Friday, May 20, 2022

दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता खाने से पहले आम को पानी भिगोने को क्यों कहती थीं, जानें इसके पीछे का विज्ञान

 *हमारे दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता खाने से पहले आम को पानी भिगोने को क्यों कहती थीं, जानें इसके पीछे का विज्ञान..*



*आम को खाने से पहले पानी में भिगोने का मकसद सिर्फ फलों की गंदगी और धूल को साफ करना नहीं है. जानें इसके पीछे छिपे छह वैज्ञानिक कारणों के बारे में.*
*गर्मी का मौसम यानि फलों के राजा, आम का मौसम. एक तरफ धूप, पसीना और गर्म हवाओं के बारे में सोचकर मन थोड़ा परेशान होता है, तो वहीं दूसरी तरफ आम के मीठे स्वाद के बारे में सोच कर मन खुश भी हो जाता है.* 
*आम का मौसम आते ही लोग इसके अचार, आमरस, मैंगो शेक सहित कई तरह की रेसिपी बनाने की तैयारी में जुट जाते हैं.लेकिन क्या आपने गौर किया है कि आमतौर पर घरों में हमारी दादी-नानी आम खाने से पहले इसे एक-दो घंटे के लिए पानी में भिगोकर जरूर रखती थीं !*
*उनका मानना था कि ऐसा करने से आम में लगी गंदगी और फसल में इस्तेमाल किए गए केमिकल, दोनों साफ हो जाते हैं. आम को पानी में भिगोकर रखने के पीछे यह तो एक कारण है. आईए विस्तार से जानें ऐसा करने के पीछे और कारणों के बारे में.*
*01. फाइटिक एसिड से छुटकारा*
*फाइटिक एसिड उन पोषक तत्वों (न्यूट्रिएंट्स) में से है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा और बुरा दोनों हो सकता है. इसे एक एंटी पोषक तत्व माना जाता है, जो शरीर को आयरन, जिंक, कैल्शियम और अन्य मिनरल्स को अवशोषित करने से रोकता है, जिसकी वजह से शरीर में मिनरल्स की कमी होने लगती है.*
*जाने माने न्यूट्रिशनिस्ट के अनुसार, आम में फाइटिक एसिड नाम का एक प्राकृतिक मॉलिक्युल होता है, जो कई फलों, सब्जियों और नट्स में भी पाया जाता है. फाइटिक एसिड शरीर में गर्मी पैदा करता है. जब आम को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगोया जाता है, तो इससे फाइटिक एसिड को हटाने में मदद मिलती है.*
*02. आम को भिगोकर खाने से होता है रोगों से बचाव.*
*आम को पानी में भिगोकर रखने से त्वचा की कई समस्याओं जैसे मुंहासे, फुंसियों और सिरदर्द के साथ-साथ कब्ज व आंत से संबंधित अन्य समस्याओं को रोकने में भी मदद मिलती है. आयुर्वेद विशेषज्ञ द्वारा बताया कि फलों को पानी में भिगोकर रखने से उसकी गर्मी बाहर निकल जाती है, जिससे दस्त और मुंहासे जैसी त्वचा की समस्याओं से बचने में मदद मिलती है.*
*03. केमिकल से बचाव.*
*फसल को बचाने के लिए कई तरह से कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. ये कीटनाशक जहरीले होते हैं और शरीर में जलन, एलर्जी, सिरदर्द जैसी कई परेशानियां पैदा कर सकते हैं. फलों को खाने से पहले, पानी में भिगोकर रखने से इन परेशानियों से बचा जा सकता है. इसके अलावा, ऐसा करने से इसके तने पर लगा दूधिया रस हट जाता है जिसमें फाइटिक एसिड होता है.*
*04. शरीर का सही तापमान बनाए रखना.*
*आम शरीर के तापमान को भी बढ़ाता है, जिससे थर्मोजेनेसिस का उत्पादन होता है. इसलिए, आमों को थोड़ी देर के लिए पानी में भिगोने से उनके थर्मोजेनिक गुण को कम करने में मदद मिलती है.*
*05. आम को भिगोकर खाने से फैट बर्न में मिलती है मदद.*
*आम में ढेर सारे फाइटोकेमिकल्स होते हैं.उन्हें पानी में भिगोने से उनकी कॉन्संट्रेशन कम हो जाती है, जिससे वे ‘नैचुरल फैट बस्टर’ की तरह काम करते हैं*
*आशा है कि आप सभी इसी प्रकार से आम को पानी में भिगोकर ही प्रयोग करते होंगे और अगर नहीं तो फिर आज से ही इसे शुरू किया जाना चाहिए.*

Tuesday, May 17, 2022

जो भी पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे

 एक जमाना था...


