Sunday, February 25, 2024

दो अंगुल बंधन का रहस्य?

ब्रह्मलोक लगि गयउँ मैं चितयउँ पाछ उड़ात।

जुग अंगुल कर बीच सब राम भुजहि मोहि तात॥

भावार्थ:-मैं ब्रह्मलोक तक गया और जब उड़ते हुए मैंने पीछे की ओर देखा, तो हे तात! श्री रामजी की भुजा में और मुझमें केवल दो ही अंगुल का बीच था।

रामचरितमानस में जब प्रभु की भुजा कागभुसुड जी को पकड़ने दोड़ी तो वह भुजा सदा मात्र दो अंगुल के अन्तर से पीछे रही और वृन्दावन में जब यशोदा मैया नटखट भगवान् श्यामसुंदर को बाँधने की कोशिश करती हैं तो सारे वृन्दावन की रस्सी भी मात्र दो अंगुल के फर्क से छोटी रह जाती है।

जब भगवान् जी से पूछा गया की यह दो अंगुल का क्या रहस्य है तो वह मुस्कुराकर बोले एक अंगुल तो मेरी कृपा का है और दूसरी अंगुल जीव की इच्छा का है।जब तक जीव मुझे पकड़ने का प्रयास नहीं करेगा और फिर मै उस जीव पर कृपा नहीं करूँगा तो हमारा मिलन संभव नहीं होगा।अगर ईश्वर और भक्त एक दुसरे को पकड़ने का प्रयास नहीं करते तो जीव और ईश्वर का मिलन नहीं होगा।

ईश्वर को श्रीराम विवाह के समय माँ सीता की पंचरंगी चुनरी के छोर द्वारा बाँधा गया और फिर श्यामसुंदर भगवान् जब राधारानी के बरसाने से रस्सी मंगवाई गयी तो भी भगवान् बन्ध गए।

जिस माँ की गोद में जाकर व्यापक ब्रह्म इतना छोटा हो गया उसके हाथ मे अगर रस्सी भी आकर छोटी हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।माँ यशोदा के हाथ में रस्सी छोटी होने का कारण भगवान् श्यामसुंदर नहीं थे,क्योंकि भगवान् ने रस्सी से न बंधने के लिए अपने शरीर को तो बड़ा नहीं किया था फिर माँ यशोदा क्यों नहीं बाँध पायी।इसका कारण एक तो क्रोध के कारण बांधना चाहती थी और दूसरी ओर प्रेम के कारण उन्हें बाँधने में संकोच हो रहा था इसी कारण रस्सी छोटी रह जाती थी।माँ के क्रोध और संकोच के कारण दो अंगुल का फर्क रहा।मन में अगर किसी प्रकार का संशय है तो ईश्वर को नहीं बाँधा जा सकता।

तात्पर्य यह है कि भगवान् भक्ति के बंधन से बन्ध सकते हैं।माता सीता और राधारानी भक्ति का स्वरुप है।एक बार भक्ति के बंधन में जकड़े जाने के पश्चात ईश्वर भक्ति देवी का ही अनुसरण करते दिखाई देते है।श्रीराम विवाह में माँ सीता की चुनरी से बंधे श्री राम श्री सीता के पीछे पीछे चलकर विवाह पूर्ण करते हैं।

जो ईश्वर का पीताम्बर असीम है और जिसका कोइ छोर नहीं है जिसकी सीमा नहीं है वह ईश्वर भी जब भक्ति की चुनरी के साथ बंधता है तो असीम हो जाता है और फिर वह पकड़ा जा सकता है..!!


