काम भी तो बाकी है


शिक्षक: सर अब

साहब : पता करो अभिभावकों ने ड्रेस क्यो नही  खरीदी और अगर खरीदी है तो फोटो अपलोड करो


शिक्षक: सर किताब भी नही आई पढ़ाना है

साहब : किताब तो आती रहेंगी सर्वे वाला काम निपटाओ। Blo वाला काम भी तो कराना है sdm साहब का आदेश है।


शिक्षक: सर अब

साहब : सारी ऑनलाइन ट्रेनिंग कंप्लीट कर लिए की नही? करो और यूट्यूब के सेशन छोड़ना नहीं है जानते हो कि नही


शिक्षक:सर अब

साहब:अरे udise और परिवार सर्वेक्षण का काम पूरा हुआ कि नहीं ऊपर से बहुत प्रेशर है पहले उसे पूरा करो..!!


शिक्षक: सर अब तो पढ़ा लें साल बीतने वाला है

साहब : बोर्ड परीक्षा को ड्यूटी कौन करेगा


(कुछ दिन बाद)


साहब: तुम लोग पढ़ाते नही हो इतनी खराब गुणवत्ता। फ्री की तनख्वाह लेते हो।


साहब की ............

Saturday, July 6, 2024

भगवान जगन्नाथ जी का रथ

 भगवान जगन्नाथ के रथो का संक्षिप्त वर्णन 

भगवान जगन्नाथ जी का रथ

〰️〰️ॐसत्य जय माता दी〰️〰️

1. रथ का नाम 👉 नंदीघोष

2. कुल काष्ठ की संख्या 👉 832

3. कुल चक्के 👉 16

4.रथ की ऊंचाई 👉45 फीट 

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 34 फीट 6 इंच

6.सारथि 👉 दारुक

7. रथ का रक्षक 👉 गरुड़

8.रस्से का नाम 👉 शंखचूड नागुनी

9. पताका का रंग 👉 त्रै लोक्य मोहिनी

10. रथ के  घोड़ों का नाम 👉 वराह, गोवर्धन, कृष्णा, गोपीकृष्ण, न्रसिंह, राम, नारायण, त्रिविक्रम, हनुमान,रूद्र।


बलदेव जी का रथ

〰️〰️〰️〰️〰️〰️

1.रथ का नाम 👉 ताल ध्वज

2.कुलकाष्ठ संख्या 👉 763

3.कुल चक्के 👉 14

4. रथ की ऊंचाई 👉 44 फीट

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 33 फीट

6. सारथि 👉 मातली

7.रथ के रक्षक 👉 वासुदेव

8. रस्से का नाम 👉  बासुकी नाग

9.पताका का रंग 👉 उन्नानी

10.रथ के घोड़ों के नाम👉  तीव्र ,घोर, दीर्घाश्रम, स्वर्ण नाभ ।।


सुभद्रा जी का रथ

〰️〰️〰️〰️〰️〰️

1. रथ का नाम 👉 देव दलन

2. कुल काष्ठ 👉 593

3. कुल चक्के 👉 16

4.रथ की ऊंचाई 👉 45 फीट

5. रथ की लम्बाई चौड़ाई 👉 31 फीट 6 इंच।

6. सारथि 👉 अर्जुन

7. रथ के रक्षक 👉 जय दुर्गा

8. रस्से का नाम 👉 स्वर्ण चूड नागुनी

9. पताका का रंग 👉 नन्द अम्बिका

10. रथ के घोड़ों के नाम 👉 रुचिका, मोचिक

Tuesday, July 2, 2024

हनुमानजी के पांच सगे भाई

 हनुमानजी के पांच सगे भाई भी थे, जानिए उनके नाम ?

हनुमानजी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता होने की बात कही जाती है, दरअसल वह 33 करोड़ नहीं वरन् 33 कोटि देवी-देवता हैं। यानि कि उन्हीं देवी-देवताओं के विभिन्न रूप एवं अवतार हैं। अब स्वयं देव हों या उनके कोई मानव रूपी अवतार, सभी से जुड़े तथ्य एवं पौराणिक वर्णन काफी दिलचस्प हैं।


रोचक जानकारी आज हम हनुमान जी के बारे में आपको कुछ रोचक जानकारी देंगे। बजरंगबली, पवन पुत्र, अंजनी पुत्र, राम भक्त, ऐसे ही कई नामों से पुकारा जाता है हनुमान जी को। यह बात शायद सभी जानते हैं लेकिन आगे बताए जा रहे कुछ तथ्य हर कोई नहीं जानता।


