वैवाहिक रिश्तों के टूटने के किस्से जिस तरह बढतें जा रहें हैं, वह भारतीय समाज के लिए चिंता का जरूरी सबब बन गए हैं। विवाह के कुछ महीनों या सालों में सपनों का धाराशाही हो जाने की अनेकों कहानियां हमारे आसपास बिखरी पड़ी हैं। इन कहानियों में उनकी भी कहानियां हैं जिन्होंने ने ऊंचा खानदान देखकर जन्म कुंडलियों का मिलान करवाया था। अधिकांश गुण मिल
भी गए थै। कार-बंगला देखकर पिता ने अपनी लाडली के भविष्य की मंगलकामनाएँ की थी। किन्तु यह क्या एक साल भी पूरा नही हुआ कि बेटी घर पर आ गयी कभी न जाने के लिए, यह स्थिति माता-पिता परिवार के लिए कितनी कठिन असहज ओर पीड़ादायी है इसकी कल्पना पीड़ित माता पिता या पीड़िता स्वयं ही कर सकती है। अमूमन भारतीय महिला बहुत सहनशील, धैर्यवान, समझदार होती हैं। बहुत अति होने पर ही वह परिवार के झंगड़े को अपने माता-पिता को बताती हैं। मानसिक एवं शारारिक पीड़ाओं के असहनीय हो जाने के बाद यह विवाद पुलिस और कोर्ट तक पहुचता हैं। न्यायालय में पारवारिक विवादों में अक्सर समझाइस देकर परिवार को टूटने से बचाने के प्रयास किये जातें हैं। ऐसा नहीं है कि इन विवादों में हर समय पुरुष पक्ष की गलती ही रहती हो, अनेकों बार महिला पक्ष भी इन विवादों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। पति-पत्नी के झगड़े में अक्सर जो बात निकलकर सामने आती है। उसमे पति के मारपीट करने, अधिक दहेज लाने का दबाव बनाने से जुड़ी होती हैं। भारतीय संस्कृति में विवाह का बड़ा महत्व हैं। विवाह के दौरान सात जन्मों के बंधनों में बंधने की कसमें खाने वाले पति-पत्नी साल दो साल में एक दूसरे से अलग रहने की सोचने लगते हैं। इन टूटते रिश्तों को टूटने से रोकने और स्थायित्व प्रदान करने के लिए क्या किया जाना चाहिए ? इन विषयों पर समाज और सामाजिक संस्थाओं को विचार करने की जरूरत हैं। वैसे सभी रिश्तें भावना प्रधान होतें हैं। चूंकि हम यहां पति-पत्नी के रिश्ते की बात कर रहे हैं तो यह समझना आवश्यक है कि पति-पत्नी के मध्य सम्बन्धो में निखार धन-दौलत, सम्पदा, आलीशान भवन, मोटर-कार या सुख-सुविधाओं से नहीं आता हैं। यह निखार अच्छे कपड़े शूट-बूट, सोना-चांदी से भी नहीं आ सकता हैं। भौतिक सुविधाओं से रिश्तों में मधुरता का आना महज एक अल्पकालीन ख्याल हैं। एक ऐसा ख्याल जो पूर्ण होतें ही भौतिक सुख सुविधाओं के स्थान पर भावनाओं के मलहम की तलाश में भटकने लगेगा। पति-पत्नी के रिश्तों में मजबूती एक दूसरे को समझने की भावनाओं से ही सम्भव हैं। यह प्रेम, सदभाव ओर समर्पण का रिश्ता हैं। अक्सर पुरुष महिलाओं की कोमल भावनाओं पर अपनी पुरुषोचित कठोर भावनाओं को थोपना चाहता हैं। अक्सर देखने मे आता हैं जन्मकुंडलियों के मिलान के बावजूद वैवाहिक रिश्ते लम्बे नहीं चल पाते और विवाह के एक दो बरसों में ही पुलिस , अधिवक्ता ओर कोर्ट के चक्कर खाकर धाराशाही हो जातें हैं। आखिर इन टूटते रिश्तों को कैसे रोका जा सकता हैं। एक अच्छे समाज के लिए एक अच्छे परिवार का होना बेहद जरूरी हैं। यह अच्छा परिवार पति-पत्नी के आपसी सामंजस्य से निर्मित होता हैं। हल्की-फुल्की नोकझोंक तो सभी परिवारों में होती हैं। किन्तु नोंकझोंक का मारपीट