Friday, February 23, 2024

संयम और साहस

बहुत दिन पहले किसी गांव में एक नाई रहता था। वह बहुत आलसी था। सारा दिन वह आईने के सामने बैठा टूटे कंघे से बाल संवारते हुए गंवा देता। उसकी बूढ़ी मां उसके आलसीपन के लिए दिन-रात फटकारती थी, लेकिन उसके कानों पर जूं भी नहीं रेंगती थी। आखिरकार एक दिन मां ने गुस्से में उसकी पिटाई कर दी। जवान बेटे ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया और घर छोड़ कर चला गया। उसने कसम खाई कि जब तक कुछ धन जमा नहीं कर लेगा, वह घर नहीं लौटेगा। चलते-चलते वह जंगल पहुंचा। उसे कोई काम तो आता नहीं था इसलिए अब वो भगवान को मनाने बैठ गया। अभी वह प्रार्थना के लिए बैठता, उससे पहले ही उसका एक ब्रम्हराक्षस से सामना हो गया। ब्रम्हराक्षस नाई को देखकर खुश हुआ और खुशी मनाने के लिए लिए नाचने लगा। यह देख नाई के होश उड़ गए, पर अपने डर को जाहिर नहीं होने दिया। उसने साहस बटोरा और राक्षस के साथ नाचने लगा।


कुछ देर बाद उसने राक्षस से पूछा- तुम क्यों नाच रहे हो? तुम्हें किस बात की खुशी है? राक्षस हंसते हुए बोला, मैं तुम्हारे सवाल का इंताज़ार कर रहा था। तुम तो निरे उल्लू हो। तुम समझ नहीं पाओगे। मैं इसलिए नाच रहा हूं कि मुझे तुम्हारा नरम-नरम मांस खाने को मिलेगा। वैसे, तुम क्यों नाच रहे हो? नाई ने ठहाका लगाते हुए कहा, मेरे पास इससे भी बढ़िया कारण है। हमारा राजकुमार सख्त बीमार है। चिकित्सकों ने उसे एक सौ एक ब्रम्हराक्षसों के हृदय का रक्त पीने का उपचार बताया है। महाराज ने मुनादी करवाई है जो कोई यह दवा लाकर देगा, उसे वे अपना आधा राज्य देंगे और राजकुमारी का विवाह भी उससे कर देंगे। मैंने सौ ब्रम्हराक्षस तो पकड़ लिए हैं। अब तुम भी मेरी गिरफ्त में हो।यह कहते हुए उसने जेब से छोटा आईना उसकी आंखों के सामने किया। आतंकित राक्षस ने आईने में अपनी शक्ल देखी। चांदनी रात में उसे अपना प्रतिबिम्ब साफ नज़र आया। उसे लगा कि वह वाकई उसकी मुट्ठी में है। थर-थर कांपते हुए उसने नाई से विनती की कि उसे छोड़ दे, पर नाई राज़ी नहीं हुआ। तब राक्षस ने उसे सात रियासतों के खज़ाने के बराबर धन देने का लालच दिया। पर इस भेंट में नाई ने दिलचस्पी न लेने का नाटक करते हुए कहा- पर जिस धन का तुम वादा कर रहे हो, वह है कहां और इतनी रात में उस धन को और मुझे घर कौन पहुंचाएगा?


राक्षस ने कहा, खज़ाना तुम्हारे पीछे वाले पेड़ के नीचे गड़ा है। पहले तुम इसे अपनी आंखों से देख लो, फिर मैं तुम्हें और इस खज़ाने को पलक झपकाते ही तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा। राक्षसों की शक्तियां तुमसे क्या छुपी है, कहने के साथ ही उसने पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया और हीरे-मोतियों से भरे सोने के सात कलश बाहर निकाले। खज़ाने की चमक से नाई की आंखें चौंधिया गईं, पर अपनी भावनाओं को छुपाते हुए उसने रौब से उसे आदेश कि वह उसे और खज़ाने को उसके घर पहुंचा दे। राक्षस ने आदेश का पालन किया। राक्षस ने अपनी मुक्ति की याचना की, पर नाई उसकी सेवाओं से हाथ नहीं धोना चाहता था। इसलिए अगला काम फसल काटने का दे दिया। बेचारे राक्षस को यकीन था कि वह नाई के शिकंजे में है। सो उसे फसल तो काटनी ही पड़ेगी। 


