Saturday, December 16, 2023

गुड़

 गुड़ बनेगा!

बैल से चलने वाला कोल्हू भले नही है लेकिन इस तरह का कोल्हू अब भी मेरे घर पर है।
दूसरे गांव से एक परिवार गन्ना लेकर घर आया है गुड़ बनाने उनकी तैयारी देखी तो एक तस्वीर ले ली सोचा आप सब लोग से साझा करें।।


जब घर पर कोल्हू रहता है तो जब मन करे ताजा ताजा गन्ने का रस पियो।
सर्दियों में घर के छोटे आलुओं के दो टुकड़े करके, हरी धनिया, लहसुन पत्ती, हरी मिर्च से बने हरे मसाले के साथ बनी मटर की घुघनी और ताजा गन्ने का रस अहा!
किसी भी स्ट्रीट फूड नाश्ते को मात देता है।
कोल्हू से गन्ने के रस को निकालकर इस बड़े कड़ाह में पकाकर गुड़ बनता है जब गुड़ पकता है तो बहुत दूर तक मीठी मीठी खुश्बू फैल जाती है। दूसरे गांव तक के लोगो को पता चल जाता है कि आज कोई गुड़ बना रहा है।
जब गुड़ लगभग पक कर तैयार होने वाला होता है तब एक धागे में आलू, सेम और जो भी आपका दिल करे गूथ कर लड़ी बनाकर कड़ाह में लटका देते हैं। पक जाने पर थोड़े से गुड़ की चाशनी के साथ निकालकर फिर खावो अहा!
गुड़ की चाशनी को कड़ाह से एक लकड़ी के चाक(तश्तरी नुमा बर्तन) में निकाल लेते हैं और कड़ाह में ठंडा पानी डाल देते हैं कड़ाह में जो चाशनी लगी होती है फिर उसे इक्ट्ठा करके निकाला जाता है ये सब बच्चों का फेवरेट होता है इसे हमारे यहाँ चिमचा कहते हैं इस चिमचे के आगे हर तरह की चॉकलेट, च्युंगम फेल हैं।
जब कड़ाह उतर जाता है तब उसकी आग(जिस पर कड़ाह रखा जाता है उसे गुलवर कहते हैं) में तार में गूथ कर आलू डाल दिया जाता है और आग में पकने के बाद बढ़िया तीखे चटपटे नमक के साथ खाइए या भरता बनाकर खाये।
हमारे यहाँ तीन तरह के गुड़ बनते हैं एक सामान्य गुड़ होता है जिसके एक गुड़ का वजन लगभग एक पाव होता है मेरी नानी एक किलो गुड़ के लिए चार गुड़ देती थी।
दूसरा चाशनी कड़ी होने से पहले निकालकर रख लेते हैं इसे राब या ककई कहते हैं। इसका संरक्षण बहुत ध्यान से करना पड़ता वरना तरल होने की वजह से जल्दी खराब हो जाती है।
इसे मिट्टी के बड़े बड़े मटके या मिट्टी की छोटी टँकी( धुनकी ) में रखकर अच्छी तरह बन्द कर दिया जाता है। खाने के लिए किसी बर्तन में निकालकर फिर अच्छी तरह से बन्द कर देते हैं हवा या पानी के सम्पर्क में आने से ये खराब होती है। जब गन्ना खत्म हो जाता है तब इसी राब से शर्बत बनता है व सब मीठे पकवान इसी को घोलकर बनते हैं।
तीसरा है सूखे मेवे और सोंठ डालकर बनाई गई चौकोर आकर में काटी गई गुड़ की पट्टी जिसे"पितुड़ा" कहते हैं ये मेहमानों को पानी के साथ दिया जाता है।
पहले के समय में लोग बिस्किट इत्यादि नही देते थे मेहमानों के लिए इस प्रकार की व्यवस्था की जाती थी।।
कभी गर्म गुड़ खाये हो ? नॉर्मल गुड़ से सौ गुना ज्यादा स्वादिष्ट होता है।।
अब भी समय है सफेद जहर चीनी का प्रयोग बन्द करो गुड़ का प्रयोग करो अनेकों बीमारी से बचे रहोगे।।

