Monday, February 28, 2022
अवसर!
गुनहगार कौन???
जूती खात कपाल
डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’
वाकिंग करते-करते पुराने जूते फट गए थे। सोच रहा था नए जूते ले लूँ। इधर कुछ दिनों से हाथ बड़ा तंग चल रहा था। जैसे-तैसे पैसों का जुगाड़ हुआ। अपने करीबी साथी के सामने जूते खरीदने की बात यह सोचकर रखी कि वह किसी अच्छे ब्रेंड का नाम सुझाएगा। किंतु अगले कुछ मिनटों में उसने मेरा ऐसा ब्रेन वाश किया कि नए जूते खरीदना तो दूर सोचने से भी हाय-तौबा कर ली। मित्र ने बताया कि नए जूते शोरूम से ऐसे निकलते हैं मानो उनकी जवानी सातवें आसमान पर हो। उनके रगों में गरम लहू ऐसा फड़फड़ाता है मानो जैसे जंग में जा रहे हों। बिना किसी सावधानी के इन्हें पहनना बिन बुलाए आफत को दावत देने से कम नहीं है। पैरों को ऐसे काटेंगे जैसे कि केंद्र और राज्य सरकार जीएसटी के नाम पर पेट्रोल-डीजल का टैक्स काटते हैं। हाँ यह अलग बात है कि आम लोगों के लिए जीएसटी की समझ अभी भी दूर की पौड़ी है, किंतु नए जूतों का चुर्रर्र करने वाला संगीत भुलाए नहीं भूलते।
मित्र ने नए जूतों का इनसाइक्लोपीडिया ज्ञान बाँटते हुए आगे कहा – यदि भूल से भी नए जूते खरीद लिये तो इन्हें कभी पास-पास मत रखना। दोनों ऐसी खिचड़ी पकायेंगे कि तुम्हारा जीना हराम कर देंगे। दोनों की ऐसी सांठ-गांठ होगी मानो वे जूते नहीं विपक्षी पार्टी हों। बात-बात में तुम्हारे विरोध में आवाज़ बुलंद करेंगे। इन्हें भूल से भी कैलेंडर, घड़ी, समाचार पत्रों की रैक के पास मत रखना, वरना ये कभी वेतन वृद्धि की मांग तो कभी काम करने के घंटों को लेकर तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पड़ जायेंगे। कभी मंदिर जाने का प्लान बनाओ तो इनके साथ भूलकर भी न जाना। यदि इन्हें पता चल गया कि तुम बिना कोई मेहनत किए भगवान भरोसे अपना भाग्य बनाना चाहते हो तब तो तुम्हारी खैर नहीं। ऐसा काटेंगे तुम्हें तुम्हारी सातों पुश्तें याद आ जायेंगी।
मुझे लगा मित्र ‘नव जूता बखान’ से थक गया होगा। उसे एक गिलास पानी देना चाहिए। किंतु मित्र था कि थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। न जाने कौनसी एनर्जी ड्रिंक पीकर आया था? उसने आगे कहा – अभी तो मैंने तुम्हें सबसे जरूरी बात बताई ही नहीं। इन्हें भूल से भी पत्नी के आस-पास फटकने मत देना। ये बड़े चुगली खोर होते हैं। अपने रूप-रंग से पत्नी के सामने तुम्हारे सारे काले चिट्ठे खोलकर रख देंगे। ये तुम्हें चलने में साथ दे न दें लेकिन पिटाई में जरूर साथ देंगे। ये ऐसी-ऐसी जगह पर अपना निशान बनायेंगे कि न किसी को दिखाए बनेगा न बताए।
इतना सुनना थाकि मेरे होश उड़ गए। जैसे-तैसे होश में आते हुए हिम्मत की और पूछा - तो क्या नए जूतों का ख्याल दिमाग से निकाल दूँ? इस पर मित्र ने कहा – सावधानी बरत सकते हो तो खरीदो, नहीं तो हाय-तौबा कर लो। ये इतने बदमाश होते हैं कि कितना भी महँगा मोजा खरीद लो लेकिन उसके भीतर घुसकर पैर काटने से बाज़ नहीं आते। इनके दाँत एकदम सरकार के दिखाए मनलुभावन सपनों की तरह होते हैं। मजाल जो कोई इन्हें देख ले! इन्हें पहले छोटी-छोटी दूरियों के लिए साथ ले जाओ। अच्छी-अच्छी जगह घुमाओ। इन्हें विश्वास दिलाओ कि तुम एकदम निहायती शरीफ इंसान हो। तब तक ये भी अपनी पकड़ ढीली कर देंगे। तब इनके कोरों पर थोड़ा तेल लगाओ। ये और फैल जायेंगे। तब अपने वसा वाले पैरों से अपनी दुनिया में मनमानी ढंग से घूमना। कहते हैं न जब सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। यही आज का मूल मंत्र है।
