Monday, January 16, 2023

मकर संक्रांति का महत्व

58 दिन बाणों की शैया पर बिताने के बाद मकर संक्राति को भीष्म पितामह ने त्यागे थे प्राण, इच्छा मृत्यु का वरदान था प्राप्त
18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे।
महर्षि वेदव्यास की महान रचना महाभारत ग्रंथ के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे एकमात्र ऐसे पात्र है जो महाभारत में शुरूआत से अंत तक बने रहे। 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे। पितामह भीष्म के युद्ध कौशल से व्याकुल पाण्डवों को स्वयं पितामह ने अपनी मृत्यु का उपाय बताया। भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे लेकिन अपना शरीर नहीं त्यागा क्योंकि वे चाहते थे कि जिस दिन सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे अपने प्राणों का त्याग करेंगे।
1.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए उन्होने स्वंय ही अपने प्राणों का सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन त्याग किया।
2.जिस समय महाभारत का युद्ध चला कहते हैं उस समय अर्जुन की उम्र 55 वर्ष, भगवान कृष्ण की उम्र 83 वर्ष और भीष्म पितामह की उम्र 150 वर्ष के लगभग थी।
3.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान स्वयं उनके पिता राजा शांतनु द्वारा दिया गया था क्योंकि अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए भीष्म पितामह ने अखंड ब्रह्मचार्य की प्रतिज्ञा ली थी।
4.कहते हैं कि भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे जिसका नाम सत्यवती था। लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह तभी करने की शर्त रखी जब सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न शिशु को ही वे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे।
5.राजा शांतनु इस बात को स्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्होने तो पहले ही भीष्म पितामह को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
6.सत्यवती के पिता की बात को अस्वीकार करने के बाद राजा शांतनु सत्यवती के वियोग में रहने लगे। भीष्म पितामह को अपने पिता की चिंता की जानकारी हुई तो उन्होने तुरंत अजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली।
7.भीष्म पितामह ने सत्यवती के पिता से उनका हाथ राजा शांतनु को देने को कहा और स्वयं के अाजीवन अविवहित रहने का बात कही जिससे उनकी कोई संतान राज्य पर अपना हक ना जता सके।
8.इसके बाद भीष्म पितामह ने सत्यवती को अपने पिता राजा शांतनु को सौंपा। राजा शांतनु अपने पुत्र की पितृभक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया।
9.धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद अपने वरदान स्वरूप इच्छा मृत्यु प्राप्त की ।
10.सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु को प्राप्त होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दिन भगवान की पूजा का विशेष महत्व है।
इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है , भीष्म पितामह भी गंगा पुत्र थे ।

Saturday, January 14, 2023

कर्म भोग

Ⓜ पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं । क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है ।
Ⓜ *सन्तान के रुप में कौन आता है ?*
Ⓜ वेसे ही सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
Ⓜ *ऋणानुबन्ध 😘 पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।
Ⓜ *शत्रु पुत्र 😘 पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
Ⓜ *उदासीन पुत्र 😘 इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।
Ⓜ *सेवक पुत्र 😘 पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो बोया है, वही तो काटोगे । अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
Ⓜ आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।
Ⓜ इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये ।
Ⓜ ज़रा सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये, वो कितना सोना-चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ, वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"
Ⓜ मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ *नेकियाँ* ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके *नेकी* कर, *सतकर्म* कर ।

Wednesday, January 11, 2023

महर्षि दयानन्द कौन थे?

