Friday, May 17, 2024

सत्यनाशी भट कटेया



आमतौर पर गर्मियों के दिनों में खेतों में मेड पर खुद से उगने वाला यह पौधा बिहार में कई नाम से जाना जाता है। इसके पीले फूल लोगों को खूब आकर्षित करते हैं। गेहूं और सरसों की फसल में यह खुद-ब-खुद उग आता है। भरभार, घमोई सत्यनाशी भट कटेया और न जाने किन-किन नाम से इसे संबोधित किया जाता है।देश के ज्यादातर हिस्से में अगर किसी को सत्यानाशी कहा जाता है तो उसका मतलब काम खराब करने वाले व्यक्ति से होता है. ऐसा व्यक्ति जो किसी काम का ना हो, जो हर काम बिगाड़ता हो यानी जिसका कोई फायदा ना हो, ऐसे व्यक्ति को सत्यानाशी कहा जाता है. लेकिन एक पौधा ऐसा भी है, जो कैसी भी जमीन में, कहीं भी उग जाता है और उसका नाम सत्यानाशी पौधा है. सतयानाशी पौधे को आपने अक्सर सड़क के किनारे, सख्त बंजर जमीन में, पथरीली जगहों पर, कड़ाके की धूप वाली जगहों या सूरज की रोशनी ना पहुंचने वाली यानी हर जगह पर देखा हो सकता है.सत्यानाशी पौधे में कई तरह के औषधीय गुण होते हैं. यह पौधा ज्यादातर हिमालयी क्षेत्रों में उगता है. इस पौधे में बहुत ज्यादा कांटे होते हैं. इसके पत्ते, शाखाओं, तने और फूलों के आसपास हर जगह कांटे होते हैं. इसके फूल पीले रंग के खिलते हैं, जिनके अंदर बैंगनी रंग के बीज पाए जाते हैं. अमूमन किसी पौधे के फूल और फल तोड़ने पर सफेद रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है, लेकिन सत्यानाशी के पौधे से फूल तोड़ने पर पीले रंग के दूध जैसा तरल पदार्थ निकलता है. पीले रंग के दूध जैसा पदार्थ निकलने के कारण इसे स्वर्णक्षीर भी कहा जाता है.सत्यानाशी के पौधे को स्वर्णक्षीर के अलावा उजर कांटा, प्रिकली पॉपी, कटुपर्णी, मैक्सिन पॉपी समेत कई नामों से पहचाना जाता है. अमूमन किसान इसे बेकार पौधा मानकर काटकर फेंक देते हैं. वहीं, आयुर्वेद में इसे औषधि की तरह इस्तेमाल कर दवाइयां बनाई जाती हैं, जिनसे कई रोगों का इलाज किया जाता है. सत्यानाशी पौधे का हर हिस्सा यानी पत्ते, फूल, तना, जड़ और छाल आयुर्वेद में बेहद काम के माने जाते हैं.

Friday, April 5, 2024

महुआ

 ये महुआ फूल किसी रसगुल्लों से कम नही है। चलो एक पहेली बूझौ- "बाप बेटी को एकई नाम महतारी को कछु और" क्योंकि

प्यार मोहब्बत धोखा है महुआ खा लो मौका है
यह पहेली प्रयोग की जाती है, महुआ के लिये.., जिसका वृक्ष पिता स्वरुप है, इसका नाम महुआ है। फूल का नाम भी महुआ है, जो पुत्र स्वरूप है और मेहतारी यानी #गुली का नाम अलग है, जो वास्तव मे इसका बीज है, और इसी से नए पेड़ की उत्पत्ति होती है, इसीलिये इसे मॉ स्वरूप माना गया है। वानस्पतिक रूप से यह एक उष्णकटिबंधीय पेड़ है, जो लगभग सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। इसके फूलों से सुबह सुबह बहुत ही मीठी, #मनमोहक सी खुशबू आती है, जो धूप बढ़ने के साथ साथ #अल्कोहोलिक यानि मदहोश कर देने वाली ( सर पकड़ने वाली) नशीली खुशबू का रूप ले लेती है।
सुबह सुबह इसके ताजे फूलों को बीनकर खाया जा सकता है। जो देखने मे सफेद रसगुल्लों की तरह दिखाई देते हैं। एक तरह से मीठी चासनी से भरे हुए भी होते गेन इसीलिये इन्हें जंगक का #रसगुल्ला कहा जाता है। ये पेड़ से लागातार टप टप करके दिन भर टपकते ही रहते हैं। गाँव में इन्हें सुखाकर किशमिश जैसा महुआ बना लिया जाता है, जिसे ड्राय फ्रूट की तरह और भारतीय त्यौहारों में प्रसाद की तरह परोसा जाता है। इन्हें बनाने की विधि भी बताऊँगा, बने रहियेगा। छिंदवाडा जिले के जंगली व आदिवासी क्षेत्रों में देशी शराब निर्माण का भी यह एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। महामारी के समय मे इससे सेनिटाइजर का भी निर्माण किया गया। लेकिन किसानों के लिये तो यह बैलों, गायों और अन्य कृषि उपयोगी पशुओं को तंदुरुस्त बनाने वाली बेशकीमती दवा है।


