Wednesday, May 31, 2023

'फूटी कौड़ी'

 'फूटी कौड़ी' मुगल दौर ए हुकूमत की एक 'करन्सी' थी जिसकी क़ीमत सबसे कम थी

3 फूटी कौड़ियों से 1 'कौड़ी' बनती थी और 10 कौड़ियों से 1 'दमड़ी'।कहा जाता है कि दुनिया का सबसे पुराना सिक्का शायद यही 'फूटी कौड़ी' है।
यह 'फूटी कौड़ी' फटा हुआ घोंटा है जिसे 'कौड़ी' नाम से जाना गया। इसका प्रयोग सिन्ध घाटी में करेन्सी के रूप में किया गया। कुदरती तौर पर घोंघों की पैदावार सीमित मात्रा में थी। इसके सीमित मात्रा में उपलब्ध होने का यह अर्थ लगाया गया कि यह मूल्यवान है। इसे बाद में रूपया कहा जाने लगा।


1 रूपया 128 धुले, 192 पाई, या 256 दमड़ियों के बराबर था।
इनके साथ 10 भिन्न-भिन्न सिक्के थे जिन्में : -  कौड़ी, > दमड़ी > दमफ > पाई > धेला > पैसा > टिक्का > आना > दुअन्नी > चवन्नी > अठन्नी और फिर कहीं जाकर रुपया बनता था।
करेन्सी की क़ीमत निम्नलिखित थी : -
3 फूटी कौड़ी = 1 कौड़ी
10 कौड़ी = 1 दमड़ी
2 दमड़ी = 1.50 पाई
1.50 पाई = 1 धेला
2 धेला = 1 पैसा
3 पैसा = 1 टकः
2 टके = 1 आना
4 आने = 1 चवन्नी
8 आने = 1 अठन्नी
16 आने = 1 रुपया
क्योंकि सबसे बड़ा और संपूर्ण हैसियत रुपया की थी जिसमें 16 आने होते थे इसलिए बात का सोलह आने सच होने का मतलब शत प्रतिशत सच होने के समान होता है।llll

आर्यभट ने शून्य की खोज की तो रामायण में रावण के दस सिर की गणना कैसे की गयी...?

कुछ लोग हिंदू धर्म व "रामायण" "महाभारत" "गीता" को काल्पनिक दिखाने के लिए यह प्रश्न करते है कि जब आर्यभट ने लगभग 6 वीं शताब्दी मे (शून्य/जीरो) की खोज की तो आर्यभट की खोज से लगभग 5000 हजार वर्ष पहले रामायण मे रावण के 10 सिर की गिनती कैसे की गई। और महाभारत मे कौरवो की 100 की संख्या की गिनीती कैसे की गई। जबकि उस समय लोग (जीरो) को जानते ही नही थे, तो लोगो ने गिनती को कैसे गिना!



