Tuesday, November 29, 2022

विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था बनाने वाले भी भारतीय ही थे

 विश्व का सबसे प्राचीन बांध भारत में बना था.

…और इसे बनाने वाले भी भारतीय ही थे.
आज से करीब 2 हजार वर्ष पूर्व भारत में कावेरी नदी पर कल्लनई बांध का निमार्ण कराया गया था, जो आज भी न केवल सही सलामत है बल्कि सिंचाई का एक बहुत बड़ा साधन भी है.
भारत के इस गौरवशाली इतिहास को पहले अंग्रेज और बाद में वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर लोगों से इस तथ्य को छुपाया.
दक्षिण भारत में कावेरी नदी पर बना यह कल्लनई बांध वर्तमान में तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में है. इसका निमार्ण चोल राजवंश के शासन काल में हुआ था.राज्य में पड़ने वाले सूखे और बाढ़ से निपटने के लिए कावेरी नदी को डायवर्ट कर बनाया गया यह बांध प्राचीन भारतीयों की इंजीनियरिंग का उत्तम उदाहरण है.
कल्लनई बांध को चोल शासक करिकाल ने बनवाया था.यह बांध करीब एक हजार फीट लंबा और 60 फीट चौड़ा है.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बांध में जिस तकनीक का उपयोग किया गया है वह वर्तमान विश्व की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसकी भारतीयों को आज से करीब 2 हजार वर्ष पहले ही जानकारी थी.
कावेरी नदी की जलधारा बहुत तीव्र गति से बहती है, जिससे बरसात के मौसम में यह डेल्टाई क्षेत्र में भयंकर बाढ़ से तबाही मचाती है.


पानी की तेज धार के कारण इस नदी पर किसी निर्माण या बांध का टिक पाना बहुत ही मुश्किल काम था. उस समय के भारतीय वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और और नदी की तेज धारा पर बांध बना दिया जो 2 हजार वर्ष बीत जाने के बाद आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है.
इस बांध को आप कभी देखेंगे तो पाएंगे यह जिग जैग आकार का है. यह जिग जैग आकार का इस लिए बनाया गया था ताकि पानी के तेज बहाव से बांध की दीवारों पर पड़ने वाली फोर्स को डायवर्ट कर उस पर दवाब को कम कर सके. देश ही नहीं दुनिया में बनने वाले सभी आधुनिक बांधों के लिए यह बांध आज प्रेरणा का स्रोत है.
यह कल्लनई बांध तमिलनाडू में सिंचाई का महत्वपूर्ण स्रोत है.
आज भी इससे करीब 10 लाख एकड़ जमीन की सिंचाई होती है.
यदि आप भारत की इस अमूल्य तकनीकी विरासत कल्लनई बांध के दर्शन करना चाहते हैं तो आपको तमिलनाडू के तिरूचिरापल्ली जिले में आना होगा. मुख्यालय तिरूचिरापल्ली से इसकी दूरी महज 19 किलोमीटर है !

Hemant Tripathi, Shiv chitrkar and 33K others
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Saturday, November 26, 2022

कचरियाँ

 इन्हें कचरियाँ कहते हैं। अगस्त के।महीने में स्कूल से आते थे घर के बगल में ही मेरा खेत है उंसमे चौमासी मक्का होती थी।

