Friday, April 5, 2024

शराब की पार्टी

सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों ने अलग से समीर को पार्टी करने के लिए कहा था देख समीर तेरे जन्मदिन पर शराब की बोतले खुलेंगी जमकर डांस होगा सूरज के दो फ्लैट है एक फ्लैट खाली पड़ा है सूरज वही पार्टी की व्यवस्था कर देगा दोपहर 12:00 बजे पार्टी शुरू करेंगे शाम तक पार्टी चलेगी यह बात समीर को दो दिन पहले ही सुरेश ने बता दी थी

समीर ने घड़ी में देखा तो दोपहर के ग्यारह बज चुके थे समीर मां के नजदीक आकर कहने लगा मैं जानता हूं शाम को पापा मेरे लिए केक लेकर आएंगे हर साल आप मेरा जन्मदिन मनाते आ रहे हो लेकिन अब मैं बड़ा हो चुका हूं मेरे दोस्त भी बड़े हो चुके हैं मां ने समीर को खुश रखने के लिए कहा तुम अपने दोस्तों को पार्टी देना चाहते हो मैं सब जानती हूं मैं तुम्हें एक हजार रुपए दे रही हूं दोस्तों के साथ तुम पार्टी कर सकते हो समीर का चेहरा उतरा देख मां ने एक हजार रुपए और देते हुए कहा ,, अब तो ठीक है पूरे दो हजार रुपए तुम्हें मिल चुके हैं ,,
समीर को याद आया सुरेश ने कहा था पूरे पांच हजार रुपए मांगना अपनी मां से तभी हम खुलकर पार्टी कर सकते हैं
समीर ने जिद्द करते हुए मां को बताया मुझे पूरे पांच हजार रुपए चाहिए हम सब दोस्त खुलकर इंजॉय करेंगे खूब खाना - पीना होगा तब मां ने चिंता भरे स्वर में कहा समीर बेटा शाम को पापा भी तेरे जन्मदिन पर तेरे लिए तोहफा लाएंगे समीर ने गुस्से से कहा इसका मतलब तुम अपने बेटे से प्यार नहीं करती हो तुम मुझे पांच हजार रुपए दे दो यह बात पिताजी को मत बताना
मां ने पांच हजार रुपए देते हुए समीर से कहा इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए मां का चेहरा थोड़ा उतर सा गया था लेकिन समीर का ध्यान कहीं और ही था समीर ने घड़ी में देखा तो 12 बजने वाले हैं समीर ने बाइक निकाली हेलमेट पहना इतने में सुरेश का कॉल आया सुरेश ने कहा हां समीर कहां पर हो घर से पांच हजार रुपए मिले कि नहीं मिले
समीर ने सुरेश को बताया मैं पहले ठेके जाऊंगा वहां से शराब की बोतलें खाने-पीने का सामान लेकर तुम्हारे पास अभी 10 मिनट में पहुंचता हूं
1 घंटे के बाद,,,,
सुरेश ने सूरज से कहा दोपहर का 1:00 बज चुका है समीर अभी तक नहीं आया रमन ने कॉल मिलाया मगर समीर का फोन स्विच ऑफ जा रहा था सुरेश ने घड़ी में देखा तो दोपहर के 2:00 बज गए रमन ने सुरेश को कहा शराब की दुकान तो पास में ही है इतना समय समीर को कैसे लग रहा है फोन भी स्विच ऑफ जा रहा है घड़ी देखते-देखते तीनों दोस्तों की शाम हो गई तीनों आपस में बोले समीर ने हमें धोखा दिया है
शाम के 6:00 बज चुके थे समीर के तीनों दोस्त समीर के घर चल पड़े यह पता लगाने के लिए की समीर घर पर है कि नहीं समीर के घर आस - पड़ोसी जमा हो चुके थे कुछ रिश्तेदार भी आ चुके थे केक की तैयारी हो चुकी थी तभी समीर की मां ने सूरज सुरेश रमन तीनों दोस्तों को आते देखकर कहा समीर शायद तुम तीनों के पास गया था पार्टी के लिए ,, ,,,,, अभी तक समीर घर नहीं आया ,,,
रमन ने बताया आंटी जी 12:00 बजे समीर का कॉल आया था वह कह रहा था रास्ते में हूं फिर उसके बाद कॉल स्विच ऑफ आने लगा यह बात सुनकर घर में एकदम सन्नाटा छा गया फ्लैट में खड़े लोग कुछ और सोचते इससे पहले तभी समीर दरवाजे पर आता नजर आया सब ने समीर को घेर लिया समीर के पिता समीर का हाथ पकड़के केक के पास ले आए सब लोगों के मुरझाए चेहरे पर मुस्कान लौट आई
सुरेश ने पूछ लिया समीर तुम घर से 12:00 बजे निकले थे अब शाम के 6:00 बजे आए हो 6 घंटे से कहां लापता थे मां ने भी गुस्से से पूछ लिया मैंने दोपहर को पांच हजार रुपए दिए थे तुमने उन रूपयों का क्या किया सबको बताओ तब एक पड़ोसन बोली तुम्हारा बेटा समीर अब बड़ा हो गया है गलत जगह पैसा खर्च करके आया है इतनी बड़ी रकम तो हमने भी अपने बच्चों को नहीं दी समीर बिगड़ चुका है हमें तो शक है किसी लड़की बाजी में पैसे उड़ा कर आया होगा