एक तश्वीर में जो किशमिश की तरह दिख रहा है ना, वह है महुआ किशमिश है। ये बनता है महुआ के फूल से। हमारे #मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे अहम हिस्सा महुआ है। फरवरी से लेकर मार्च-अप्रैल तक महुए के पेड़ पर फूल लद जाते हैं। सुबह सोकर उठते ही ग्रामीण निकल पड़ते हैं महुआ बीनने, जो वास्तव में महुआ फूल हैं। इन फूलों को बटोरने की अलग ही कहानी है, वो कभी फुरसत में बताऊंगा लेकिन आज बात महुआ किशमिश की ही होगी क्योंकि....
महुए के सूखे फूलों को खौलते पानी में 20 सेकंड के लिए डाल दें और तुरंत पानी निथार लें। ऐसा करने से महुए की गंध भी कम हो जाती है और इस पर छोटे मोटे कीड़े लगे हों तो वो भी खत्म हो जाते हैं। निथरे महुआ को एक बार फिर 2-3 तक कड़क धूप में सुखा लें। जब ये निथरे महुए अच्छे से सूख जाएं तो इन्हें गुड़ की गर्म चाशनी में डालकर अच्छे से कढ़ाही चला लें। ध्यान रहे चाशनी इतनी हो कि सिर्फ महुए में मिठास चढ़ जाए, इतनी ज्यादा न हो कि महुआ चिपचिपा लगे। चाशनी चढ़ाने के बाद इसे एक बार फिर 2 दिन तक कड़क धूप दिखा दें। मजेदार महुआ किशमिश तैयार है। इसके प्रयोग से पातालकोट सहित कई आदिवासी अंचलों में महुये के #लड्डू और कई मिष्ठान तैयार किये जाते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रीय व्यंजन जैसे महुये की खीर, पूरण पूरी और महुये वाला चीख ये आदिवासी संस्कृति के खास अंग हैं, जिनका अपना अलग ही स्वाद है। जंगली इलाकों में तो बकरी, हिरन और बन्दर आजकल इस प्रकृति के रसगुल्ले की खूब दावत उड़ा रहे हैं। कई बार अखबारों व न्यूज में महुआ खाकर मदहोश हुये बंदरो, हिरणों और हाथियों के झुंड के अजोबो- गरीब किस्से पढ़ने- सुनने को मिलते हैं। लेकिन महुये की तो छोड़िये, इसके बीज यानि #गुली भी कम नही है। इसके तेल का प्रयोग पहले गांवों मे खूब किया जाता था, जिसे खाने के तेल की तरह भी इस्तेमाल किया जाता था। पातालकोट में गुरूदेव #दीपकआचार्य जी के साथ कई बार इस तेल से बने पकवान चखे हैं। शहरी लोग इसे निम्न स्तर का समझकर खाने में प्रयोग नही करते हैं। खाने के अलावा कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन, साबुन और पैंट निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जाता है। #चिमनी या #भपका जलाने के लिए भी इसका खूब इस्तेमाल हुआ है।
अब अगर धार्मिक तीज त्यौहारों के नजरिये से देखूं तो इसकी पत्तियों से बनी दोने और पत्तलें भगवान भोलेनाथ की पूजन सामग्री को रखने में प्रयोग की जाती हैं।

अकर्मण्यता से उपजा पलायनवादी यथार्थ,संघर्ष से होता ऊंचा मनोबल

(जिजीविषा ही सफलता का पर्याय) 

