Thursday, May 12, 2022

बैलगाड़ी में सवार होकर से दुल्हन लेने पहुंचा दूल्हा

चमक धमक के बीच शादी समारोह का आयोजन दूल्हा या दुल्हन का सपना होता है. राजस्थान के पाली  जिले के जैतारण में चकाचौंध और आधुनिकता से दूर शादी समारोह पूरा हुआ है. यहां एक दूल्हे ने वर्षों पुरानी यादों को ताजा कर दिया है. दूल्हे राजा अपनी पूरी बारात सजी-धजी बैलगाडियों पर लेकर गए. बैलगाड़ियों में बैठी महिलाएं ने एक साथ एक सुर में विवाह गीत भी गाया. ये बारात जहां से भी निकली हर कोई इसे देख अचंभित रह गया, मानो जैसे पुराना दौर एक बार फिर से आ गया हो. वैसे तो गांवों में बैलगाडियों की पुरानी संस्कृति आज भी है लेकिन बैलगाडियों पर बारात जाना, ये अनोखा है. 



देवरिया गांव के बेरा रामर से दूल्हे की बारात मारवाड़ी अंदाज में निकली. बेरा रामर निवासी पी लक्ष्मण पंवार का दक्षिण भारत में अच्छा व्यवसाय है. शादी के अच्छे आयोजन के लिए महंगी वातानुकूलित कारें और हेलिकॉप्टर में उनके पुत्र की बारात ले जाना उनकी पहुंच से बाहर नहीं है, लेकिन दूल्हे प्रदीप पंवार की तरफ से बैलगाडियों पर बरात ले जाने का प्रस्ताव बिलकुल अलग था. आर्थिक रूप के सक्षम परिवार ने बैलगाडियों को सजाकर और उसमें बारात लेकर लड़की वालों के यहां चावण्डिया कला पहुंचे. बैलगाडियों पर बारात चावण्डिया कला में पहुंची तो देखने के लिए ग्रामीणों की भीड़ लग गई. पी लक्ष्मण पंवार ने बताया कि आधुनिकता के दौर में संस्कृति विलुप्त हो रही है. संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए ऐसे आयोजन होने चाहिए. इस सादगी पूर्वक बारात में शामिल लोगों के पास कारें नजर नहीं आईं. सभी बाराती करीब 2 दर्जन बैलगाडियों में बैठकर ही पहुंचे पाली जिले के ग्रामीण क्षेत्र में एक दूल्हे की बारात देखकर हर कोई चर्चा कर रहा है. क्योंकि, इस बारात में बहुत कुछ खास था. पुराने जमाने की याद दिलाने वाली तस्वीर इस बारात में नजर आएई. दूल्हे की बारात में बैलगाड़ियों में दुल्हन के दरवाजे तक पहुंची. बाराती महिला और पुरुष सभी बैलगाड़ियों में बैठकर बारात लेकर निकले. सजी-धजी बैलगाड़ियों पर निकली बारात पर ही महिलाओं ने विवाह के गीत गए. इस खूबसूरत नजारे को कई लोगों ने अपने मोबाइल में कैद किया तो कई लोगों ने खुले दिल से इसकी तारीफ भी की. कई लोग इसे पर्यावरण से भी जोड़कर अहम संदेश मान रहे हैं.


बेतहाशा महंगाई, जनता की रोजमर्रा की जीवनशैली को दे रही भारी शिकस्त हैं...!

 बेतहाशा महंगाई, जनता की रोजमर्रा की

जीवनशैली को दे रही भारी शिकस्त हैं...!
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पेट्रोल-डीजल तो ठीक लो गैस में लग गई आग, आज का यही लोक राग। सभी का यही राग 6 मई को लगाया रसोई गैस का नंबर और 977.5 रूपये ने उछाल मारा रूपये पचास की बढ़ोतरी का दूसरे दिन टंकी आई रुपये 1027.5 किसी ने दिया है पाइंट में पैसा कभी... ?, सभी ने चुकाया राउंड अप में और कीमत चुकाते हैं रुपये 1030 की क्योंकि चिल्लर नहीं मिलती, ना ही स्वीकार की जाती है।