कुछ रिश्तेदार तो मन ही मन आनंदित हुए जा रहे थे आस - पड़ोसी भी यही चाहते थे की समीर से गलती हो
तभी दरवाजे से एक अधेड़ आदमी झांकता दिखा फिर घर के भीतर आ गया समीर के पास खड़ा होकर बोला भगवान सबको ऐसा बेटा दे
दोपहर 12:00 बजे सड़क किनारे मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया मेरा दिमाग एकदम सुन हो गया मेरा एक हाथ जेब में था आते-जाते लोग मुझे देखते फिर चले जाते ना तो मैं बोल पा रहा था ना सुन पा रहा था लेकिन दिखाई दे रहा था तभी एक बाइक मेरे पास आकर रुकी उसने तुरंत पास की दुकान से पानी की बोतल खरीदी और मुझे पानी पिलाते हुए कहा अंकल जी सड़क किनारे क्यों बैठे हो क्या घरबार नहीं है चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूं तब मैंने कहा घर जाकर क्या करूंगा
कबाड़ी का काम करता हूं मेरे पिता जी का आज देहांत हो गया लेकिन घर में एक फूटी कोड़ी भी नहीं थी इसलिए जहां मैं कबाड़ी का सामान बेंचता था वहां से बड़ी मुश्किल से पांच हजार रुपए उधार लिए थे की पिताजी का अंतिम संस्कार कर दूंगा लेकिन बस में चढ़ने से पहले ही किसी ने मेरी जेब काट ली अब वह कबाड़ी वाला भी दोबारा पैसे नहीं देगा बीवी बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे आस - पड़ोसी सब जमा हो चुके हैं मैं खाली हाथ किस मुंह से जाऊं मैं बिलख बिलख कर रोने लगा
,, हम गरीबों के पास दौलत तो नहीं होती,, साहब ,,, लेकिन बस एक सम्मान ही होता है
तब उसने मुझे मोटरसाइकिल पर बिठाया और मुझे मेरे घर ले गया लोगों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा था मेरे घर आते ही मेरा छोटा बेटा दीपू बोला पापा तुमने रुपए लाने में इतनी देर क्यों लगा दी पड़ोसी तरह-तरह की बातें बना रहे थे तब उसने पांच हजार रुपए निकाल कर मेरी बीवी कुसुम देवी को देते हुए कहा अंकल जी को बस नहीं मिल रही थी इसलिए अंकल जी को मैंने बाइक पर बिठा लिया और उनके रुपए रास्ते में गिर ना जाए इसलिए मैंने अपनी जेब में रख लिए थे यह लो अंकल जी के पांच हजार रुपए तब मेरी बीवी ने कहा इन रूपयों को तुम अपने पास रखो जहां-जहां खर्च होंगे करते चले जाना
450 रूपए की अर्थी लेकर सजाई गई उसने मेरे बूढ़े पिता को कांधा देते हुए शमशान तक आया वहां ढाई हजार की लकड़ियां खरीदी पंडित जी ने देसी घी मंगवाने के लिए कहा तो 2 किलो देसी घी एक हजार रुपए का मंगवाया पांच हजार रुपए में से जो रूपए बचे वह पंडित जी को दक्षिणा के रूप में दे दिए
शाम को वह शमशान से हमारे घर आया मोटरसाइकिल पर बैठा और कहा कुछ दूरी पर हमारा घर है आज मेरा जन्मदिन है तुम्हें घर आना है उसने अपना पता बता दिया तब मैं इस समीर को जन्मदिन की बधाई देने चला आया ,,
मां की आंखों में आंसू थे वह सोचने लगी मैंने कहा था समीर इन पैसों का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए आज एक बेटे ने मां की लाज रख ली
समीर के तीनों दोस्त आज बहुत खुश थे कि हमें समीर जैसा मित्र मिला रिश्तेदारों के तो गाल फूल चुके थे समीर का यह पुण्य का काम सुनकर
समीर के एक दूर के रिश्तेदार ने कहा --
अपनी खुशियों से बढ़कर किसी जरूरतमंद की मदद करना ही हमारी संस्कृति हमें सिखाती है
फ्लैट में खड़े मौजूद सभी लोगों ने एक साथ कहा ,, समीर जैसा बेटा भगवान सबको दे
केक कटा और सब में बंटा समीर ने एक बड़े से डिब्बे में बहुत सा खाना पैक करके उन अंकल जी के हाथ में थमा दिया।
अंकल जब घर पहुंचे बच्चों से कहा तुम सुबह से भूखे हो , लो मैं तुम लोगों के लिए खाना लाया हूं बच्चों ने जब डिब्बे खोले तो एक डिब्बे में नोट रखे हुए थे साथ में एक लेटर भी । लेटर में लिखा था मैं समीर का पिता आपको पांच हजार रुपए और दे रहा हूं। इस समय तुम्हें पैसों की जरूरत होगी और आपके पिता की तेरहवीं का पूरा खर्चा भी हम उठाएंगे मैं आज आपको धन्यवाद दे रहा हूं इसलिए कि आपकी वजह से आज मेरा बेटा एक गुनाह करने से बच गया वह गुनाह है

