Sunday, March 10, 2024

आखिरी सन्देश

ऋषिकेश के एक प्रसिद्द महात्मा बहुत वृद्ध हो चले थे और उनका अंत निकट था . एक दिन उन्होंने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा , ” प्रिय शिष्यों मेरा शरीर जीर्ण हो चुका है और अब मेरी आत्मा बार -बार मुझे इसे त्यागने को कह रही है , और मैंने निश्चय किया है कि आज के दिन जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा तब मैं इहलोक त्याग दूंगा .” गुरु की वाणी सुनते ही शिष्य घबड़ा गए , शोक -विलाप करने लगे , पर गुरु जी ने सबको शांत रहने और इस अटल सत्य को स्वीकारने के लिए कहा . कुछ देर बाद जब सब चुप हो गए तो एक शिष्य ने पुछा , ” गुरु जी , क्या आप आज हमें कोई शिक्षा नहीं देंगे ?” “अवश्य दूंगा “, गुरु जी बोले ” मेरे निकट आओ और मेरे मुख में देखो .” एक शिष्य निकट गया और देखने लगा। “बताओ , मेरे मुख में क्या दिखता है , जीभ या दांत ?” “उसमे तो बस जीभ दिखाई दे रही है .”, शिष्य बोला फिर गुरु जी ने पुछा , “अब बताओ दोनों में पहले कौन आया था ?” “पहले तो जीभ ही आई थी .”, एक शिष्य बोला “अच्छा दोनों में कठोर कौन था ?”, गुरु जी ने पुनः एक प्रश्न किया . ” जी , कठोर तो दांत ही था . ” , एक शिष्य बोला . ” दांत जीभ से कम आयु का और कठोर होते हुए भी उससे पहले ही चला गया,पर विनम्र व संवेदनशील जीभ अभी भी जीवित है..शिष्यों,इस जग का यही नियम है,जो क्रूर है , कठोर है और जिसे अपने ताकत या ज्ञान का घमंड है उसका जल्द ही विनाश हो जाता है अतः तुम सब जीभ की भांति सरल,विनम्र व प्रेमपूर्ण बनो और इस धरा को अपने सत्कर्मों से सींचो , यही मेरा आखिरी सन्देश है .”, और इन्ही शब्दों के साथ गुरु जी परलोक सिधार गए..!!


Wednesday, March 6, 2024

गरुड़ पुराण

 ⭕गरुड़ पुराण में क्या है: 18 पुराणों में से इसे एक गरुड़ पुराण में एक ओर जहां मौत का रहस्य है तो दूसरी ओर जीवन का रहस्य छिपा हुआ है। गरुण पुराण में, मृत्यु के पहले और बाद की स्थिति के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण से हमे कई तरह की शिक्षाएं मिलती है।

 

🚩1. भगवान गरूढ़ और श्रीहरि विष्णु का संवाद:- एक बार गरुड़ ने भगवान विष्णु से, प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नरक-योनियों तथा सद्गति के बारे में अनेक गूढ़ और रहस्ययुक्त प्रश्न पूछे। उन्हीं प्रश्नों का भगवान विष्णु ने सविस्तार उत्तर दिया। इन प्रश्न और उत्तर की माला से ही गरुढ़ पुराण निर्मित हुआ। गरूड़ पुराण में उन्नीस हजार श्लोक कहे जाते हैं, किन्तु वर्तमान समय में कुल सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं। गरूड़ पुराण में ज्ञान, धर्म, नीति, रहस्य, व्यावहारिक जीवन, आत्म, स्वर्ग, नर्क और अन्य लोकों का वर्णन मिलता है।

 

🚩2. गरुड़ पुराण में क्या है:- गरुड़ पुराण में व्यक्ति के कर्मों के आधार पर दंड स्वरुप मिलने वाले विभिन्न नरकों के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार कौनसी चीजें व्यक्ति को सद्गति की ओर ले जाती हैं इस बात का उत्तर भगवान विष्णु ने दिया है। गरुड़ पुराण में हमारें जीवन को लेकर कई गूढ बातें बताई गई है। जिनके बारें में व्यक्ति को जरूर जनना चाहिए। आत्मज्ञान का विवेचन ही गरुड़ पुराण का मुख्य विषय है। इसमें भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार, निष्काम कर्म की महिमा के साथ यज्ञ, दान, तप तीर्थ आदि शुभ कर्मों में सर्व साधारणको प्रवृत्त करने के लिए अनेक लौकिक और पारलौकिक फलों का वर्णन किया गया है। इसके अतिरिक्त इसमें आयुर्वेद, नीतिसार आदि विषयों के वर्णनके साथ मृत जीव के अन्तिम समय में किए जाने वाले कृत्यों का विस्तार से निरूपण किया गया है। 