अकर्मण्यता एक बड़ी शारीरिक,मानसिक व्याधि और दशा है, यह जीवन को निर्रथक बनाती है। इस अवस्था को तत्काल त्यागना चाहिए,और अपने जीवन के संघर्ष के लिए तैयार रखना चाहिए। मन ही मन यदि आपने किसी कठिन कार्य को करने का संकल्प ले लिया तो निरंतर जिजीविषा और संयम के साथ संघर्ष हर बड़ी जीत और सफलता के उत्तम मार्ग हैं। वैसे जीवन में दुष्कर, कठिन कार्य को पहले चुनना चाहिए जिससे पूरी शक्ति एवं उर्जा लगाकर हम उसे प्राप्त कर सकेl कठिन कार्य से घबराकर उससे पलायन करना निराशा को जन्म देता हैl निराशा से बढ़कर कोई अवरोध नहीं अतः निराशा, हताशा को त्यागें और ऊर्जा उत्साह के साथ आगे बढ़े, सफलता आपके कदमों पर होगी। हर बड़ा व्यक्ति जो हमें समाज से अलग हटकर खड़ा दिखाई देता हैl जिसे हम विलक्षण मानते और प्रतिभा संपन्न मानते हैं और आज के संदर्भ में हम उसे सेलिब्रिटी कहते हैं तो निसंदेह उसकी इस सफलता के पीछे अनवरत श्रम, अदम्य मानसिक शक्ति और संयम छुपा होता हैl बड़ी सफलता प्राप्त करने का कोई सरल उपाय या शॉर्टकट नहीं होता है। विपरीत परिस्थितियों में मनुष्य की मानसिक दृढ़ता एवं संकल्पित कठिन श्रम ही सफलता के रास्ते खोलते हैं।यूं तो हर इंसान के जीवन में विशेषताएं, मान्यताएं, प्रतिबद्धताओं और आकांक्षाएं होती हैंl सभी लोग मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ सामाजिकता , प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा जैसी उच्च स्तरीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना चाहते हैंl मानव की स्वाभाविक और अदम्य इच्छा की पूर्ति के संपूर्ण जीवन और उसके अस्तित्व के लिए अत्यंत आवश्यक है किंतु व्यक्ति की इच्छा,आकांक्षा सफलता उस उसके मूल्यों,सिद्धांतों और आदर्शों की कीमत पर कतई नहीं होनी चाहिए l यदि व्यक्ति की आकांक्षा,सफलता और इच्छा उसकी अदम्य इच्छा, भूख और मूल्यों को समाविष्ट ना करते हुए दूसरी दिशा में जाती हो तो ऐसे में उसकी सफलता पूरे मानव समाज और मानवता के लिए संकट का कारण भी बन सकती हैl जिस तरह एक वैज्ञानिक मेहनत, लगन, प्रयोगशाला में मानवी संविधान मूल्यों से ओतप्रोत मानव कल्याण के उपकरण न बनाकर जैविक व रासायनिक हथियार बनाकर व्यापक नरसंहार जैसे अमानवीय अविष्कार को मूर्त रूप दे, तो यह समाज के लिए खतरनाक हो सकता हैl यही वजह है की सफलता का नक्शा और इच्छा के पीछे माननीय मूल्यों का होना अत्यंत आवश्यक भी हैl