खुद ही स्कूल जाना पड़ता था क्योंकि साइकिल बस आदि से भेजने की रीत नहीं थी, स्कूल भेजने के बाद कुछ अच्छा बुरा होगा ऐसा हमारे मां-बाप कभी सोचते भी नहीं थे... 


उनको किसी बात का डर भी नहीं होता था,
🤪 पास/नापास यही हमको मालूम था... *%* से हमारा कभी भी संबंध ही नहीं था...
😛 ट्यूशन लगाई है ऐसा बताने में भी शर्म आती थी क्योंकि हमको ढपोर शंख समझा जा सकता था...
🤣🤣🤣
किताबों में पीपल के पत्ते, विद्या के पत्ते, मोर पंख रखकर हम होशियार हो सकते हैं ऐसी हमारी धारणाएं थी...
☺️☺️ कपड़े की थैली में...बस्तों में..और बाद में एल्यूमीनियम की पेटियों में...
किताब कॉपियां बेहतरीन तरीके से जमा कर रखने में हमें महारत हासिल थी.. .. 
😁 हर साल जब नई क्लास का बस्ता जमाते थे उसके पहले किताब कापी के ऊपर रद्दी पेपर की जिल्द चढ़ाते थे और यह काम...
एक वार्षिक उत्सव या त्योहार की तरह होता था..... 
🤗  साल खत्म होने के बाद किताबें बेचना और अगले साल की पुरानी किताबें खरीदने में हमें किसी प्रकार की शर्म नहीं होती थी..
क्योंकि तब हर साल न किताब बदलती थी और न ही पाठ्यक्रम...
🤪 हमारे माताजी पिताजी को हमारी पढ़ाई  बोझ है..
ऐसा कभी  लगा ही नहीं....  
😞  किसी एक दोस्त को साइकिल के अगले डंडे पर और दूसरे दोस्त को पीछे कैरियर पर बिठाकर गली-गली में घूमना हमारी दिनचर्या थी....
इस तरह हम ना जाने कितना घूमे होंगे....

🥸😎 स्कूल में मास्टर जी के हाथ से मार खाना, पैर के अंगूठे पकड़ कर खड़े रहना, और कान लाल होने तक मरोड़े जाते वक्त हमारा ईगो कभी आड़े नहीं आता था.... सही बोले तो ईगो क्या होता है यह हमें मालूम ही नहीं था...
🧐😝  घर और स्कूल में मार खाना भी हमारे दैनंदिन जीवन की एक सामान्य प्रक्रिया थी.....

मारने वाला और मार खाने वाला दोनों ही खुश रहते थे... 
मार खाने वाला इसलिए क्योंकि कल से आज कम पिटे हैं और मारने वाला  इसलिए कि आज फिर हाथ धो लिए 😀......

😜 बिना चप्पल जूते के और किसी भी गेंद के साथ लकड़ी के पटियों से कहीं पर भी नंगे पैर क्रिकेट खेलने में क्या सुख था वह हमको ही पता है... 

😁 हमने पॉकेट मनी कभी भी मांगी ही नहीं और पिताजी ने कभी दी भी नहीं....
.इसलिए हमारी आवश्यकता भी छोटी छोटी सी ही थीं....साल में कभी-कभार दो चार बार सेव मिक्सचर मुरमुरे का भेल, गोली टॉफी खा लिया तो बहुत होता था......उसमें भी हम बहुत खुश हो लेते थे.....
😲 छोटी मोटी जरूरतें तो घर में ही कोई भी पूरी कर देता था क्योंकि परिवार संयुक्त होते थे ..
🥱 दिवाली में लगी पटाखों की लड़ी को छुट्टा करके एक एक पटाखा फोड़ते रहने में हमको कभी अपमान नहीं लगा...