"अब मै इस प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ"
कृपया इसे पूरा ध्यान से पढे। आर्यभट से पहले संसार 0(शुन्य) को नही जानता था। आर्यभट ने ही (शुन्य / जीरो) की खोज की, यह एक सत्य है। लेकिन आर्यभट ने "0(जीरो) की खोज 'अंको मे' की थी, 'शब्दों' में खोज नहीं की थी, उससे पहले 0 (अंक को) शब्दो मे शुन्य कहा जाता था। उस समय मे भी हिन्दू धर्म ग्रंथो मे जैसे शिव पुराण, स्कन्द पुराण आदि मे आकाश को "शुन्य" कहा गया है। यहाँ पे "शुन्य" का मतलब अनंत से होता है। लेकिन रामायण व महाभारत काल मे गिनती अंको मे न होकर शब्दो मे होता था,और वह भी "संस्कृत" मे।
उस समय "1,2,3,4,5,6,7,8, 9,10" अंक के स्थान पे 'शब्दो' का प्रयोग होता था वह भी 'संस्कृत' के शव्दो का प्रयोग होता था। जैसे:1 = प्रथम 2 = द्वितीय 3 = तृतीय" 4 = चतुर्थ 5 = पंचम"" 6 = षष्टं" 7 = सप्तम"" 8 = अष्टम, 9 = नवंम"" 10 = दशम। "दशम = दस" यानी दशम मे "दस" तो आ गया, लेकिन अंक का 0 (जीरो/शुन्य) नही आया,‍‍ रावण को दशानन कहा जाता है। 'दशानन मतलब दश+आनन =दश सिर वाला' अब देखो रावण के दस सिर की गिनती तो हो गई। लेकिन अंको का 0 (जीरो) नही आया।
इसी प्रकार महाभारत काल मे "संस्कृत" शब्द मे "कौरवो" की सौ की संख्या को "शत-शतम" बताया गया। 'शत्' एक संस्कृत का "शब्द है, जिसका हिन्दी मे अर्थ सौ (100) होता है। सौ(100) को संस्कृत मे शत् कहते है। शत = सौ इस प्रकार महाभारत काल मे कौरवो की संख्या गिनने मे सौ हो गई। लेकिन इस गिनती मे भी "अंक का 00(डबल जीरो)" नही आया,और गिनती भी पूरी हो गई। महाभारत धर्मग्रंथ में कौरव की संख्या शत बताया गया है।
रोमन में भी 1-2-3-4-5-6-7-8-9-10 की जगह पे (¡), (¡¡), (¡¡¡) पाँच को V कहा जाता है। दस को x कहा जाता है। X= दस इस रोमन x मे अंक का (जीरो/0) नही आया। और हम" दश पढ़ "भी लिए और" गिनती पूरी हो गई! इस प्रकार रोमन word मे "कही 0 (जीरो) "नही आता है। और आप भी" रोमन मे" एक से लेकर "सौ की गिनती "पढ लिख सकते है। आपको 0 या 00 लिखने की जरूरत भी नही पड़ती है। पहले के जमाने मे गिनती को शब्दो मे लिखा जाता था। उस समय अंको का ज्ञान नही था। जैसे गीता, रामायण मे 1"2"3"4"5"6 या बाकी पाठो को इस प्रकार पढा जाता है। जैसे (प्रथम अध्याय, द्वितीय अध्याय, पंचम अध्याय,दशम अध्याय... आदि!) इनके दशम अध्याय ' मतलब दशवा पाठ (10 lesson) होता है। दशम अध्याय= दसवा पाठ इसमे 'दश' शब्द तो आ गया। लेकिन इस दश मे 'अंको का 0' (जीरो)" का प्रयोग नही हुआ। बिना 0 आए पाठो (lesson) की गिनती दश हो गई।
हिंदु विरोधी और नास्तिक लोग सिर्फ अपने गलत कुतर्क द्वारा हिंदू धर्म व हिन्दू धर्मग्रंथो को काल्पनिक साबित करना चाहते है। जिससे हिंदुओं के मन मे हिंदू धर्म के प्रति नफरत भरकर और हिन्दू धर्म को काल्पनिक साबित करके, हिंदू समाज को अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जाए। लेकिन आज का हिंदू समाज अपने धार्मिक शिक्षा को ग्रहण ना करने के कारण इन लोगो के झुठ को सही मान बैठता है। यह हमारे धर्म व संस्कृत के लिए हानि कारक है। अपनी सभ्यता पहचानें, गर्व करें की "हम सनातनी हैं", "हम हिंदू है।

