जब शिवरात्रि आती है तो अनेक शिव भक्त कांवड़ कांवड़ लाने के लिए जाते हैं। जिन रास्तों से कांवड़िए टोली की टोली बनाकर निकलते हैं, ऐसा लगता मानो स्वयं भोले बाबा और उनके सभी गण कैलाश पर्वत से उन रास्तों पर उतर आए हों। रास्तों पर कांवड़िए बम-भोले, बम-भोले की जय-जय कार करते हुए नाचते गाते चलते हैं। कांवड़िए शिव भक्ति में ऐसे लीन रहते की उन्हें किसी भी दर्द का अनुभव नहीं होता परन्तु बहुत से कांवड़ियों के पैरों में छाले पड जाते हैं और कुछ के पैरों में सूजन आ जाती हैं तथा कुछ की टांगे बहुत दर्द करती हैं इसलिए इनके विश्राम के लिए कदम कदम पर स्थानीय लोगों द्वारा विश्राम गृह की व्यवस्था की जाती है। जहां पर कांवड़ियों के लिए उचित जल-पान की व्यवस्था की जाती है। कांवड़ियों के पैरों को लोग अपने हाथों द्वारा गर्म पानी से धोते है ताकि उनके दर्द भरे पैरों को आराम मिल सके और उनके पैरो को धीरे-धीरे हाथों से दबाया जाता है। भोजन में विभिन्न प्रकार के फल, मेवा, मिठाईयां और अन्य भोज्य पदार्थों की व्यवस्था करते हैं। कांवड़ियों के सोने के लिए भी उचित व्यवस्था करते हैं। लेकिन सभी को अधिकतर यही पता है कि हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं परन्तु ऐसा नहीं है कि केवल हिन्दू ही कांवड़ियों की सेवा करते हैं बल्कि बहुत से मुस्लिम भी उन रास्तों पर जिन रास्तों से कांवड़िए गुजरते हैं जगह जगह विश्राम गृह बनाकर कांवड़ियों के जल पान और विश्राम की व्यवस्था करते हैं। हिन्दूओं की तरह ही पूरे श्रद्धा भाव से उनके पैर गर्म पानी से अपने हाथों द्वारा मलमलकर धोते हैं और पैरों को भी धीरे-धीरे दबाते हैं ताकि कांवड़ियों को आराम मिले। वह भी फल, मेवा, मिठाईयां और उचित भोजन की सुन्दर व्यवस्था करते हैं। सच मानिए जब ऐसा होता है तब हिन्दू मुस्लिम एकता का ऐसा संदेश दुनिया के सामने आता है कि जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। ऐसे लोग दुनिया के सामने ये सिद्ध कर देते हैं कि सबका मालिक एक है। भगवान और अल्लाह उसी मालिक के विभिन्न रुपों में से दो रूप हैं जिन्हें उस मालिक ने नहीं बल्कि मानव ने बनाया है। इसलिए हमें जातियों में न बटकर सिर्फ मानवता के गुण को अपनाना चाहिए। सभी सिर्फ मनुष्य है जिनका रुप रंग और वेशभूषा अलग है परन्तु आत्मा और खून समान है। सभी के खून का रंग लाल ही है। धन्य है वो कांवड़िए जो मुस्लिमों के सेवा भाव के प्रस्ताव को स्वीकार कर उन्हें सेवा का मौका देते हैं और उनसे भी अधिक धन्य हैं वो मुस्लिम जो कांवड़ियों की सेवा कर हिंदू मुस्लिम में भाईचारा, प्रेम और शांति कायम करने में सहायता करतें हैं। साथ ही उन लोगों को सख़्त संदेश देते हैं जो समाज में नफ़रत फैलाने में लगे हुए हैं कि तुम कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन हिंदू मुस्लिम भाईचारे को कभी खत्म नहीं कर सकते हो। कांवड़ यात्रा के समय ऐसे दृश्यों को देखकर सभी के मन में भाईचारे की भावना हिलोरें मारने लगती है और ऐसी प्रेरणा का जन्म होता है जिसे हिंदू और मुस्लिम एक दूसरे की मदद के लिए आगे आने लगते हैं। यही से समाज में फैली नफ़रत का कांटों से भरा पेड़ सुखने लगता है और भाईचारे का सुन्दर रंग बिरंगी फूलों से भरा पेड़ बहुत तेजी से पनपने लगता है।
लेखक-
नितिन राघव