🚩3. जब कोई दिवंगत होता है तभी सुनते हैं गुरुड़ पुराण:- गुरुड़ पुराण तभी सुना जाता है जबकि किसी के घर में किसी की मृत्यु हो गई हो, श्राद्धपक्ष में श्राद्ध कर्म करना हो या गया आदि में पितृ विसर्जन करना हो। घर में 13 दिनों तक गरूड़ पुराण का पाठ या गीता का पाठ किया जाना जरूरी माना जाता है। जब मृत्यु के उपरांत घर में गरुड़ पुराण का पाठ होता है तो इस बहाने मृतक के परिजन यह जान लेते हैं कि बुराई क्या है और सद्गति किस तरह के कर्मों से मिलती है ताकि मृतक और उसके परिजन दोनों ही यह भलिभांति जान लें कि उच्च लोक की यात्रा करने के लिए कौन से कर्म करना चाहिए। गरुड़ पुराण हमें सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है। सत्कर्म से ही सद्गति और मुक्ति मिलती है।

 

🚩4. क्यों सुनते हैं गरूड़ पुराण का पाठ:- हिन्दू धर्मानुसार जब किसी के घर में किसी की मौत हो जाती है तो 13 दिन तक गरूड़ पुराण का पाठ रखा जाता है। शास्त्रों अनुसार कोई आत्मा तत्काल ही दूसरा जन्म धारण कर लेती है। किसी को 3 दिन लगते हैं, किसी को 10 से 13 दिन लगते हैं और किसी को सवा माह लगते हैं। लेकिन जिसकी स्मृति पक्की, मोह गहरा या अकाल मृत्यु मरा है तो उसे दूसरा जन्म लेने के लिए कम से कम एक वर्ष लगता है। तीसरे वर्ष गया में उसका अंतिम तर्पण किया जाता है। 13 दिनों तक मृतक अपनों के बीच ही रहता है। इस दौरान गरुढ़ पुराण का पाठ रखने से यह स्वर्ग-नरक, गति, सद्गति, अधोगति, दुर्गति आदि तरह की गतियों के बारे में जान लेता है। आगे की यात्रा में उसे किन-किन बातों का सामना करना पड़ेगा, कौन से लोक में उसका गमन हो सकता है यह सभी वह गरुड़ पुराण सुनकर जान लेता है। 

 

🚩5. क्यों नहीं करते हैं रात में दाह संस्कार:- गरूड़ पुराण के अनुसार सूर्यास्त के बाद हुई है मृत्यु तो हिन्दू धर्म के अनुसार शव को जलाया नहीं जाता है। इस दौरान शव को रातभर घर में ही रखा जाता और किसी न किसी को उसके पास रहना होता है। उसका दाह संसाकार अगले दिन किया जाता है। यदि रात में ही शव को जला दिया जाता है तो इससे व्यक्ति को अधोगति प्राप्त होती है और उसे मुक्ति नहीं मिलती है। ऐसी आत्मा असुर, दानव अथवा पिशाच की योनी में जन्म लेते हैं।


🚩6. गाय का महत्व:- हिन्दू धर्म में गाय को सबसे पवित्र प्राणी माना गया है। गरुड़ पुराण अनुसार मरने के बाद वैतरणी नदी को पार कराने वाली गाय ही होती है। गरुड़ पुराण के मुताबिक गाय के दूध को देखने मात्र से ही कई पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान करने के सामान पुण्य प्राप्त होता है। गुरुड़ पुराण अनुसार गौशाला देखने से भी शुभ फल की प्राप्ति होती है।