अब तो मक्का का सीजन बदल गया है। अब मक्का मार्च में बोई जाती है जून जुलाई में कट जाती है
लेकिन तब चौमासी मक्का होती थी मध्यम आषाढ़(जुलाई )के महीने में बोई जाती थी और मध्यम भाद्रपद व शुरुआत कुंवार (सितम्बर अक्टूबर) के महीने में काटी जाती थी।
उस मक्का की पैदावार नाम मात्र की होती थी यूं समझिए किसान दान दरिया व खुद खाने के किये मक्का बोता था।
मेरे यहाँ सर्दियों भर मक्का की रोटी बनना अनिवार्य है इसमें सत्तू मुरकी भी हो जाती थी ....
अग्रस्त माह में स्कूल से आते थे पूरे गांव में सबके नीम के पेड़ पर झूला पड़ा होता था। मवेशी खेतों में चरने निकल जाती थी। हम लोग आये बस्ता टंगा खूंटी पर सबसे पहले गिलास लेकर दूध पिया स्कूल वाला होमवर्क किया फिर झूला झूलने लगते थे अचानक झूला छोड़ मक्का में जाकर यही #कचरियाँ तोड़ कर लाते थे वैसे मेरे खेत में सबसे ज्यादा फुट और कचरियाँ लगती थी क्योकि मेरी मम्मी बहुत शौकीन हैं सब्जी कचरियाँ आदि की ....मक्का में तोरई और कचरियाँ भरपूर होती थीं अपुन को तो ब्लेड मारकर कचरियाँ पकाने में यकीन था...
कई बार अपने खेत मे कचरियाँ न होने पर पड़ोसी के खेत मे डकैती भी डाली है मैने...
यह कचरियाँ अब विलुप्त हो चुकी हैं फसल क्रम बदल चुका है इस कारण साथ ही अब किसान पैदावार पर ध्यान देता है उसके खेत मे हाइब्रिड मक्का होती है जिसमे न घास उगने दी जाती है न कचरियाँ क्योकी ये चीजें पैदावार पर फर्क डालती हैं
पहले तो उसी मक्का में सन के पेड़ भी होते थे जिन्हें काटकर पानी मे डाला जाता फिर 1 महीने बाद निकाल कर उसकी चमड़ी उतारते उसने सफेद जूट सन निकलता था जिसकी रस्सियां बनती थी बकरी गाय बैल के गले मे लगाने चारपाई में लगाने काम आती थी
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उस रस्सी को रंगों में भिगोकर भैंस गाय सजाई जाती थी दीवाली पर ....
यह सब काफी उत्साहित करने वाले नजारे थे जो अब किस्ससो में बचे हैं।
किसान की आम जिंदगी पर हजार कहानियां लिखी जा सकती हैं जो रोमांचक भी हैं और प्रेरणादायक भी....
जो एहसास कराती है कि हम कितने ज्यादा बदल चुके हैं।

