Saturday, November 11, 2023

भिंडी

भिंडी, जिसे भिंडी या भिंडी के नाम से भी जाना जाता है, एक बहुमुखी और पौष्टिक सब्जी है। भिंडी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं:
1. पोषण मूल्य: भिंडी में कैलोरी कम होती है और यह आहार फाइबर, विटामिन सी और विभिन्न खनिजों का अच्छा स्रोत है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं और इसके संभावित स्वास्थ्य लाभ हो सकते हैं।
2. खाना पकाने के तरीके: भिंडी को विभिन्न तरीकों से पकाया जा सकता है, जिसमें तलना, भूनना या सूप और स्टू में जोड़ना शामिल है। यह अपनी अनूठी श्लेष्मा बनावट के लिए जाना जाता है, जिसे तेज़ आंच पर जल्दी पकाने से कम किया जा सकता है।


3. पाककला में उपयोग: भिंडी कई व्यंजनों में एक आम सामग्री है, खासकर भारतीय, मध्य पूर्वी और अफ्रीकी व्यंजनों में। इसका उपयोग अक्सर करी, गमबो और सूप में गाढ़ा करने वाले एजेंट के रूप में किया जाता है।
4. स्वास्थ्य लाभ: अपनी फाइबर सामग्री के कारण, भिंडी पाचन स्वास्थ्य का समर्थन करने और रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकती है। यह सब्जी विटामिन और खनिजों से भी समृद्ध है जो समग्र स्वास्थ्य में योगदान करती है।
5. बढ़ने की स्थितियाँ: भिंडी के पौधे गर्म जलवायु में पनपते हैं और उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त हैं। उन्हें अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और भरपूर धूप की आवश्यकता होती है।
6. सांस्कृतिक महत्व: भिंडी कई पारंपरिक व्यंजनों में प्रमुख है और विभिन्न पाक परंपराओं में सांस्कृतिक महत्व रखती है। इसकी बहुमुखी प्रतिभा और पोषण सामग्री इसे विविध व्यंजनों में एक लोकप्रिय विकल्प बनाती है।
इसके पोषण संबंधी लाभों को अधिकतम करने के लिए संतुलित आहार के हिस्से के रूप में भिंडी का आनंद लेना याद रखें।
भिंडी एक फल है या सब्जी
भिंडी को वानस्पतिक रूप से एक फल के रूप में वर्गीकृत किया गया है क्योंकि इसमें बीज होते हैं और यह फूल के अंडाशय से विकसित होता है। हालाँकि, पाककला के संदर्भ में, इसके स्वादिष्ट स्वाद प्रोफ़ाइल और स्वादिष्ट व्यंजनों में आम उपयोग के कारण इसे अक्सर सब्जी के रूप में माना जाता है। इसलिए, जबकि यह तकनीकी रूप से एक फल है, इसे आमतौर पर खाना पकाने में सब्जी के रूप में संदर्भित और उपयोग किया जाता है।

Friday, November 10, 2023

लौकी कद्दू का इतिहास

लौकी कद्दू का इतिहास हजारों साल पुराना है। माना जाता है कि लौकी के कद्दू, जिन्हें अक्सर कद्दू भी कहा जाता है, की उत्पत्ति मध्य अमेरिका में हुई थी। यूरोपीय लोगों के आगमन से बहुत पहले इस क्षेत्र में स्वदेशी लोगों द्वारा उनकी खेती की जाती थी।


मूल अमेरिकी जनजातियों के आहार में कद्दू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और उनकी पोषण सामग्री और बहुमुखी प्रतिभा के लिए उन्हें महत्व दिया गया। स्वदेशी लोगों ने कद्दू का उपयोग विभिन्न तरीकों से किया, जिसमें एक प्रकार का कद्दू झटकेदार बनाने के लिए भूनना, उबालना और मांस को सुखाना शामिल था। वे बीजों का उपयोग भोजन और तेल के लिए भी करते थे।
जब यूरोपीय खोजकर्ता और बसने वाले अमेरिका पहुंचे, तो उन्हें कद्दू का सामना करना पड़ा और उन्होंने उन्हें अपने आहार में शामिल कर लिया। अंततः कद्दू यूरोप पहुंचे, जहां उन्हें उगाया गया और खाद्य स्रोत के रूप में अपनाया गया।
कद्दू शरद ऋतु का प्रतीक बन गए हैं, विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका में, जहां वे हेलोवीन और थैंक्सगिविंग जैसी छुट्टियों से जुड़े हुए हैं। कद्दू पाई और सूप जैसे पाक व्यंजनों में कद्दू का उपयोग कई देशों में एक प्रसिद्ध परंपरा है।