बहुत दुख में जी रहे हैं, फिर भी जूं है कि रेंगती नहीं,
है मगर काटती भी नहीं। कुछ समय पूर्व में जाऐं या दो - तीन - चार साल के पहले की जितनी कीमतें पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस की चुकाते थे आज डबल हो गई या उससे अधिक हो गई और इसे मजबूरन हम सभी चुकाते हैं, रो-गाकर या अंधभक्ति में ताली पिटते हुए, बताऐं
आपकी आय डबल हुई क्या या नौकरी पेशा, पेंशनर्स की आय बढ़ी, नहीं बढ़ी ना तो हासिल में आई महंगाई। अब ठोको ताली या गाल बजाओ या गाल फुलाओ। महंगाई बढ़ा रहे, टेक्स बढ़ा रहे, जीएसटी बढ़ा रहे। इनसे बड़े व्यापारी, बिजनेसमेन कमा रहे हैं, टेक्सों से सरकार अरबों
रूपये कमाती हैं फिर कर्मचारियों, पेंशनरों को महंगाई भत्ता, राहत देने में राज्यों की सरकार जान बूझकर मुंह
चुराती हैं। जो लोग ताली पिटते हैं, महंगाई के विकास पर शायद वो अधिक संपन्न होंगे या वो लोग नौकरी-धंधा करने वाले या घर के किसी पेंशनर्स से इस बारे में पूछ सकते हैं। महंगाई बढ़ रही है, देश तरक्की कर रहा हैं आपका विकास हो रहा है और आपको कैसा लग रहा है।

आज खाद्यान्न महंगे हैं, तेल, अनाज, मसाले यहां तक की ईंधन (रसोई गैस) सब महंगे, इन सबकी कमाई, कहीं न कहीं, किसी न किसी की जेब में जा रही हैं, ये है कि फ्री में
बांटे जा रहे हैं, राहत के नाम पर कुछ प्रतिशत लोगों को,
उन्हें कमाऊ नहीं बनाना हैं, उन्हें फ्री की आदत लगाककर
आलसी बनाना हैं, एक बड़ी आबादी से मिलें करों के राजस्व को बर्बाद करना हैं इससे अच्छा है कि महंगाई कम करें, वस्तुओं की कीमतें कम करेंगे तो सारी जनता
काम भी करेगी और कमायेगी भी तथा खर्च भी करेगी और महंगाई कम होने का, कीमतें कम होने का लाभ सारी जनता को समान रूप से मिलेगा।

आज सब जगह भटकाव हैं जिम्मेदारी से एवं सामंतशाही
वर्तमान में भी मौजूद हैं, नये रंग में, विरोधियों को इसका असर लोकतंत्र में भी साफ नजर आता है। कर्तव्य से ध्यान दूसरी ओर भटकाये रहते हैं और फिर ध्यान किसी
ओर बखेड़े, मुद्दे  जो अनुपयोगी होता है पर डलवा दिया जाता है। आज भी पुराने मुद्दे वृहद ओर बदले स्वरूप में मौजूद हैं वह भी विकराल होकर। सबका साथ लेकर सबका विकास होता है, महंगाई बढ़ती है सब पर समान रुप से और विकास का मौका व्यापारी, बिजनेसमेन, उद्योगपतियों को कमाई करने का मिलता है। फिर फ्री
के चस्के का भुगतान भी जनता से प्राप्त टेक्स से चुकाया जाता है, जो चुकाते हैं उन पर टेक्स और लादकर
होता है, इतना ही नहीं, कर्ज लेकर भी फ्री-फ्री दे दिया जाता हैं और फिर टेक्स पेयी जनता से टेक्स बढ़ाकर
वसूला जाता है। फिर फ्री जो फ्री ले रहा वह था और है और आगे भी फ्री लेता रहेगा, यही विडंबना हैं।