मुनिया
मुनिया इंटरमीडिएट की पढाई कर रही थी। उसने आठवीं कक्षा से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। उसकी कविताएं विभिन्न समाचार पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी थी। एक प्रसिद्ध पत्रिका द्वारा सूचना जारी की गई कि जो भी रचनाकार हमारी पत्रिका में रचनाएं भेजते रहे हैं, उन्हें श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान से सम्मानित किया जाएगा परन्तु रचनाकारों को सर्वप्रथम पंजीकरण कराना होगा जिसके लिए एक हजार रुपए शुल्क निर्धारित की गई है। जब यह खबर मुनिया को पता चली तो वह बहुत खुश हुई परन्तु शीघ्र ही उदास हो गई क्योंकि उसके पास एक हजार रुपए नहीं थे। उसने यह बात अपनी सहेली बछिया को बताई। बछिया ने कहा कि तुम अपने घर वालों से रुपए मांग लो। तब मुनिया ने बताया कि मेरे घर वाले मुझे रुपए नहीं देंगे क्योंकि उन्हें मेरा कविता लिखना पसंद नहीं है और वो इस कार्य को बेकार मानते हैं। बछिया बोली कि एक बार कोशिश करके तो देख लो। मुनिया ने अपने मॉं-बाप को सारी बात बताई और धन मांगा परन्तु उसकी कोशिश नाकाम रही। उल्टा उसे डॉंट और खानी पड़ी।
एक दिन जब मुनिया अपने स्कूल को जा रही थी, उसे रास्ते में एक बूढ़े आदमी ने रोका और कहा कि ये कुछ धन है। मुझे कम दिखाई देता है इसलिए तुम इस धन को गिनकर मुझे बता दो कि ये कितना है? मुझे अपने बेटे को धन भेजना हैं। वो कुछ किताबें खरीदेगा क्योंकि उसकी इंटरमीडिएट की परिक्षाएं आने वाली है। मुनिया ने पूछा कि बाबा आपके पैर से खून कैसे निकल रहें हैं। उसने बताया कि मैं साइकिल से गांव गांव सब्जियां बेचता हूं और कल शाम जब मैं आ रहा था तो रास्ते में कार ने टक्कर मार दी। मैं डॉक्टर के पास भी नहीं गया क्योंकि मेरे पास सिर्फ यही धन है जो मुझे बेटे को भेजना है। मुनिया ने धन गिना। वह हजार रुपए थे। तभी उसे पंजीकरण की याद आ गई। उसने सोचा कि यह अच्छा मौका है और मुनिया धन लेकर भाग गयी। बूढ़ा आदमी चिल्लाता रह गया। उसने पंजीकरण करा दिया। उसे सम्मान समारोह में बुलाया गया। जब उसे सम्मान पत्र और स्मृति चिन्ह भेंट किया गया, उसे तुरंत उस बूढ़े आदमी की याद आ गई। वह सोचने लगी कि वो बाबा मुझे गालियां दे रहे होंगे और कोस रहे होंगे। वह अपने घर पहुंची, उसने स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र को टॉंड पर रख दिया। रात को जब वह अपने बिस्तर पर लेटी तो उसकी नजर स्मृति चिन्ह और सम्मान पत्र पर पड़ी और फिर उसे बूढे आदमी की याद आ गई। वह सोचने लगी कि बाबा कितने गरीब थे! पूरे दिन साइकिल से सब्जियां बेचते थे। उस दिन उनके पैर से खून भी निकल रहें थे। मैंने अच्छा नहीं किया और सो भी नहीं पाई। अगले दिन बछिया उसके घर आई और उसे बधाई दी। मुनिया को फिर बूढ़े आदमी की याद आ गई। वह सोच में पड़ गयी और उदास हो गई। बछिया ने उदासी का कारण पूछा। वह इस बात को बछिया को बताना चाहती थी क्योंकि ये बात उसके हृदय में कॉंटो की तरह चुभ रही थी परन्तु बता नहीं पा रही थी।