आज, कद्दू दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उगाए जाते हैं और खाना पकाने में एक लोकप्रिय और बहुमुखी सामग्री के साथ-साथ मौसमी उत्सवों में एक सजावटी तत्व बने हुए हैं।

Monday, November 6, 2023

इतिहास बौद्ध

 इस धरती का इतिहास पुराना है ,

यहाँ बौद्ध सभ्यता का दबा खज़ाना है ।।
यहीं हडप्पा सिंधु नदी पर बसती थी ,
जहाँ व्यापार करने को दुनिया तरसती थी ।।
इसी धरती पर गौतम बुद्ध ने जन्म लिया ,
धम्म देकर भारत को प्रबुद्ध किया ।।
यहाँ मौर्यों ने जब शासन सत्ता संभाली ,
चारों ओर फैल गयी खुशहाली ।
इस धरती पर जन्में अशोक महान ,
जिन्होंने समझा सबको एक समान ।।
बुद्ध का धम्म देश-विदेश पहुँचाया ,
चीन , जापान , श्रीलंका को बौद्धमय बनाया ।।
यह पुष्यमित्र शुंग को रास ना आया ,
इस धरती को धोखे से बंदी बनाया । ।
जाति , वर्ण बनाकर भेदभाव किया ,
बौद्धमय भारत का नाश किया ।।
इस धरती पर जन्में कबीर, रैदास ।
वेद-शास्त्रों को बताया बकवास ।।
जातिप्रथा मिटाने का बीड़ा उठाया ।
जन्म से ऊंच-नीच का भेद मिटाया ।।
इस धरती पर था एक फूले परिवार ।
दिया सभी को शिक्षा का अधिकार ।।
ज्योतिबा ने रूढिवादी परंपराओं को मिटाया ।
सावित्रीबाई को शिक्षक बन स्वयं पढ़ाया ।।
सावित्रीबाई ने शिक्षित बन बच्चियों का स्कूल खोला ।
यह सब देखकर ब्राहम्णवाद का सिंहासन ड़ोला ।।
विरोधियों ने फूले दम्पति को घर से निकलवाया ।
फातिमा शेख ने जोतिबा-सावित्री का साथ निभाया ।।
यहीं जन्में थे बिरसा , झलकारीबाई ।
अंग्रेजों की जिन्होंने नींद उड़ाई ।।
इस धरती पर हुए एक शाहू महाराज ।
जिन्होंने नकारे रूढ़िवादी रीति-रिवाज ।।
यहाँ जन्म लिया बालक भीमरॉव ने ।
समाज बदलने की ठानी जिन्होंने ।।
भीमरॉव ने समाज बदलने की जब ठानी ।
रमाबाई ने दे दी बच्चों तक की कुर्बानी ।।
डॉ आंबेडकर ने इस धरती को धन्य किया ।
कड़ी मेहनत से लिखकर संविधान दिया ।।
इस धरती पर हुए एक रामासामी पेरियार ।
जिन्होंने काल्पनिक अवतारों को फेंका बाहर ।।
दक्षिण भारत में बुद्ध को जीवित किया ।
मनुवाद को लात मारकर बाहर किया ।।
इस धरती का इतिहास पुराना है ,
यहाँ बौद्ध सभ्यता का दबा खज़ाना है ।।

Saturday, November 4, 2023

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य

समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों का रहस्य, जानिए..??
यह वह समय था जबकि देवता लोग धरती पर रहते थे। धरती पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। काम था धरती का निर्माण करना। धरती को रहने लायक बनाना और धरती पर मानव सहित अन्य आबादी का विस्तार करना। देवताओं के साथ उनके ही भाई बंधु दैत्य भी रहते थे। तब यह धरती एक द्वीप की ही थी अर्थात धरती का एक ही हिस्सा जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा हिस्सा था। इसके बीचोबीच था मेरू पर्वत। धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए पहले कारण निर्मित किया गया। दुर्वासा ऋषि ने अपना अपमान होने के कारण देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी) से हीन हो जाने का शाप दे दिया। भगवान विष्णु ने इंद्र को शाप मुक्ति के लिए असुरों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन। यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं। जब देवताओं तथा असुरों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया। वे समुद्र के बीचोबीच में वे स्थिर रहे और उनके ऊपर रखा गया मदरांचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बानाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना शुरू कर दिया।