महंगाई, गरीबी, बेकारी, बढ़ती आबादी, पर्यावरण
ऐसी समस्याएं हैं जो थी, है, और आगे भी बढ़ती रहेगी,
कभी खत्म नहीं होगी। जनता पर राज करने वालों से सीखना चाहिए कि बिना ईंधन और माचिस के कैसे आग लगाई जाती है चूल्हों में, पेट में, आंखों में, दिलोदिमाग में,
बिना आग या हीटर, माइक्रोवेव के खाने की थाली कैसे
गरम की जाती ही नहीं हैं बल्कि जलाई जाती है।
पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाना, किसी समय विपरीत दल की सरकार में आंदोलन करने वाले दल को वर्तमान में क्यों फीलगुड करता हैं। महिलाओं
की रसोई गैस की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि कर करोड़ों
परिवारों को दुखी कर दिया इसका रत्तीभर भी रंजोगम
नहीं। ये कैसा सबका विकास है।

इस बढ़ती महंगाई ने देश की दुखी जनता को निचोड़कर
रख दिया है, जनता ने देखा है कि कोरोना से त्रस्त जनता
की आवश्यकता की वस्तुओं और रोटी, कपड़ा, मकान
की जरूरतें चालीस-पचास फीसदी महंगी हो गई है। ऊपर से प्रदेश के पेंशनरों की राहत नहीं बढ़ी होने से
ये वर्ग भयंकर नाराज और दुखी हैं यह वर्ग नम आंखों से
मध्यप्रदेश सरकार की ओर देख रहा है। सब मिलकर देश की गरीब जनता को महंगाई शिकस्त दे रही है, जीवन शैली बदल गई हैं  और  फिर हो सकता है कि इसका कोई परिणाम भविष्य में या चुनावों में अवश्य दिखाई दे सकता हैं।


- मदन वर्मा " माणिक "
  इंदौर, मध्यप्रदेश

पार्थ सारथी तलास एक नई राह


 हे जग सारथी अब टूट रहा है इंसान ।
 एक बार को पुनः सुसज्जित
 कुरुक्षेत्र का यह मैदान ।।

उस रथ पर तो एक धनुर्धर 
न्याय पताका ले बैठा था ।
 अब तो ना रथ और रथी 
केवल तेरा आसरा है ।।

 असत्य पर सत्य कैसे जीतता 
इसका राह दिखाया था ।
 आज दोनो साथ बैठा है 
जनता भ्रमित सा दिखता है ।।

 धर्म विजय के खातिर तुमने
 वहाँ दिया गीता का ज्ञान ।
अहंकारी और दंभी को
 दिखाया अपना होने का प्रमाण ।।

 अब तो सब दंभी ही 
अपने को समझते हैं भगवान ।
एक बार तुम रथ सजाकर
 करवा दो अपना भान ।।

 हे पीत वसन धारी हे लीलाधर, 
दिखलाओ अपनी लीला ।
 भारतवर्ष की पुण्य धरा 
भूल रही आपकी लीला ।।

 वाका काका पूतना आदि
 शर ताने हो रहा खड़ा ।
 कान्हा के उस बाल रूप का 
जनता कर रहा आशा ।।

 कंस का आतंक अब 
फिर फैला है चारों ओर ।
मुरली छोड़ो कान्हा अब 
शांति कर दो चारों ओर ।।

 जरासंध का अत्याचार अब 
फैल रहा संपूर्ण भूभाग ।
अधर्मी और अताताई का
 संघार कौन करेगा आज ।।

 कुटिलों की कुटिल चालें अब
 एक जगह एकत्रित है ।
इस चक्रव्यूह में फंसे आम जन, 
वेधने की जरूरत है ।।

 तुम तो हो न्याय रथी फिर
 अन्याय कैसे देख सकते हो ।
जरूरत हो तो पुनः एक
 पार्थ तो तैयार कर सकते हो ।।

 पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बैठा,
 पुत्र मोह में द्रोण है ।
अब ना कोई गंगा पुत्र 
और ना विदुर का कोई ज्ञान है ।।

 अब तो बस एक ही चिंता 
सत्ता कैसे लूटें ।
आम जन में भ्रम फैला कर 
जनता को कैसे लूटें ।।

 शकुनि का बस एक काम 
छल और प्रपंच बढ़ाना ।
लाक्षागृह में जो भी हो 
उसमें आग लगाना ।।

 आर्यावर्त कि यह पुण्य धरा
 गवाही इस बात का देता ।
जब जब धरा पर अन्याय बढ़ा
 तेरा ही अवतारण होता ।।

 मन में बस एक प्रश्न -
क्या अन्याय की घड़ा है भरने वाली ?
और अपने क्या एक समर्थ 
पार्थ की खोज कर दी जारी ??

