Wednesday, February 15, 2023

विवाह परम्परा

*क्या नाचने गाने को विवाह कहते हैं, क्या दारू पीकर हुल्लड़ मचाने को विवाह कहते हैं, क्या रिश्तेदारों और दोस्तों को इकट्ठा करके दारु की पार्टी को विवाह कहते हैं ? डीजे बजाने को विवाह कहते हैं, नाचते हुए लोगों पर पैसा लुटाने को विवाह कहते हैं, घर में सात आठ दिन धूम मची रहे उसको विवाह कहते हैं? दारू की 20-25 पेटी लग जाए उसको विवाह कहते हैं ? किसको विवाह कहते हैं?*
*विवाह उसे कहते हैं जो बेदी के ऊपर मंडप के नीचे पंडित जी मंत्रोच्चारण के साथ देवताओं का आवाहन करके विवाह की वैदिक रस्मों को कराने को विवाह कहते हैं।*
*लोग कहते हैं कि हम आठ 8 महीने से विवाह की तैयारी कर रहे हैं और पंडित जी जब सुपारी मांगते हैं तो कहते हैं अरे वह तो भूल गए जो सबसे जरूरी काम था वह आप भूल गए विवाह की सामग्री भूल गए और वैसे तुम 10 महीने से विवाह की कोनसी तैयारी कर रहे हैं।*
*विवाह - नहीं साहब आप दिखावे की तैयारी कर रहे हो कर्जा ले लेकर दिखावा कर रहे हो हमारे ऋषियों ने कहा है जो जरूरी काम है वह करो । ठीक है अब तक लोगों की पार्टियां खाई है तो खिलानी भी पड़ेगी ठीक है समय के साथ रीति रिवाज बदल गए हैं मगर दिखावे से बचे।*
*मैं कहना चाहता हूं आज आप दिखावा करना चाहते हो करो खूब करो मगर जो असली काम है जिसे सही मायने में विवाह कहते हैं वह काम गौण ना हो जाऐ, 6 घंटे नाचने में लगा देंगे, 4 घंटे मेहमानो से मिलने में लगा देंगे', 3 घंटे जयमाला में लगा देंगे, 4 घंटे फोटो खींचने में लगा देंगे और पंडित जी के सामने आते ही कहेंगे पंडितजी जी जल्दी करो जल्दी करो , पंडित जी भी बेचारे क्या करें वह भी कहते है सब स्वाहा स्वाहा जब तुम खुद ही बर्बाद होना चाहते हो तो पूरी रात जगना पंडित जी के लिए जरूरी है क्या उन्हें भी अपना कोई दूसरा काम ढूंढना है उन्हें भी अपनी जीविका चलानी है, मतलब असली काम के लिए आपके पास समय नहीं है। मेरा कहना यह है कि आप अपने सभी नाते, रिश्तेदार, दोस्त ,भाई, बंधुओं को कहो कि आप जो यह फेरों का काम है वह किसी मंदिर, गौशाला, आश्रम या धार्मिक स्थल पर किसी पवित्र स्थान पर करें ।*
*जहां दारू पीगई हों जहां हड्डियां फेंकी गई हों क्या उस मैरिज हाउस उह पैलेस कंपलेक्स मैं देवता आएंगे, आशीर्वाद देने के लिए, आप हृदय से सोचिए क्या देवता वहां आपको आशीर्वाद देने आऐंगे, आपको नाचना कूदना, खाना-पीना जो भी करना है वह विवाह वाले दिन से पहले या बाद में करे मगर विवाह का कोई एक मुहूर्त का दिन निश्चित करके उस दिन सिर्फ और सिर्फ विवाह से संबंधित रीति रिवाज होने चाहिए , और यह शुभ कार्य किसी पवित्र स्थान पर करें। जिस मै गुरु जन आवें, घर के बड़े बुजुर्गों का जिसमें आशीर्वाद मिले ।*
*आप खुद विचार करिये हमारे घर में कोई मांगलिक कार्य है जिसमें सब आये और अपने ठाकुर को भूल जाऐं अपने भगवान को भूलजाऐं अपने कुल देवताओं को भूलजाये।*
*मेरा आपसे करबद्ध निवेदन है कि विवाह नामकरण अन्य जो धार्मिक उत्सव है वह शराब के साथ संपन्न ना हो उन में उन विषय वस्तुओं को शामिल ना करें जो धार्मिक कार्यों में निषेध है ।

