Thursday, September 7, 2023

गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा

गाँव में तो डिप्रेशन को भी डिप्रेशन हो जायेगा।
उम्र 25 से कम है और सुबह दौड़ने निकल जाओ तो गाँव वाले कहना शुरू कर देंगे कि “लग रहा सिपाही की तैयारी कर रहा है " फ़र्क़ नही पड़ता आपके पास गूगल में जॉब है।
30 से ऊपर है और थोड़ा तेजी से टहलना शुरू कर दिये तो गाँव में हल्ला हो जायेगा कि “लग रहा इनको शुगर हो गया "
कम उम्र में ठीक ठाक पैसा कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव ये मान लेगा कि आप कुछ दो नंबर का काम कर रहे है।
जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर कुछ इंटरकास्ट चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये "


शादी में देर हुईं तो “दहेज़ का चक्कर बाबू भैया, दहेज़ का चक्कर, औकात से ज्यादा मांग रहे है लोग "
बिना दहेज़ का कर लिये तो “लड़का पहले से सेट था, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग"
खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “बाप का पैसा है "
खेत गये तो “नवाबी रंग उतरने लगा है "
बाहर से मोटे होकर आये तो गाँव का कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “लग रहा बियर पीना सीख गया "
दुबले होकर आये तो “लग रहा सुट्टा चल रहा "
कुलमिलाकर गाँव के माहौल में बहुत मनोरंजन है इसलिये वहाँ से निकले लड़के की चमड़ी इतनी मोटी हो जाती है कि आप उसके रूम के बाहर खडे होकर गरियाइये वो या तो कान में इयरफोन ठूंस कर सो जायेगा या फिर उठकर आपको लतिया देगा लेकिन डिप्रेशन में न जायेगा।
और ज़ब गाँव से निकला लड़का बहुत उदास दिखे तो समझना कोई बड़ी त्रासदी है।

कुंदरू

 कुंदरू: मुँह के छालों का अंत तुरंत।

कुंदरू गाँव देहात की एक प्रमुख सब्जी है, और यह एक महत्वपूर्ण दवा भी है।
इस ललचाने वाले आज के घुमक्कड़ी भोज को आज यहाँ चर्चा के लिए छेड़ रहा हूँ, क्योंकि जब विचार न आयें तो फिर हमारे देश के भोजन इस राह को आसान बनाते हैं। मेरी दादी कहती थी कि दिमाग की नस पेट से होकर गुजरती है। पेट खाली है तो अक्ल भी घास चरने चली जाती है। 😂 चलिये आज का मीनू बताता हूँ। इसमें है मिक्स वेज (कुंदरू, आलू, गोभी, बैगन, गाजर, टमाटर), दाल, कढ़ी, चावल, सलाद और रोटी साथ मे मंगोड़े और पापड़ भी। वैसे तो पढ़े लिखे समझदार लोग दर- दर भटकने को अच्छा नही मानते हैं, लेकिन वो मजबूरी वाले भटकने के लिए सत्य है। मुझ जैसे मनमोजियो के लिये भटकना किसी तीर्थ यात्रा से कम नही है। लगातार नये नये लोगो से मित्रता तो होती ही है, साथ ही साथ हमारे भारत की गौरवशाली भोजन परंपरा से मन को तृप्त कर देने वाले व्यंजनो को ग्रहण करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो जाता है। अनुभवों को किसी और दिन उपयुक्त मंच पर साझा करूँगा, फिलहाल यहाँ ज्वार के बनाये हुए इन खट्टे और चटपटे पापड़ की चर्चा छेड़ रहा हूँ, जो फ़ोटो में भी कट से गये है। 🤔 संभवतः कोई महाराष्ट्रीयन मित्र इस चर्चा को आगे बढ़ाये। सामान्यतः इन्हें इस क्षेत्र में मूंगफली दाने के साथ स्वल्पाहार के रूप में परोसा जाता है, और भोजन के साथ भी।