Friday, May 5, 2023

धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य

 आयुर्वेद ग्रंथों में हमारे ऋषि मुनियों ने पहले ही बता दिया गया था कि

धोवन पानी पीने का वैज्ञानिक तथ्य और आज की आवश्यकता
वायुमण्डल में प्राणवायु ऑक्सीजन की अधिकतम मात्रा 21% है, लेकिन यह मात्रा भारत के किसी गाँव में 18 या 19% से ज्यादा नही है और शहरों में तो 11 या 12°/. तक ही है।
भारतीय गाय के ताज़ा गोबर में #प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा 23% है। जब इस गोबर को सुखा कर कण्डा बनाया जाता है तो इसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 27% हो जाती है।जब इस कण्डे को जलाकर जो राख बनतीं हैं तो इसमें
ऑक्सीजन की मात्रा बढ़कर 30% हो जाती है।
इसी को भस्म बना देने पर प्राणवायु 46.6% हो जाती है।
जब भस्म को दोबारा जलाकर विशुद्ध भस्म बनाते हैं तो इसमें 60% तक प्राणवायु आ जाता है।
जब कि मॉडर्न विज्ञान कहता है कि किसी भी वस्तु को प्रोसेस करने से उसमें हानि होती है।
10 लीटर जल में अगर 25 ग्राम भस्म मिला दे तो जल शुद्ध होने के साथ उसमें सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है।
🏘️अपने घरमें गोबर कंडेका धुंआ कीजिये और राख को पीनेके पानीमें
अग्निहोत्र भस्म
अग्निहोत्र गौ भस्म_को ध्यान से पढ़ेगें तो पायेंगे कि यह गौ-भस्म ( राख ) आपके लिए कितनी उपयोगी है।
साधू -संत लोग संभवतः इन्ही गुणों के कारण इसे प्रसाद रूप में भी देते थे।
जब गोबर से बनायीं गयी भस्म इतनी उपयोगी है तो गाय कितनी उपयोगी होगी यह आप सोच सकते है।
आपको एक लीटर पानी में 10-15 ग्राम यानि 3-4 चम्मच भस्म मिलाना है , उसके बाद भस्म जब पानी के तले में बैठ जाये फिर इसे पी लेना है।
इससे सारे पानी की अशुद्धि दूर हो जाएगी और आपको मिलेगा इतने पोषक तत्व।
यह लैबोटरी द्वारा प्रमाणित है।
१. ऑक्सीजन O = 46.6 %
२. सिलिकॉन SI = 30.12 %
३. कैल्शियम Ca = 7.71 %
४. मैग्नीशियम Mg = 2.63 %
५. पोटैशियम K = 2.61 %
६. क्लोरीन CL = 2.43 %
७. एल्युमीनियम Al = 2.11 %
८. फ़ास्फ़रोस P = 1.71 %
९. लोहा Fe = 1.46 %
१०. सल्फर S =1.46 %
११. सोडियम Na = 1 %
१२. टाइटेनियम Ti = 0.19 %
१३. मैग्नीज Mn =0.13 %
१४. बेरियम Ba = 0.06 %
१५. जस्ता Zn = 0.03 %
१६. स्ट्रोंटियम Sr = 0.02 %
१७. लेड Pb = 0.02 %
१८. तांबा Cu = 80 PPM
१९. वेनेडियम V=72 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. ज़िरकोनियम Zr 38 PPM
१. सिलिकाँन डाइऑक्साइड -
SIO2 = 64.44%
२. कैल्शियम ऑक्साइड
CaO =10.79 %
३. मैग्नीशियम ऑक्साइड
MgO = 4-37 %
४. एल्युमीनियम ऑक्साइड
AI2O3 = 3.99%
५. फास्फोरस पेंटाक्साइड
P2O5 = 3.93%
६. पोटेशियम ऑक्साइड
K2O = 3.14 %
७. सल्फर ऑक्साइड
SO3 = 2.79%
८. क्लोरीन CL=2.43 %
९. आयरन ऑक्साइड
Fe2O3=2.09%
१०. सोडियम ऑक्साइड
Na2O = 1.35 %
११. टाइटेनियम ऑक्साइड
TiO2 = 0.32%
१२. मैंगनीज ऑक्साइड
MnO = 0.17 %
१३. बेरियम ऑक्साइड
BaO = 0.07 %
१४. जिंक ऑक्साइड
ZnO = 0.03%
१५. स्ट्रोंटियम ऑक्साइड
SrO = 0.03%
१६. लेड ऑक्साइड
PbO = 0.02%
१७. वेनेडियम ऑक्साइड
V2O5 = 0.01 %
१८. कॉपर ऑक्साइड
CuO = 0.01%
१९. जिरकोनियम ऑक्साइड
ZrO2 =52 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. रुबिडियम ऑक्साइड
Rb2O = 32 PPM
शरीर में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाने के लिए यह गोबर की भस्म बहुत उपयोगी है।
स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे
आयुर्वेद अपनाये, सुरक्षित रहे।
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Wednesday, April 26, 2023

खामोशी

लगभग 12ध्13 वर्षों के बाद गांव लौटा था। कुछ खास बदलाव नहीं था। हां,कुछ पक्के मकान अवश्य बन गए थे। बाजार जो पहले छोटा हुआ करता था,अब थोड़ा बड़ा हो गया है।

हमारी पुरानी हवेली नुमा घर की शक्ल थोड़ी बदली बदली सी लग रही थी।

परिवार के लोगों के चेहरों में कुछ कुछ परिवर्तन दिख रहा था। उम्र के अनुसार तो यह स्वाभाविक भी था।

ताऊ,चाची, चचेरे भाई बहन सभी की उम्र बढ़ गई थी। कुछ की शादी और कुछ के बच्चे भी थे। इतने वर्षो बाद अचानक मेरे आने से पुराने लोग जो मुझे बचपन से जानते थे,उनके चेहरों पर मिली जुली प्रतिक्रिया थी।