मूल्य, सिद्धांत और नैतिकता जीवन के लक्ष्य और उसके क्रियान्वयन में सर्वाधिक संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl सफलता की धारणा केवल स्थापित मापदंड न होकर मानवीय मूल्यों से जुड़ा होकर मानव कल्याण के लिए भी होना चाहिएlइसमें कोई संदेह नहीं की विश्व भर की सभी सभ्यताओं, संस्कृतियों और धर्मों में अहिंसा, सत्य ,करुणा, सेवा, दया और विश्व बंधुत्व की भावना की निर्विवाद उपस्थिति दिखाई देती हैl और वैश्विक विकास की अवधारणा भी इन्हीं बिंदुओं पर रखकर तय की जाती हैl भारत में प्राचीन काल से ही मूल्यों की प्रतिबद्धता की परंपरा चली आ रही हैlऋषि-मुनियों ने तो यहां तक कहा है कि जिसका चरित्र तथा माननीय आदर्श चला गया वह व्यक्ति, मृतक लाश की तरह हो जाता है। भारतीय संस्कृति में आदर्शों तथा मूल्य के पोषक उदाहरणों की अंतहीन सूची है जिनमें कबीर, रैदास, संत,ज्ञानेश्वर तुकाराम,मोइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया, रहीम,खुसरो, गांधी,नेहरू, टैगोर, सुभाष, विवेकानंद जैसे महान लोग सिद्धांतों की प्रतिबद्धता को अपने जीवन की सफलता मानकर अपने जीवन को समाज को सौंप दिया था।परिणाम स्वरूप व्यक्ति को महज सफलता का पुजारी ना बन कर मूल्यों के प्रति प्रतिबंध होने का प्रयास करना चाहिए। ताकि तनिक सफलता के स्थान पर चिरस्थाई एवं समाज उपयोगी सफलता प्राप्त हो सके। वर्तमान में यह स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है कि व्यक्ति स्वाद तथा सफलता के लिए अक्सर अपने मूल्यों को तिलांजलि दे देता है। वर्तमान सुख एवं लालच चिरस्थाई सफलता के सामने महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक हो जाता है ।आज मनुष्य तत्काल एवं अस्थाई सफलता के पीछे माननीय मूल्यों प्रतिबद्धताओं को किनारे कर उस मरीचिका की तरफ दौड़ रहा है जो अत्यंत अस्थाई एवं पानी के बुलबुले की तरह है। और इससे न तो कोई इतिहास बनता है और ना ही कोई प्रतिमान ही स्थापित होता है। पानी का पतला रेला नदी का रूप नहीं ले सकता। उसी तरह बिना मूल्यों की सफलता स्थाई नहीं होती है। राजनीति तथा प्रशासन में मूल्यों सिद्धांतों की तो ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। क्योंकि राष्ट्र तथा नीति निर्देशक तत्वों को संचालन की दिशा देने के लिए मानवीय संवेदना, मूल्य और सिद्धांतों की अत्यंत आवश्यकता होती है। अन्यथा समाज दिग्भ्रमित होकर बिखरने के कगार पर पहुंच जाता है। राष्ट्र विखंडित होने की स्थिति में आ जाता है। मूल्य विहीन समाज अपने अधिकारों के दुरुपयोग तथा कर्तव्य के प्रति लापरवाही तथा उदासीनता के चलते समाज को सोचनीय स्तर पर लाकर खड़ा कर देता है। सफलता तब ही शाश्वत तथा स्थाई हो सकती है जब इसमें जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों का समावेश होता है। वही देश और राष्ट्र चिरस्थाई तथा लंबे समय तक स्वतंत्र रह सकता है, जिसके शासक एवं प्रजा अपने संपूर्ण कार्य मूल्यों, उसूलों और नैतिक प्रतिबद्धता के मार्ग पर चलकर वैश्विक देशों से अपने संबंध निर्मल तथा सैद्धांतिक बनाकर रखता हैअन्यथा उस राष्ट्र को विखंडित और पराधीन होने से कोई नहीं बचा सकताl

संजीव ठाकुर,(वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तम्भकार, चिंतक , टिप्पणीकार,रायपुर छत्तीसगढ़, 

शराब की पार्टी

सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों ने अलग से समीर को पार्टी करने के लिए कहा था देख समीर तेरे जन्मदिन पर शराब की बोतले खुलेंगी जमकर डांस होगा सूरज के दो फ्लैट है एक फ्लैट खाली पड़ा है सूरज वही पार्टी की व्यवस्था कर देगा दोपहर 12:00 बजे पार्टी शुरू करेंगे शाम तक पार्टी चलेगी यह बात समीर को दो दिन पहले ही सुरेश ने बता दी थी