कुंदरू की सब्जी बनाना बहुत ही आसान है। सर्वप्रथम कुंदरू को गोल या लंबे जैसा चाहें पतले -पतले पीसेस में काट लें। कढ़ाई पर मीठा नीम, जीरा, राई आदि मसालों के साथ बघार लगाएं। कटी हुई प्याज, लहसन डाल दें। प्याज को सुनहरी होने तक भूने, इसके बाद इसमें काटे हुये कुंदरू के टुकड़े डाल दें। अच्छी तरह पकने दें और अंत मे हल्दी, धनिया पाउडर, लाल मिर्च पाउडर डाल दें और पुनः पकने दें। कुंदरू की सब्जी तैयार है। आप चाहें तो इसके साथ बैगन, आलू, सेम आदि प्रयोग कर मिक्स वेज भी बना सकते हैं।
आइए जानते हैं कुंदरू के विषय मे गाँव के झरोखे से...। इसका पौधा पुराने समय में लगभग सभी भारतीय किसानो के घर पर आशानी से मिल जाता था, यह बहुवर्षीय बेल है, जिसकी शाखाएं प्रतिवर्ष सूख जाती हैं, और जड़ो का कांड जीवित रहता है जिससे प्रतिवर्ष नयी बेल आ जाती है, इससे लगभग छः माह तक फल प्राप्त किये जा सकते है।
हमारे भी पुराने घर में दादी के आँगन में साल भर कुंदरू की बेल का मंढ़ा डला रहता था। साल भर तजि सब्जी मिलती थी, सेहद तो बोनस में था जनाब! दादी के जाने के बाद अब यह केवल खेत में और बाड़ी में बची है, लेकिन उतनी तनदुरुस्त बेल नहीं है जितनी दादी के ज़माने में हुआ करती थी।
नए जमाने के बहुत से वैज्ञानिको ने अपनी शोध में दावा किया है कि, इसके फलो और पत्तियों में चमत्कारिक औषधीय गुण पाये जाते हैं। खासकर मधुमेह (डाइबिटीज) के रोग में तो यह रामबाण औषधि है। इसके अलावा यह वात रोग, पीलिया, पेट संबंधी रोग और कफ रोग में भी बहुत कारगर सिद्ध हुयी है। मुँह के छालों के लिए भी कुंदरू एक महत्वपूर्ण दवा है। छाले हो जाने पर 2- 4 कच्ची कुंदरू चबाकर खा लें, मजा भी आयेगा और बाद के लिए मुँह भी मजे करेगा। छाले की जलन या दर्द गायब हो जाएगी।
एक बात जो दादी कहती थी वो मुझे कभी हजम नहीं हुयी। इसके कच्चे फल भी बहुत स्वादिस्ट होते है, इस कारण हम लोग पूरी बेल लोचकर उससे फल तोड़कर खा जाया करते थे, तब दादी जोर से चिल्लाती थी..., ज्यादा मत खाओ रे, बहरे हो जाओगे.....🤔। आपके विचारों के लिए इस विषय को अधूरा छोड़ रहा हूँ। सोच समझकर बताइयेगा।
इसकी कोमल पत्तियों को साग की तरह, पुरानी पत्तियों का काढ़ा बनाकर या पाउडर बनाकर उपयोग किया जा सकता है। फल तो सलाद में कच्चे और सब्जी बनाकर प्रयोग किये ही जाते हैं।
अब हमारे बहुत से मित्रों के मन मे यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या वाकई में कुंदरू खाने से बहरे हो जाते हैं या फिर जैसा कि इसके नाम मे छिपा हुआ है, कि इसे खाने से मंद बुद्धि हो जाते हैं। (कुंद= धीमा, कम सक्रिय + अरु= तेज, सूर्य समान, सक्रियता,दिमाग) या फिर (कुंद= धीमा, कम सक्रिय+ रूह= दिखाई देने वाले शरीर का न दिखाई देने वाला भाग / आत्मा/ मन/ दिमाग)।
क्या सही है और क्या गलत, आइये इसे विज्ञान और संस्कृति की कसौटी लर परखते हैं। पहले बात करते हैं कि क्या नाम से भी किसी के गुण को स्पष्ट किया जा सकता है? या नामों में गुणों का रहस्य होता है, तो मेरा जबाब है - हाँ। समाज और संस्कृति से लेकर विज्ञान सभी मे गुणों के आधार पर नाम रखने की परंपरा प्रारम्भ से लेकर आज तक है। आधुनिक वर्गिकी नामकरण में भी ऐसा ही होता है। अब चलिये एक बार मान लेते हैं कि शायद ऐसा न हो तो। तब उस समय ऐसा कहना उचित होगा कि इसकी लता से फलों को टूटने, बच्चो द्वारा खेल खेल में खा लेने या तथागत चोरी से बचने के लिये ये बातें प्रचलन में आई हो। लेकिन बिना विज्ञान का पक्ष जाने अभी कोई भी निष्कर्ष अधूरा ही रहेगा।
आधुनिक शोधों के अनुसार विज्ञान कहता है कि कुंदरू के पौधे में Aspartic acid, Glutamic Acid, Asparagine, Tyrosine, Histidine, Phenylalanine And Threonine Valine Arginine आदि लाये जाते हैं, इसी तरह इसकी जड़ों में starch, fatty acids, triterpenoid, resin, β-amyrin, carbonic acid, saponin coccinoside, alkaloids, flavonoid glycoside, taraxerol lupeol and β-sitosterol आदि रसायन पाये जाते हैं। इन्ही रसायनों के कारण इसकी medicinal property होती है। हम यहाँ 2 मुख्य भ्रान्ति विषयों पर इसकी चर्चा कर रहे हैं-
1) क्या इसे खाने से दिमाग कमजोर हो जाता है...?
इसमें पाये जाने वाले threonine का प्रयोग तनाव और चिंता कम करने वाली औषधि की तरह किया जाता है। तनाव कम करने वाली औषधियों का स्वभाव है कि वे दिमाग की सक्रियता को एक निर्धारित समय तक कम करके सुकून प्रदानं करती हैं। इसी तरह इसमें पाया जाने वाला Taraxarol का memory impairment एजेंट है जो दिमाग को शिथिल कर देता है।
2) क्या इसे खाने से बहरे हो जाते हैं...?
दिमाग के साथ नाक, कान और गले का सीधा संबंध होता है। यह दिमाग को मंद कर देने जैसे रसायनों से युक्त फल है अतः लगातार सेवन से यह परिवर्तन आ सकता है, किन्तु प्रयोगों के आधार पर इस बात के आज तक कोई प्रमाण नही हैं।
हाँ जाते जाते बता दूँ की छाले में आराम taraxacol के antimicrobial और anti inflamatory गुण के कारण लगता है। इसके साथ साथ valine एनर्जी लेवल बढ़कर, दर्द सहन करने की क्षमता बढ़ाता है और छतिग्रस्त कोशिकाओं तथा मांसपेशियों को जल्द से जल्द रिपेयर करने में मदद करता है। तो कुंदरू की यह गणित कैसी लगी, झटपट बताइये...☺️
सामान्य नाम- #कुंदरू
अन्य नाम- #गोलिओ, तितोड़ी
Scientific name- #Coccinia_indica / grandis
Eng. Name- Ivy guard scarlet gourd, tindora and kowai fruit.
चौरई, जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