😁  हम....हमारे मां बाप को कभी बता ही नहीं पाए कि हम आपको कितना प्रेम करते हैं क्योंकि हमको आई लव यू कहना ही नहीं आता था...
😌 आज हम दुनिया के असंख्य धक्के और टाॅन्ट खाते हुए......
और संघर्ष करती हुई दुनिया का एक हिस्सा है..किसी को जो चाहिए था वह मिला और किसी को कुछ मिला कि नहीं..क्या पता.. 
😀 स्कूल की डबल ट्रिपल सीट पर घूमने वाले हम और स्कूल के बाहर उस हाफ पेंट मैं रहकर गोली टाॅफी बेचने वाले की  दुकान पर दोस्तों द्वारा खिलाए पिलाए जाने की कृपा हमें याद है.....
वह दोस्त कहां खो गए , वह बेर वाली कहां खो गई....
वह चूरन बेचने वाली कहां खो गई...पता नहीं.. 

😇  हम दुनिया में कहीं भी रहे पर यह सत्य है कि हम वास्तविक दुनिया में बड़े हुए हैं हमारा वास्तविकता से सामना वास्तव में ही हुआ है...

🙃 कपड़ों में सलवटें ना पड़ने देना और रिश्तों में औपचारिकता का पालन करना हमें जमा ही नहीं......
सुबह का खाना और रात का खाना इसके सिवा टिफिन में अखबार में लपेट कर रोटी ले जाने का सुख क्या है, आजकल के बच्चों को पता ही नही  ...
😀 हम अपने नसीब को दोष नहीं देते....जो जी रहे हैं वह आनंद से जी रहे हैं और यही सोचते हैं....और यही सोच हमें जीने में मदद कर रही है.. जो जीवन हमने जिया...उसकी वर्तमान से तुलना हो ही नहीं सकती ,,,,,,,,

😌  हम अच्छे थे या बुरे थे नहीं मालूम , पर हमारा भी एक जमाना था

🙏 और Most importantly , आज संकोच से निकलकर , दिल से अपने साक्षात देवी _देवता तुल्य , प्रात स्मरणीय , माता  _ पिता , भाई एवं बहन को कहना चाहता हूं कि मैं आपके अतुल्य लाड, प्यार , आशीर्वाद , लालन पालन व दिए गए संस्कारो का ऋणी हूं 🙏,
🙏🏻☺😊
एक बात तो तय मानिए को जो भी👆🏻 पूरा पढ़ेगा उसे अपने बीते जीवन के कई पुराने सुहाने पल अवश्य याद आयेंगे।🙏🏻


Thursday, May 12, 2022

बैलगाड़ी में सवार होकर से दुल्हन लेने पहुंचा दूल्हा

चमक धमक के बीच शादी समारोह का आयोजन दूल्हा या दुल्हन का सपना होता है. राजस्थान के पाली  जिले के जैतारण में चकाचौंध और आधुनिकता से दूर शादी समारोह पूरा हुआ है. यहां एक दूल्हे ने वर्षों पुरानी यादों को ताजा कर दिया है. दूल्हे राजा अपनी पूरी बारात सजी-धजी बैलगाडियों पर लेकर गए. बैलगाड़ियों में बैठी महिलाएं ने एक साथ एक सुर में विवाह गीत भी गाया. ये बारात जहां से भी निकली हर कोई इसे देख अचंभित रह गया, मानो जैसे पुराना दौर एक बार फिर से आ गया हो. वैसे तो गांवों में बैलगाडियों की पुरानी संस्कृति आज भी है लेकिन बैलगाडियों पर बारात जाना, ये अनोखा है. 