🚩7. नैतिक बातें:- गरूड़ पुराण के अनुसार घर में गंदनी रखना या गंदे कपड़े पहनना एक ही बात है। इससे माता लक्ष्‍मी नाराज हो जाती है। घर में साफ सफाई का नहीं होना गंदे आदमी की निशानी है। इसी तरह अहंकार से बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। लोग साथ छोड़ देते हैं और आदमी खुद को अकेला पाता है। दौलत, बंगला, महंगी गाड़ी, भूमि आदि सभी कोई काम नहीं आने वाली है। सूर्योदय के बाद देर तक सोते रहना गलत है। क्योंकि इससे माता लक्ष्मी ही नाराज नहीं होती है बल्कि शनिदेव भी नाराज हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति मेहनत करने से बचना है, कामचोर है। सौंपे गए कामों को ठीक से पूर्ण नहीं करता है तो माता लक्ष्‍मी रूष्ठ हो जाती है। इसके साथ ही दूसरों के कार्यों में कमियां निकालना भी जीवन को खराब कर देता है। किसी गरीब, असहाय, मजबूत, अबला, विधवा आदि का शोषण करके उसका हक छीनने वाला जल्द ही कंगाल होकर बर्बाद हो जाता है। ऐसे लालची व्यक्ति का कोई साथी नहीं होता है। लक्ष्मी मां ऐसे लोगों को घर ज्यादा दिन नहीं रहती हैं।

 

🚩8. इन लोगों के हाथों का न करें भोजन:- गरुड़ पुराण के अनुसार हमें कुछ लोगों के हाथों का बना भोजन नहीं करना चाहिए और ना ही उनसे किसी भी प्रकार का संबंध रखना चाहिए। क्योंकि उनके हाथ का बना भोजन करने से हमें उसके पापों का दोष लगता है जिसका परिणाम अच्छा नहीं होता है। जैसे- हिजड़े, चरित्रहीन महिला, नशे का व्यापारी, अपराधी, नर्दयी, ब्याजखोर, अस्वस्थ व्यक्ति, रजस्वला महिला, अधर्मी आदि। 


🚩9. ज्ञान का संवरक्षण अभ्यास से:- गरुड़ पुराण के अनुसार कितना ही कठिन से कठिन सवाल हो, ज्ञान हो, विद्या हो या याद रखने की कोई बात हो वह अभ्यास से ही संवरक्षित रखी जा सकती है। अभ्यास करते रहने से व्यक्ति उक्त ज्ञान में पारंगत तो होता ही है साथ ही वह उसे कभी नहीं भूलता है। अभ्यास के बगैर विद्या नष्ट हो जाती है। यदि ज्ञान या विद्या का समय समय पर अभ्यास नहीं करेंगे तो वह भूल जाएंगे। गरुड़ पुराण के अनुसार माना जाता है कि जो भी हम पढ़े उसका हमें हमेशा एक बार अभ्यास करना चाहिए। जिससे की वह ज्ञान हमारे मस्तिष्क में अच्छे से जम जाए।

 

🚩10. निरोगी काया:- गरुड़ पुराण के अनुसार संतुलित भोजन करने से ही निरोगी काया प्राप्त होती है। भोजन से ही व्यक्ति सेहत प्राप्त करता है और भोजन से ही वह रोगी हो जाता है। भोजन ही हमारे शरीर का मुख्‍य स्रोत है। हमें हमेशा आधी से ज्यादा बीमारी इस वजह से होती है कि हम असंतुलित खान-पान लेते हैं। जिसके कारण हमारा पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं करता है। इसलिए हमें सदैव सुपाच्य भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। ऐसे भोजन से पाचन तंत्र ठीक से काम करता है और भोजन से पूर्ण ऊर्जा शरीर को प्राप्त होती है। पाचन तंत्र स्वस्थ रहता है और इस वजह से हम रोगों से बचे रहते हैं। इसके लिए एकादशी और प्रदोष का व्रत करना चाहिए।


Sunday, February 25, 2024

शरण

नयासर गांव में सेठ नंदाराम रहते थे। 

उनके यहां एक नौकर काम करता था.. जिसके कुटुंब में बीमारी की वजह से कोई आदमी नहीं बचा। 

केवल नौकर का लड़का रह गया। वह सेठ नंदाराम के घर काम करने लग गया.. 