डॉ विकास शर्मा

Tuesday, August 29, 2023

ख़ुश है चाँद

“ख़ुश है चाँद!”
कल रात तारों ने जब नभ में बारात सजाई।
तो चाँद के चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी नज़र आई!
झिलमिलाते तारों ने पूछा, “इस ख़ुशी के पीछे क्या राज है छुपाया?”
तो चाँद मुस्कुराकर बोला, “अरे कुछ नहीं, बस धरती से मेरा भांजा विक्रम है आया!
वर्षों बाद मेरी बहन भारती ने मेरी राखी भिजवाई है।
जो मैंने भांजे के हाथ से बड़े प्यार से बँधवाई है!
अब १४ दिन भांजा विक्रम मेरे घर पर ही रहेगा।
कुछ दिन तो कोई मेरा अकेलापन दूर करेगा!


मैं उसे पूरा घर घुमाकर अपने बारे में सब बातें बताऊँगा।
और फिर जानकारी भरे तोहफ़े बहन भारती को भिजवाऊँगा!”
तारों ने हैरानी से पूछा “अरे! इससे पहले भी कई मेहमान आए।
पर तुमने तो बाहर से ही सबके सब लौटाए!
कोई तुम्हारे दक्षिण ध्रुव पर कदम भी न रख पाया।
फिर इस विक्रम को क्यूँ तुमने बड़े प्यार से है गले लगाया?”
चाँद फिर मुस्कुराया और बोला, “यूँ तो मुझे सारी धरती ही प्यारी है।
पर धरती के भारत देश की तो कुछ बात ही न्यारी है!
जानते हो वहाँ के लोग उसे माँ भारती कहके बुलाते हैं।
और उसकी आन-बान-शान के लिए हँसकर जान लुटाते हैं!
वर्षों से भारती के वैज्ञानिक बेटे जिद पर डटे थे।
और मुझसे मिलने की धुन में जी-जान से जुटे थे!
भारती कहती है मुझे भाई और उसके बच्चे मामा समझते हैं।
जाने कितनी कहानियों कविताओं में मेरे ही क़िस्से मिलते हैं!
यही नहीं प्रेमी युगल तो मुझे बड़े प्यार से पुकारते हैं।
और विरह में तो मुझमें ही महबूब की सूरत निहारते हैं!
वहाँ की महिलाएँ हर तीज चौथ पर मेरी एक झलक को तरसती हैं।
पहले मुझे पानी पिलाती हैं, उसके बाद ही भोजन करती हैं!
इसलिए मैंने भी भारती को अपनी बहन बना लिया है।
और भांजे विक्रम का स्वागत कर स्नेह का रिश्ता निभा लिया है!
वैसे भी मेहनत और लगन का फल तो सफलता ही होता है।

और जहाँ आस्था और विश्वास भी हो, वहाँ तो ईश्वर भी साथ देता है! 

