Wednesday, March 2, 2022

जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व की दी बधाई

(रवि कुमार भार्गव

को-आर्डिनेटर अयोध्या टाइम्स बिहार)

दिनांक -01/03/2022

सीतामढ़ी:-जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व की दी बधाई।

जिलाधिकारी सुनील कुमार यादव ने समस्त जिलेवासियों को महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर उन्हें हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि  आपसी प्रेम, पारस्परिक सौहार्द्र एवं सामाजिक सद्भाव के साथ महाशिवरात्रि का पर्व मनाएं। यह पर्व समस्त जिलेवासियों के जीवन मे  सुख, शांति और समृद्धि लेकर आए।

सजग रहे,सतर्क रहें,मास्क पहनकर ही बाहर निकले,सदैव सामाजिक दूरी का पालन करे,किसी भी प्रकार के लक्षण महसूस होने पर अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर सम्पर्क करें। हमेशा कोरोना गाइडलाइन का जरूर पालन करे। हम सब मिलकर ही कोरोना संक्रमण के चेन को रोक सकते है।

अरसीकेरे कर्नाटक का भव्य प्राचीन सहस्रकूट मंदिर

 

Monday, February 28, 2022

हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बनती है यात्रा

जब शिवरात्रि आती है तो अनेक शिव भक्त कांवड़ कांवड़ लाने के लिए जाते हैं। जिन रास्तों से कांवड़िए टोली की टोली बनाकर निकलते हैं, ऐसा लगता मानो स्वयं भोले बाबा और उनके सभी गण कैलाश पर्वत से उन रास्तों पर उतर आए हों। रास्तों पर कांवड़िए बम-भोले, बम-भोले की जय-जय कार करते हुए नाचते गाते चलते हैं। कांवड़िए शिव भक्ति में ऐसे लीन रहते की उन्हें किसी भी दर्द का अनुभव नहीं होता परन्तु बहुत से कांवड़ियों के पैरों में छाले पड जाते हैं और कुछ के पैरों में सूजन आ जाती हैं तथा कुछ की टांगे बहुत दर्द करती हैं इसलिए इनके विश्राम के लिए कदम कदम पर स्थानीय लोगों द्वारा विश्राम गृह की व्यवस्था की जाती है। जहां पर कांवड़ियों के लिए उचित जल-पान की व्यवस्था की जाती है। कांवड़ियों के पैरों को लोग अपने हाथों द्वारा गर्म पानी से धोते है ताकि उनके दर्द भरे पैरों को आराम मिल सके और उनके पैरो को धीरे-धीरे हाथों से दबाया जाता है। भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, मेवा, मिठाईयां और अन्य भोज्य पदार्थों की व्यवस्था करते हैं। कांवड़ियों के सोने के लिए भी उचित व्यवस्था करते हैं। लेकिन सभी को अधिकतर यही पता है कि हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं परन्तु ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं बल्कि बहुत से मुस्लिम भी उन रास्तों पर जिन रास्तों से कांवड़िए गुजरते हैं जगह जगह विश्राम गृह बनाकर कांवड़ियों के जल पान और विश्राम की व्यवस्था करते हैं। हिन्दूओं की तरह ही पूरे श्रद्धा भाव से उनके पैर गर्म पानी से अपने हाथों द्वारा मलमलकर धोते हैं और पैरों को भी धीरे-धीरे दबाते हैं ताकि कांवड़ियों को आराम मिले। वह भी फल, मेवा, मिठाईयां और उचित भोजन की सुन्दर व्यवस्था करते हैं। सच मानिए जब ऐसा होता है तब हिन्दू मुस्लिम एकता का ऐसा संदेश दुनिया के सामने आता है कि जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। ऐसे लोग दुनिया के सामने ये सिद्ध कर देते हैं कि सबका मालिक एक है। भगवान और अल्लाह उसी मालिक के विभिन्न रुपों में से दो रूप हैं जिन्हें उस मालिक ने नहीं बल्कि मानव ने बनाया है। इसलिए हमें जातियों में न बटकर सिर्फ मानवता के गुण को अपनाना चाहिए। सभी सिर्फ मनुष्य है जिनका रुप रंग और वेशभूषा अलग है परन्तु आत्मा और खून समान है। सभी के खून का रंग लाल ही है। धन्य है वो कांवड़िए जो मुस्लिमों के सेवा भाव के प्रस्ताव को स्वीकार कर उन्हें सेवा का मौका देते हैं और उनसे भी अधिक धन्य हैं वो मुस्लिम जो कांवड़ियों की सेवा कर हिंदू मुस्लिम में भाईचारा, प्रेम और शांति कायम करने में सहायता करतें हैं। साथ ही उन लोगों को सख़्त संदेश देते हैं जो समाज में नफ़रत फैलाने में लगे हुए हैं कि तुम कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन हिंदू मुस्लिम भाईचारे को कभी खत्म नहीं कर सकते हो। कांवड़ यात्रा के समय ऐसे दृश्यों को देखकर सभी के मन में भाईचारे की भावना हिलोरें मारने लगती है और ऐसी प्रेरणा का जन्म होता है जिसे हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे की मदद के लिए आगे आने लगते हैं। यही से समाज में फैली नफ़रत का कांटों से भरा पेड़ सुखने लगता है और भाईचारे का सुन्दर रंग बिरंगी फूलों से भरा पेड़ बहुत तेजी से पनपने लगता है।

