Wednesday, January 4, 2023

महिलाएं क्यों पहनती हैं चूड़ियां?

क्या है इसका धार्मिक महत्व

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हिंदू धर्म में महिलाएं अपने हाथों में चूड़ियां क्यों पहनती हैं। चूड़ियां पहनना सिर्फ परंपरा है या इसका कोई धार्मिक महत्व भी है। ऐसे कई सवाल आपके दिमाग में कौंधते होंगे। पेश है इसकी विस्तृत जानकारी-

ऐसी मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं चूड़ियां पहनती हैं, उस घर में किसी चीज की कमी नहीं होती। घर के लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

चूड़ियां पहनने की यह परंपरा काफी लंबे समय से चली आ रही है। हिंदू धर्म में सामान्य तौर पर चूड़ियों को सुहागिन महिला की निशानी माना जाता है। धार्मिक आधार पर ऐसा कहा जाता है कि चूड़ियां पहनने से सुहागिन के पति की उम्र लंबी होती है। सुहागिन के पति की रक्षा होती है। मान्यता है कि इससे पति-पत्नी का आपसी प्यार बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां बनी रहती हैं।

वैदिक युग से ही चूड़ियों के प्रमाण:-
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महिलाओं के हाथों में चूड़ियां उनके सुहागिन होने का प्रमाण होता है। वैदिक युग से ही महिलाएं अपने हाथों में चूड़ियां पहनती आ रही हैं। इसलिए हिन्दू देवियों की तस्वीरों और मूर्तियों में उन्हें चूड़ी पहनते हुए दिखाया जाता है। चूड़ियां पहनने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी छिपा हुआ है।

चूड़ियां पहनने के धार्मिक कारण:-
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आपको बता दें कि देवी पूजन में दुर्गा माँ को 16 शृंगार चढ़ाया जाता है। इन सोलह शृंगार में चूड़ियां भी होती हैं। इसके साथ ही चूड़ियों को दान करने से भी पुण्य की प्राप्ति भी होती हैं। बुध देव का आशीर्वाद पाने के लिए महिलाओं को हरी चूड़ियां दान में दी जाती हैं। तथा चूड़ियां पहनना महिलाओं की लिए शुभ माना जाता है क्योंकि महिलाएं देवी की प्रतीक होती है इसीलिए चूड़ियों का दान देवी को दिया जाता है।

चूड़ियां पहनने के वैज्ञानिक कारण:-
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आपको जानकार हैरानी होगी कि चूड़ियां पहनने से कुछ लाभ भी होते हैं । वैज्ञानिक दृष्टि से चूड़ियां जिस धातु से बनी होती हैं उसका उसे पहनने वाली महिला के स्वास्थ्य पर अनूकूल प्रभाव पड़ता है। यानी चूड़ियां पहनने के धार्मिक महत्व के साथ उनके वैज्ञानिक फायदे भी हैं। ये फायदे इस प्रकार हैं-

-हाथों में चूड़ी पहनना सांस के रोग और दिल की बीमारी की आशंकाओं को घटाता है।

-चूड़ी पहनने से मानसिक संतुलन बना रहता है, तभी महिलाएं अपने काम को बड़े ही निष्ठा भाव से करती हैं।

-विज्ञान के अनुसार चूड़ियों का घर्षण ऊर्जा बनाए रखता है और थकान को मिटाने सहायक होता है या थकान को दूर रखता है।

-विज्ञान का मानना है कि कांच की चूड़ियों के टकराने से निकलने वाली ध्वनि से वातावरण में उपस्थित नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।

राजेन्द्र गुप्ता,

खुश कौन है?

