Saturday, June 4, 2022

“मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

 साहब मैं थाने नहीं आउंगा, अपने इस घर से कहीं नहीं जाउंगा, माना पत्नी से थोड़ा मन-मुटाव था, सोच में अन्तर और विचारों में खिंचाव था, पर यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”

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मानता हूँ कानून आज पत्नी के पास है, महिलाओं का समाज में हो रहा विकास है। चाहत मेरी भी बस ये थी कि माँ बाप का सम्मान हो, उन्हें भी समझे माता पिता, न कभी उनका अपमान हो । पर अब क्या फायदा, जब टूट ही गया हर रिश्ते का धागा, यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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परिवार के साथ रहना इसे पसंद नहीं है, कहती यहाँ कोई रस, कोई आनन्द नही है, मुझे ले चलो इस घर से दूर, किसी किराए के आशियाने में, कुछ नहीं रखा माँ बाप पर प्यार बरसाने में, हाँ छोड़ दो, छोड़ दो इस माँ बाप के प्यार को, नहीं माने तो याद रखोगे मेरी मार को,
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फिर शुरू हुआ वाद विवाद माँ बाप से अलग होने का, शायद समय आ गया था, चैन और सुकून खोने का, एक दिन साफ़ मैंने पत्नी को मना कर दिया, न रहूँगा माँ बाप के बिना ये उसके दिमाग में भर दिया। बस मुझसे लड़कर मोहतरमा मायके जा पहुंची,
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2 दिन बाद ही पत्नी के घर से मुझे धमकी आ पहुंची, माँ बाप से हो जा अलग, नहीं सबक सीखा देंगे, क्या होता है दहेज़ कानून तुझे इसका असर दिखा देगें। परिणाम जानते हुए भी हर धमकी को गले में टांगा, यकींन माँनिये साहब, "मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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जो कहा था बीवी ने, आखिरकार वो कर दिखाया, झगड़ा किसी और बात पर था, पर उसने दहेज़ का नाटक रचाया। बस पुलिस थाने से एक दिन मुझे फ़ोन आया, क्यों बे, पत्नी से दहेज़ मांगता है, ये कह के मुझे धमकाया।
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माता पिता भाई बहिन जीजा सभी के रिपोर्ट में नाम थे,
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घर में सब हैरान, सब परेशान थे,अब अकेले बैठ कर सोचता हूँ, वो क्यों ज़िन्दगी में आई थी,
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मैंने भी तो उसके प्रति हर ज़िम्मेदारी निभाई थी। आखिरकार तमका मिला हमें दहेज़ लोभी होने का, कोई फायदा न हुआ मीठे मीठे सपने संजोने का । बुलाने पर थाने आया हूँ, छुपकर कहीं नहीं भागा, लेकिन यकीन मानिए साहब, “मैंने दहेज़ नहीं माँगा”
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• झूठे दहेज के मुकदमों के कारण, पुरुष के दर्द से ओतप्रोत एक मार्मिक कृति!
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व्रज 84 कौस - 66 अरब तीर्थ

 वृंदावन, मथुरा, गौकुल, नँदगांव, बरसाना, गोवर्धन सहित वें सभी जगह जहाँ श्री कृष्ण जी का बचपन बीता और आज भी जहाँ उनको महसूस किया जा सकता है जैसे कि सांकोर आदि में वह सब बृज 84 कोस का हिस्सा है।

