Friday, November 4, 2022

चुटिया (शिखा बंधन) क्या है ?

गायत्री शिखा बंधन क्या है?


शिखाबन्धन (वन्दन) आचमन के पश्चात् शिखा को जल से गीला करके उसमें ऐसी गाँठ लगानी चाहिये, जो सिरा नीचे से खुल जाए। इसे आधी गाँठ कहते हैं। गाँठ लगाते समय गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते जाना चाहिये ।
गायत्री शिखा बंधन क्या है?
शिखाबन्धन (वन्दन) आचमन के पश्चात् शिखा को जल से गीला करके उसमें ऐसी गाँठ लगानी चाहिये, जो सिरा नीचे से खुल जाए। इसे आधी गाँठ कहते हैं। गाँठ लगाते समय गायत्री मन्त्र का उच्चारण करते जाना चाहिये ।
शक्ति परमाणु हर घड़ी बाहर निकल-निकलकर आकाश में दौड़ते रहते हैं। इस प्रवाह से शक्ति का अनावश्यक व्यय होता है और अपना कोष घटता है।
इसका प्रतिरोध करने के लिये शिखा में गाँठ लगा देते हैं। सदा गाँठ लगाये रहने से अपनी मानसिक शक्तियों का बहुत-सा अपव्यय बच जाता है।
सन्ध्या करते समय
विशेष रूप से गाँठ लगाने का प्रयोजन यह है कि रात्रि को सोते समय यह गाँठ प्रायः शिथिल हो जाती है या खुल जाती है।
फिर स्नान करते समय केश-शुद्धि के लिये शिखा को खोलना पड़ता है।
सन्ध्या करते समय अनेक सूक्ष्म तत्त्व आकर्षित होकर अपने अन्दर स्थिर होते हैं, वे सब मस्तिष्क केन्द्र से निकलकर बाहर न उड़ जाए इसलिये शिखा में गाँठ लगा दी जाती है।इसमें गाँठ लगा देने से भीतर भरी हुई वायु बाहर नहीं निकल पाती। गाँठ लगी हुई शिखा से भी यही प्रयोजन पूरा होता है।
वह बाहर के विचार और शक्ति समूह को ग्रहण करती है । भीतर के तत्त्वों का अनावश्यक व्यय नहीं होने देती ।
आचमन से पूर्व शिखा बन्धन इसलिये नहीं होता, क्योंकि उस समय त्रिविध शक्ति का आकर्षण जहाँ जल द्वारा होता है, वह मस्तिष्क के मध्य केन्द्र द्वारा भी होता है।
इस प्रकार शिखा खुली रहने से दुहरा लाभ होता है । तत्पश्चात् उसे बाँध दिया जाता है।

Thursday, October 27, 2022

ग्यारह कलाओं से भरपूर, उसके बाद भी रोटी के लिए मजबूर

 एग्यारह कलाओं से भरपूर, जिसे देखकर आप रह जाएंगे दंग, वह कलाकार है एक रोटी के लिए मजबूर, क्या बिहार सरकार के कला संस्कृति विभाग का यही है दस्तूर?


रवि कुमार भार्गव

राज्य को-आर्डिनेटर अयोध्या टाइम्स बिहार 

---मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन को उनकी सहायता के लिए आगे आने की जरूरत है।

--इनका एक ही सपना है की वो डब्लू डब्लू ई में अपने देश के लिए लड़ें। किंतु उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह कोई एकेडमी ज्वाइन कर सके।

--माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी का ऐसे कलाकारों पर नजर पड़ जाए तो रवि रंजन जैसे कलाकारों को एक रोटी के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।



सिरहाकोठी:-आज मैं आपके सामने एक ऐसे कलाकार को ढूंढ कर लाया हूं जिनके पास एग्यारह कला देखने को मिलेगा आपको। उनकी एक एक कला को देखकर आप दंग रह जाएंगे। दांतो तले उंगली दबा ने पर आप मजबूर हो जाएंगे।

आइए हम उन कलाकार से परिचय करवाते हैं उनका नाम है रवि रंजन कुमार उनके पिता का नाम है सत्येंद्र कुमार घर है उनका कोरीगांवा डाकखाना है उनका महवल उनका थाना है बरूराज प्रखंड पड़ता है मोतीपुर और जिला पड़ता है मुजफ्फरपुर। ऐसा ही नहीं यह कलाकार महोदय b.a. पार्ट वन के विद्यार्थी भी हैं और इनका उम्र मात्र 19 वर्ष हो रहा है।