* एक ऐसे ब्रह्मास्त्र थे जिन्हें कोई भी पोप, पादरी, मौलवी, अघोरी, ओझा, तान्त्रिक हरा नहीं पाया और न ही उन पर अपना कोई मंत्र, तंत्र या किसी भी प्रकार का कोई प्रभाव छोड़ पाया।


* एक ऐसा वेद का ज्ञाता जिसने सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं, अपितु पूरी दुनिया में वेद का डंका बजाया था।

* एक ऐसा ईश्वर भक्त, जिसने ईश्वर को प्राप्त करने के लिए अपना घर ही त्याग दिया था।

* एक ऐसा महान् व्यक्ति जिसने लाखों की संपत्ति को ठोकर मार दी, पर सत्य की राह से विचलित नहीं हुआ।

* एक ऐसा दानी जिसने अपनी गुरु दक्षिणा में अपना सम्पूर्ण जीवन ही दान दे दिया!!

* एक ऐसा क्रान्तिकारी विचारक जिसने न जाने कितने लोगों के अन्दर क्रान्ति की भावना को पोषित किया।

* एक ऐसा स्वदेशभक्त जिसने सबसे पहले स्वदेशीय राज्य को सर्वोपरि कहा और अंग्रेजों के सामने ही उनका राज्य समस्त विश्व से नष्ट होने की बात कही।
 
* एक ऐसा गौरक्षक व गौ प्रेमी जिसने सबसे पहले गौ रक्षा हेतु "गोरक्षिणी सभा" बनाई व इसके नियमों का प्रतिपादन किया।

* एक ऐसा निडर व्यक्ति जिसने निर्भीक होकर समाज की कुप्रथाओं, कुरीतियों पर प्रहार किया।

* एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी भी सत्य से समझौता नहीं किया।

* एक ऐसा धर्म धुरन्धर जो केवल वेद का ही नहीं, अपितु कुरान, पुराण, बाइबल, त्रिपिटक व अन्य मज़हबों व मत-मतान्तरों के ग्रन्थों का ज्ञान रखता था।

* एक ऐसा सत्य का पुजारी जो अपनी हर बात डंके की चोट पर कहता था।

* एक ऐसा धर्म धुरन्धर जिसने सभी पाखण्डों का खण्डन कर सत्य की राह दिखाई।

* एक ऐसा धर्म धुरन्धर जिसने इस देश का धर्मान्तरण (ईसाइयत व इस्लामीकरण) होने से केवल रोका ही नहीं, वरन् शुद्धि व घर वापसी द्वारा देश का उद्धार किया।

* एक ऐसा सत्यनिष्ठ जिसे किसी प्रकार के लोभ व लालच विचलित नहीं कर पाये।

* एक ऐसा ऋषि जिसने यज्ञ, योग व पुरातन ऋषि महर्षियों के ज्ञान को पुनः स्थापित कराया।

* एक ऐसा ज्ञानी जिसने पाणिनि, जैमिनी, ब्रह्मा, चरक, सुश्रुत आदि ऋषिकृत ग्रन्थों का उद्धार किया।

* एक ऐसा ऋषि जिसने ऋषियों के नाम से बनाए गए सभी असत्य ग्रन्थों का भण्डा फोड़ा व हमारे ऋषियों के नाम पर लगे दाग को मिटाया।

* एक ऐसा समाज सुधारक जिसने सबसे पहले सती प्रथा, बाल-विवाह जैसीे कुप्रथाओं पर प्रहार कर समस्त भारत में नारी की प्रतिष्ठा को समाज मे पुनः स्थापित कराया।

* एक ऐसा समाज सुधारक जिसने माँसाहार व शाकाहार में भेद स्पष्ट कर समाज को पुनः शाकाहार के रास्ते पर चलाया।

* एक ऐसा साहसी व्यक्ति जिसका साहस अपमान, तिरस्कार से कम नहीं हुआ, बल्कि और भी दृढ़ हुआ।

* एक ऐसा समाज सुधारक जिसने केवल भारत के लिए ही नहीं, अपितु विश्व के कल्याण की भावना से निस्वार्थ काम किया।

* धन्य है ऋषिवर दयानन्द! आपके उपकार न जाने कितने हैं!! लाठी पत्थर खा कर के भी लोगों द्वारा कई बार दिए गए ज़हर के बावजूद भी आप एक बार भी अपने पथ से नहीं डगमगाये!