देवरिया गांव के बेरा रामर से दूल्हे की बारात मारवाड़ी अंदाज में निकली. बेरा रामर निवासी पी लक्ष्मण पंवार का दक्षिण भारत में अच्छा व्यवसाय है. शादी के अच्छे आयोजन के लिए महंगी वातानुकूलित कारें और हेलिकॉप्टर में उनके पुत्र की बारात ले जाना उनकी पहुंच से बाहर नहीं है, लेकिन दूल्हे प्रदीप पंवार की तरफ से बैलगाडियों पर बरात ले जाने का प्रस्ताव बिलकुल अलग था. आर्थिक रूप के सक्षम परिवार ने बैलगाडियों को सजाकर और उसमें बारात लेकर लड़की वालों के यहां चावण्डिया कला पहुंचे. बैलगाडियों पर बारात चावण्डिया कला में पहुंची तो देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ लग गई. पी लक्ष्मण पंवार ने बताया कि आधुनिकता के दौर में संस्कृति विलुप्त हो रही है. संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए ऐसे आयोजन होने चाहिए. इस सादगी पूर्वक बारात में शामिल लोगों के पास कारें नजर नहीं आईं. सभी बाराती करीब 2 दर्जन बैलगाडियों में बैठकर ही पहुंचे पाली जिले के ग्रामीण क्षेत्र में एक दूल्हे की बारात देखकर हर कोई चर्चा कर रहा है. क्योंकि, इस बारात में बहुत कुछ खास था. पुराने जमाने की याद दिलाने वाली तस्वीर इस बारात में नजर आएई. दूल्हे की बारात में बैलगाड़ियों में दुल्हन के दरवाजे तक पहुंची. बाराती महिला और पुरुष सभी बैलगाड़ियों में बैठकर बारात लेकर निकले. सजी-धजी बैलगाड़ियों पर निकली बारात पर ही महिलाओं ने विवाह के गीत गए. इस खूबसूरत नजारे को कई लोगों ने अपने मोबाइल में कैद किया तो कई लोगों ने खुले दिल से इसकी तारीफ भी की. कई लोग इसे पर्यावरण से भी जोड़कर अहम संदेश मान रहे हैं.


बेतहाशा महंगाई, जनता की रोजमर्रा की जीवनशैली को दे रही भारी शिकस्त हैं...!

 बेतहाशा महंगाई, जनता की रोजमर्रा की

जीवनशैली को दे रही भारी शिकस्त हैं...!
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पेट्रोल-डीजल तो ठीक लो गैस में लग गई आग, आज का यही लोक राग। सभी का यही राग 6 मई को लगाया रसोई गैस का नंबर और 977.5 रूपये ने उछाल मारा रूपये पचास की बढ़ोतरी का दूसरे दिन टंकी आई रुपये 1027.5 किसी ने दिया है पाइंट में पैसा कभी... ?, सभी ने चुकाया राउंड अप में और कीमत चुकाते हैं रुपये 1030 की क्योंकि चिल्लर नहीं मिलती, ना ही स्वीकार की जाती है।

बहुत दुख में जी रहे हैं, फिर भी जूं है कि रेंगती नहीं,
है मगर काटती भी नहीं। कुछ समय पूर्व में जाऐं या दो - तीन - चार साल के पहले की जितनी कीमतें पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस की चुकाते थे आज डबल हो गई या उससे अधिक हो गई और इसे मजबूरन हम सभी चुकाते हैं, रो-गाकर या अंधभक्ति में ताली पिटते हुए, बताऐं
आपकी आय डबल हुई क्या या नौकरी पेशा, पेंशनर्स की आय बढ़ी, नहीं बढ़ी ना तो हासिल में आई महंगाई। अब ठोको ताली या गाल बजाओ या गाल फुलाओ। महंगाई बढ़ा रहे, टेक्स बढ़ा रहे, जीएसटी बढ़ा रहे। इनसे बड़े व्यापारी, बिजनेसमेन कमा रहे हैं, टेक्सों से सरकार अरबों
रूपये कमाती हैं फिर कर्मचारियों, पेंशनरों को महंगाई भत्ता, राहत देने में राज्यों की सरकार जान बूझकर मुंह
चुराती हैं। जो लोग ताली पिटते हैं, महंगाई के विकास पर शायद वो अधिक संपन्न होंगे या वो लोग नौकरी-धंधा करने वाले या घर के किसी पेंशनर्स से इस बारे में पूछ सकते हैं। महंगाई बढ़ रही है, देश तरक्की कर रहा हैं आपका विकास हो रहा है और आपको कैसा लग रहा है।

