आत्म कथन एवंम स्वयं के संदर्भ में लेखन साहित्य की दुरूह विधा है और इस विधा को बड़े भोले और मासूम तरीके से नवोदित लेखिका बलजीत कौर 'सब्र' ने अपनी प्रथम कृति "बीती हुई बतियाँ" में पिरोया है। बचपन से लेकर अब तक की इनके निजी अनुभवों की जीवंत गाथा को अपने संस्करण में लिपिबद्ध किया है। यह लेखिका के लिए शुभ लक्षण है कि बाल्य काल से ही उनकी पठन-पाठन में गहन रुचि रही है और उसी का सम्यक प्रतिफल का प्रमाण इस कृति के रूप में हमारे हाथों में है। यह बचपन के विभिन्न अध्यायों में विभक्त संस्करणों का एक बड़ा कैनवास है जिसमें लेखिका ने अपनी तूलिका से अलग-अलग रंगों से सजाया है। लिखे गए साहित्य में लेखिका की अपनी स्वयं की अनुभूतियों तथा संवेदनाओं के स्मरण का संप्रेषण तथा अभिव्यक्ति दी है, कलात्मक अभिव्यक्ति में सादा भोलापन,मूल मानवीय संवेदना और
सपाट वक्तव्य भी समाहित हैं, उनके लेखन में कृत्रिमिता कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं होती है आडंबर विहीन शब्दों का चयन करके लेखिका ने इसको बड़े ही निजी अंदाज में संकलित किया है। इस किताब में आठ आलेखों में अब तक के अनुभवों का विस्तृत विवरण समाहित है। बीती हुई बतियाँ में कुछ बातें जो दैनंदिनी की उल्लेखित है किंतु कुछ ऐसी बातें जो मन में घूमड घूमड कर मस्तिष्क के तंतुओं में आकर रुक जाती हैं उन्हें भी लिखकर लेखिकाओं ने भावनात्मक संश्लेषण में अभिव्यक्त किया है। बचपन वाला इश्क, चाय, बारिश को सजदा, स्कूल की अनमोल सखियां, छत पर गुजरे लम्हे, कुछ बातें जो दिल के करीब है, वो दौर, और इस महत्वपूर्ण कृति की मुख्य पृष्ठभूमि में शीर्षक बीती हुई बतियां में लेखिका ने अपने जीवन का निचोड़ प्रस्फुटित किया है। निसंदेह इनका यह प्रथम प्रयास साहित्य जगत के लिए शुभ संकेत है। सचमुच मानवीय संबंधों को पंख और उड़ान देती है चाय की मीठी चुस्कियां यह उनका गहन व्यक्तिगत अनुभव है और चाय को केवल चाय न मानकर बतरस का बेहद रोचक और संग्रहणीय जरिया बनाया है, चाय एक अंतरण बातों का खूबसूरत माध्यम भी हो सकता है यह लेखिका ने साबित किया है। बारिश को सजदा में अंतरंग भावनाओं को अंतस की तपिस को बारिश की बूंदों में शांत करते हुए लेखिका का मन सचमुच अंतरंग बातों से भीग भीग जाता है यह लेखिका की सफलता है। बाल मन में मित्रता सखियां और बाल मित्र संबंधों की सीमाओं से परे जाकर अंतरंग रिश्ते में परिवर्तित हो जाती है बचपन मित्रता को समर्पित होता है और इन्हीं स्मृतियां को इस कृति में बड़े ही मार्मिक तरीके से इंगित किया गया है। छत पर गुजरे हुए लमहे हर व्यक्ति की जिंदगी में एक अलग अनुभव और विशेषताओं को दर्शाता है यह केवल अनुभव नहीं बचपन की मधुर स्मृतियां जैसे हर मनुष्य लम्हा गुजर जाने के बाद फिर से पाने का प्रयास करता है, इसी जादूगरी में बड़ी दक्षता के साथ लेखिका ने अपनी बात रखी है। बीती हुई रतियों में आकाश के तारों को ताकते हुए भविष्य की कल्पनाओं में खोना मनुष्य का खूबसूरत स्वप्न होता है। उन्हें स्वप्नों को लेखिका ने स्वयं अपने दिल में जिया है। लेखिका भावनात्मक रूप से संवेदनशील है और यही वजह है कि उन्होंने बडे ही संवेदनशील तरीके से अपनी बातों को अपनी किताब में प्रस्तुत किया है। कुछ बातें जो दिल के करीब है मैं लेखिका ने अपने मन की बात को जैसा का वैसा ही लेखन में उतार दिया है उनके लेखन में कहीं भी आत्मश्लाघा, या आत्म प्रवंचना नहीं है, आत्म विश्लेषण होते हुए भी सब कुछ बड़ा खुला एवं स्पष्ट है। और बीती हुई बतिया शीर्षक की इस कृति में लेखिका बलजीत कौर उस कष्ट साध्य समय का भी उल्लेख करती है जब वह करोना जैसे भीषण संक्रमण से पीड़ित थी और उसे दौरान उन्होंने अपनी परिस्थितियों को बड़े ही दिल से संपूर्ण संवेदना और मर्म के साथ लिखने के माध्यम से पाठकों के समक्ष रखा है पूरे विश्व के साथ इस किताब का पाठक भी उसे संक्रमण काल को याद करके नख से शिख तक अत्यंत भयभीत हो जाता है, ऐसे में लेखिका द्वारा उसे पीड़ा को अभिव्यक्त करने का दुरूह कार्य किया है, लेखिका को साधुवाद।
लेखिका ने मानवीय संबंधों, साथियों के साथ अंतरंग मित्रता और जीवन की विसंगतियों को अपनी लेखनी से बड़े ही रोचक तरीके से पाठकों के सामने रखा है। अपने आलेखों के बीच-बीच में बड़ी भोली,मासूम और मार्मिक कविताओं को भी उन्होंने इस किताब में समाहित किया है जो इस कृती की विशेषताओं को द्विगुणित करता है। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि लेखिका गद्य और पद्य में समान रूप से पारंगत है और सिद्धहस्त भी। लेखिका का संवेदनशील, भावनाओं से परिपूर्ण लेखन है साहित्य में इनका भविष्य उज्जवल है, किताब में कुछ भाषाई त्रुटियां हैं और कुछ प्रूफ की गलतियां भी रह गई हैं जिन्हें अगले प्रकाशन में सुधार की आवश्यकता होगी। किताब आपके सामने होगी आप पढ़ेंगे आपको मर्मस्पर्शी अंतरंग स्मरण की भी बातों का आस्वाद प्राप्त होगा, ऐसा मैं दिल से महसूस करता हूं। शुभकामनाओं के साथ।
संजीव ठाकुर ,लेखक, चिंतक, समालोचक, कवि, रायपुर छत्तीसगढ़