रोजाना सुबह वह बछड़े चराने जाता था.. और लौटकर आता तो रोटी खा लेता था। ऐसे समय बीतता गया।


एक दिन दोपहर के समय वह बछड़े चरा कर आया तो सेठ नंदाराम की नौकरानी ने उसे ठंडी रोटी खाने के लिए दे दी। 

उसने कहा कि थोड़ी सी छाछ या रबड़ी मिल जाए तो ठीक है।

नौकरानी ने कहा कि, जा जा तेरे लिए बनाई है रबड़ी, जा ऐसे ही खा ले नहीं तो तेरी मर्जी।

उस लड़के के मन में गुस्सा आया कि, मैं धूप में बछड़े चरा कर आया हूं, भूखा हुँ..पर मेरे को बाजरे की सूखी रोटी दे दी.. रबड़ी मांगी तो तिरस्कार कर दिया..।।

वह भूखा ही वहां से चला गया। 

गांव के पास में एक शहर था.. उस शहर में संतों कि एक मंडली आई हुई थी.. वह लड़का वहां चला गया।

संतों ने उसको भोजन कराया और पूछा कि तेरे परिवार में कौन हैं। 

उसने कहा कि कोई नहीं है..

संतों ने कहा तू भी साधु बन जा.. लड़का साधु बन गया।

संतों ने ही उसके पढ़ने की व्यवस्था काशी में कर दी.. वह पढ़ने के लिए काशी चला गया वहां पढ़कर वह विद्वान हो गया। 

फिर कुछ समय बाद उसे महामंडलेश्वर महंत बना दिया गया।

महामंडलेश्वर बनने के बाद एक दिन उसको उसी शहर में आने का आमंत्रण मिला..।

वह अपनी मंडली लेकर वहां आये.. 

जिनके यहाँ वह बचपन में काम करते थे, सेठ नंदाराम बूढ़े हो गए थे।

सेठ नंदाराम भी शहर में उनका सत्संग सुनने आए.. 

उनका सत्संग सुना और प्रार्थना की कि महाराज.. एक बार हमारी कुटिया में पधारो जिससे हमारी कुटिया पवित्र हो जाए ! 

महामंडलेश्वर जी ने उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया.. 

महामंडलेश्वर जी अपनी मंडली के साथ सेठ नंदाराम के घर पधारे।

भोजन के लिए पंक्ति बैठी, भोजन मंत्र का पाठ हुआ.. फिर सबने भोजन करना आरंभ किया।

महाराज के सामने तख़्त लगाया गया, और उस पर तरह-तरह के भोजन के पदार्थ रखे हुए थे।

अब सेठ नंदाराम महाराज के पास आए साथ में नौकर था जिसके हाथ में हलवे का पात्र था।

सेठ नंदाराम प्रार्थना करने लगा कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा हलवा मेरे हाथ से ले लो। 

महाराज को हंसी आ गई..

सेठ नंदाराम ने पूछा कि आप हँसे कैसे ?

महाराज बोले कि, मेरे को पुरानी बातें याद आ गई इसलिए हंसा।

सेठ नंदाराम बोले महाराज यदि हमारे सुनने लायक बात हो तो हमें भी बताइए।

महाराज ने सब संतो से कहा कि, भाई थोड़ा ठहर जाओ बैठे रहो, सेठ नंदाराम बात पूछता है, तो बताता हूं..


महाराज ने सेठ नंदाराम से पूछा कि, आपके कुटुंब में एक नौकर का परिवार रहा करता था उस परिवार में अब कोई है क्या ?


सेठ नंदाराम बोले कि, केवल एक लड़का था.. और हमारे यहाँ उसने कई दिन बछड़े चराए.. फिर ना जाने कहाँ चला गया।


बहुत दिन हो गए फिर कभी उसको देखा नहीं।


महाराज बोले, कि मैं वही लड़का हूं। पास के शहर में संत-मंडली ठहरी हुई थी। मैं वहां चला गया।


पीछे काशी चला गया वहां पढ़ाई की और फिर महामंडलेश्वर बन गया।


यह वही आंगन है जहां आपकी नौकरानी ने मेरे को थोड़ी सी रबड़ी देने के लिए भी मना कर दिया था।


अब मैं भी वही हुँ, आंगन भी वही है.. आप भी वही हैं..।


पर अब आप अपने हाथों से मोहनभोग दे रहे हैं.. कि महाराज कृपा करके थोड़ा सा मेरे हाथ से ले लो !