ब्रज चौरासी कोस की, परिक्रमा एक देत।
लख चौरासी योनि के, संकट हरि हर लेत।।
वृंदावन के वृक्ष कों, मरम ना जाने कोय।
डाल-डाल और पात पे, श्री राधे-राधे होय।।
आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से।
वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व है, ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। इस परिक्रमा के बारे में वारह पुराण में बताया गया है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं।
कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हैं 1100 सरोवरें
ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ावस्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं, जिनके दर्शन शायद पहले ही कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
इस समय निकलती है परिक्रमा
ज्यादातर यात्राएं चैत्र, बैसाख मास में ही होती है चतुर्मास या पुरुषोत्तम मास में नहीं। परिक्रमा यात्रा साल में एक बार चैत्र पूर्णिमा से बैसाख पूर्णिमा तक ही निकाली जाती है। कुछ लोग आश्विन माह में विजया दशमी के पश्चात शरद् काल में परिक्रमा आरम्भ करते हैं। शैव और वैष्णवों में परिक्रमा के अलग-अलग समय है।
क्या है महत्व?
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है। परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है, उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गर्ग संहिता में कहा गया है कि यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं। तत्पश्चात यशोदा मैया व नन्दबाबाने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है।
यह यात्रा 7 दिनों में पूरी होती है, ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा में आने वाले स्थान इस प्रकार है।
मथुरा से चलकर....
1. मधुवन
2. तालवन
3. कुमुदवन
4. शांतनु कुण्ड
5. सतोहा
6. बहुलावन
7. राधा-कृष्ण कुण्ड
8. गोवर्धन
9. काम्यक वन
10. संच्दर सरोवर
11. जतीपुरा
12. डीग का लक्ष्मण मंदिर
13. साक्षी गोपाल मंदिर
14. जल महल
15. कमोद वन
16. चरन पहाड़ी कुण्ड
17. काम्यवन
18. बरसाना
19. नंदगांव
20. जावट
21. कोकिलावन
22. कोसी
23. शेरगढ
24. चीर घाट
25. नौहझील
26. श्री भद्रवन
27. भांडीरवन
28. बेलवन
29. राया वन
30. गोपाल कुण्ड
31. कबीर कुण्ड
32. भोयी कुण्ड
33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर
34. दाऊजी
35. महावन
36. ब्रह्मांड घाट
37. चिंताहरण महादेव
38. गोकुल
39. लोहवन
40. वृन्दावन के मार्ग में आने वाले तमाम पौराणिक स्थल हैं।
।। जय जय श्री राधेश्याम ।।

Friday, May 27, 2022

रिजल्ट हाईस्कूल का

 हाईस्कूल_का_रिजल्ट_तो_हमारे_जमाने_में_ही_आता_था... ये जमाना गुजर गया ।अब बच्चो के no 95% से भी ऊपर आने पर भी कुछ नही आता ओर उस जमाने के 36 % वाला भी आज की फौज को पढ़ा रहा है

रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूँछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था।
दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे। जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!
रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो...
और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"
पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!
कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।
रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।
जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।
जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...
पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...
आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।
99.2, 98.6, 98.8.......
और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39
हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....
नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।
वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)
सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था
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Tuesday, May 24, 2022

समय पर इलाज न कराया जाए तो इस बीमारी से जा सकती है आपकी आंख की रोशनी

 डायबिटिक रेटिनोपैथी  : समय पर इलाज न कराया जाए तो इस बीमारी से जा सकती है आपकी आंख की रोशनी