समीर ने घड़ी में देखा तो दोपहर के ग्यारह बज चुके थे समीर मां के नजदीक आकर कहने लगा मैं जानता हूं शाम को पापा मेरे लिए केक लेकर आएंगे हर साल आप मेरा जन्मदिन मनाते आ रहे हो लेकिन अब मैं बड़ा हो चुका हूं मेरे दोस्त भी बड़े हो चुके हैं मां ने समीर को खुश रखने के लिए कहा तुम अपने दोस्तों को पार्टी देना चाहते हो मैं सब जानती हूं मैं तुम्हें एक हजार रुपए दे रही हूं दोस्तों के साथ तुम पार्टी कर सकते हो समीर का चेहरा उतरा देख मां ने एक हजार रुपए और देते हुए कहा ,, अब तो ठीक है पूरे दो हजार रुपए तुम्हें मिल चुके हैं ,,
समीर को याद आया सुरेश ने कहा था पूरे पांच हजार रुपए मांगना अपनी मां से तभी हम खुलकर पार्टी कर सकते हैं
समीर ने जिद्द करते हुए मां को बताया मुझे पूरे पांच हजार रुपए चाहिए हम सब दोस्त खुलकर इंजॉय करेंगे खूब खाना - पीना होगा तब मां ने चिंता भरे स्वर में कहा समीर बेटा शाम को पापा भी तेरे जन्मदिन पर तेरे लिए तोहफा लाएंगे समीर ने गुस्से से कहा इसका मतलब तुम अपने बेटे से प्यार नहीं करती हो तुम मुझे पांच हजार रुपए दे दो यह बात पिताजी को मत बताना
मां ने पांच हजार रुपए देते हुए समीर से कहा इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए मां का चेहरा थोड़ा उतर सा गया था लेकिन समीर का ध्यान कहीं और ही था समीर ने घड़ी में देखा तो 12 बजने वाले हैं समीर ने बाइक निकाली हेलमेट पहना इतने में सुरेश का कॉल आया सुरेश ने कहा हां समीर कहां पर हो घर से पांच हजार रुपए मिले कि नहीं मिले
समीर ने सुरेश को बताया मैं पहले ठेके जाऊंगा वहां से शराब की बोतलें खाने-पीने का सामान लेकर तुम्हारे पास अभी 10 मिनट में पहुंचता हूं
1 घंटे के बाद,,,,
सुरेश ने सूरज से कहा दोपहर का 1:00 बज चुका है समीर अभी तक नहीं आया रमन ने कॉल मिलाया मगर समीर का फोन स्विच ऑफ जा रहा था सुरेश ने घड़ी में देखा तो दोपहर के 2:00 बज गए रमन ने सुरेश को कहा शराब की दुकान तो पास में ही है इतना समय समीर को कैसे लग रहा है फोन भी स्विच ऑफ जा रहा है घड़ी देखते-देखते तीनों दोस्तों की शाम हो गई तीनों आपस में बोले समीर ने हमें धोखा दिया है
शाम के 6:00 बज चुके थे समीर के तीनों दोस्त समीर के घर चल पड़े यह पता लगाने के लिए की समीर घर पर है कि नहीं समीर के घर आस - पड़ोसी जमा हो चुके थे कुछ रिश्तेदार भी आ चुके थे केक की तैयारी हो चुकी थी तभी समीर की मां ने सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों को आते देखकर कहा समीर शायद तुम तीनों के पास गया था पार्टी के लिए ,, ,,,,, अभी तक समीर घर नहीं आया ,,,
रमन ने बताया आंटी जी 12:00 बजे समीर का कॉल आया था वह कह रहा था रास्ते में हूं फिर उसके बाद कॉल स्विच ऑफ आने लगा यह बात सुनकर घर में एकदम सन्नाटा छा गया फ्लैट में खड़े लोग कुछ और सोचते इससे पहले तभी समीर दरवाजे पर आता नजर आया सब ने समीर को घेर लिया समीर के पिता समीर का हाथ पकड़के केक के पास ले आए सब लोगों के मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लौट आई
सुरेश ने पूछ लिया समीर तुम घर से 12:00 बजे निकले थे अब शाम के 6:00 बजे आए हो 6 घंटे से कहां लापता थे मां ने भी गुस्से से पूछ लिया मैंने दोपहर को पांच हजार रुपए दिए थे तुमने उन रूपयों का क्या किया सबको बताओ तब एक पड़ोसन बोली तुम्हारा बेटा समीर अब बड़ा हो गया है गलत जगह पैसा खर्च करके आया है इतनी बड़ी रकम तो हमने भी अपने बच्चों को नहीं दी समीर बिगड़ चुका है हमें तो शक है किसी लड़की बाजी में पैसे उड़ा कर आया होगा
कुछ रिश्तेदार तो मन ही मन आनंदित हुए जा रहे थे आस - पड़ोसी भी यही चाहते थे की समीर से गलती हो