आज खाद्यान्न महंगे हैं, तेल, अनाज, मसाले यहां तक की ईंधन (रसोई गैस) सब महंगे, इन सबकी कमाई, कहीं न कहीं, किसी न किसी की जेब में जा रही हैं, ये है कि फ्री में
बांटे जा रहे हैं, राहत के नाम पर कुछ प्रतिशत लोगों को,
उन्हें कमाऊ नहीं बनाना हैं, उन्हें फ्री की आदत लगाककर
आलसी बनाना हैं, एक बड़ी आबादी से मिलें करों के राजस्व को बर्बाद करना हैं इससे अच्छा है कि महंगाई कम करें, वस्तुओं की कीमतें कम करेंगे तो सारी जनता
काम भी करेगी और कमायेगी भी तथा खर्च भी करेगी और महंगाई कम होने का, कीमतें कम होने का लाभ सारी जनता को समान रूप से मिलेगा।

आज सब जगह भटकाव हैं जिम्मेदारी से एवं सामंतशाही
वर्तमान में भी मौजूद हैं, नये रंग में, विरोधियों को इसका असर लोकतंत्र में भी साफ नजर आता है। कर्तव्य से ध्यान दूसरी ओर भटकाये रहते हैं और फिर ध्यान किसी
ओर बखेड़े, मुद्दे  जो अनुपयोगी होता है पर डलवा दिया जाता है। आज भी पुराने मुद्दे वृहद ओर बदले स्वरूप में मौजूद हैं वह भी विकराल होकर। सबका साथ लेकर सबका विकास होता है, महंगाई बढ़ती है सब पर समान रुप से और विकास का मौका व्यापारी, बिजनेसमेन, उद्योगपतियों को कमाई करने का मिलता है। फिर फ्री
के चस्के का भुगतान भी जनता से प्राप्त टेक्स से चुकाया जाता है, जो चुकाते हैं उन पर टेक्स और लादकर
होता है, इतना ही नहीं, कर्ज लेकर भी फ्री-फ्री दे दिया जाता हैं और फिर टेक्स पेयी जनता से टेक्स बढ़ाकर
वसूला जाता है। फिर फ्री जो फ्री ले रहा वह था और है और आगे भी फ्री लेता रहेगा, यही विडंबना हैं।

महंगाई, गरीबी, बेकारी, बढ़ती आबादी, पर्यावरण
ऐसी समस्याएं हैं जो थी, है, और आगे भी बढ़ती रहेगी,
कभी खत्म नहीं होगी। जनता पर राज करने वालों से सीखना चाहिए कि बिना ईंधन और माचिस के कैसे आग लगाई जाती है चूल्हों में, पेट में, आंखों में, दिलोदिमाग में,
बिना आग या हीटर, माइक्रोवेव के खाने की थाली कैसे
गरम की जाती ही नहीं हैं बल्कि जलाई जाती है।
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाना, किसी समय विपरीत दल की सरकार में आंदोलन करने वाले दल को वर्तमान में क्यों फीलगुड करता हैं। महिलाओं
की रसोई गैस की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि कर करोड़ों
परिवारों को दुखी कर दिया इसका रत्तीभर भी रंजोगम
नहीं। ये कैसा सबका विकास है।

इस बढ़ती महंगाई ने देश की दुखी जनता को निचोड़कर
रख दिया है, जनता ने देखा है कि कोरोना से त्रस्त जनता
की आवश्यकता की वस्तुओं और रोटी, कपड़ा, मकान
की जरूरतें चालीस-पचास फीसदी महंगी हो गई है। ऊपर से प्रदेश के पेंशनरों की राहत नहीं बढ़ी होने से
ये वर्ग भयंकर नाराज और दुखी हैं यह वर्ग नम आंखों से
मध्यप्रदेश सरकार की ओर देख रहा है। सब मिलकर देश की गरीब जनता को महंगाई शिकस्त दे रही है, जीवन शैली बदल गई हैं  और  फिर हो सकता है कि इसका कोई परिणाम भविष्य में या चुनावों में अवश्य दिखाई दे सकता हैं।


- मदन वर्मा " माणिक "
  इंदौर, मध्यप्रदेश