छोटे लोग जो मुझे पहली बार देख रहे थे,उनकी आंखों में एक अजीब सा अजनबीपन दिख रहा था। उनकी नजरों में मैं अपने लिए कुछ अच्छा महसूस नही कर पा रहा था।

ताऊ  जी ने मेरे ठहरने के लिए उपर वाले कमरे को ठीक करने के लिए कह कर कहीं चले गए। उनका अचानक मेरे वर्षों बाद आने के बाद भी बिना ज्यादा कुछ बात चित किए,कहीं चले जाना,मुझे समझ में नहीं आया।

मुझे ऊपर वाले कमरे का रास्ता मालूम था,इस लिए बिना किसी की प्रतीक्षा किए अपना बैग उठा कर सीढियों पर चढ़ गया।

खाने के वक्त एक छोटी सी बच्ची ने दरवाजे से आवाज लगा कर पूछा कि मैं खाना ऊपर ही खाऊंगा या नीचे सब के साथ...?

परिवार के लोगों के साथ मेरा पहला अनुभव अच्छा नहीं था कि सब के साथ खाना खाऊं,मगर अकेले ऊपर में खाना भी अच्छा नही था।

जब मैं नीचे आया तब शयन के पुरानी सी डाइनिंग टेबल पर सभी ने पहले ही खाना शुरू कर दिया था।

मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। चाची ने मेरे प्लेट को मेरी ओर सरका कर इशारा कर दिया दिया कि मैं खुद हीं परोस लूं।

मेरा खाना खत्म भी नही हुआ था कि बाकी लोग प्लेट साफ कर एक एक कर चले गए। मेरी आदत धीरे धीरे खाने की थी।

मैने गौर किया,यहां कोई भी मुझ से बात करने से कतरा रहा था। बस आठ दस साल की एक लड़की थी,जिसको मेरी जिम्मेदारी दी गई थी। वही थोड़ी थोड़ी देर पर आ कर मेरी जरूरतों के बारे में पूछ जाती थी। बाकी घर के लगभग आधा दर्जन से भी ज्यादा लोग मुझे कोई अहमियत नहीं दे रहे थे। ताऊ जी कभी कभी टुकड़ों में कुछ पूछ लेते,मैं भी उसी अंदाज में जवाब दे देता।

शाम के वक्त मुझे अपने पुराने शहर को देखने की इक्षा हुई। मैं कपड़े बदल रहा था उसी समय वह बच्ची चाय का प्याला लिए कमरे के बाहर से आवाज लगाई। मैने उसे अंदर आ जाने के लिए कहा। मगर वह बाहर ही खड़ी रही। मैं शीशे में अपने बाल संवारते हुए फिर से अंदर आने को कहा तब वह सकुचाई सी अंदर आ गई।

 मैने उसे गौर से देखा, उसका चेहरा कुछ जाना जाना सा लगा । मैने उसके हाथ से चाय का कप ले कर पलंग पर बैठते ही पूछा ष् तुम कौन हो,क्या नाम है तुम्हारा...?

उसने मेरी ओर गौर से देखते हुए कहा ष् मेरा नाम तनु है ष्

ष् तुम किसकी बेटी हो..ष् मैने पूछा पर

वह बिना कुछ बोले लगभग भागती हुई कमरे से बाहर चली गई।

मैं आश्चर्य से दरवाजे के हिलते पर्दे को देखता रहा,जो उसके जोर से झटकने के कारण हिल रहा था।

यह शहर मेरे लिए अजनबी नहीं था। यही मेरी जन्मस्थली है। यहां मैने बचपन और आरंभिक जवानी के दिन  बिताए थे। बाबूजी, मां,भाई,बहन के साथ यहां अनेक वर्ष बिताए थे।

फिर बाबूजी का ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया,तब हम लोग वहां शिफ्ट हो गए।

इस शहर में मेरे बचपन के कई दोस्त थे। कई दोस्तों की शक्ल याद थी कुछ का भूल गया था मगर नाम याद था।

इन्ही दोस्तों में एक खास था विनोद।

उसके घर का रास्ता मुझे याद था।

मेरे पांव उसकी ओर बढ़ गए।

विनोद के दरवाजे पर एक बुजुर्ग की पीठ मुझे दिखी। मेरी आवाज पर वह मुड़ा तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था। विनोद एकदम बूढ़ा हो गया था। ऊसके सफेद बाल,बेतरतीब उजली दाढ़ी,गाल धसे हुए,शरीर बीमारों जैसी। मैं उसे पहचानने की कोशिश कर रहा था, जबकि उसने पहली नजर में ही मुझे पहचान लिया था। 

बात बात में उसने मेरी सेहत की तारीफ की तथा पूछा कि मैं किस तरह अपनी सेहत को मेंटेन करता हूं..?