डॉ. महिपाल सचदेव
डायरेक्टर
सेंटर फॉर साइट नई दिल्ली


डायबिटिक रेटिनोपैथी आंख की एक समस्या है जिसके कारण अंधापन हो सकता है। यह तब होता है जब उच्च रक्त शर्करा आंख के पृश्ठ भाग में यानी रेटिना पर स्थित छोटी रक्त वाहिनियों को क्षतिग्रस्त कर देती है। डायबिटीज वाले सभी लोगों में यह समस्या होने का जोखिम होता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी दोनों आंखों को प्रभावित कर सकती है। हो सकता है कि शुरुआत में आपको कोई लक्षण न दिखें। स्थिति के बिगडने के साथ, रक्त वाहिनियां कमजोर हो जाती हैं और रक्त तथा द्रव्य का रिसाव करती हैं। नई रक्त वाहिनियों के बढने पर वे भी रिसाव करती हैं और आपकी दृष्टि में बाधा उत्पन्न हो सकती है। डायबिटिक रेटिनोपैथी, आंखों की एक ऐसी बीमारी है, जिसकी वजह डायबिटीज होती है। जो मरीज सालों डायबिटीज के मरीज हैं उनमें यह बीमारी भी होने का खतरा कई गुणा ज्यादा होता है। यह आंखों के पर्दे की बीमारी, जिसमें मरीज के रेटिना यानी आंख के पर्दे जहां पर तस्वीर बनती है को प्रभावित कर देता है। यह एक ऐसी बीमारी है जिसका समय पर इलाज न कराया जाए तो मरीज की रोशनी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है। मरीज जितना जल्दी व समय पर इलाज के लिए आते हैं, उनकी आंखों की रोशनी बचने की संभावना उतनी ज्यादा होती है।
जो लोग लंबे समय से डायबिटीज के मरीज उनका डायबिटीज अनकंट्रोल रहता है, उनमें यह बीमारी होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसमें पर्दे में सूजन आ जाती है। कुछ मामले में ब्लीडिंग भी हो जाती है। मरीज को ठीक से दिखाई नहीं देता, धुंधला धुंधला दिखाई देता है। काले-काले धब्बे बन जाते हैं। ज्यादातर मामले में यह बीमारी बिना किसी लक्षण आए ही बढ़ता रहती है और जब मरीज में बीमारी की पहचान होती है, तब उनकी आंखे काफी खराब हो चुकी होती हैं। इसलिए जो डायबिटीज के मरीज हैं, उन्हें साल में एक बार अपने रेटिना की जांच जरूर कराना चाहिए, भले उनके आंखों में कोई लक्षण आए या नहीं आए, जांच जरूर कराना चाहिए।
डायबिटिक रेटिनोपैथी के इलाज की प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि रोग किस चरण में है। अगर रोग बिल्कुल ही प्रारंभिक चरण में है तो फिर नियमित रूप से की जाने वाली जांच के माध्यम से सिर्फ  रोग के विकास पर ध्यान देना होता है। अगर रोग विकसित चरण में हो तो फिर नेत्र चिकित्सक यह निर्णय करता है कि मरीज की आंखों के लिए इलाज की कौन सी प्रक्रिया ठीक रहेगी। जहां तक लेजर थेरैपी का सवाल है तो यह प्रक्रिया तब अपनायी जाती है जब रेटिना या आयरिस में अधिक मात्रा में रक्त नलिकाएं बन गई हों। अगर सही समय पर मालूम हो जाए तो डायबिटिक रेटिनोपैथी नामक इस दृष्टि छीन लेने में सक्षम रोग को लेजर उपचार के माध्यम से रोका जा सकता है। वैसे इस बात को खूब अच्छी तरह से याद रखा जाना चाहिए कि लेजर उपचार आंखों को आगे किसी तरह के नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है न कि दृष्टि में बेहतरी लाने के लिए। यह बहुत अधिक प्रभावी साबित हुआ है और 80 प्रतिशत मरीजों को अंधा होने से बचा सकता है।
लेजर उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। सबसे पहले आंखों में ड्रॉप डाला जाता है। ड्रॉप के सहारे आंखों को सुन्न कर दिया जाता है ताकि मरीज को दर्द का एहसास न हो। मरीज को एक मशीन पर बैठाया जाता है और कॉर्निया पर एक छोटा कॉन्टैक्ट लेंस लगा दिया जाता है। इसके पश्चात् आंखों का लेजर उपचार किया जाता है। डायबिटिक मैक्यूलोपैथी के लेजर उपचार के अंतर्गत मैकुला के क्षेत्र में लेजर स्पॉट का प्रयोग किया जाता है जिससे रक्त नलिकाओं का रिसना रोका जा सके। प्रोलिफेरेटिव डायबिटिक रेटिनोपैथी की स्थिति में रेटिना के एक विस्तश्त इलाके में अधिक व्यापकता के साथ लेजर का उपयोग किया जाता है। इससे असामान्य नई नलिकाओं को गायब करने में सहायता मिलती है। इलाज की इस प्रक्रिया में एक से अधिक बार लेजर का प्रयोग किया जाता है। लेकिन लेजर उपचार के बाद भी नियमित रूप से आंखों की जांच जरूरी है ताकि इलाज के प्रभाव का मूल्यांकन किया जा सके तथा रोग के विकास पर नजर रखी जा सके. 
अगर यह बीमारी समय पर पकड़ ली जाती है, तो बहुत हद तक इसका इलाज है, लेकिन जितनी देरी होती है, इलाज का असर उतना कम होते जाता है। आमतौर पर मरीज को इससे बचने के लिए अपना शुगर लेवल कंट्रोल में रखना चाहिए। अगर मरीज शुगर व बीपी कंट्रोल में रखते हैं, तभी इलाज का असर भी होता है। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य तौर पर दो इलाज हैं। पहला आंखों में इंजेक्शन है, दूसरा लेजर के जरिए इलाज है। लेकिन बीमारी बहुत बिगड़ जाने की स्थिति में सर्जरी ही इसका इलाज है। लेकिन इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज की बीमारी किस स्टेज पर थी। इलाज करने वाले डॉक्टर ही बता सकते हैं कि किस मरीज में कौन सा इलाज का तरीका सही रहेगा। लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है कि जिन्हें डायबिटीज है वो मरीज साल में एक बार अपनी आंखें  की रेटिना का इलाज जरूर कराएं।