भगवान शिव का अवतार सबसे पहली बात, हनुमान जी को भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार अंजना नाम की एक अप्सरा को एक ऋषि द्वारा यह श्राप दिया गया कि जब भी वह प्रेम बंधन में पड़ेगी, उसका चेहरा एक वानर की भांति हो जाएगा। लेकिन इस श्राप से मुक्त होने के लिए भगवान ब्रह्मा ने अंजना की मदद की।


अंजनी पुत्र उनकी मदद से अंजना ने धरती पर स्त्री रूप में जन्म लिया, यहां उसे वानरों के राजा केसरी से प्रेम हुआ। विवाह पश्चात श्राप से मुक्ति के लिए अंजना ने भगवान शिव की तपस्या आरंभ कर दी। तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। अंजना ने भगवान शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें।


शिव आराधना ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए, इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और इसी दौरान किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ, अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे।


अंजना के हाथ में गिरा प्रसाद अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ‘पायस’ दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया।


शिव का प्रसाद अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले एक बालक को जन्म दिया। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बालक का नाम मारूति था, जिसे बाद में ‘हनुमान’ के नाम से जाना गया।


अन्य कथा हनुमान जी से जुड़ा एक और तथ्य काफी रोचक है। एक कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी ने श्रीराम की याद में अपने पूरे शरीर पर सिंदूर भी लगाया था। यह इसलिए क्योंकि एक बार उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते हुए देख लिया। जब उन्होंने सिंदूर लगाने का कारण पूछा तो सीता जी ने बताया कि यह उनका श्रीराम के प्रति प्रेम एवं सम्मान का प्रतीक है।


लाल हनुमान बस यह जानने की देरी ही थी कि हनुमान जी ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, यह दर्शाने के लिए कि वे भी श्रीराम से अति प्रेम करते हैं। इस घटना के बाद हनुमान का ‘लाल हनुमान’ रूप भी काफी प्रचलित हुआ।


हनुमान शब्द का संस्कृत अर्थ हनुमान जी से जुड़े कुछ छोटे-छोटे तथ्य हैं, जो काफी कम लोग जानते हैं। जैसे कि उनका नाम, ‘हनुमान’ शब्द का यदि संस्कृत अर्थ निकाला जाए तो इसका मतलब होता है जिसका मुख या जबड़ा बिगड़ा हुआ हो।


हनुमान और भीम अगली बात जो हम बताने जा रहे हैं उसे जान आप वाकई हैरत में पड़ने वाले हैं। महाभारत काल में पाण्डु पुत्र राजकुमार भीम अपने बल के लिए जाने जाते थे। कहते हैं वे हनुमान जी के ही भाई थे।


ब्रह्मचारी हनुमान इसके अलावा जिन हनुमान जी को ब्रह्मचारी कहा जाता है, उनकी शादी भी हुई थी। उनके पुत्र का नाम मकरध्वज है। लेकिन इसके अलावा उनके पांच भाई भी थे, क्या आप जानते हैं?


हनुमान जी के पांच सगे भाई जी हां... हनुमान जी के पांच सगे भाई थे और वो पांचों ही विवाहित थे। यह कोई कहानी या मात्र मनोरंजन का साधन बनाने के लिए हवा में बताई गई बात नहीं है, बल्कि सच्चाई है। हनुमान जी के पांच सगे भाई थे, इस बात का उल्लेख 'ब्रह्मांडपुराण' में मिलता है।


ब्रह्मांडपुराण के अनुसार इस पुराण में भगवान हनुमान के पिता केसरी एवं उनके वंश का वर्णन शामिल है। बड़ी बात यह है कि पांचों भाइयों में बजरंगबली सबसे बड़े थे। यानी हनुमानजी को शामिल करने पर वानर राज केसरी के 6 पुत्र थे।


सबसे बड़े थे बजरंगबली बजरंगबली के बाद क्रमशः मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, धृतिमान थे। इन सभी के संतान भी थीं, जिससे इनका वंश वर्षों तक चला। हनुमानजी के बारे जानकारी वैसे तो रामायण, श्रीरामचरितमानस, महाभारत और भी कई हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलती है। 


लेकिन उनके बारे में कुछ ऐसी भी बातें हैं जो बहुत कम धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। 'ब्रह्मांडपुराण' उन्हीं में से एक है। पिता केसरी का वंशज इस महान ग्रंथ में हनुमान जी के जीवन एवं उनसे जुड़ी कई बातें हैं। इसी ग्रंथ में उल्लेख है कि बजरंगबली के पिता केसरी ने अंजना से विवाह किया था।

साभार~ पं देवशर्मा