इसका जवाब मेरे पास सिवाय हंस देने के और कुछ नही था।

हम घंटो बतियाते रहे। बचपन और जवानी को याद करते रहे। उन्ही यादों में उसने एक ऐसी बात याद दिला दी जिसने मुझे बुरी तरह बेचैन कर दिया।

देर रात जब मैं ताऊ जी के घर वापस लौटा तब मेरी नजर घर के चारो ओर किसी को  ढूंढ रही थी। मैं कमरे में आ कर बेचैनी से उस बच्ची का इंतजार कर रहा था जो मेरा खयाल रख रही थी । बाहर थोड़ी सी खटक की आवाज होती तो मैं चैक कर खड़ा हो जा रहा था। रात काफी हो चुकी थी इस लिए कोई नहीं आया। घर से जाते वक्त मैंने ताऊ जी को बोल दिया था कि रात का खाना मैं बाहर ही खाऊंगा। इस लिए किसी के पूछने की जरूरत भी नहीं थी।

मुझे नींद नही आ रही थी। मन बेचैन था। एक अपराध बोध से मैं घिरा जा रहा था। 

मुझे विनोद की बात याद आ रही थी,जिसे सुन कर मैं बेचैन हो गया था।

विनोद ने मुझे दस बारह वर्ष पुरानी बातों को याद दिला कर गहरे भंवर में छोड़ दिया था। 

उसने बताया कि दस वर्ष की वह बच्ची मनु की बेटी है। मनु जो हमारे पड़ोस में रहती थी। हमारा और उसका छत साथ में जुड़ा था।मनु,कॉलेज के जमाने में मुझसे एक तरफा प्यार करती थी। उस जमाने में प्यार को लोग पाप की नजर से देखते थे। एक रात मैं छत पर मनु से मिल कर समझा रहा था कि हमारा परिवार वर्षों से पड़ोसी की तरह रहा है। इस तरह का रिश्ता किसी के लिए भी उचित या स्वीकार्य नहीं होगा। 

तभी पड़ोसी द्वारा देख लेने के बात बात बहुत बिगड़ गई थी। 

अगले दिन ताऊ जी ने मुझे मेरे बाबूजी के पास दूसरे शहर भेज दिया।

हम दोनो को रात में छुप कर मिलने की बात आग की तरह पूरे समाज में फैल गई थी। मनु लड़की थी इस लिए उसकी बड़ी बदनामी हुई। उस जमाने में किसी लड़की के दामन में लगे दाग की सजा पूरी उम्र दे कर चुकानी पड़ती थी।

इसी बदनामी के कारण मनु और ताऊ के घर वालों ने आपसी समझौता कर बदनामी के डर के कारण मनु की शादी हमारे चचेरे भाई रजत के साथ कर दी थी।

मनु और रजत की शादी एक धोखे के तहत ताऊ ने करवाया था। रजत को काफी समय से टी बी की बीमारी थी,जिसे ताऊ जी ने छुपा कर रखा था। टी बी के कारण रजत की शादी कहीं हो नही सकती थी। इस लिए मौके का फायदा उठा कर उसकी शादी मनु से कर दी गई। मेरी समझ में आज आ रहा था कि ताऊ ने मुझे शहर से क्यों चले जाने के लिए मजबूर किया था। अगर मैं वहां मौजूद होता तो मनु के साथ यह अन्याय नहीं होने देता।

 शादी के दो वर्ष बाद मनु को एक बेटी हुई। उसके एक वर्ष के पश्चात रजत की टी बी के कारण मृत्यु हो गई। 

मनु कम उम्र में विधवा और एक बेटी की मां बन कर अपना जीवन ताऊ के रहमो करम पर जीने किए मजबूर थी।

इसी लिए जब मैं पहली बार उस मासूम सी बच्ची को देखा तो उसकी शक्ल पहचानी सी लगी। वह बिल्कुल अपनी मां मनु पर गई थी।