खाना है बचा कर रखें वेस्ट न होने दें

मैं उस दिन भी एक शादी में बाउंसर के रूप में मौजूद था। आजकल का चलन हो गया है कि शादियों में हम बाउंसरों को काम दिया जाने लगा है, हम शादी में अव्यवस्था होने से रोकते हैं, मेरे साथ मेरे तीन साथी और थे उसी शादी में। मैं टीम लीडर हूँ।
मैं काफी देर से अपनी वैन में बैठा ड्रोन के ज़रिए , शादी की गहमा गहमी देख रहा था। मैं लड़की वालों की तरफ से इंगेज किया गया था। मुझे एक अधेड़ से दिखने वाले आदमी की कुछ अजीब बातें दिखाईं दीं।
पहली बात तो उसने जो खाना खाया, वो अपनी प्लेट में एक एक चीज ले जा रहा था, उन्हें खाकर ही फिर से आ रहा था। उसने खाना खत्म किया।
वो काफ़ी देर तक खाने की कैटरिंग की कतार को देखता रहा। फिर वो कैटरिंग के लोगों को जा जाकर निर्देष देने लगा। फिर उसने खुद एक स्टाल पर खड़े होकर कमान संभाल ली। मुझे कुछ अजीब लग रहा था, मुझे लग रहा था ये कुछ ज्यादा ही केयरिंग हो रहा है कहीं कोई खाने का खोमचा गायब न कर दे। मैंने अपने एक साथी को वैन में बुलाया और मैं उसकी जगह शादी के टेंट में आ गया। मैं घूमते हुए उस आदमी के पास पहुँचा, उसका अभिवादन किया और फिर उसे इशारे से बुलाया।
वो मेरे पास आ गया, मैंने उससे कहा आपसे बात करनी है जरा मेरे साथ आइए। वो मेरे साथ हो लिया। मैं उसे अपनी वैन के पास ले आया, वहाँ ज्यादा भीड़ भाड़ नहीं थी। "मैं काफी देर से आपको वॉच कर रहा हूँ, आप कैटरिंग स्टाल पर क्या कर रहे थे, आप शादी में आये हुए मेहमान लग रहे हैं घराती तो हैं नहीं, आखिर इरादा क्या है आपका ?"मैंने कहा, पर कहने में सख्ती थी । मेरी बात सुनकर वो हँसने लगा, फिर संजीदा हुआ, मुझे अजीब लगा उसका व्यवहार।
"चार महीने पहले मेरी बेटी की भी शादी थी।" उसने ठंडी आह भरी।"मेरे यहाँ दो हज़ार लोगों का खाना बना था । हम सही से मैनेज नहीं कर पाए, लोग भी ज्यादा आ गए । बहुत सा खाना वेस्ट कर दिया गया, लोगों ने खाया कम थालियों में छोड़ा ज्यादा । बारात नाचने गाने में लेट हो गई और बारात जब तक खाने पर आती बहुत से खाने के आईटम कम पड़ गए । मेरे समधी नाराज हो गए , बारात के खाने को लेकर बेटी को जब तब ताने मिलते हैं।"
ये कहते हुए उसकी आँखें भीग गईं और गला भर्रा गया , " मैं सोचता हूँ कि मेरे यहाँ खाने के मामले में सही कंट्रोल और निगरानी रख ली जाती तो मेरी जो इज्जत गई वो बच जाती । अब मेरी कोशिश रहती है कि जिस किसी भी शादी में जाता हूँ , वहाँ खाने को बेमतलब वेस्ट न करके बचाया जाए । इससे न केवल खाना बचेगा बल्कि किसी की इज्जत बची रहेगी , तो सोचता हूँ भाई 'खाना है बचा लो..' अब जाऊँ मैं ? आपकी इजाजत हो तो थोड़ा खाने की स्टाल पर निगरानी रख लूँ।" कहकर वो वहाँ से चला गया ।
मुझे लग रहा था हम चार के अलावा एक पाँचवां बाउंसर और भी है, काश उस जैसे पचास आदमी और हों तो सौ जनों का खाना बचाया जा सकता है। मैंने उसके पीठ पीछे उसके लिए ताली बजाई और फिर से वैन में बैठकर ड्रोन उड़ाने लगा।


Friday, November 25, 2022

इतिहास के निषाद

भूगर्भ के गोंद में खेलता श्रृंगवेरपुर सामाज्य/संस्कृति का निषादों का इतिहास इतना बड़ा व मजबूत है कि उसके आगे कई विशाल सभ्यताए व संस्कृति न्यून हो जाती है।
#सिंधु घाटी सभ्यता, #मेसोपोटामिया की सभ्यता, सुमेरियन की सभ्यता तथा अन्य भारतीय ताम्र व कांस्य युगीन संस्कृतियो को जितनी दावेदारी के साथ हमारे बीच परोसा जाता है समझाया जाता है व किताबो में जगह दी जाती है ....उसका 20% भी कार्य #श्रृंगवेरपुर की प्राचीन संस्कृति तथा धरोहर पर खर्च किया जाता है तो परिणाम औरो से कही ज्यादा आता है।
आज जलांचल प्रगतिपथ का कारवां अपने महान पूर्वज के महान वैज्ञानिक साम्राज्य तक पहुँचा ....जहाँ महाराजा #गुहराज निषाद जी की प्रेरणा व आधारशिला देंखने को मिला! जो हजारो वर्षो से माँ गंगा के आंचल में कई सौ एकड़ में फैला मिला, जिसकी प्राचीर दीवारें, प्राचीन कुंड, प्राचीन अभेद किला ना जाने कितने शताब्दियों की गवाही दे रही है।

प्राचीन विश्व इतिहास मे कही भी ऐसी को तकनीक नही देंखने को नही मिलती है जो जल (पानी) को उसके तल से ऊपर उठा के अन्यत्र किसी और तल पर पहुचा सकें।
जो तकनीकी आज के वैज्ञानिक युग मे ही सम्भव हो पाता है पानी मोटर (टुल्लू) से ही।