1. मंथन करने पर सबसे पहले निकला, हलाहल (विष) : - समुद्र का मंथन करने पर सबसे पहले पहले जल का हलाहल (कालकूट) विष निकला जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की। शंकर ने उस विष को हथेली पर रखकर पी लिया, किंतु उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया तथा उस विष के प्रभाव से शिव का कंठ नीला पड़ गया इसीलिए महादेवजी को 'नीलकंठ' कहा जाने लगा। हथेली से पीते समय कुछ विष धरती पर गिर गया था जिसका अंश आज भी हम सांप, बिच्छू और जहरीले कीड़ों में देखते हैं।
2. दूसरा महत्वपूर्ण रत्न कामधेनु : - विष के बाद मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े जोर की आवाज उत्पन्न हुई। देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी। इस गाय को काले, श्वेत, पीले, हरे तथा लाल रंग की सैकड़ों गौएं घेरे हुई थीं। गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र पशु माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण पशु है। गाय को कामधेनु कहा गया है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। उस काल में गाय को धेनु कहा जाता था।
3. तीसरा महत्वपूर्ण रत्न उच्चैःश्रवा घोड़ा : - घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा माना जाता था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर नहीं बची। यह इंद्र के पास था। उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊंचा हो, जिसके कान ऊंचे हों अथवा जो ऊंचा सुनता हो।
4. चौथा महत्वपूर्ण रत्न ऐरावत हाथी : - हाथी तो सभी अच्छे और सुंदर नजर आते हैं लेकिन सफेद हाथी को देखना अद्भुत है। ऐरावत सफेद हाथियों का राजा था। 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है। यह हाथी देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को इन्द्र को दे दिया गया था। चार दांतों वाला सफेद हाथी मिलना अब मुश्किल है। महाभारत, भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा। हालांकि उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा।
5. पांचवां रत्न कौस्तुभ मणि : - मंथन के दौरान पांचवां रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं। महाभारत में उल्लेख है कि कालिय नाग को श्रीकृष्ण ने गरूड़ के त्रास से मुक्त किया था। उस समय कालिय नाग ने अपने मस्तक से उतारकर श्रीकृष्ण को कौस्तुभ मणि दे दी थी। यह एक चमत्कारिक मणि है। माना जाता है कि इच्छाधारी नागों के पास ही अब यह मणि बची है या फिर समुद्र की किसी अतल गहराइयों में कहीं दबी पड़ी होगी। हो सकता है कि धरती की किसी गुफा में दफन हो यह मणि।
6. छटा रत्न कल्पद्रुम : - यह दुनिया का पहला धर्मग्रंथ माना जा सकता है, जो समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुआ। कुछ लोग इसे संस्कृत भाषा की
उत्पत्ति से जोड़ते हैं और कुछ लोग मानते हैं कि इसे ही कल्पवृक्ष कहते हैं। जबकि कुछ का कहना है कि पारिजात को कल्पवृक्ष कहा जाता है। यह स्पष्ट नहीं है कि कल्पद्रुम आखिर क्या है? ज्योतिषियों के अनुसार कल्पद्रुप एक प्रकार का योग होता है।
7. सातवां रत्न रंभा : - समुद्र मंथन के दौरान एक सुंदर अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया। पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में माना जाता है, जो कि कुबेर की सभा में थी। रंभा कुबेर के पुत्र नलकुबर के साथ पत्नी की तरह रहती थी। ऋषि कश्यप और प्राधा की पुत्री का नाम भी रंभा था। महाभारत में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।
समुद्र मंथन के दौरान इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भेजा था। अप्सरा को गंधर्वलोक का वासी माना जाता है। कुछ लोग इन्हें परी कहते हैं।
8. आठवां रत्न लक्ष्मी :- समुद्र मंथन के दौरान लक्ष्मी की उत्पत्ति भी हुई। लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति। कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं। माना जाता है कि जिस भी घर में स्त्री का सम्मान होता है, वहां समृद्धि कायम रहती है। दूसरी लक्ष्मी : महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम लक्ष्मी था और जिसने भगवान विष्णु से विवाह किया।
9. नौवां रत्न वारुणी (मदिरा) : - वारुणी नाम से एक शराब होती थी। वारुणी नाम से एक पर्व भी होता है और वारुणी नाम से एक खगोलीय योग भी। समुद्र मंथन के दौरान जिस मदिरा की उत्पत्ति हुई उसका नाम वारुणी रखा गया। वरुण का अर्थ जल। जल से उत्पन्न होने के कारण उसे वारुणी कहा गया। वरुण नाम के एक देवता हैं, जो असुरों की तरफ थे। असुरों ने वारुणी को लिया। वरुण की पत्नी को भी वरुणी कहते हैं। कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को भी वारुणी कहते हैं।
11. दसवां रत्न चन्द्रमा : - ब्राह्मणों-क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं, जैसे चंद्रवंशी। पौराणिक संदर्भों के अनुसार चंद्रमा को तपस्वी अत्रि और अनुसूया की संतान बताया गया है जिसका नाम 'सोम' है। दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियां थीं जिनके नाम पर 27 नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही गईं। आज आसमान में हम जो चंद्रमा देखते हैं वह समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस चंद्रमा का चंद्रवंशियों के चंद्रमा से क्या संबंध है, यह शोध का विषय हो सकता है। पुराणों अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति धरती से हुई है।