उस रात विनोद से मिल कर लौटने के बाद मेरी आंखों में नींद नही थी। मेरी नजरें घर में प्रवेश करते हीं मनु को ढूंढ रही थी। मनु को या तो ताऊ जी के घर वालों ने मेरे सामने आने से मना कर दिया था,या वह खुद मेरा सामना नहीं करना चाहती थी।

मुझे अफसोस हो रहा था कि मेरी वजह से मनु की जिंदगी बरबाद हो गई थी। मैं खुद को मनु का दोषी समझने लगा था।

मैं कमरे में टहलता हुआ अपनी और मनु की बीती जिंदगी के बारे में सब कुछ याद करने की कोशिश करने लगा।

कॉलेज के दिनो की बात थी। हम सभी दोस्त अभी अभी जवान हुए थे।

मेरे पड़ोस में हमारी हमउम्र मीनाक्षी रहती थी। उसके घर वाले और हम सभी पड़ोसी उसे प्यार से मीनू कह कर बुलाते थे। वह थी तो साधारण शक्ल सूरत की मगर उसका व्यवहार,उसके सलीके,बात करने का ढंग और सबसे ज्यादा उसकी तमीज उसे बेहद खूबसूरत बनाती थी।

वह मुझसे ज्यादा लगाव रखती थी,क्योंकि हम नजदीक के पड़ोसी थे ।

हम एक ही क्लास में थे। वह पढ़ने में तेज थी,इस लिए मैं उससे हमेशा सहायता लेता रहता था।

एक बार उसकी एक सहेली ने बताया कि मीनू मुझे पसंद करती है। मुझे आश्चर्य और गुस्सा दोनो साथ ही आया। क्योंकि मनु को मैने कभी उस नजर से नहीं देखा था। उसका और हमारा परिवार वर्षों से एक अच्छे पड़ोसी की तरह रहते आए थे। इस लिए मेरे मन में कभी भी मनु के लिए ऐसा ख्याल  नहीं आया। 

कई दिनो तक मैं उससे कतराता रहा। कतराने की वजह यह थी कि उसके और हमारे परिवार में गहरे संबंध थे। हम सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे। इस लिए हमारे

परिवारों में यह मालूम होना किसी के लिए ठीक नहीं था।

मीनू कई दिनों तक कॉलेज नही आई। मुझे उसको समझाना था। उसके कॉलेज नही आने से मुझे परेशानी होने लगी। 

वह अपने घर के बरामदे या छत पर जहां वह हमेशा दिखती थी,वहां भी आना छोड़ दिया था।

उसके इस तरह अचानक गायब हो जाने से मुझे भी बेचैनी होने लगी थी।

मगर मेरी यह बेकरारी उसे समझाने के लिए नही बल्कि उसके साथ हमेशा बिताने,उसके लगातार संपर्क में आने से मुझे उसकी आदत सी हो गई थी,जो अचानक बंद हो गई थी। यह बेचैनी उस तरह की थी। मुझे लगने लगा था कि कहीं मुझे भी उससे लगाव तो नहीं हो रहा है....?

एक रात मैं छत पर बैठा था। काली रात थी। कुछ साफ साफ देख पाना कठिन था। थोड़ी देर बाद मेरी नजर मीनू के छत की ओर मुड़ी। वह कब से वहां खड़ी थी,मालूम ही नहीं चला।

वह मुझे ही देख रही थी। 

कई दिनो से मैं उसे ढूंढ रहा था। हम दोनो का छत लगा हुआ था। मगर उसके लिए बीच की दीवार लांघना संभव नहीं था और तब मैं भी नही चाहता था कि हम दोनो परिवार के बीच मर्यादा की दीवार मनु लांघे।

मगर चुकी मुझे उसके मन में मेरे लिए  बनी इश्क की दीवार गिराना था,इस लिए छत की दीवार लांघ गया।

मैं उसके बिलकुल पास खड़ा था। वह पहली बार एक टक मेरी आंखों में झांक रही थी। उसकी आंखों का तेज  मेरे हौसले को कमजोर करती महसूस होने लगी थी। जल्द ही उसकी पलकों के पोर गीले हो गए। मैं समझ गया कि उसकी सहेली ने मेरी नाराजगी के बारे में बता दिया था। वह बिल्कुल खामोश थी। हां आंसुओं ने अब पलकों के बांध को तोड़ दिया था।