पुराने दिनों की याद ताजा करता है ये मिर्जापुर का रेस्टोरेंट

ये प्रांगण कोई हवेली नही है
ये उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मिर्जापुर में बना रेस्टुरेंट हैं
इस रेस्टुरेंट में कुछ ऐसी बातें है जो इसे भारत के सभी रेस्टुरेंट से अलग बनाती है


पहली बात ये की इस रेस्टुरेंट में आप को शुद्ध वातावरण मिलता है क्यों के सिटी के बाहर है
उसके बाद इसके अंदर का वातावरण बिलकुल देहाती है और सात्विक है गोबर से लीपे फर्श हैं कुवें से निकलता हुआ पानी भी
आप चाहें तो आप को बिसलेरी की बोतल को जगह कुवेँ का पानी दिया जाएगा
इसके बाद सबसे जरूरी चीज वो ये है की ये रेस्टोरेंट बेटियों को समर्पित है खाना बनाने वाले से लेके खाना परोसने तक हर काम महिलाएं करती है
सबसे खास बात जो इसे बाकी रेस्टोरेंट से अलग बनाती है वो ये है की आप को इस रेस्टोरेंट में कभी एंट्री नही मिलेगी
अगर आप इसमें खाना चाहते हैं तो आप के साथ में कम से कम एक महिला जरूर होनी चाहिए
बिना महिला के इस रेस्टुरेंट के द्वार से ही आप को विदा कर दिया जाएगा

क्यों की ये एक बेटियों को समर्पित रेस्टुरेंट हैं, इनके इस प्रयास से इसमें काम करने वाले महिलाएं सम्मानित और सुरक्षित महसूस करती हैं 

Tuesday, December 12, 2023

मखाना


ठंड के मौसम में सूखे मेवे की मांग स्वतः ही बढ़ जाती है, पर मखाना की मांग दिन प्रतिदिन कम पड़ती जा रही है....
जिसका मुख्य कारण मखाना के गुणकारी पक्ष को न जानना लगता है....
मखाना की प्रजाति हुबहु कमल से मिलती जुलती है,अंतर इतना की मखाना के पौधे बहुत #कांटेदार होते हैं ,
इतने कंटीले कि उस जलाशय में कोई जानवर भी पानी पीने के लिए नहीं जाता है ....
यह तालाब,नदी,और खेतो में पानी भरकर भी पैदा किया जा सकता है ....... ।
इसकी खेती मुख्य रूप से मिथिलांचल में होती है...


बिहार मिथिलांचल की पहचान के बारे में कहा जाता है- 'पग-पग पोखरि माछ मखान' यानी इस क्षेत्र की पहचान पोखर (तालाब), मछली और मखाना से जुड़ी हुई है।
बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया सहित 10 जिलों में मखाना की खेती होती है.....
देश में बिहार के अलावा असम, पश्चिम बंगाल और मणिपुर में भी मखाने का उत्पादन होता है,
मगर देशभर में मखाने के कुल उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत है......
मखाना को देवताओं का भोजन कहा गया है ....जन्म हो या मृत्यु,शादी हो या गोदभराई.....व्रत उपवास हो या यज्ञ हवन मखाने का हर जगह विशेष महत्व रहता है .....
इसे आर्गेनिक #हर्बल भी कहते हैं .....क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशी के उपयोग के उगाया जाता है।
अधिकांशतः ताकत की दवाइयाँ मखाने के योग से बनायी जाती हैं,
मखाने से #अरारोट भी बनता है. ....मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं. ....
बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढ़ावों में सेंका जाता है. ...कढ़ाव में सिंक रहे बीजों को 5-7 की संख्या में हाथ से उठा कर ठोस जगह पर रख कर लकड़ी के हथोड़ो से पीटा जाता है. ....
इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है.
जितने बीजों को सेका जाता है.....उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं....।
औषधीय उपयोग