Thursday, April 4, 2024

देश में विदेश से ड्रग की तस्करी बनी बड़ी समस्याl युवा वर्ग की बड़ी जनसंख्या नशे की गिरफ्त में बर्बाद

( ड्रग से बृहद शारीरिक,आर्थिक क्षति)


नशीले पदार्थ अपराधिक गतिविधियों के लिए शासन, प्रशासन तथा पुलिस के लिए एक गंभीर चुनौती बन हुआ है|देश में लगातार हो रही ड्रग्स की सप्लाई ने देशभर में अपराधों का इजाफा कर दिया है| नशीले पदार्थों की अंतरराष्ट्रीय, अंतर राज्यीय तस्करी देश तथा विश्व के लिए एक बड़ा सिरदर्द बनी हुई है| यह चुनौती इसलिए भी है कि पिछले वर्ष में अपराधियों ने सूखे नशे का सेवन कर अपराध की वारदातें की हैं, नशे की लत में आकर अपराधियों में महानगरों मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई में लगातार बलात्कार, लूट, डकैती,और राहगीरों की हत्या को जन्म दिया है| दूसरी तरफ सूखे नशे की लत में स्कूल और कॉलेज के युवा तथा बच्चे अपना भविष्य खराब करने पर आमादा है| पिछले कुछ माह में मुंबई नारकोटिक्स इकाई ने ताबड़तोड़ छापेमारी कर बड़ी मात्रा में चरस, कोकीन, गांजा, स्मैक की बड़ी तादाद में जप्त कर कई नामचीन अभिनेता, अभिनेत्रियों को गिरफ्तार कर प्रकरण न्यायालय के हवाले किया है| दूसरी तरफ दिल्ली,बेंगलुरु, कोलकाता में भी पुलिस प्रशासन द्वारा सीधे कड़ी कार्रवाई की हैं|वर्तमान में 