वह फसल काट ही रहा था कि वहां से दूसरा ब्रम्हराक्षस गुजरा। अपने दोस्त को इस हालत में देख वह पूछ बैठा। ब्रम्हराक्षस ने उसे आपबीती बताई और कहा कि, इसके अलावा कोई चारा नहीं है। दूसरे ने हंसते हुए कहा, पागल हो गए हो? राक्षस आदमी से कहीं शक्तिशाली और श्रेष्ठ होते हैं। तुम उस आदमी का घर मुझे दिखा सकते हो? हाँ, दिखा दूंगा, पर दूर से। धान की कटाई पूरी किए बिना उसके पास जाने की मेरी हिम्मत नहीं है।यह कहकर उसने उसे नाई का घर दूर से दिखा दिया।


वहीं अपनी कामयाबी के लिए नाई ने भोज का आयोजन किया। और एक बड़ी मछली भी लेकर आया। लेकिन एक बिल्ली टूटी खिड़की से रसोई में आकर ज्यादा मछली खा गई।गुस्से में नाई की बीवी बिल्ली को मारने के लिए झपटी, पर बिल्ली भाग गई। उसने सोचा, बिल्ली इसी रास्ते से वापस आएगी। सो वह मछली काटने की छुरी थामे खिड़की के पास खड़ी हो गई। उधर दूसरा राक्षस दबे पांव नाई के घर की ओर बढ़ा। उसी टूटी हुई खिड़की से वह घुसा। बिल्ली की ताक में खड़ी नाइन ने तेज़ी से चाकू का वार किया। निशाना सही नहीं बैठा, पर राक्षस की लम्बी नाक आगे से कट गई। दर्द से कराहते हुए वह भाग खड़ा हुआ। और शर्म के मारे अपने दोस्त के पास वो गया भी नहीं।


पहले राक्षस ने धीरज के साथ पूरी फसल काटी और अपनी मुक्ति के लिए नाई के पास गया।धूर्त नाई ने इस बार उल्टा शीशा दिखाया।राक्षस ने बड़े गौर से देखा।उसमें अपनी छवि न पाकर उसने राहत की सांस ली और नाचता-गुनगुनाता चला गया।


शिक्षा:-

धैर्य और संयम से बड़ी मुसीबतें भी टल जाती हैं।साहस से बड़ी कोई शक्ति नहीं होती है..!!


Sunday, February 18, 2024

जलकुंभी

 पहले एक पौधा दिखाई देता है... फिर धीरे धीरे कुछ हफ्तों में तालाब के सब कोनों में एक-दो पौधे तैरते दिखाई देने लगते हैं....

कुछ महीने या सालों में पानी दिखाई देना बंद हो जाता है... सारे तालाब के ऊपर सिर्फ हरा हरा ही दिखाई देता है.... पानी की आक्सीजन खत्म होने लगती है.... अंदर का जीवन, मछलियां मरने लगती हैं...

धीरे धीरे पानी की सड़ांध किलोमीटर दूर से महसूस होनी शुरू हो जाती है.... जिस जिस तालाब में ये जलकुंभी पहुंचती है, उसे उसे खत्म कर देती है....

इलाज...

अगर तो शुरू में ही एक दो पौधों को बाहर निकाल कर फेंक दिया जाए तो वो धूप से सूख जाएंगे....

अगर पूरा तालाब भर गया हो तो सारी जलकुंभी को बाहर निकाल कर सुखाया जाता है.... और सूखने के बाद आग लगा कर बीज तक नाश कर दिया जाता है...

ताकि दुबारा ना पनप सके.... 

हो सकता है आपके घर के पास के तालाब में एक दो पौधे दिखाई दें... शुरू में आपको ये सुंदर दिखाई देंगे... लेकिन अगर आप अभी इलाज नहीं करेंगे तो धीरे धीरे ये पूरे तालाब पर कब्जा कर लेंगे...

फिर या तो आप सड़ांध सहना या घर बेच कर दूर चले जाना.... दो ही रास्ते होंगे... तीसरा रास्ता समूल नाश का है...

मर्जी है आपकी... 

क्यूंकि तालाब है आपका...

घर है आपका...