तभी दरवाजे से एक अधेड़ आदमी झांकता दिखा फिर घर के भीतर आ गया समीर के पास खड़ा होकर बोला भगवान सबको ऐसा बेटा दे
दोपहर 12:00 बजे सड़क किनारे मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया मेरा दिमाग एकदम सुन हो गया मेरा एक हाथ जेब में था आते-जाते लोग मुझे देखते फिर चले जाते ना तो मैं बोल पा रहा था ना सुन पा रहा था लेकिन दिखाई दे रहा था तभी एक बाइक मेरे पास आकर रुकी उसने तुरंत पास की दुकान से पानी की बोतल खरीदी और मुझे पानी पिलाते हुए कहा अंकल जी सड़क किनारे क्यों बैठे हो क्या घरबार नहीं है चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूं तब मैंने कहा घर जाकर क्या करूंगा
कबाड़ी का काम करता हूं मेरे पिता जी का आज देहांत हो गया लेकिन घर में एक फूटी कोड़ी भी नहीं थी इसलिए जहां मैं कबाड़ी का सामान बेंचता था वहां से बड़ी मुश्किल से पांच हजार रुपए उधार लिए थे की पिताजी का अंतिम संस्कार कर दूंगा लेकिन बस में चढ़ने से पहले ही किसी ने मेरी जेब काट ली अब वह कबाड़ी वाला भी दोबारा पैसे नहीं देगा बीवी बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे आस - पड़ोसी सब जमा हो चुके हैं मैं खाली हाथ किस मुंह से जाऊं मैं बिलख बिलख कर रोने लगा
,, हम गरीबों के पास दौलत तो नहीं होती,, साहब ,,, लेकिन बस एक सम्मान ही होता है
तब उसने मुझे मोटरसाइकिल पर बिठाया और मुझे मेरे घर ले गया लोगों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा था मेरे घर आते ही मेरा छोटा बेटा दीपू बोला पापा तुमने रुपए लाने में इतनी देर क्यों लगा दी पड़ोसी तरह-तरह की बातें बना रहे थे तब उसने पांच हजार रुपए निकाल कर मेरी बीवी कुसुम देवी को देते हुए कहा अंकल जी को बस नहीं मिल रही थी इसलिए अंकल जी को मैंने बाइक पर बिठा लिया और उनके रुपए रास्ते में गिर ना जाए इसलिए मैंने अपनी जेब में रख लिए थे यह लो अंकल जी के पांच हजार रुपए तब मेरी बीवी ने कहा इन रूपयों को तुम अपने पास रखो जहां-जहां खर्च होंगे करते चले जाना
450 रूपए की अर्थी लेकर सजाई गई उसने मेरे बूढ़े पिता को कांधा देते हुए शमशान तक आया वहां ढाई हजार की लकड़ियां खरीदी पंडित जी ने देसी घी मंगवाने के लिए कहा तो 2 किलो देसी घी एक हजार रुपए का मंगवाया पांच हजार रुपए में से जो रूपए बचे वह पंडित जी को दक्षिणा के रूप में दे दिए
शाम को वह शमशान से हमारे घर आया मोटरसाइकिल पर बैठा और कहा कुछ दूरी पर हमारा घर है आज मेरा जन्मदिन है तुम्हें घर आना है उसने अपना पता बता दिया तब मैं इस समीर को जन्मदिन की बधाई देने चला आया ,,
मां की आंखों में आंसू थे वह सोचने लगी मैंने कहा था समीर इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए आज एक बेटे ने मां की लाज रख ली
समीर के तीनों दोस्त आज बहुत खुश थे कि हमें समीर जैसा मित्र मिला रिश्तेदारों के तो गाल फूल चुके थे समीर का यह पुण्य का काम सुनकर
समीर के एक दूर के रिश्तेदार ने कहा --
अपनी खुशियों से बढ़कर किसी जरूरतमंद की मदद करना ही हमारी संस्कृति हमें सिखाती है
फ्लैट में खड़े मौजूद सभी लोगों ने एक साथ कहा ,, समीर जैसा बेटा भगवान सबको दे
केक कटा और सब में बंटा समीर ने एक बड़े से डिब्बे में बहुत सा खाना पैक करके उन अंकल जी के हाथ में थमा दिया।
अंकल जब घर पहुंचे बच्चों से कहा तुम सुबह से भूखे हो , लो मैं तुम लोगों के लिए खाना लाया हूं बच्चों ने जब डिब्बे खोले तो एक डिब्बे में नोट रखे हुए थे साथ में एक लेटर भी । लेटर में लिखा था मैं समीर का पिता आपको पांच हजार रुपए और दे रहा हूं। इस समय तुम्हें पैसों की जरूरत होगी और आपके पिता की तेरहवीं का पूरा खर्चा भी हम उठाएंगे मैं आज आपको धन्यवाद दे रहा हूं इसलिए कि आपकी वजह से आज मेरा बेटा एक गुनाह करने से बच गया वह गुनाह है