शराब तो सामाजिक बुराई बना ही हुआ है| साथ-साथ सूखा नशा भी समाज के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है, सुखे नशे के मामले में केंद्र के सर्वोच्च नेतृत्व में यानी प्रधानमंत्री ने भी गंभीरता पूर्वक इसे रोकने के लिए चिंता जताई है देश में न सिर्फ ड्रग्स के नशे का इस्तेमाल किया जा रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर इसकी तस्करी कर अवैध कारोबार भी किया जा रहा है ड्रग्स का नशा सामाजिक विडंबना बना हुआ है| तब देश में नए वर्ष के आगमन के पूर्व बड़े-बड़े आलीशान होटलों मैं सूखे नशे की पार्टियां आयोजित करने की तैयारी कर ली है, ऐसे में पुलिस के केंद्र सरकार के तथा राज्य सरकार के आला अधिकारी इसे रोकने के लिए हर संभव प्रयास की रणनीति बनाने में जुट गए है और शासन तथा पुलिस प्रशासन अपना पूरा ध्यान सूखे नसे को प्रतिबंधित करने में लगे हुए हैं, मूलतः मुंबई गोवा और पाकिस्तानी सरहद से लगे क्षेत्र और राज्य से सूखे नशे पदार्थों की आवक सभी राज्यों में होती है| निसंदेह इसे गंभीर षड्यंत्र के रूप में लिया जाना चाहिए| मुंबई सूखे नशे का एक बड़ा केंद्र बन चुका है, सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या प्रकरण को लेकर जब पुलिस के आला अधिकारी को नशीले पदार्थों रेकेट हाथ लगा तब राज्य तथा केंद्र के कान खड़े हो गए और तब से पूरे देश में ताबड़तोड़ नशे के विरोध में कार्रवाई की जाने लगी और इसी तारतम्य में देश को यह बात समझ में आई कि सूखे नशे की लत में बड़े शहरों के तमाम पूंजीपति नशे के आदी हो चुके परिस्थितियां बहुत गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है, नए वर्ष के आगमन की सेलिब्रेशन तमाम नशीले पदार्थ की सप्लाई करने वाले तस्कर अपनी तैयारी में जुट गए हैं| देश के सभी राज्यों में नशीले पदार्थों के विरोध में केंद्र के निर्देशन पर लगातार कार्रवाई की जा रही है और युवा वर्ग बच्चों को सोशल मीडिया के द्वारा भी इसकी बुराई के संबंध में लगातार अवगत कराया जा रहा है एवं इस बुराई से दूर रहने का आह्वान किया गया है, देश के बड़े-बड़े रिसोर्ट, जंगल के पिकनिक स्पॉट, देश की मुख्य सड़कों के आसपास ढाबों के संचालकों पर भी नजर रखने की योजना को मूर्त रूप दिया जाना है ताकि अपराधों में कमी आ सके ,शराब से तो अपराध होते ही हैं पर सूखे नशे से अपराधिक ज्यादा उम्र हिंसक और मस्तिष्क शुन्य हो जाते ऐसे में अपराध करने में उन्हें कोई हिचक नहीं होती, और इस तरह वे नशे में अपराधिक कृत्य करने से नहीं चूकते |केंद्र तथा राज्य प्रशासन की चिंता इस बात के लिए तो है ही कि इससे अपराध की संख्या में काफी वृद्धि हुई है पर साथ में इसके तस्करों द्वारा की जा रही ड्रग्स की तस्करी पर एक गंभीर चुनौती बनी हुई है|अंतरराष्ट्रीय सीमा से आने वाला ड्रग्स शारीरिक रूप से भी काफी नुकसानदेह होता है अंतरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने का एक राष्ट्रीय स्तर पर योजना बनाकर उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है, जितने व्यक्ति नशा करके अपराध करने के लिए दोषी हैं |उससे ज्यादा दोषी नशीले पदार्थों के तस्करी करने वाले भी है, तस्कर समूह को चिन्हित कर उस पर बड़ी कार्रवाई करने की देश को गंभीर आवश्यकता है, देश में शराब जहां ग्रामीण क्षेत्रों में एक बड़ी बुराई है उससे ग्रामीण आमजन को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ शारीरिक नुकसान भी बहुत बड़ा होता है, इसी के साथ शहरी क्षेत्रों में खासकर बड़े शहरों में सुखा नशा एक बडी सामाजिक बीमारी की तरह अत्यंत गंभीर चुनौती बन गई है, इसे रोकने के हर संभव प्रयास किए जाने चाहिए तभी इस सामाजिक गंभीर समस्या पर कुछ राहत और निदान मिल सकता है|

संजीव ठाकुर, (वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक लेखक) स्तंभकार,चिंतक, कथाकार, रायपुर छत्तीसगढ़