इस 19 बरस की उम्र के अंदर एग्यारह कलाओं को अपने अंदर उतार लेना, बड़े ही गौरव की बात है। इनकी कलाओं में सबसे अहम पहली कला देखने को मिला अपने दांतो के सहारे चार चक्का कार को चला देना, दूसरी कला देखने को मिला चालू दो बाइक मोटरसाइकिल को आगे की ओर नहीं बनने देना, तीसरी कला देखने को मिला मोटरसाइकिल को उठाकर लोगों के बीच घूम घूम कर दिखाना, चौथी कला देखने को मिला अपने कंधे पर दो व्यक्तियों को बैठाकर उपस्थित जनों के बीच घुमा देना, पांचवी क्लास अपने कंधे पर लाठी के सहारे दोनों तरफ 3-साइकिल एक तरफ 3 साइकिल दूसरी तरफ लाद कर छ: साइकिल की वजन को लेकर कुछ दूर तक चल कर दिखाना, छठी कला को देखकर आप दंग रह जाएंगे। इनका छठी कला जो है मेस्सी फर्गुसन ट्रेक्टर को स्वराज ट्रैक्टर को अपने दांतो के सहारे चला कर दिखाना, यही नहीं इनके सातवी कला अकेले स्वराज ट्रैक्टर या मेस्सी फर्गुसन ट्रेक्टर को धक्का देकर चलाते रहना, इनका आठवीं कला में देखने को आपको मिलेगा लगभग 1 कुंटल से ऊपर की वजन को हल के रूप में नीचे ऊपर करके दिखाना और उसकी कला को प्रदर्शन करना, इनका नवी कला बड़े ही देखने लायक दृश्य है जो अपने कंधे पर लाठी का भार बनाकर दो व्यक्ति एक तरफ दो व्यक्ति दूसरी तरफ कूल चार व्यक्तियों का वजन लेकर चलना। इनकी 10 वीं कला देखकर आप अपनी आंखों पर विश्वास नहीं करेंगे किंतु विश्वास करना होगा वह है दो मोटरसाइकिल स्टार्ट स्थिति में अपनी पूरी क्षमता के साथ आगे बढ़ने को ललाइत है, किंतु रवि रंजन ऐसे ढंग से दोनों मोटरसाइकिल को पकड़े हुए हैं, कि टस से मस नहीं होने दे रहे हैं। एग्यारहवी कला को देख कर आप बिल्कुल दंग रह जाएंगे, पिकअप गाड़ी को अपने दांतो से खींच कर चलाकर दिखा देना, उसे रवि रंजन कुमार ने कर दिखाया है।


एग्यारह कलाओं से भरपूर कलाकार रवि रंजन जिस की कला को आप देखकर दंग रह जाएंगे वह कलाकार एक रोटी के लिए है मजबूर। इनके पिता एक साधारण किसान हैं वह जो भी कमाते हैं वह सारे पैसे बच्चों के लालन-पालन में खर्च हो जाता है बहुत ही निहायत गरीब परिवार से रवि रंजन कुमार आते हैं। जो रवि पहलवान के नाम से इलाकों में जाने जाते हैं। इनका एक ही सपना है की वो डब्लू डब्लू ई में अपने देश के लिए लड़ें। किंतु उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह कोई एकेडमी ज्वाइन कर सके। इस स्थिति में हमारे बिहार सरकार के कला संस्कृति विभाग चाहे तो इन कलाओं को देखकर युवक रवि रंजन कुमार के लाइफ को संवार सकता है। बिहार सरकार की अगर ध्यान हो जाए हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी का ऐसे कलाकारों पर नजर पड़ जाए तो रवि रंजन जैसे कलाकारों को एक रोटी के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

रवि रंजन जैसे कलाकार जो एग्यारह कलाओं को अपने अंदर समेटे बैठा है, उसे सरकार के सहायता की अति जरूरत है। इस हालत में मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन को उनकी सहायता के लिए आगे आने की जरूरत है उनकी कला को उनकी जज्बा को समझने की जरूरत है और उन्हें उस मंजिल तक पहुंचा कर उनके जीवन को संवारने की जरूरत है।

Thursday, October 13, 2022

ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण

 ऐसा मंदिर जहां भूख से दुबले हो जाते हैं श्रीकृष्ण।

यह विश्व का ऐसा अनोखा मंदिर है जो 24 घंटे में मात्र दो मिनट के लिए बंद होता है। यहां तक कि ग्रहण काल में भी मंदिर बंद नहीं किया जाता है। कारण यह कि यहां विराजमान भगवान कृष्ण को हमेशा तीव्र भूख लगती है। भोग नहीं लगाया जाए तो उनका शरीर सूख जाता है। अतः उन्हें हमेशा भोग लगाया जाता है, ताकि उन्हें निरंतर भोजन मिलता रहे। साथ ही यहां आने वाले हर भक्त को भी प्रसादम् (प्रसाद) दिया जाता है। बिना प्रसाद लिये भक्त को यहां से जाने की अनुमति नहीं है।