Friday, February 9, 2024

कानपुर के मोहल्ले के ऐसे अजीबोगरीब नाम आज जानते हैं

भारत की सबसे हैपिएस्ट सिटी कहा जाने वाले, कानपुर शहर को वैसे तो अपने उद्योग धंधों की वजह से मशहूर है लेकिन यहां कई ऐसे स्थान हैं जिनके नाम बहुत ही अजीब-ओ-गरीब हैं। इन मोहल्लों में अफीम कोठी, सीसामऊ, परेड, नवाबगंज, बेकनगंज , बिरहाना रोड,आदि लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि इन जगहों के ऐसे नाम क्यों हैं? इनके पीछे की कहानी क्या है? आज हम आपको बताएंगे कि कानपुर की इन जगहों के ऐसे नाम क्यों हैं...


यहां अंग्रेज किया करते थे परेड...
परेड चौराहा
कानपुर के जिस इलाके को आज हम परेड के नाम से जानते हैं वहां अंग्रेजी शासन के दौरान अंग्रेज परेड किया करते थे। यही कारण है कि इस जगह का नाम परेड पड़ गया।
क्यों कहते हैं राम नारायण बाजार...
राम नारायण बाजार
राम नारायण बाजार का नाम मुंशी राम नारायण खत्री की याद में रखा गया था। राम नारायण ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौज में थे।
हूलागंज के बारे में...
कानपुर के वर्तमान हूलागंज का नाम सर हू हवीलर की स्मृति में रखा गया। पहले इस जगह का नाम वीलर गंज पड़ा लेकिन फिर वीर सेनापति हुलास सिंह उर्फ हूलावर सिंह की स्मृति को अमर रखने की भावना से इस जगह का नाम हूलागंज रखा गया।
बेरी के बागीचों से पड़ा ये नाम...
बिरहाना रोड को पहले बेरिहाना के नाम से जाना जाता था क्योंकि यहां बेरी के बहुत से पेड़ हुआ करते थे। जिसमे ठाकुर गजराज सिंह की जमीदारी हुआ करती थी, बाद में यह जगह बिरहाना रोड के नाम से मशहूर हो गई।
यहां बनाई जाती थी खजूर की चटाई...
कानपुर के दो मौहल्ले चटाई मोहाल और सिरकी मोहाल के नाम से मशहूर हैं। दरअसल चटाई मोहाल में पहले खजूर की चटाई और सिरकी मोहाल में सिरकी के पाल बनाए जाते थे। इसलिए इस जगह का नाम चटाई मोहाल और सिरकी मोहाल रखा गया।
कोतवालेश्वर महादेव मंदिर से पड़ा ये नाम...
कानपुर कोतवाली
साल 1857 में कोतवाली उस जगह पर था जहां लाला कुंजी लाल का मंदिर है। इसके पास ही कोतवालेश्वर महादेव का पुराना मंदिर है बाद में इस जगह का नाम कोतवाली पड़ गया।
गोदामों का बाजार...
थाना नवाबगंज कानपुर
कानपुर कोहना के पास ज्योरा एक छोटा सा इलाका था, नवाब आसिफुद्दौला और जीरो मुमालिक अवध ने ज्योरा की जमीन पर गंज आबाद किया तभी से यह जगह नवाबगंज यानी गोदामों का बाजार कहा जाने लगा।
बेकनगंज कानपुर
स्थानीय लोग बताते हैं कि साल 1828 में कानपुर के मैजिस्ट्रेट विलियम बेकन के नाम पर इस इलाके का नाम बेकनगंज पड़ा।
सीसामऊ बाजार
गोविंद चंद के अभिलेख से पता चलता है कि सीसामऊ को पहले ससइमइ कहा जाता था जो बाद में सीसामऊ हो गया।
अफीम का गोदाम...
अफीमकोठी चौराहा कानपुर
कानपुर में एक ऐसी जगह भी है जहां एक जमाने में अफीम का गोदाम हुआ करता था इसलिए इस जगह को अफीम कोठी कहा जाने लगा।