Thursday, May 30, 2024

हमारा विनाश कव शुरू हुआ था?

1.हमारा विनाश उस समय से शुरू हुआ था जब हरित क्रांति के नाम पर देश में रासायनिक खेती की शुरूआत हुई और हमारा पौष्टिक वर्धक, शुद्ध भोजन विष युक्त कर दिया है!



2. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश में जर्सी गाय लायी गई और भारतीय स्वदेशी गाय का अमृत रूपी दूध छोड़कर जर्सी गाय का विषैला दूध पीना शुरु किया था!
3. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीयों ने दूध, दही,मक्खन, घी आदि छोड़कर शराब पीना शुरू किया था!
4. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने गन्ने का रस छोड़कर पेप्सी, कोका कोला पीना शुरु किया था जिसमें 12 तरह के कैमिकल होते हैं और जो कैंसर, टीबी, हृदय घात का कारण बनते हैं!
5. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने शुद्ध देशी तेल खाना छोड़ दिया था और रिफाइंड आयल खाना शुरू किया था जो रिफाइंड ऑयल हृदय घात, आदि का कारण बन रहा है!
6. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश के युवाओं ने नशा शुरू किया था बीडी, सिगरेट, गुटखा, गांजा, अफीम, आदि शुरू किया था जिससे से कैंसर बढ रहा है!
7. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ जिस दिन देश में 84 हजार नकली दवाओं का व्यापार शुरु हुआ और नकली दवाओं से लोग मर रहे हैं!
8. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश वासियों ने अपने स्वदेशी भोजन छोड़कर पीजा, बर्गर, जंक फूड खाना शुरू किया था जो अनेक बीमारियों का कारण बन रहा है!
9. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अनुशासित और स्वस्थ दिनचर्या को छोड़कर मनमानी दिनचर्या शुरू की थी ।
10. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने घरों में एलुमिनियम के बर्तन व घर में फ्रिज लाया था।
11. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन भारतीय जीवन शैली को छोड़कर विदेशी जीवन शैली शुरू की थी।
12 .हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने स्वस्थ रहने का विज्ञान छोड दिया था और अपने शरीर के स्वास्थ्य सिद्धांतों के विपरीत कार्य करना शुरू किया था ।
13. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन देश का अधिकतर युवा / युवतियां व्यभिचारी बनकर कंडोम का प्रयोग करके व्यभिचार करना ,गर्भ निरोधक गोलियां खाना,लाखों युवतियां हर साल गर्भाशय कैंसर से मरती हैं।
14. हमारा विनाश उस दिन शुरू हुआ था जिस दिन लोगों ने अपने बच्चों को टीके लगवाना शुरू किया था और यह विचार कभी भी नहीं किया था कि टीकों का बच्चों के शरीर पर भविष्य में क्या प्रभाव पडेगा?
15. इस शरीर की कुछ सीमा है कुछ मर्यादा है कुछ स्वस्थ सिद्धांत हैं लेकिन मनमाने आचरण के कारण शरीर की बर्बादी की है!!
नोट :- हमारे विनाश के अनेक कारण हैं आज लोगों को सिर्फ को.रोना ही दिखाई दे रहा है उन्हें यह भी देखना चाहिए कि लोग कैंसर, टीबी, हृदय घात, शुगर, किडनी फेल, हाई वीपी, लो वीपी, अस्थमा आदि गंभीर बीमारियों से मर रहे हैं!!

Sunday, May 19, 2024

लू लगने से मृत्यु क्यों होती है ?

हम सभी धूप में घूमते हैं फिर कुछ लोगों की ही धूप में जाने के कारण अचानक मृत्यु क्यों हो जाती है ?