मांगे मिले ना रबड़ी, करूं कहां लगी वरण। 

मोहनभोग गले में अटक्या, आ संतों की शरण।।


सन्तो की शरण लेने मात्र से इतना हो गया कि जहां रबड़ी नहीं मिलती थी वहां मोहनभोग भी गले में अटक रहे हैं..।


अगर कोई भगवान् की शरण ले ले, तो वह संतों का भी आदरणीय हो जाए..।


लखपति करोड़पति बनने में सब स्वतंत्र नहीं हैं..पर भगवान् की शरण होने में भगवान् का भक्त बनने में सब के सब स्वतंत्र हैं..!!


और ऐसा मौका इस मनुष्य जन्म में ही है..!!

दो अंगुल बंधन का रहस्य?

ब्रह्मलोक लगि गयउँ मैं चितयउँ पाछ उड़ात।

जुग अंगुल कर बीच सब राम भुजहि मोहि तात॥

भावार्थ:-मैं ब्रह्मलोक तक गया और जब उड़ते हुए मैंने पीछे की ओर देखा, तो हे तात! श्री रामजी की भुजा में और मुझमें केवल दो ही अंगुल का बीच था।

रामचरितमानस में जब प्रभु की भुजा कागभुसुड जी को पकड़ने दोड़ी तो वह भुजा सदा मात्र दो अंगुल के अन्तर से पीछे रही और वृन्दावन में जब यशोदा मैया नटखट भगवान् श्यामसुंदर को बाँधने की कोशिश करती हैं तो सारे वृन्दावन की रस्सी भी मात्र दो अंगुल के फर्क से छोटी रह जाती है।

जब भगवान् जी से पूछा गया की यह दो अंगुल का क्या रहस्य है तो वह मुस्कुराकर बोले एक अंगुल तो मेरी कृपा का है और दूसरी अंगुल जीव की इच्छा का है।जब तक जीव मुझे पकड़ने का प्रयास नहीं करेगा और फिर मै उस जीव पर कृपा नहीं करूँगा तो हमारा मिलन संभव नहीं होगा।अगर ईश्वर और भक्त एक दुसरे को पकड़ने का प्रयास नहीं करते तो जीव और ईश्वर का मिलन नहीं होगा।

ईश्वर को श्रीराम विवाह के समय माँ सीता की पंचरंगी चुनरी के छोर द्वारा बाँधा गया और फिर श्यामसुंदर भगवान् जब राधारानी के बरसाने से रस्सी मंगवाई गयी तो भी भगवान् बन्ध गए।

जिस माँ की गोद में जाकर व्यापक ब्रह्म इतना छोटा हो गया उसके हाथ मे अगर रस्सी भी आकर छोटी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।माँ यशोदा के हाथ में रस्सी छोटी होने का कारण भगवान् श्यामसुंदर नहीं थे,क्योंकि भगवान् ने रस्सी से न बंधने के लिए अपने शरीर को तो बड़ा नहीं किया था फिर माँ यशोदा क्यों नहीं बाँध पायी।इसका कारण एक तो क्रोध के कारण बांधना चाहती थी और दूसरी ओर प्रेम के कारण उन्हें बाँधने में संकोच हो रहा था इसी कारण रस्सी छोटी रह जाती थी।माँ के क्रोध और संकोच के कारण दो अंगुल का फर्क रहा।मन में अगर किसी प्रकार का संशय है तो ईश्वर को नहीं बाँधा जा सकता।

तात्पर्य यह है कि भगवान् भक्ति के बंधन से बन्ध सकते हैं।माता सीता और राधारानी भक्ति का स्वरुप है।एक बार भक्ति के बंधन में जकड़े जाने के पश्चात ईश्वर भक्ति देवी का ही अनुसरण करते दिखाई देते है।श्रीराम विवाह में माँ सीता की चुनरी से बंधे श्री राम श्री सीता के पीछे पीछे चलकर विवाह पूर्ण करते हैं।

जो ईश्वर का पीताम्बर असीम है और जिसका कोइ छोर नहीं है जिसकी सीमा नहीं है वह ईश्वर भी जब भक्ति की चुनरी के साथ बंधता है तो असीम हो जाता है और फिर वह पकड़ा जा सकता है..!!