 जंगल में एक कौआ रहता था और जीवन में पूर्णतया संतुष्ट था। एक दिन उसने एक हंस देखा और सोचा, "यह हंस कितना सफेद है और मैं कितना काला हूँ। यह हंस दुनिया का सबसे सुखी पक्षी होना चाहिए।"


उसने हंस के सामने अपने यह विचार रखे।

हंस ने उत्तर दिया, "दरअसल पहले मैं महसूस करता था कि मैं सबसे सुखी हूँ पर जबसे मैंने तोता देखा है, जिसके दो रंग होते हैं, तबसे मुझे लगता है कि तोता सृष्टि में सबसे सुखी पक्षी है।"

कौआ अब तोते के पास पहुँचा। तोते ने समझाया,“जब तक मैंने एक मोर को नहीं देखा था, तब तक मैं बहुत सुखी था। मेरे पास तो केवल दो रंग हैं, लेकिन मोर के पास तो कई रंग हैं।"

कौआ फिर चिड़ियाघर में एक मोर के पास गया और देखा कि मोर को देखने के लिए सैकड़ों लोग जमा थे। लोगों के जाने के बाद कौआ मोर के पास पहुँचा और बोला "प्रिय मोर, तुम बहुत सुंदर हो। हर दिन हजारों लोग तुमको देखने आते हैं। जब लोग मुझे देखते हैं तो तुरंत मुझे भगा देते हैं। मुझे लगता है कि तुम इस ग्रह पर सबसे सुखी पक्षी हो।"

मोर ने उत्तर दिया, "मैंने हमेशा सोचा था कि मैं ग्रह पर सबसे सुंदर और सुखी पक्षी हूँ। लेकिन मैं अपनी खूबसूरती की वजह से इस चिड़ियाघर में फंस गया हूँ। मैंने बहुत गहराई से सोचा और महसूस किया है कि कौवा ही एकमात्र ऐसा पक्षी है जिसे पिंजरे में नहीं रखा जाता है। इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं सोच रहा हूँ कि अगर मैं कौवा होता तो खुशी-खुशी हर जगह घूम सकता था।

हमारी भी यही समस्या है। हम दूसरों के साथ अपनी अनावश्यक तुलना करते हैं और दुखी होते हैं। भगवान ने हमें जो दिया है, हम उसकी कद्र नहीं करते।

यह सब हमें दुख के दुष्चक्र की ओर ले जाता है।
                         

*"ख़ुशी आत्मा का गुण है। यह एक ऐसा शुद्ध स्पंदन है जो हमारे अस्तित्व के केंद्र से उत्पन्न होकर बाहर की ओर प्रसारित होता है। हमें शाश्वत आनंद तब मिलता है जब हम ख़ुशी के माध्यमों के पीछे भागने के बजाय स्वयं स्रोत को, मूल को पाने की कोशिश करते हैं। सभी खुशियों का रहस्य मन की गतिविधियों को स्थिर व संतुलित करने में निहित है। संतोष से मन स्थिर होता है। संतोष ही आंतरिक शांति का मूल आधार है।"* सुप्रभात , आपका दिन शुभ हो। 🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻🙏🏻

Tuesday, January 3, 2023

भक्त और भगवान

 ।। जय श्रीहरि ।।

*एक बेटी ने एक संत से आग्रह किया कि वो हमारे घर आकर उसके बीमार पिता से मिलें, प्रार्थना करें।बेटी ने यह भी बताया कि उसके बुजुर्ग पिता पलंग से उठ भी नहीं सकते । संत ने बेटी के आग्रह को स्वीकार किया ।*
*कुछ समय बाद जब संत घर आए,तो उसके पिताजी पलंग पर दो तकियों पर सिर रखकर लेटे हुए थे और एक खाली कुर्सी पलंग के साथ पड़ी थी ।*
*संत ने सोचा कि शायद मेरे आने की वजह से यह कुर्सी यहां पहले से ही रख दी गई हो ।*
*संत ने पूछा - मुझे लगता है कि आप मेरे ही आने की उम्मीद कर रहे थे,पिता - नहीं,आप कौन हैं ?*
*संत ने अपना परिचय दिया और फिर कहा- मुझे यह खाली कुर्सी देखकर लगा कि आपको मेरे आने का आभास था ।*
*पिता- ओह यह बात नहीं है,आपको अगर बुरा न लगे तो कृपया कमरे का दरवाजा बंद करेंगे क्या ? संत को यह सुनकर थोड़ी हैरत हुई, फिर भी दरवाजा बंद कर दिया ।*
*पिता- दरअसल इस खाली कुर्सी का राज मैंने आज तक किसी को भी नहीं बताया, अपनी बेटी को भी नहीं।पूरी जिंदगी,मैं यह जान नहीं सका कि प्रार्थना कैसे की जाती है ।*