👉 हमारे शरीर का तापमान हमेशा 37° डिग्री सेल्सियस होता है, इस तापमान पर ही हमारे शरीर के सभी अंग सही तरीके से काम कर पाते है ।


👉 पसीने के रूप में पानी बाहर निकालकर शरीर 37° सेल्सियस टेम्प्रेचर मेंटेन रखता है, लगातार पसीना निकलते वक्त भी पानी पीते रहना अत्यंत जरुरी और आवश्यक है ।


👉 पानी शरीर में इसके अलावा भी बहुत कार्य करता है, जिससे शरीर में पानी की कमी होने पर शरीर पसीने के रूप में पानी बाहर निकालना टालता है । (बंद कर देता है )


👉 जब बाहर का टेम्प्रेचर 45° डिग्री के पार हो जाता है और शरीर की कूलिंग व्यवस्था ठप्प हो जाती है, तब शरीर का तापमान 37° डिग्री से ऊपर पहुँचने लगता है ।


👉 शरीर का तापमान जब 42° सेल्सियस तक पहुँच जाता है तब रक्त गरम होने लगता है और रक्त में उपस्थित प्रोटीन पकने लगता 

है ।


👉  स्नायु कड़क होने लगते हैं इस दौरान सांस लेने के लिए जरुरी स्नायु भी काम करना बंद कर देते 

हैं ।


👉 शरीर का पानी कम हो जाने से रक्त गाढ़ा होने लगता है, ब्लडप्रेशर low हो जाता है, महत्वपूर्ण अंग (विशेषतः ब्रेन) तक ब्लड सप्लाई रुक जाती है ।


👉 व्यक्ति कोमा में चला जाता है और उसके शरीर के एक-एक अंग कुछ ही क्षणों में काम करना बंद कर देते हैं, और उसकी मृत्यु हो जाती है ।


👉गर्मी के दिनों में ऐसे अनर्थ टालने के लिए लगातार थोड़ा-2 पानी पीते रहना चाहिए और हमारे शरीर का तापमान 37° मेन्टेन किस तरह रह पायेगा इस ओर  ध्यान देना चाहिए ।


Equinox phenomenon: इक्विनॉक्स प्रभाव आने वाले दिनों में भारत को प्रभावित करेगा ।


कृपया 12 से 3 बजे के बीच घर, कमरे या ऑफिस के अंदर रहने का प्रयास करें ।


तापमान 40 डिग्री के आस पास विचलन की अवस्था मे रहेगा ।


यह परिवर्तन शरीर मे निर्जलीकरण और सूर्यातप की स्थिति उत्पन्न कर देगा ।


(ये प्रभाव भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर सूर्य चमकने के कारण पैदा होता है) ।


कृपया स्वयं को और अपने जानने वालों को पानी की कमी से ग्रसित न होने दें ।


किसी भी अवस्था में कम से कम 3 लीटर पानी जरूर पियें । किडनी की बीमारी वाले प्रति दिन कम से कम2.5 से 3.5लीटर पानी जरूर लें ।


जहां तक सम्भव हो ब्लड प्रेशर पर नजर रखें । किसी को भी हीट स्ट्रोक हो सकता है ।


ठंडे पानी से नहाएं । इन दिनों मांस का प्रयोग छोड़ दें या कम से कम 

करें ।


फल और सब्जियों को भोजन मे ज्यादा स्थान दें ।


हीट वेव कोई मजाक नही है ।


एक बिना प्रयोग की हुई मोमबत्ती को कमरे से बाहर या खुले मे रखें, यदि मोमबत्ती पिघल जाती है तो ये गंभीर स्थिति है ।


शयन कक्ष और अन्य कमरों मे 2 आधे पानी से भरे ऊपर से खुले पात्रों को रख कर कमरे की नमी बरकरार रखी जा सकती है ।