Tuesday, February 14, 2023

शिक्षिका

एक शिक्षिका की कलम से

कितना मुश्किल होता है एक माँ के लिए छोटे बच्चे को सोता हुआ छोड़कर घर से बाहर अपने जॉब पर जाना ? इस तकलीफ को सिर्फ एक माँ ही समझ सकती है !
बच्चा उठेगा मम्मा मम्मा करके थोड़ी देर रोएगा, जब माँ नही दिखेगी तो चुपचाप चप्पल पहन कर अपनी दादी या घर के किसी बड़े सदस्य के पास चला जाएगा। समय से पहले ऐसे बच्चे बड़े व जिम्मेदार होते जाते हैं, लेकिन माँ अपने जिम्मेदार बच्चे को भरी आँखों से ही देखती है, कि भला अभी इसकी उम्र ही क्या है ?
पता नही एक माँ में इतनी हिम्मत इतनी ममता इतनी ताकत आती कहाँ से है ? किसी से कुछ कहती भी नही। बस आँखे भरती है, डबडबा जाती है, फिर खुद को कंट्रोल करती हुई भरी आँखों को सुखा लेती है।
जॉब के साथ साथ घर परिवार संभालना, बच्चों के टिफिन से लेकर हसबैंड के कपड़ो तक, ब्रेकफास्ट से लेकर रात के डिनर तक, कितना बेहतर मैनेज करती है फिर भी मन में लगा रहता है कि बच्चे को बादाम पीस कर नही दे पाई वो ज्यादा फायदा करता। कहीं न कहीं कुछ छूटा छूटा सा लगा रहता है।
इतना काम अगर स्त्री अपने मायके में करे तो वहां उसको बहुत तारीफ और प्रोत्साहन मिले या कह लें कि वहां उसे कोई करने ही न दे, सब सहयोग करें।


बच्चे का नाश्ता खाना सब बना कर जाना, फिर बच्चे ने क्या खाया क्या नही ? इसकी चिंता में लगे रहना।
सच में एक माँ घर से बाहर, बच्चे से दूर कभी रिलेक्स ही नही रह पाती। घर पहुँचो तो बच्चे के टेढ़े मेढ़े बाल, गलत ढ़ंग से बंद हुआ शर्ट का बटन देखकर एक साथ बेहद ख़ुशी और पीड़ा दोनों होती है, मुँह फिर भी कुछ नही बोलता बस आँखों को रोकना मुश्किल हो जाता है। बच्चे के सामने सब कुछ ज़ब्त करके प्यारी मुस्कान देना एक माँ के ही बस का काम है।
बाहर से जितनी मजबूत अंदर से उतनी ही कमजोर होती हैं माँ। सुबह से छूटा हुआ बच्चा जब दौड़कर गले लगता है तो मानो सारी कायनात की खुशियाँ मिल गयी, फिर वैसी ख़ुशी वैसा सुकून स्वर्ग में भी नही मिले। सारे दिन की भागदौड़ भूलकर उस पल ऐसा लगता है कि जैसे इस सुकून के लिए सदियाँ गुजर गयी।
कभी कभी सोचती हूँ कि जेंट्स लोग जो इतने रिलेक्स रहते है परिवार और बच्चों की तरफ से उसमे बहुत बड़ा हाथ स्त्रियों का होता है।
एक पुरुष आफिस से लौटता है तो कहीं चौराहे पर चाय पीते हुए अपने दोस्तों के साथ गप्पें मारता है फिर रात तक घर आता है उसी जगह एक स्त्री अपने काम को खत्म करने के बाद सिर्फ और सिर्फ अपने घर अपने बच्चे के पास पहुंचती है जबकि अच्छा उसे भी लगता है बाहर अपनी फ्रेंड्स के साथ गपशप करते हुए चाय की चुस्की लेना। पर अपने बच्चे तक पहुंचने की बेताबी सारी दुनिया की खुशियोँ को एक ओर कर देती है।

सही बंटवारा

"पापा जी ! पंचायत इकठ्ठी हो गई , अब बँटवारा कर दो।" कृपाशंकर जी के बड़े लड़के गिरीश ने रूखे लहजे में कहा।

