Tuesday, November 29, 2022

चौतीस पुरातन प्रतिमाएँ मिली तपोभूम उज्जैन में


-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर

भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन (मध्यप्रदेश) में व उसके आस पास के स्थानों से 34 पुरातन जिन प्रतिमाएँ प्राप्त हुईं हैं। इनमें अधिकतर प्रतिमाएँ खण्डित हैं। कुछ के केवल परिकरों के अंश ही हैं किन्तु ये बहुत महत्वपूर्ण प्रहितमाएँ हैं। अधिकतर प्रतिमाएँ तीर्थंकर और तीर्थंकरों से संबद्ध शासन देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।
दिनांक 26 नवम्बर 2022 तपोभूमि प्रणेता जैन आचार्य श्री प्रज्ञासागर जी मुनिराज ने इन प्रतिमओं के सर्वेक्षण व पहचान व समय ज्ञात करने हेतु पुरातत्त्वविदों को आमंत्रित किया था। जिनमें डॉ. नरेश पाठक-पूर्व पुरातत्त्व सर्वेक्षक मध्य प्रदेश, डॉ. रमेश यादव- पुरातत्त्व सर्वेक्षण अधिकारी- भोपाल, डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, जैन संस्कृति शोध संस्थान- इन्दौर, डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह जोधा-शोधाधिकारी, वाकणकर पुरातत्त्व शोध संस्थान- भोपाल और डॉ. नवीन जी- पुरातत्त्व विभाग, भोपाल प्रमुख हैं।





यहां प्राप्त प्रतिमाओं में दो मूर्तियों के पादपीठ पर प्राचीन देवनागरी लिपि में प्रशस्ति है। एक में संवत् है 12... सौ स्पष्ट है। दूसरी प्रतिमा की प्रशस्ति के साथ शंख लांछन भी स्पष्ट है।
आचार्य पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्य प्रज्ञासागर ने डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ को बताया कि इन प्रतिमाओं का पुरातत्त्व विभाग द्वारा सर्वेक्षण और पंजीयन का कार्य प्रारंभ हो गया है। सर्वेक्षण के उपरान्त इन्हें भगवान महावीर तपोभूमि सिद्ध क्षेत्र उज्जैन के संग्रहालय की आर्ट गैलरी में स्थाई रूप से प्रदर्शित किया जायगा। आचार्यश्री ने बताया कि भगवान महावीर का प्रभाव क्षेत्र होने से यहाँ निकटवर्ती क्षेत्रों में और भी पुरातन जैन प्रतिमाओं व उनके अवशेष प्राप्त होने की संभावना है। यहां शीघ्र ही एक शोध केन्द्र की स्थापना हो रही है, जिसके लिए विशाल पुस्तकालय स्थापित कर लिया गया है।

जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ

एक बार तुलसीदास जी महाराज को किसी ने बताया कि जगन्नाथ जी में तो साक्षात भगवान ही दर्शन देते हैं, बस फिर क्या था सुनकर तुलसीदास जी महाराज तो बहुत ही प्रसन्न हुए और अपने इष्टदेव का दर्शन करने श्रीजगन्नाथपुरी को चल दिए।