अपने होठों और आँखों को नम रखने का प्रयत्न करें ।


Friday, May 17, 2024

सत्यनाशी भट कटेया



आमतौर पर गर्मियों के दिनों में खेतों में मेड पर खुद से उगने वाला यह पौधा बिहार में कई नाम से जाना जाता है। इसके पीले फूल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। गेहूं और सरसों की फसल में यह खुद-ब-खुद उग आता है। भरभार, घमोई सत्यनाशी भट कटेया और न जाने किन-किन नाम से इसे संबोधित किया जाता है।देश के ज्यादातर हिस्से में अगर किसी को सत्यानाशी कहा जाता है तो उसका मतलब काम खराब करने वाले व्यक्ति से होता है. ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का ना हो, जो हर काम बिगाड़ता हो यानी जिसका कोई फायदा ना हो, ऐसे व्यक्ति को सत्यानाशी कहा जाता है. लेकिन एक पौधा ऐसा भी है, जो कैसी भी जमीन में, कहीं भी उग जाता है और उसका नाम सत्यानाशी पौधा है. सतयानाशी पौधे को आपने अक्सर सड़क के किनारे, सख्त बंजर जमीन में, पथरीली जगहों पर, कड़ाके की धूप वाली जगहों या सूरज की रोशनी ना पहुंचने वाली यानी हर जगह पर देखा हो सकता है.सत्यानाशी पौधे में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं. यह पौधा ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों में उगता है. इस पौधे में बहुत ज्यादा कांटे होते हैं. इसके पत्ते, शाखाओं, तने और फूलों के आसपास हर जगह कांटे होते हैं. इसके फूल पीले रंग के खिलते हैं, जिनके अंदर बैंगनी रंग के बीज पाए जाते हैं. अमूमन किसी पौधे के फूल और फल तोड़ने पर सफेद रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, लेकिन सत्यानाशी के पौधे से फूल तोड़ने पर पीले रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है. पीले रंग के दूध जैसा पदार्थ निकलने के कारण इसे स्वर्णक्षीर भी कहा जाता है.सत्यानाशी के पौधे को स्वर्णक्षीर के अलावा उजर कांटा, प्रिकली पॉपी, कटुपर्णी, मैक्सिन पॉपी समेत कई नामों से पहचाना जाता है. अमूमन किसान इसे बेकार पौधा मानकर काटकर फेंक देते हैं. वहीं, आयुर्वेद में इसे औषधि की तरह इस्तेमाल कर दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनसे कई रोगों का इलाज किया जाता है. सत्यानाशी पौधे का हर हिस्सा यानी पत्ते, फूल, तना, जड़ और छाल आयुर्वेद में बेहद काम के माने जाते हैं.

Friday, April 5, 2024

महुआ

 ये महुआ फूल किसी रसगुल्लों से कम नही है। चलो एक पहेली बूझौ- "बाप बेटी को एकई नाम महतारी को कछु और" क्योंकि

प्यार मोहब्बत धोखा है महुआ खा लो मौका है
यह पहेली प्रयोग की जाती है, महुआ के लिये.., जिसका वृक्ष पिता स्वरुप है, इसका नाम महुआ है। फूल का नाम भी महुआ है, जो पुत्र स्वरूप है और मेहतारी यानी #गुली का नाम अलग है, जो वास्तव मे इसका बीज है, और इसी से नए पेड़ की उत्पत्ति होती है, इसीलिये इसे मॉ स्वरूप माना गया है। वानस्पतिक रूप से यह एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जो लगभग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। इसके फूलों से सुबह सुबह बहुत ही मीठी, #मनमोहक सी खुशबू आती है, जो धूप बढ़ने के साथ साथ #अल्कोहोलिक यानि मदहोश कर देने वाली ( सर पकड़ने वाली) नशीली खुशबू का रूप ले लेती है।
सुबह सुबह इसके ताजे फूलों को बीनकर खाया जा सकता है। जो देखने मे सफेद रसगुल्लों की तरह दिखाई देते हैं। एक तरह से मीठी चासनी से भरे हुए भी होते गेन इसीलिये इन्हें जंगक का #रसगुल्ला कहा जाता है। ये पेड़ से लागातार टप टप करके दिन भर टपकते ही रहते हैं। गाँव में इन्हें सुखाकर किशमिश जैसा महुआ बना लिया जाता है, जिसे ड्राय फ्रूट की तरह और भारतीय त्यौहारों में प्रसाद की तरह परोसा जाता है। इन्हें बनाने की विधि भी बताऊँगा, बने रहियेगा। छिंदवाडा जिले के जंगली व आदिवासी क्षेत्रों में देशी शराब निर्माण का भी यह एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। महामारी के समय मे इससे सेनिटाइजर का भी निर्माण किया गया। लेकिन किसानों के लिये तो यह बैलों, गायों और अन्य कृषि उपयोगी पशुओं को तंदुरुस्त बनाने वाली बेशकीमती दवा है।