* हे आर्यो, मेरी लेखनी में इतने शब्द नहीं जो मैं महर्षि के उपकारों को लिख सकूँ, गागर में सागर नहीं भरा जा सकता।

* हे ऋषिवर, आपको कोटि कोटि नमन। 

स्वदेशी "कपड़ा मिल"

 एक जमाना था .. कानपुर की "कपड़ा मिल" विश्व प्रसिद्ध थीं कानपुर को "ईस्ट का मैन्चेस्टर" बोला जाता था।

लाल इमली जैसी फ़ैक्टरी के कपड़े प्रेस्टीज सिम्बल होते थे. वह सब कुछ था जो एक औद्योगिक शहर में होना चाहिए।
मिल का साइरन बजते ही हजारों मज़दूर साइकिल पर सवार टिफ़िन लेकर फ़ैक्टरी की ड्रेस में मिल जाते थे। बच्चे स्कूल जाते थे। पत्नियाँ घरेलू कार्य करतीं । और इन लाखों मज़दूरों के साथ ही लाखों सेल्समैन, मैनेजर, क्लर्क सबकी रोज़ी रोटी चल रही थी।


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फ़िर "कम्युनिस्टो" की निगाहें कानपुर पर पड़ीं.. तभी से....बेड़ा गर्क हो गया।
"आठ घंटे मेहनत मज़दूर करे और गाड़ी से चले मालिक।"
ढेरों हिंसक घटनाएँ हुईं,
मिल मालिक तक को मारा पीटा भी गया।
नारा दिया गया
"काम के घंटे चार करो, बेकारी को दूर करो"
अलाली किसे नहीं अच्छी लगती है. ढेरों मिडल क्लास भी कॉम्युनिस्ट समर्थक हो गया। "मज़दूरों को आराम मिलना चाहिए, ये उद्योग खून चूसते हैं।"
कानपुर में "कम्युनिस्ट सांसद" बनी सुभाषिनी अली । बस यही टारगेट था, कम्युनिस्ट को अपना सांसद बनाने के लिए यह सब पॉलिटिक्स कर ली थी ।
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अंततः वह दिन आ ही गया जब कानपुर के मिल मज़दूरों को मेहनत करने से छुट्टी मिल गई। मिलों पर ताला डाल दिया गया।
मिल मालिक आज पहले से शानदार गाड़ियों में घूमते हैं (उन्होंने अहमदाबाद में कारख़ाने खोल दिए।) कानपुर की मिल बंद होकर भी ज़मीन के रूप में उन्हें (मिल मालिकों को) अरबों देगी। उनको फर्क नहीं पड़ा ..( क्योंकि मिल मालिकों कभी कम्युनिस्ट के झांसे में नही आए !)
कानपुर के वो 8 घंटे यूनिफॉर्म में काम करने वाला मज़दूर 12 घंटे रिक्शा चलाने पर विवश हुआ .. !! (जब खुद को समझ नही थी तो कम्युनिस्ट के झांसे में क्यों आ जाते हो ??)
स्कूल जाने वाले बच्चे कबाड़ बीनने लगे...
और वो मध्यम वर्ग जिसकी आँखों में मज़दूर को काम करता देख खून उतरता था, अधिसंख्य को जीवन में दुबारा कोई नौकरी ना मिली। एक बड़ी जनसंख्या ने अपना जीवन "बेरोज़गार" रहते हुए "डिप्रेशन" में काटा।
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"कॉम्युनिस्ट अफ़ीम" बहुत "घातक" होती है, उन्हें ही सबसे पहले मारती है, जो इसके चक्कर में पड़ते हैं..!
कॉम्युनिज़म का बेसिक प्रिन्सिपल यह है :
"दो क्लास के बीच पहले अंतर दिखाना, फ़िर इस अंतर की वजह से झगड़ा करवाना और फ़िर दोनों ही क्लास को ख़त्म कर देना"!