11. ग्यारहवां रत्न पारिजात वृक्ष : - समुद्र मंथन के दौरान कल्पवृक्ष के अलावा पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति भी हुई थी। 'पारिजात' या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। धन की देवी लक्ष्मी को पारिजात के पुष्प प्रिय हैं। यह माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है। पारिजात वृक्ष में कई औषधीय गुण होते हैं। हिन्दू धर्म में कल्पवृक्ष के बाद पारिजात को महत्व दिया गया है। इसके बाद बरगद, पीपल और नीम का महत्व है।
12. बारहवाँ रत्न शंख : - शंख तो कई पाए जाते हैं लेकिन पांचजञ्य शंख मिलना मुश्किल है। समुद्र मंथन के दौरान इस शंख की उत्पत्ति हुई थी। 14 रत्नों में से एक पांचजञ्य शंख को माना गया है। शंख को विजय, समृद्धि, सुख, शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। सबसे महत्वपूर्ण यह कि शंख नाद का प्रतीक है। शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। 1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने की उत्तम औषधि है।
शंख 3 प्रकार के होते हैं- दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। इनके अलावा लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार के होते हैं।
13. तेरहवां रत्न धन्वंतरि वैद्य : - देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए। विद्वान कहते हैं कि इस दौरान दरअसल कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला।
हालांकि धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल
धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। धन्वंतरि 10 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है। ' धनतेरस' के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है। धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था।
14. अंत में 14वां रत्न 'अमृत', जानिए महत्वपूर्ण रत्न अमृत : - अमृत' का शाब्दिक अर्थ 'अमरता' है। निश्चित ही एक ऐसे पेय पदार्थ या रसायन रहा होगा जिसको पीने से व्यक्ति हजारों वर्ष तक जीने की क्षमता हासिल कर लेता होगा। यही कारण है कि बहुत से ऋषि रामायण काल में भी पाए जाते हैं और महाभारत काल में भी। समुद्र मंथन के अंत में अमृत का कलश निकला था। अमृत के नाम पर ही चरणामृत और पंचामृत का प्रचलन हुआ। देवताओं और दैत्यों के बीच अमृत बंटवारे को लेकर जब झगड़ा हो रहा था तथा देवराज इंद्र के संकेत पर उनका पुत्र जयंत जब अमृत कुंभ लेकर भागने की चेष्टा कर रहा था, तब कुछ दानवों ने उसका पीछा किया। अमृत-कुंभ के लिए स्वर्ग में 12 दिन तक संघर्ष चलता रहा और उस कुंभ से 4 स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं। यह स्थान पृथ्वी पर हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक थे। यहीं पर प्रत्येक 12 वर्ष में कुंभ का आयोजन होता है। बाद में भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण करके अमृत बांटा था।
अमृत' शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में आया है, जहां यह सोम के विभिन्न पर्यायों में से एक है। संभवत: 'सोमरस' को ही 'अमृत' माना गया हो। सोम एक रस है या द्रव्य, यह कोई नहीं जानता। कुछ विद्वान सोम को औषधि मानते है। उनके अनुसार सुश्रुत के चिकित्सास्थान में लिखा है कि इसका सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है, वृद्ध पुनः युवा हो जाता है।

किंतु वेद में एक और सोम की भी चर्चा है जिसके संबंध में लिखा है कि ब्राह्मणों को जिस सोम का ज्ञान है उसे कोई नहीं पीता। ब्राह्मण के सोम की महिमा इन शब्दों में है। देखो हमने सोमपान किया और हम अमृत हो गए या जी उठे।