लेखक-
नितिन राघव

आप देखते रह गए...

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657

पता नहीं कहाँ से आया था। न जाने किस उम्मीद के साथ आया था। एक दुबला-पतला कुत्ता हमारे आंगन में निरीह आँखों से हमारी ओर देख रहा था। रह-रहकर भौंकने लगा। लगा हमारी देख-रेख करने आया है। विश्वासपात्र बनकर रहेगा। यही सोचकर रोटी का एक टुकड़ा उसे खाने के लिए दे दिया। दिन, महीने बने और महीने साल। कई सालों तक वह इसी तरह भौंकता रहा। वह बार-बार विश्वास दिलाता रहा कि मैं तुम्हारी देख-रेख कर रहा हूँ। तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ।

कई सालों से उसी आंगन में रहने वाले लोगों पर उसका भौंकना कभी-कभार काटना हमें सोचने पर मजबूर कर रहा था। उसके भौंकने में इतना आक्रोश था कि मानो वह किसी अन्याय का विरोध कर रहा है। लगा कुत्ता भला हमारे साथ विश्वासघात कैसे कर सकता है? हो न हो हमीं में कोई ऐसा है जो धोखा देने की फिराक में बैठा है। हमने भौंकने वाले कुत्ते के चक्कर में अपने प्रति सहानुभूति रखने वालों को दूर करने के लिए आंगन में चारदिवारी खड़ी कर दी। बहुत सालों तक मिलजुलकर रहने वाले हम बाहर से आए कुत्ते के चलते अलग-थलग पड़ गए। अब हममें पहले जैसा प्यार नहीं रहा। अपना चूल्हा अलग कर चुके थे। एक-दूसरे को पीठ दिखाकर पीठ पीछे षड़यंत्र रचने लगे। एक-दूसरे पर लाठियाँ चलाने लगें। एक-दूसरे के खून के प्यासे बन गए।

हम निश्चिंत हो चले थे कि कोई हमारा क्या बिगाड़ सकता है? चूंकि आंगन में शेर जैसा कुत्ता पाल रखा है मजाल कोई हमारी ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत करे। कहते हैं अधिक निश्चिंतता भी एक बड़े खतरे का सबब होता है। हमने अपने कुत्ते पर बहुत विश्वास किया। उसे कुत्ते से शेर बनाया। खुद को शेर सा महसूस करने लगे। किंतु जिस दिन वह कुत्ता शेर बना उसी दिन से एक नया अध्याय आरंभ हुआ।

अब वह शेर बनकर हमारे खून का प्यासा बन चुका था। वह हमारी बनाई चारदीवारी के भीतर हमारा शिकार करने लगा। हमसे खिलवाड़ करने लगा। अलग-थलग पड़ने से एकता कम और संवेदना अधिक मरती है। हमारी कराह की किसी को परवाह नहीं थी। कुत्ते से शेर बनना और भरोसा से धोखा खाना हमारी वर्तमान पीढ़ी के लिए नई बोतल में पुरानी शराब सी लगी। हम अपनी बनायी संकीर्णताओं की चारदीवारी के भीतर फंसकर रह गए। हमारे टुकड़ों पर पला कुत्ता शेर जो बन गया था! न अपना दुखड़ा सुना सकते थे और न किसी का सुन सकते थे। निस्सहायता की पराकाष्ठा इससे बढ़कर और क्या हो सकती थी? कतार में खड़े होकर शेर का शिकार बनने का यह किस्सा हमेशा से चला आ रहा है। चूंकि हम इंसान नहीं भेड़ थे, भेड़ हैं और भेड़ ही रहेगें इसलिए यह किस्सा हमारे साथ हमेशा दोहराया जाएगा।  अंतर केवल इतना होगा कि कुत्ते की शक्ल में शेर और इंसान की शक्ल में भेड़ बदलते रहेंगे।     

Attachments area