मुझसे कुछ कहा नहीं जा रहा था। उसे कैसे समझाऊं कि जो उसके दिल में है,उसे हम दोनो के परिवारों को किसी भी तरह मंजूर नहीं होगा। मैं उसे समझा नही पा रहा था कि थोड़ी देर पहले तक मेरे दिल में उसके लिए वह नहीं था,जो उसके दिल में है।

मेरी जुबान भी धोखा देने लगी थी। उसकी आंखों में अपने लिए सिद्दत, मुझे कमजोर कर चुकी थी।

फिर भी जो मुमकिन नहीं था उसे पालना उचित नहीं था।

मैने ज्यों ही कुछ कहने के लिए अपनी जुबान खोलनी चाही,उसने उंगली के इशारे से रोक दिया।

थोड़ी देर बाद उसने सिसकती हुई आवाज में कहा ष् मैं जानती हूं,आपके लिए मेरी सोच एक तरफा है। मैं ही पागल हो गई थी। आपकी कोई गलती नहीं है। आप सोचते होंगे कि यह मेरा बचपना है,मगर सच तो यह है कि मैं आपको बचपन से ही चाहती रही हूं। मुझे मालूम है कि आपका दिल साफ है,आपने कभी मुझे उस नजर से नहीं देखा। इस लिए आप अपनी नजरों में कभी शर्मिंदा नहीं होना ष्। इतना कहते कहते अपनी हथेली से चेहरा छुपा कर रो पड़ी।

मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मनु ने जो कहा,इस वक्त वह कितना सच था..? क्या मैं अब भी मनु को चाहने से खुद को मना कर सकता था...?

मैने धीरे से उसके चेहरे से उसकी हाथों को हटा कर सिर्फ इतना कहा ष् तुम्हारी सारी बातें सही नहीं है। तुम एक अच्छी लड़की हो। हमारे परिवार के संबंध वर्षो पुराने हैं। थोड़ी देर पहले तक मैं इसी सोच से परेशान था कि यह हमारे लिए उचित नही है। मगर.......

तभी एक खटके की आवाज पर हम दोनो की नजर सामने की छत की ओर गई। वहां हम दोनो कि पाडोसन बिंदु चाची पता नहीं कब से यह सब देख रही थी। हम दोनो घबरा कर अलग हो गए। मनु जल्दी जल्दी सीढ़ियों की तरफ चली गई। वह जाते जाते इतना कह गई कि ष् आप घबराना नहीं। अगर बात बढ़ी भी तो मैं सब कुछ अपने सर पर ले लूंगी ,आप कुछ मत कहना ष्

मैं भी अपनी छत पर लौट आया।

अगले दिन हमारे घर में दोनो परिवारों की पंचायत लगी थी। मुझसे पूछा गया तो मैंने ना हां किया और न ना कहा,बस खामोशी अख्तियार कर ली। वैसे भी मनु से मिलने के बाद मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

अगले दिन मेरे ताऊ जी ने मुझे शहर छोड़ कर मेरे बाबूजी के पास चले जाने का फरमान सुना डाला।

मुझे भी लगा कि मनु की इज्जत के लिए यही ठीक है।

मैं वहां से हमेशा के लिए चला गया।

रात के किस पहर तक मैं अपनी बीती जिंदगी को याद करता रहा,पता ही नहीं चला।

सुबह नींद खुली तो दिन चढ़ आया था। आंख खुलते ही मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। मुझे मनु की बेटी की प्रतीक्षा थी। मुझे लग रहा था कि मेरे लिए सुबह की चाय वही ले कर आयेगी। काफी वक्त बीत जाने के बाद जब वह नहीं आई तब मैं खुद ही नीचे उतर कर ताऊ जी के पास आ गया। ताऊ जी के कमरे तक पहुंचने के रास्ते में हर जगह मेरी नजर मनु को ढूंढ रही थी। मगर न तो मनु दिखी और न ही उसकी बेटी।

मैं ताऊ जी के पास बैठा था। ताऊ जी अखबार पलट रहे थे,मगर उनका ध्यान मेरी तरफ था। वह और मैं दोनो ही कुछ बोलना चाह रहे थे।

अंत में ताऊ जी ने ही खामोशी तोड़ी। उन्होंने कहा ष् तनु अपनी मां के साथ नानी के पास गई है। थोड़ी देर में नौकर को बुलाया है,वही चाय और नाश्ता बना देगा। कुछ देर इंतजार कर सकते हो न..?