मान्यता है कि जो व्यक्ति इसका प्रसाद जीभ पर रख लेता है, उसे जीवन भर भूखा नहीं रहना पड़ता है। श्रीकृष्ण हमेशा उसकी देखरेख करते हैं।
केरल के कोट्टायम जिले के तिरुवरप्पु में यह प्राचीन मंदिर स्थित है। लोक मान्यता के अनुसार कंस वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण बुरी तरह से थक गए थे। भूख भी बहुत अधिक लगी हुई थी। उनका वही विग्रह इस मंदिर में है। इसलिए मंदिर साल भर हर दिन खुला रहता है। मंदिर बंद करने का समय दिन में 11.58 बजे है। उसे दो मिनट बाद ही ठीक 12 बजे खोल दिया जाता है।
पुजारी को मंदिर के ताले की चाबी के साथ कुल्हाड़ी भी दी गई है। उसे निर्देश है कि ताला खुलने में विलंब हो तो उसे कुल्हाड़ी से तोड़ दिया जाए। ताकि भगवान को भोग लगने में तनिक भी विलंब न हो। चूंकि यहां मौजूद भगवान के विग्रह को भूख बर्दाश्त नहीं है इसलिए उनके भोग की विशेष व्यवस्था की गई है। उनको 10 बार नैवेद्यम (प्रसाद) अर्पित किया जाता है।
मंदिर खोले रखने की व्यवस्था आदि शंकराचार्य की है।
ऐसा मंदिर जहां श्रीकृष्ण से भूख बर्दाश्त नहीं होता है। पहले यह आम मंदिरों की तरह बंद होता था। विशेष रूप से ग्रहण काल में इसे बंद रखा जाता था। तब ग्रहण खत्म होते-होते भूख से उनका विग्रह रूप पूरी तरह सूख जाता था। कमर की पट्टी नीचे खिसक जाती थी। एक बार उसी दौरान आदि शंकराचार्य मंदिर आए। उन्होंने भी यह स्थिति देखी। तब उन्होंने व्यवस्था दी कि ग्रहण काल में भी मंदिर को बंद नहीं किया जाए। तब से मंदिर बंद करने की परंपरा समाप्त हो गई।
May be an image of tree and outdoors
भूख और भगवान के विग्रह के संबंध को हर दिन अभिषेकम के दौरान देखा जा सकता है। अभिषेकम में थोड़ा समय लगता है। उस दौरान उन्हें नैवेद्य नहीं चढ़ाया जा सकता है। अतः नित्य उस समय विग्रह का पहले सिर और फिर पूरा शरीर सूख जाता है। यह दृश्य अद्भुत और अकल्पनीय सा प्रतीत होता है लेकिन है पूर्णतः सत्य।
प्रसादम् लेने वाले के भोजन की श्रीकृष्ण करते हैं चिंता।
इस मंदिर के साथ एक और मान्यता जुड़ी हुई है कि जो भक्त यहां पर प्रसादम् चख लेता है, फिर जीवन भर श्रीकृष्ण उसके भोजन की चिंता करते हैं। यही नहीं, उसकी अन्य आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं।
प्राचीन शैली के इस मंदिर के बंद होने से ठीक पहले 11.57 बजे प्रसादम् के लिए पुजारी जोर से आवाज लगाते हैं। इसका कारण मात्र यही है कि यहां आने वाला कोई भक्त प्रसाद से वंचित न हो जाए।
यह अत्यंत रोचक है कि भूख से विह्वल भगवान अपने भक्तों के भोजन की जीवन भर चिंता करते हैं। उनके अपनी भूख की यह हालत है कि उसे देखते हुए मंदिर को नित्य सिर्फ दो मिनट बंद रखा जाता है। इसका कारण भगवान को सोने का समय देना है। अर्थात इस मंदिर में वे मात्र दो मिनट सोते हैं।
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Sunday, October 9, 2022

राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज

 राजा दशरथ के मुकुट का एक अनोखा राज!!!!!!


**अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बाली से हो गया। राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बाली ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी। राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी।

**अतः अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी। जब बाली एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।
**युद्ध में बाली राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बाली को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी। अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हर राजा दशरथ की ही होगी।
**राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा।


**रानी कैकयी को यह बात बहुत दुखी, आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को अपने सामने कैसे सह सकती थी। यह बात उन्हें हर पल काटे की तरह चुभने लगी की उनके कारण राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा।
**वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री रामजी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया। उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।
**श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था। जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया। प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।
जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए। वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी। रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।
**जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट लेकर वापस श्री राम के पास चले आये। यह महिमा थी रघुकुल के राज मुकुट की।
** ग्रहदशा जब राजा दसरथ के पास गई तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी। बाली से जब रावण वह मुकुट लेकर गया तो तो बाली को अपने प्राणों को आहूत देनी पड़ी। इसके बाद जब अंगद रावण से वह मुकुट लेकर गया तो रावण के भी प्राण गए।
**तथा कैकयी के कारण ही रघुकुल के लाज बच सकी यदि कैकयी श्री राम को वनवास नही भेजती तो रघुकुल सम्मान वापस नही लोट पाता. कैकयी ने कुल के सम्मान के लिए सभी कलंक एवं अपयश अपने ऊपर ले लिए अतः श्री राम अपनी माताओ सबसे ज्यादा प्रेम कैकयी को करते थे।