 हाथ जोड़ बस एक निवेदन
 धर्म पताका अब पुनः लहराओ ।
अधर्म का मर्दन कर
 आम जन को सत्य पथ दिखलाओ ।।
श्री कमलेश झा
नगरपारा भागलपुर 

हर वर्ष पुनरावृति करने वाला संक्रमण करोनाl घबराइए नहीं सिर्फ सावधान रहिए

करोना कभी न नष्ट होने वाला वाला ऐसा जानलेवा संक्रमण है जिसके महीनों तथा वर्ष के अंतराल में लौट लौट कर मानव शरीर में आने की संभावना सदैव बनी रहती है । वैज्ञानिकों ने पुष्टि की है कि करोना संक्रमण के वैरीअंट को समूचा खत्म नहीं किया जा सकता उसकी केवल प्रीवेंटिव मेडिसिन या वैक्सीन ही ली जा सकती है। करोना से दूर रहने के लिए केवल और केवल सावधानी और चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा दी गई गाइडलाइंस का ही पालन करना होगा, अन्यथा करोना जानलेवा तो है ही। क्या आपको नहीं लगता एक दूसरे के संक्रमण से फैलने वाला भयानक करोना सिर्फ प्राकृतिक विपदा एवं प्राकृतिक असंतुलन का नतीजा है, बल्कि कुछ मांस भक्षी लोगों मानसिक असंतुलन का भी भयानक परिणति है। प्रकृति ने हमें पहले से ही सचेत करके रखा था, पहले सुनामी, बाढ़, सूखा और भूस्खलन के परिणामों से हमें आगाह किया था और न जाने इन भयानक विपदाओं से कितने लोग काल के गाल में समा चुके हैं। हर वर्ष सुनामी,भूस्खलन,बाढ़ से मरने वालों की संख्या हजारों में होती रही है, पर कुछ देशों के नागरिकों के मानसिक संतुलन का क्या कहें, जिन्हें सब्जी,भाजी,दूध,फल, सूखे मेवे को छोड़कर कुत्ता, बिल्ली,सांप, चमगादड़, सूअर खाने की न जाने क्यों इच्छा बलवती हुई है,और उन्होंने इसका रोजमर्रा की जिंदगी में सेवन करना शुरू कर दिया,चीन सहित विश्व में कई ऐसे देश है जो हर जंतु के मांस का खाने में रोज इस्तेमाल कर नई-नई बीमारियों को जन्म दे रहे हैं। चीन के द्वारा चमगादड़, सांप, केकड़े और ना जाने कितने जीव जंतुओं का मांस अपने आहार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और इसी की परिणति हुई है कि चमगादड़ में नाना प्रकार के प्रयोग कर करोना वायरस जैसे भयानक संक्रमण वाली बीमारी की उत्पत्ति कर दी और यही करोना वायरस ने पूरे विश्व में मौत का तांडव मचा कर लाखों लोगों की मृत्यु का कारण भी बना है। यह मानवीय मानसिक आसंतुलन तथा दिवालियापन का एक भयानक परिणाम है। जिसकी एकदम सही और सटीक इलाज खोजने में चिकित्सकों को वैज्ञानिकों को सिर से पैर तक पसीना छूट गया है। फिर भी इस कोविड-19 के वायरस का 100% इलाज नहीं खोज पाए हैं। पृथ्वी में बहुत सारी सकारात्मक चीजें हैं जल, वायु, मृदा तत्व, पेड़, झरने,समुद्र, तालाब,नदियां इन सब का सकारात्मक इस्तेमाल कर मानव धरती को समृद्ध तथा मालामाल करता आया है, एवं अपने जीवन यापन हेतु सुचारू रूप से सब्जियां, फल,आयुर्वेदिक दवाएं और न जाने कितने मृदा तत्व जिनमें हीरे,मोती, जवाहर, लोहा,पीतल, तांबा,सोना,चांदी आदि निकालकर जीवन को सुचारू रूप से संचालित करने हेतु सफल हुआ है। पर कुछ लोगों ने दिमागी असंतुलन के चलते मूक जानवरों का वध करके उसे भोजन की वस्तु बनाकर प्राकृतिक असंतुलन बढ़ाने का जोखिम उठाया, इसी तरह पेड़, जल, मिट्टी, वायु का संरक्षण न करके उसने अप्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करके विश्व का तापमान बढ़ाकर मानव जाति के लिए अनेक खतरे एवं मुसीबतें पैदा कर ली है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्यावरण असंतुलित हो गया है। पर्यावरण प्रदूषण हमारी आधुनिक जीवन शैली के कारण बुरी तरह से शहरों में फैला हुआ है।