महीनों की कठिन और थका देने वाली यात्रा के उपरांत जब वह जगन्नाथ पुरी पहुंचे तो मंदिर में भक्तों की भीड़ देख कर प्रसन्न मन से अंदर प्रविष्ट हुए। जगन्नाथ जी का दर्शन करते ही उन्हें बड़ा धक्का सा लगा, वह निराश हो गये। और विचार किया कि यह हस्तपादविहीन देव हमारे जगत में सबसे सुंदर नेत्रों को सुख देने वाले मेरे इष्ट श्री राम नहीं हो सकते।
इस प्रकार दुखी मन से बाहर निकल कर दूर एक वृक्ष के तले बैठ गये। सोचा कि इतनी दूर आना व्यर्थ हुआ। क्या गोलाकार नेत्रों वाला हस्तपादविहीन दारुदेव मेरा राम हो सकता है? कदापि नहीं।
रात्रि हो गयी, थके-माँदे, भूखे-प्यासे तुलसी का अंग टूट रहा था। अचानक एक आहट हुई। वे ध्यान से सुनने लगे। अरे बाबा! तुलसीदास कौन है?
एक बालक हाथों में थाली लिए पुकार रहा था। तुलसीदास ने सोचा साथ आए लोगों में से शायद किसी ने पुजारियों को बता दिया होगा कि तुलसीदास जी भी दर्शन करने को आए हैं इसलिये उन्होने प्रसाद भेज दिया होगा। तुलसीदास उठते हुए बोले, 'हाँ भाई! मैं ही हूँ तुलसीदास।'
बालक ने कहा, 'अरे! आप यहाँ हैं। मैं बड़ी देर से आपको खोज रहा हूँ।'
बालक ने कहा, 'लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'भैया कृपा करके इसे वापस ले जायँ।'
बालक ने कहा, आश्चर्य की बात है, 'जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ' और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप अस्वीकार कर रहे हैं, कारण?


तुलसीदास बोले, 'अरे भाई ! मैं बिना अपने इष्ट को भोग लगाये कुछ ग्रहण नहीं करता। फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने इष्ट को समर्पित न कर सकूँ, यह मेरे किस काम का?'
बालक ने मुस्कराते हुए कहा 'अरे, बाबा! आपके इष्ट ने ही तो भेजा है।'
तुलसीदास बोले, 'यह हस्तपादविहीन दारुमूर्ति मेरा इष्ट नहीं हो सकता।'
बालक ने कहा कि फिर आपने अपने श्रीरामचरितमानस में यह किस रूप का वर्णन किया है...
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।
अब तुलसीदास की भाव-भंगिमा देखने लायक थी। नेत्रों में अश्रु-बिन्दु, मुख से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर बालक यह कहकर अदृश्य हो गया कि 'मैं ही तुम्हारा राम हूँ। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना।'
तुलसीदास जी की स्थिति ऐसी की रोमावली रोमांचित थी, नेत्रों से अस्त्र अविरल बह रहे थे और शरीर की कोई सुध ही नहीं। उन्होंने बड़े ही प्रेम से प्रसाद ग्रहण किया।
प्रातः मंदिर में जब तुलसीदास जी महाराज दर्शन करने के लिए गए तब उन्हें जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण एवं जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान ने भक्त की इच्छा पूरी की।
जिस स्थान पर तुलसीदास जी ने रात्रि व्यतीत की थी, वह स्थान 'तुलसी चौरा' नाम से विख्यात हुआ। वहाँ पर तुलसीदास जी की पीठ 'बड़छतामठ' के रूप में प्रतिष्ठित है।
जय जगन्नाथ जी

विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था बनाने वाले भी भारतीय ही थे

 विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था.

…और इसे बनाने वाले भी भारतीय ही थे.
आज से करीब 2 हजार वर्ष पूर्व भारत में कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है.
भारत के इस गौरवशाली इतिहास को पहले अंग्रेज और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर लोगों से इस तथ्य को छुपाया.
दक्षिण भारत में कावेरी नदी पर बना यह कल्लनई बांध वर्तमान में तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में है. इसका निमार्ण चोल राजवंश के शासन काल में हुआ था.राज्य में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए कावेरी नदी को डायवर्ट कर बनाया गया यह बांध प्राचीन भारतीयों की इंजीनियरिंग का उत्तम उदाहरण है.
कल्लनई बांध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था.यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बांध में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है वह वर्तमान विश्व की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसकी भारतीयों को आज से करीब 2 हजार वर्ष पहले ही जानकारी थी.
कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है, जिससे बरसात के मौसम में यह डेल्टाई क्षेत्र में भयंकर बाढ़ से तबाही मचाती है.


पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था. उस समय के भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है.
इस बांध को आप कभी देखेंगे तो पाएंगे यह जिग जैग आकार का है. यह जिग जैग आकार का इस लिए बनाया गया था ताकि पानी के तेज बहाव से बांध की दीवारों पर पड़ने वाली फोर्स को डायवर्ट कर उस पर दवाब को कम कर सके. देश ही नहीं दुनिया में बनने वाले सभी आधुनिक बांधों के लिए यह बांध आज प्रेरणा का स्रोत है.
यह कल्लनई बांध तमिलनाडू में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्रोत है.
आज भी इससे करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है.
यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा. मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है !

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Saturday, November 26, 2022

कचरियाँ

 इन्हें कचरियाँ कहते हैं। अगस्त के।महीने में स्कूल से आते थे घर के बगल में ही मेरा खेत है उंसमे चौमासी मक्का होती थी।

अब तो मक्का का सीजन बदल गया है। अब मक्का मार्च में बोई जाती है जून जुलाई में कट जाती है
लेकिन तब चौमासी मक्का होती थी मध्यम आषाढ़(जुलाई )के महीने में बोई जाती थी और मध्यम भाद्रपद व शुरुआत कुंवार (सितम्बर अक्टूबर) के महीने में काटी जाती थी।
उस मक्का की पैदावार नाम मात्र की होती थी यूं समझिए किसान दान दरिया व खुद खाने के किये मक्का बोता था।
मेरे यहाँ सर्दियों भर मक्का की रोटी बनना अनिवार्य है इसमें सत्तू मुरकी भी हो जाती थी ....
अग्रस्त माह में स्कूल से आते थे पूरे गांव में सबके नीम के पेड़ पर झूला पड़ा होता था। मवेशी खेतों में चरने निकल जाती थी। हम लोग आये बस्ता टंगा खूंटी पर सबसे पहले गिलास लेकर दूध पिया स्कूल वाला होमवर्क किया फिर झूला झूलने लगते थे अचानक झूला छोड़ मक्का में जाकर यही #कचरियाँ तोड़ कर लाते थे वैसे मेरे खेत में सबसे ज्यादा फुट और कचरियाँ लगती थी क्योकि मेरी मम्मी बहुत शौकीन हैं सब्जी कचरियाँ आदि की ....मक्का में तोरई और कचरियाँ भरपूर होती थीं अपुन को तो ब्लेड मारकर कचरियाँ पकाने में यकीन था...
कई बार अपने खेत मे कचरियाँ न होने पर पड़ोसी के खेत मे डकैती भी डाली है मैने...
यह कचरियाँ अब विलुप्त हो चुकी हैं फसल क्रम बदल चुका है इस कारण साथ ही अब किसान पैदावार पर ध्यान देता है उसके खेत मे हाइब्रिड मक्का होती है जिसमे न घास उगने दी जाती है न कचरियाँ क्योकी ये चीजें पैदावार पर फर्क डालती हैं
पहले तो उसी मक्का में सन के पेड़ भी होते थे जिन्हें काटकर पानी मे डाला जाता फिर 1 महीने बाद निकाल कर उसकी चमड़ी उतारते उसने सफेद जूट सन निकलता था जिसकी रस्सियां बनती थी बकरी गाय बैल के गले मे लगाने चारपाई में लगाने काम आती थी
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उस रस्सी को रंगों में भिगोकर भैंस गाय सजाई जाती थी दीवाली पर ....
यह सब काफी उत्साहित करने वाले नजारे थे जो अब किस्ससो में बचे हैं।
किसान की आम जिंदगी पर हजार कहानियां लिखी जा सकती हैं जो रोमांचक भी हैं और प्रेरणादायक भी....
जो एहसास कराती है कि हम कितने ज्यादा बदल चुके हैं।