#किडनी को मजबूत बनाये ..... मखाने का सेवन किडनी और दिल की सेहत के लिए फायदेमंद है...
डाइबिटीज रोगी इसका सेवन कर लाभ पा सकते है...
मखाना कैल्शियम से भरपूर होता है इसलिए जोड़ों के दर्द, विशेषकर #अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद होता है....
मखाने के सेवन से तनाव कम होता है और नींद अच्छी आती है। रात में सोते समय दूध के साथ मखाने का सेवन करने से #नींद न आने की समस्या दूर हो जाती है.....
मखानों का नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और हमारा शरीर सेहतमंद रहता है.....
मखाना शरीर के अंग सुन्न होने से बचाता है तथा घुटनों और कमर में दर्द पैदा होने से रोकता है.....
#गर्भवती महिलाओं और प्रसूति के बाद कमजोरी महसूस करने वाली महिलाओं को मखाना खाना चाहिये.....
मखाना को दूध में मिलाकर खाने से दाह (जलन) में आराम मिलता है।
#नपुंसकता ...मखाने में जो प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फॉस्फोरस आदि पौष्टिक तत्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं।
साथ ही शुक्राणुओं के क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथ-साथ उसकी संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं...।
कई लोग आज भी शक्तिवर्धक के रूप में विदेशी प्रोडक्ट को चुनते है
वही अमेरिकन हर्बल फ्रुड प्रोडक्ट एशोसिएशन ने मखाना को क्लास वन का फूड प्रोडक्ट घोषित किया हुआ हैं...।
मखाना की आप ढ़ेरो रेसिपी भी तैयार कर सकते हैं.

Sunday, December 10, 2023

तरकारी के हाट



 शंकर अपन कनियाँ के संग तरकारी कीनय एकटा दोकान पर जाइत छैथि आ आधा किलो बथुआ साग आ एक किलो भांटा कीनैत छैथि। बथुआ साग शंकर के कनियाँ अपन झोरा में राखि लैत छैथि आ भांटा बला झोरा शंकर के हाथ में। बेसी भीड़ रहवाक कारणे तरकारी कीनबा में दुनू गोटे के समय लागि जाइत छैन्ह। शंकर दोकानदार सँ पूछैत छथिन्ह जे कतेक पाई भेल। दोकानदार एक किलो भांटा के दाम बीस रूपैया मंगैत अछि। शंकर के कनियाँ चुप आ प्रसन्न। शंकर बीस रूपैया दोकानदार के दऽ कऽ आगू बढैत अछि। किछुए दूर गेला पर शंकर के कनियाँ शंकर सँ कहैत छैथि जे आइ आधा किलो बथुआ साग के दाम के फायदा भेल आ सभटा घटना शंकर के बता देलखिन्ह। शंकर तुरंत पाछू घुमलाह आ ओहि दोकानदार के पाइ देवाक लेल बिदा भेलाह, कनियाँ कतबो रोकवाक प्रयास कयलखिन शंकर ओहि दोकानदार के बथुआ साग के पाई दऽ कऽ आबि गेलाह आ कनियाँ के बुझेलखिन जे ककरो संगे एना नहिं करवाक चाही। किछु आगू बढलाक पश्चात् एकटा कन्या आगू सँ आबि शंकर सँ कहैत छैथि जे घर के आगि सँ बचएबाक अछि तऽ बचा लिअ। शंकर दुनू प्राणी सुनि कऽ दंग रहि जाइत छैथि। शंकर अपन माँ के डेरा पर फोन करैत छथिन्ह जे गैस के गंध नहिं ने आबि रहल अछि। शंकर के माँ कहैत छथिन्ह हँ। शंकर माँ सँ कहैत छथिन्ह जे किचेन में जा कऽ गैस चुल्हा के स्विच आफ करू आ खिड़की केवाड़ खोलि दियौ........ शंकर दुनू प्राणी सोचि रहल छलीह जे ओ कन्या आओर कियो नहिं स्वयं माता रानी आयल छलीह आ कहि कए चलि गेलीह जे नीक कर्म कयनिहार के संग सदैव नीक होइत छैक, तें हमरा सभके सतत् साकांच रहवाक चाही, इमानदार रहवाक चाही.