अच्छी नियत साफ इरादे रखिए जनाब

जिंदगी के हर पल चमकदार नहीं होते,

जिंदगी में हर पल चमत्कार नहीं होते। 


ईमान और पसीने से बनती है जिंदगी, 

बेईमान कभी भी इज्जतदार नहीं होते। 


अच्छी नियत और साफ इरादे रखिए, 

आस्तीन के सांप वफादार नहीं होते ।


गर नमक खाया वतन का तो अदा कर,

नमक हराम कभी अच्छे पहरेदार नहीं होते 


जख्म पर अपने मरहम की उम्मीद मत कर,

हर उठे हुए हाथ मददगार नहीं होते l


जमाने की चकाचौंध से फिसल मत जाना संजीव,

सफेद लिबास में हर कोई ईमानदार नहीं होतेl


संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़, 9009 415 415।

Wednesday, April 3, 2024

अतीत का दर्द

कभी नेनुँआ टाटी पे चढ़ के रसोई के दो महीने का इंतज़ाम कर देता था। कभी खपरैल की छत पे चढ़ी लौकी महीना भर निकाल देती थी, कभी बैसाख में दाल और भतुआ से बनाई सूखी कोहड़ौरी, सावन भादो की सब्जी का खर्चा निकाल देती थी‌!

वो दिन थे, जब सब्जी पे खर्चा पता तक नहीं चलता था। देशी टमाटर और मूली जाड़े के सीजन में भौकाल के साथ आते थे,लेकिन खिचड़ी आते-आते उनकी इज्जत घर जमाई जैसी हो जाती थी!
तब जीडीपी का अंकगणितीय करिश्मा नहीं था।
ये सब्जियाँ सर्वसुलभ और हर रसोई का हिस्सा थीं। लोहे की कढ़ाई में, किसी के घर रसेदार सब्जी पके तो, गाँव के डीह बाबा तक गमक जाती थी। धुंआ एक घर से निकला की नहीं, तो आग के लिए लोग चिपरि लेके दौड़ पड़ते थे संझा को रेडियो पे चौपाल और आकाशवाणी के सुलझे हुए समाचारों से दिन रुखसत लेता था!
रातें बड़ी होती थीं, दुआर पे कोई पुरनिया आल्हा छेड़ देता था तो मानों कोई सिनेमा चल गया हो।
किसान लोगो में कर्ज का फैशन नहीं था, फिर बच्चे बड़े होने लगे, बच्चियाँ भी बड़ी होने लगीं!
बच्चे सरकारी नौकरी पाते ही,अंग्रेजी इत्र लगाने लगे। बच्चियों के पापा सरकारी दामाद में नारायण का रूप देखने लगे, किसान क्रेडिट कार्ड डिमांड और ईगो का प्रसाद बन गया,इसी बीच मूँछ बेरोजगारी का सबब बनी!
बीच में मूछमुंडे इंजीनियरों का दौर आया। अब दीवाने किसान,अपनी बेटियों के लिए खेत बेचने के लिए तैयार थे, बेटी गाँव से रुखसत हुई,पापा का कान पेरने वाला रेडियो, साजन की टाटा स्काई वाली एलईडी के सामने फीका पड़ चुका था!
अब आँगन में नेनुँआ का बिया छीटकर,मड़ई पे उसकी लताएँ चढ़ाने वाली बिटिया, पिया के ढाई बीएचके की बालकनी के गमले में क्रोटॉन लगाने लगी और सब्जियाँ मंहँगी हो गईं!
बहुत पुरानी यादें ताज़ा हो गई, सच में उस समय सब्जी पर कुछ भी खर्च नहीं हो पाता था, जिसके पास नहीं होता उसका भी काम चल जाता था!
दही मट्ठा का भरमार था, सबका काम चलता था। मटर,गन्ना,गुड़ सबके लिए इफरात रहता था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि, आपसी मनमुटाव रहते हुए भी अगाध प्रेम रहता था!
आज की छुद्र मानसिकता, दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती थी, हाय रे ऊँची शिक्षा, कहाँ तक ले आई। आज हर आदमी, एक दूसरे को शंका की निगाह से देख रहा है!
विचारणीय है कि क्या सचमुच हम विकसित हुए हैं या यह केवल एक छलावा है.....?