*मंदिर जाता था,पुजारी के श्लोक सुनता था,वो तो सिर के ऊपर से गुज़र जाते थे, कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता था ।*
*मैंने फिर प्रार्थना की कोशिश करना छोड़ दिया ।*
*लेकिन चार साल पहले मेरा एक दोस्त मिला उसने मुझे बताया कि प्रार्थना कुछ नहीं,भगवान से सीधे संवाद का माध्यम होती है,उसी ने सलाह दी कि एक खाली कुर्सी अपने सामने रखो,फिर विश्वास करो कि वहाँ भगवान खुद ही विराजमान हैं अब भगवान से ठीक वैसे ही बात करना शुरू करो,जैसे कि अभी तुम मुझसे कर रहे हो ।*
*मैंने ऐसा ही करके देखा,मुझे बहुत अच्छा लगा, फिर तो मैं रोज दो-दो घंटे ऐसा करके देखने लगा,लेकिन यह ध्यान रखता था कि मेरी बेटी कभी मुझे ऐसा करते न देख ले ।*
*अगर वह देख लेती,तो परेशान हो जाती या वह फिर मुझे मनोचिकित्सक के पास ले जाती।*
*यह सब सुनकर संत ने बुजुर्ग के लिए प्रार्थना की,सिर पर हाथ रखा और भगवान से बात करने के क्रम को जारी रखने के लिए कहा।संत को उसी दिन दो दिन के लिए शहर से बाहर जाना था,इसलिए विदा लेकर चले गए ।*
*दो दिन बाद बेटी का फोन संत के पास आया कि उसके पिता की उसी दिन कुछ घंटे बाद ही मृत्यु हो गई थी, जिस दिन पिताजी आपसे मिले थे।संत ने पूछा कि उन्हें प्राण छोड़ते वक्त कोई तकलीफ तो नहीं हुई ?*
*बेटी ने जवाब दिया- नहीं,मैं जब घर से काम पर जा रही थी,तो उन्होंने मुझे बुलाया,मेरा माथा प्यार से चूमा,यह सब करते हुए उनके चेहरे पर ऐसी शांति थी,जो मैंने पहले कभी नहीं देखी थी ।*
*जब मैं वापस आई,तो वो हमेशा के लिए आंखें मूंद चुके थे,लेकिन मैंने एक अजीब सी चीज भी देखी । पिताजी ऐसी मुद्रा में थे जैसे कि खाली कुर्सी पर किसी की गोद में अपना सिर झुकाए हों । संतजी,वो क्या था ?*
*यह सुनकर संत की आंखों से आंसू बह निकले, बड़ी मुश्किल से बोल पाए - काश,मैं भी जब दुनिया से जाऊं तो ऐसे ही जाऊँ ।*
*बेटी ! तुम्हारे पिताजी की मृत्यु भगवान की गोद में हुई है।उनका सीधा सम्बन्ध सीधे भगवान से था।उनके पास जो खाली कुर्सी थी, उसमें भगवान बैठते थे और वे सीधे उनसे बात करते थे ।*
*उनकी प्रार्थना में इतनी ताकत थी कि भगवान को उनके पास आना पड़ता था ।*
*आकर्षण शायद अनेको के लिए हो सकता है,समर्पण किसी एक के लिए होता है..!!*

Monday, January 2, 2023

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?

महामृत्युंजय मंत्र की रचना कैसे हुई?
किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना?
और जाने इसकी शक्ति
मित्रों शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे. विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था.मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं. इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए.


मृकण्ड ने घोर तप किया. भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं.
महादेव प्रसन्न हुए. उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा.
भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा. ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है. इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है.
ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया. मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया- जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे. भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है.
मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी. मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी. उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी.
मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है. बारह वर्ष पूरे होने को आए थे.
मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे.
समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए. यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की. मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था.
यमदूतों का मार्कण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए. उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.
इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा. यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.
बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया.
यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा. एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं.
शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए. उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?
यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे. उन्होंने कहा- प्रभु मैं आप का सेवक हूं. आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है.
भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले- मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है. तुम इसे नहीं ले जा सकते.
यम ने कहा- प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है. मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा.

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए. उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता हैI