Friday, August 4, 2023

अकवन (मदार) के गुण

 अकवन को हिंदी में मदार कहते हैं और इसे एक जहरीले पौधे के रूप में जाना जाता है। मदार का पौधा किसी जगह पर उगाया नहीं जाता है। यह पौधा अपने आप ही कहीं पर भी उग जाता है हालांकि यह पौधा अपने आप में औषधीय गुणों से लबरेज है। मदार का वैज्ञानिक नाम कैलोत्रोपिस गिगंटी है। यह आमतौर पर पूरे भारत में पाया जाता है। भारत में इसकी दो प्रजातियां पाई जाती हैं-श्वेतार्क और रक्तार्क। श्वेतार्क के फूल सफेद होते हैं जबकि रक्तार्क के फूल गुलाबी आभा लिए होते हैं। इसे अंग्रेजी में क्राउन फ्लावर के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इसके फूल में मुकुट/ताज के समान आकृति होती है। इसके पौधे लंबी झाड़ियों की श्रेणी में आते हैं और 4 मीटर तक लम्बे होते हैं। इसके पत्ते मांसल और मखमली होते हैं। मदार का फल देखने में आम के जैसे लगता है, लेकिन इसके अंदर रुई होती है, जिसका इस्तेमाल तकिये या गद्दे भरने में किया जाता है। इसमें फूल दिसंबर-जनवरी महीने में आते हैं और अप्रैल-मई तक लगते रहते हैं।



मदार मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है, लेकिन दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका में भी यह बहुतायत में पाया जाता है। थाईलैंड में मदार के फूलों का उपयोग विभिन्न अवसरों पर सजावट के लिए किया जाता है। इसे राजसी गौरव का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि उनकी इष्ट देवी हवाई की रानी लिलीउओकलानी को मदार का पुष्पहार पहनना पसंद है। कंबोडिया में अंतिम संस्कार के आयोजन के दौरान घर की आंतरिक सजावट के साथ ही कलश या ताबूत पर चढ़ाने और अंत्येष्टि में इसका उपयोग किया जाता है।
हिंदुओं के धर्म ग्रंथ शिव पुराण के अनुसार मदार के फूल भगवान शिव को बहुत पसंद है इसलिए शांति, समृद्धि और समाज में स्थिरता के लिए भगवान शिव को इसकी माला चढ़ाई जाती है। मदार का फूल नौ ज्योतिषीय पेड़ों में से भी एक है। स्कन्द पुराण के अनुसार भगवान गणेश की पूजा में मदार के पत्ते का इस्तेमाल करना चाहिए। स्मृतिसार ग्रंथ के अनुसार मदार की टहनियों का इस्तेमाल दातुन के रूप में करने से दांतों की कई बीमारियां दूर हो जाती हैं। भारतीय महाकाव्य महाभारत के आदि पर्व के पुष्य अध्याय में भी मदार की चर्चा मिलती है। इसके अनुसार ऋषि अयोद-दौम्य के शिष्य उपमन्यु की आंखों की रोशनी मदार के पत्ते खा लेने के कारण चली गई थी। मदार की छाल का इस्तेमाल प्राचीन काल में धनुष की प्रत्यंचा बनाने में किया जाता था। लचीला होने के कारण इसका उपयोग रस्सी, चटाई, मछली पकड़ने की जाल आदि बनाने के लिए भी किया जाता है।
औषधीय गुण
वैसे तो मदार को एक जहरीला पौधा माना जाता है, और कुछ हद तक यह सही भी है, लेकिन यह कई रोगों के उपचार में भी कारगर है। मदार देश का एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है। इसके पौधे के विभिन्न हिस्से कई तरह के रोगों के उपचार में कारगर साबित हुए हैं। इनमें दर्द सहित मधुमेह के रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। मदार के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं। वर्ष 2005 में टोक्सिकॉन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार मदार का दूध बहते हुए खून को नियंत्रित करने में उपयोगी है। मदार का कच्चा दूध कई प्रकार के प्रोटीन से लबरेज हैं, जो प्रकृति में बुनियादी रूप में मौजूद होते हैं।
वर्ष 2012 में एडवांसेस इन नैचरल एंड अप्लाइड साइंसेज नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध दर्शाता है कि मदार के पत्ते जोड़ों के दर्द और मधुमेह के उपचार में कारगर हैं। वहीं वर्ष 1998 में कनेडियन सोसायटी फॉर फार्मास्युटिकल साइंसेज में प्रकाशित शोध ने इस बात की पुष्टि की है कि मदार का रस दस्त रोकने में भी उपयोगी है।
इन सब के अलावा मदार के पौधे के विभिन्न हिस्सों को सौ से भी अधिक बीमारियों के उपचार में कारगर माना गया है। बिच्छू के डंक मार देने की स्थिति में भी मदार का दूध डंक वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है। हालांकि मदार का दूध आंखों के संपर्क में आ जाए तो यह मनुष्य को अंधा भी बना सकता है। इसलिए मदार का औषधीय तौर पर इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।