में बदल जाना और फिर रिश्तों का दांव पर लग जाने के किस्से हमारे समाज मे बहुतायत से घटित हो रहें हैं। इन बढ़ते किस्सों के पीछे बेमेल सम्बन्धो को माना जा सकता हैं। बेमेल सम्बन्धो से आशय जन्म कुंडलियों के गुणों के मिलान से नहीं हैं अपितु एक दूसरे की रुचियों ओर संस्कारों के मिलान से भी है। अपने आसपास बिखरें पड़े बहुत से किस्सों में श्रद्धा नामक युवती (काल्पनिक नाम) का किस्सा अक्सर मुझे बहुत परेशान करता है। श्रद्धा एक बेहद पढ़ी लिखी सुशिक्षित प्रतिभावान लड़की हैं जो हर काम मे अव्वल रहतें आई हैं। अपने स्कूल से लगाकर महाविधालयिन जीवन तक अव्वल बने रहना उसकी आदत में शुमार था। नृत्य, नाटक, वाद विवाद, चर्चा परिचर्चा, मेहंदी, रंगोली सभी में तो वह श्रेष्ठ ओर अव्वल थी। पिता भी शहर के करोड़पति थै। बीएससी के बाद श्रद्धा अपने जीवन मे कुछ करना चाहती थी। आगे पढ़ना ओर खुद के बल पर कुछ करना चाहती थी। किन्तु पिता श्रद्धा की भावनाओं को कहा समझ पा रहे थै। वह तो शादी कर पिता की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे। इस लिए उन्होंने एक बड़े शहर के पूंजीपति खानदान में बिना संस्कार ओर आचार-विचार देखें इस प्रतिभाशाली लड़की का विवाह तुरत-फुरत करवा दिया। आलीशान ओर ऊंचे खानदान के इस बिगड़ैल नवाब में बहुत सी बुरी आदत थी। वह कुछ महीनों बाद ही अपनी असिलियत पर आ गया था। क्रूरताओं ओर यातनाओं से तंग श्रद्धा ने बहुत कोशिश की किन्तु जब बात हद से बाहर हो गयी तब अपने पिता को बताई ओर मायके रहने लगी। अब पिता बार-बार अपने पति के घर भेजने की सलाह देते रहें। एक दो बार पिता के कहने पर पति के घर भी आ गयी। किन्तु यातनाओं ओर क्रूरताओं का सिलसिला चलता रहा। श्रद्धा ने तय किया अब न वह पति के घर जाएगी और न पिता के अपनी स्कूली ओर कालेज जीवन के ज्ञान के बल पर पति से अलग रहकर जीवन जीने का निश्चय किया और निकल पड़ी कठिन महायात्रा पर इस यात्रा में ताने-उल्हानों ओर संकटो के बीच अपने दो बच्चों की उचित शिक्षा-दीक्षा कर अपने खोए सम्मान को प्राप्त किया यूं कहें श्रद्धा ने अपने साथ हुए अपमान का बदला लिया खुद के पैरों पर खड़े होकर अपनी विवाह पूर्व की भावनाओं को भी पूरा किया। श्रद्धा ने तो कठिन परीक्षा में विजय प्राप्त कर ली, किन्तु सभी महिलाओं मे इतना साहस नहीं होता हैं। इन कठिन और अपमानजनक परिस्थितियों से बचने के लिए विवाह के दौरान माता-पिता और परिवार को धन-दौलत कार-मकान देखने के साथ-साथ लड़को की रुचियाँ, उसका संस्कार, व्यवहार और गम्भीरता का भी आकलन करना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए की जो परिवार अपने परिचित देखें-भाले हो वहां सम्बन्धो को प्राथमिकता देनी चाहिए। परिवारों ओर पति-पत्नियों के सम्बन्धो में धन एक साधन मात्र हैं। अक्सर आर्थिक रूप से गरीब या मध्यम वर्ग का प्रेम धनवानों के प्रेम से अधिक प्रगाढ़ दिखाई देता हैं। रिश्तें भावनाओं से संचालित होते हैं। एक दूसरे को समझने की भावना आपस मे निकटता पैदा करती हैं। यह निकटता 36 गुणों के मिलान से नहीं संस्कार और रुचियों के मिलान से ही सम्भव हैं।
नरेंद्र तिवारी 'पत्रकार'
7,मोतीबाग सेंधवा जिला बड़वानी म0प्र0