"हाँ पापा जी ! कर दो बँटवारा अब इकठ्ठे नहीं रहा जाता" छोटे लड़के कुनाल ने भी उसी लहजे में कहा।
पंचायत बैठ चुकी थी, सब इकट्ठा थे।
कृपाशंकर जी भी पहुँचे।
"जब साथ में निर्वाह न हो तो औलाद को अलग कर देना ही ठीक है , अब यह बताओ तुम किस बेटे के साथ रहोगे ?" सरपंच ने कृपाशंकर जी के कन्धे पर हाथ रख कर के पूछा।
कृपाशंकर जी सोच में शायद सुननें की बजाय कुछ सोच रहे थे। सोचने लगे वो दिन जब इन्ही गिरीश और कुनाल की किलकारियों के बगैर एक पल भी नहीं रह पाते थे। वे बच्चे अब बहुत बड़े हो गये थे।
अचानक गिरीश की बात पर ध्यानभंग हुआ,
"अरे इसमें क्या पूछना, छ: महीने पापा जी मेरे साथ रहेंगे और छ: महीने छोटे के पास रहेंगे।"
"चलो तुम्हारा तो फैसला हो गया, अब करें जायदाद का बँटवारा ???" सरपंच बोला।


कृपाशंकर जी जो काफी देर से सिर झुकाए सोच मे बैठे थे, एकदम उठ के खड़े हो गये और क्रोध से आंखें तरेर के 
बोले, "अबे ओये सरपंच, कैसा फैसला हो गया ? अब मैं करूंगा फैसला, इन दोनों लड़कों को घर से बाहर निकाल कर।"
सुनो बे सरपंच , इनसे कहो चुपचाप निकल लें घर से, और जमीन जायदाद या सपंत्ति में हिस्सा चाहिए तो छः महीने बारी बारी से आकर मेरे पास रहें, और छः महीने कहीं और इंतजाम करें अपना। फिर यदि मूड बना तो सोचूँगा।
"जायदाद का मालिक मैं हूँ ये सब नहीं।"
दोनों लड़कों और पंचायत का मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे कोई नई बात हो गई हो। इसी नयी सोच और नयी पहल की जरूरत है।
"यदि मूड बना तो सोचूँगा"

Friday, February 10, 2023

द्रौपदी का दान

इन्सान जैसा कर्म करता है, कुदरत या परमात्मा उसे वैसा ही उसे लौटा देता है।
एक बार द्रौपदी सुबह तड़के स्नान करने यमुना घाट पर गयी भोर का समय था। तभी उसका ध्यान सहज ही एक साधु की ओर गया जिसके शरीर पर मात्र एक लँगोटी थी। साधु स्नान के पश्चात अपनी दूसरी लँगोटी लेने गया तो वो लँगोटी अचानक हवा के झोंके से उड़ पानी में चली गयी ओर बह गयी। संयोगवश साधु ने जो लंगोटी पहनी वो भी फटी हुई थी। साधु सोच मे पड़ गया कि अब वह अपनी लाज कैसे बचाए। थोड़ी देर में सूर्योदय हो जाएगा और घाट पर भीड़ बढ़ जाएगी। साधु तेजी से पानी के बाहर आया और झाड़ी में छिप गया। द्रौपदी यह सारा दृश्य देख अपनी साड़ी जो पहन रखी थी, उसमे आधी फाड़ कर उस साधु के पास गयी ओर उसे आधी साड़ी देते हुए बोली, "तात! मैं आपकी परेशानी समझ गयी। इस वस्त्र से अपनी लाज ढ़क लीजिए। साधु ने सकुचाते हुए साड़ी का टुकड़ा ले लिया और आशीष दिया। जिस तरह आज तुमने मेरी लाज बचायी उसी तरह एक दिन भगवान तुम्हारी लाज बचाएंगे।
जब भरी सभा मे चीरहरण के समय द्रौपदी की करुण पुकार नारद ने भगवान तक पहुँचायी तो भगवान ने कहा, "कर्मों के बदले मेरी कृपा बरसती है, क्या कोई पुण्य है। द्रौपदी के खाते में?" जाँचा परखा गया तो उस दिन साधु को दिया वस्त्र दान हिसाब में मिला, जिसका ब्याज भी कई गुणा बढ़ गया था। जिसको चुकता करने भगवान पहुँच गये द्रौपदी की मदद करने, दुस्सासन चीर खींचता गया और हजारों गज कपड़ा बढ़ता गया।
इंसान यदि सुकर्म करे तो उसका फल सूद सहित मिलता है, और दुष्कर्म करे तो सूद सहित भोगना पड़ता है।