मैने ष् हां ष् में सर हिलाया और थोड़ी देर में लौटने की बात कह कर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर बाद मैं मनु के पिता दरवाजे पर खड़ा सोच रहा था कि कॉल बेल बजाऊं की तभी दरवाजा अपने आप खुल गया। सामने सफेद साड़ी में मनु खड़ी थी। हम दोनो एक दूसरे को गुनहगारों की तरह देख रहे थे। हम में से कोई भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं था। थोड़ी देर हम यूं ही खड़े रहे। फिर मनु को एहसास हुआ और वह दरवाजे से हट कर मुझे अंदर आने दिया। मैं ड्राइंग रूम में आ कर कुर्सी पर बैठ गया, जबकि मनु दरवाजे के पास ही सर झुकाए खड़ी रही।

थोड़ी देर की खामोशी के बाद मैने पूछा ष् तुम कैसी हो मनु...?ष्

उसने धीरे से कहा ष् आप देख तो रहे हैं,अच्छी भली हूं ष्

मैने इधर उधर देखते हुए पूछा ष् कोई दिख नही रहा है। चाचा चाची सब कहां हैं ष्?

ष् पापा को गुजरे पांच साल हो गए और मां बाजार गई है ष् उसने जवाब दिया।

मैने उसे बैठने के लिए कहा मगर वह खड़ी ही रही।

मैने फिर पूछा ष् तुम्हारी बेटी बिलकुल तुम्हारी तरह दिखती है,कहां है ष्?

उसने एक कुटिल मुस्कान के साथ मेरी आंखों में  देखते हुए कहा ष् आपको मेरी शक्ल याद थी,जो आपने अंदाजा लगा लिया..? वह भी मां के साथ ही गई है ष्

उसके इस कटाक्ष का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। मैं शर्मिंदा भी था।

मैने फिर मनु से पूछा ष् बिना कॉल बेल बजाए ही तुमने दरवाजा खोल दिया ष्

उसने सकुचाते हुए कहा ष् मैं जानती थी,आप आयेंगे ष्

मैं थोड़ी देर चुप रहने के बाद फिर पूछा ष् तुम अचानक ताऊ जी के घर से यहां क्यों चली आई ?ष् 

उसने कोई जवाब नही दिया मगर उसकी खामोशी ने सब कुछ बता दिया। ताऊ जी ने ही उसे और तनु को अपने घर से मनु की मां के पास भेज दिया था,ताकि उसका सामना मुझसे ना होने पाए।

थोड़ी देर रुकने के बाद वह अंदर जा कर ग्लास में पानी ले आई।

इस बार मेरे एक बार कहने पर वह सामने के कुर्सी पर बैठ गई।

उसने पूछा ष् आपकी पत्नी की मृत्यु के बारे में सुन कर बहुत दुख हुआ ष्

मैने उससे पूछा ष् तुम्हे कैसे मालूम हुआ ..?

ष् खानदान तो एक ही है। भले ही आपको किसी की खबर की जरूरत नही पड़ी हो,मगर सभी आपकी तरह नहीं होते हैं...ष्

मैं समझ रहा था कि मनु ने मुझ पर तंज किया है। मगर मैने कोई जवाब नहीं दिया।

उसने फिर पूछा ष् आपके तो बच्चे भी नहीं हैं,फिर जिंदगी कैसे कटती है..?

मैने धीरे से कहा ष् शायद मुझे तुम्हारी आह लगी थी ष्

मैने नजरें उठा कर उसकी और देखा। उसकी आंखे गीली हो रही थी।

मुझसे और बैठा नही जा रहा था। मैने उसे कहा ष् चाची को मेरा प्रणाम कहना ष् और मैं कमरे से बाहर निकल गया।

ताऊ जी मुझ पर नाराज हो रहे थे। मै उन्हे बिना बताए ही मनु से मिलने चला गया था। उनसे मेरी लंबी बहस हुई। दुनियादारी की,संबंधों की,।

उन्होंने ने मुझे मनु की बरबाद हो गई जिंदगी का दोषी ठहराया।

मैने भी रजत के टी बी होने की बात छुपा कर मनु की जिंदगी तबाह करने का ताना दिया।

लड़ाई घंटों चली। इस युद्ध के बीच में मनु की मां को भी शामिल किया गया।

अंत में एक नायाब फैसला हुआ।

उस फैसले के एक हफ्ते के बाद हमारी गाड़ी जिसमे मैं अकेला यहां आया था,अब लौटते वक्त मेरे साथ मनु और हमारी बेटी तनु भी थी......