पर्यावरण प्रदूषण तथा तापमान असंतुलन भी वैश्विक स्तर पर लाखों लोगों की मौत का कारण बना। प्रकृति के इस भयानक असंतुलन के कारण हर शहर हर देश में लाखों लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं, पर मानसिक असंतुलन के कारण न सिर्फ मानव शरीर नष्ट हो रहा है, बल्कि लाखों निरीह जानवर, जीव,जंतु भी मौत के घाट उतार दिए गए। चीन और विश्व के आदिवासी बाहुल्य देश के लोग सांप बिच्छू, चमगादड़ एवं अन्य जीव-जंतुओं का शिकार कर अपने मानसिक असंतुलन का परिचय देकर अपने पेट के दावानल को शांत कर रहे हैं। ऐसा सामान्य मनुष्य सोच भी नहीं सकता। ऐसे में प्रकृति भी इस प्राकृतिक असंतुलन तथा मानसिक दिवालियापन को आत्मसात ना करके प्रक्रियागत नाना प्रकार की बीमारियों तथा मृत्यु के अनेक कारणों को जन्म दे रही है। बहुत महत्वपूर्ण बात यह है की वैश्विक स्तर पर करोना ने अलग-अलग देशों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया है। और इस महामारी के जनक चीन पर कोई क्रिया प्रतिक्रिया या व्यापारिक सामाजिक नागरिक रोक तथा प्रतिबंध लगाने पर किसी भी देश में संगठित होकर विचार नहीं किया। चीन द्वारा यह एक तरह का केमिकल अस्त्र इस्तेमाल कर अपनी मानव विरोधी मानसिक स्थिति को उजागर किया है।आपको ऐसा नहीं लगता है कि चीन इसी तरह के अन्य रासायनिक अथवा जैविक अस्त्रों का इस्तेमाल कर पूरे विश्व को एवं मानव जाति को भविष्य में भी खतरे में डाल सकता है, क्योंकि चीन और वहां का शासन तंत्र पूरी तरह अपने औपनिवेशिक वादी और विस्तार वादी इरादों को लेकर पूरी तरह कटिबद्ध है। चीन की साजिश के तहत यह वायरस पूरे विश्व में फैला है। अतः वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ को वैश्विक स्तर पर विश्व के हर राष्ट्र पर इस तरह के किसी भी रासायनिक अथवा जैविक प्रयोग पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर उसे संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता से निष्कासित कर, इस घृणित कार्य के लिए प्रताड़ित एवं प्रतिबंधित किया जाना चाहिए ,अन्यथा मानव जाति का भविष्य इसी तरह के रसायनिक तथा जैविक हथियारों की बलि चढ़ता रहेगा एवं उत्तर कोरिया तथा चीन जैसे देशों के हुक्मरानों के मानसिक दिवालियापन के कारण अनेक खतरनाक एवं शरीर को नष्ट करने वाले केमिकल अस्त्र शस्त्र भविष्य में संपूर्ण मानवीय जीवन से भी खेलते रहेंगे और लोग इसी तरह मृत्यु की भेंट चढ़ते रहेंगे, यह एक वैश्विक समस्या बनकर सामने खड़ी हुई है। इसका निदान अत्यंत आवश्यक है।

संजीव ठाकुर,स्वतंत्र लेखक, रायपुर, छत्तीसगढ़,