एक तश्वीर में जो किशमिश की तरह दिख रहा है ना, वह है महुआ किशमिश है। ये बनता है महुआ के फूल से। हमारे #मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे अहम हिस्सा महुआ है। फरवरी से लेकर मार्च-अप्रैल तक महुए के पेड़ पर फूल लद जाते हैं। सुबह सोकर उठते ही ग्रामीण निकल पड़ते हैं महुआ बीनने, जो वास्तव में महुआ फूल हैं। इन फूलों को बटोरने की अलग ही कहानी है, वो कभी फुरसत में बताऊंगा लेकिन आज बात महुआ किशमिश की ही होगी क्योंकि....
महुए के सूखे फूलों को खौलते पानी में 20 सेकंड के लिए डाल दें और तुरंत पानी निथार लें। ऐसा करने से महुए की गंध भी कम हो जाती है और इस पर छोटे मोटे कीड़े लगे हों तो वो भी खत्म हो जाते हैं। निथरे महुआ को एक बार फिर 2-3 तक कड़क धूप में सुखा लें। जब ये निथरे महुए अच्छे से सूख जाएं तो इन्हें गुड़ की गर्म चाशनी में डालकर अच्छे से कढ़ाही चला लें। ध्यान रहे चाशनी इतनी हो कि सिर्फ महुए में मिठास चढ़ जाए, इतनी ज्यादा न हो कि महुआ चिपचिपा लगे। चाशनी चढ़ाने के बाद इसे एक बार फिर 2 दिन तक कड़क धूप दिखा दें। मजेदार महुआ किशमिश तैयार है। इसके प्रयोग से पातालकोट सहित कई आदिवासी अंचलों में महुये के #लड्डू और कई मिष्ठान तैयार किये जाते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रीय व्यंजन जैसे महुये की खीर, पूरण पूरी और महुये वाला चीख ये आदिवासी संस्कृति के खास अंग हैं, जिनका अपना अलग ही स्वाद है। जंगली इलाकों में तो बकरी, हिरन और बन्दर आजकल इस प्रकृति के रसगुल्ले की खूब दावत उड़ा रहे हैं। कई बार अखबारों व न्यूज में महुआ खाकर मदहोश हुये बंदरो, हिरणों और हाथियों के झुंड के अजोबो- गरीब किस्से पढ़ने- सुनने को मिलते हैं। लेकिन महुये की तो छोड़िये, इसके बीज यानि #गुली भी कम नही है। इसके तेल का प्रयोग पहले गांवों मे खूब किया जाता था, जिसे खाने के तेल की तरह भी इस्तेमाल किया जाता था। पातालकोट में गुरूदेव #दीपकआचार्य जी के साथ कई बार इस तेल से बने पकवान चखे हैं। शहरी लोग इसे निम्न स्तर का समझकर खाने में प्रयोग नही करते हैं। खाने के अलावा कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और पैंट निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है। #चिमनी या #भपका जलाने के लिए भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ है।
अब अगर धार्मिक तीज त्यौहारों के नजरिये से देखूं तो इसकी पत्तियों से बनी दोने और पत्तलें भगवान भोलेनाथ की पूजन सामग्री को रखने में प्रयोग की जाती हैं।