Sunday, February 20, 2022

बुर्का, हिजाब और घुंघट सब गुलामी की निशानी

जब से मानव समाज की शुरुआत हुई है तब से लेकर अब तक औरतों को गुलाम बनाने की लगातार साजिश और कोशिशें होती रही है। मगर धीरे-धीरे मानव समाज ने अपनी पुरानी रूढ़ वादी परंपराओं को खत्म करने की कोशिश तो की मगर आज भी बहुत सी ताकत हैं, जो इन परंपराओं के पक्ष में खड़ी रहती है।

महिलाओं को गुलाम बनाए रखना सिर्फ एक ही धर्म में नहीं बल्कि हर धर्म और हर समाज में लगातार साजिशें होती रही है। इन दिनों आप देख रहे होंगे, कर्नाटक में हिजाब को लेकर मुस्लिम लड़कियां प्रदर्शन कर रही हैं तो वही हिजाब के विरोध हिंदूवादी लड़के उनका विरोध कर रहे हैं। एक तरफ हम कहते हैं कि देश संविधान के अनुसार चलना चाहिए तो दूसरी तरफ हम ही कहते हैं कि हर समाज, हर व्यक्ति को अपने अनुसार जीने की आजादी है। यह किस प्रकार के आजादी है ?
आज जो मुस्लिम समाज कर्नाटक के मुस्लिम लड़कियों के बुर्के और हिजाब के समर्थन में उतर रहा है। मैं उनसे सीधा सवाल करना चाहता हूं कि क्या आप आप नहीं चाहते कि आपके समाज की महिलाएं पुरानी रूढ़िवादी परंपराओं से मुक्त हो ? अगर आप चाहते हैं कि आपके समाज की महिलाएं आगे बढ़े, आपके कदम से कदम मिलाए और देश का नाम रोशन करें तो फिर आपको दो नाव में पैर नहीं रखना चाहिए बल्कि आपको रूढ़िवादी परंपराओं, गुलामी के प्रतीक वस्त्र आभूषणों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।
अगर आपको लगता है कि कर्नाटक में आपकी समाज की लड़कियां सही कर रही है तो इससे एक बात साफ होता है कि आप नहीं चाहते कि आपके समाज की लड़कियां गुलामी से मुक्त हो। अब आप मेरे से सवाल करेंगे या मेरे सवालों का जवाब देंगे कि यह तो हमारी संस्कृति का हिस्सा है तो भैया जो संस्कृति किसी व्यक्ति या किसी समाज को गुलाम बनाती है तो उस संस्कृति को नष्ट ही किया जाता है।
अब बात आती है उन बच्चों की जो कर्नाटक में मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और उन्हें धार्मिक नारे लगाकर प्रताड़ित करना चाहते हैं। अपने सोशल मीडिया पर एक 
वीडियो देखा होगा एक मुस्लिम लड़की स्कूटी से कॉलेज आती है और कुछ हिंदूवादी संगठन के बच्चे उस लड़की को घेर कर जय श्रीराम जय श्रीराम के नारे लगाने लगते हैं। सबसे पहले
 स्कूल कॉलेजों में किसी भी धर्म विशेष के नारे लगाना संवैधानिक तौर पर गलत है। स्कूल, कॉलेजों संविधान के अनुसार चलते हैं संविधान धर्मनिरपेक्षता पर आधारित है।
कुछ लोग का कहना हैं कि स्कूल, कॉलेजों में यूनिफार्म होती है जो सबके लिए लागू होती है ऐसे में मुस्लिम लड़कियों का हिजाब पहनने का समर्थन करना संवैधानिक तौर पर गलत है। 
संवैधानिक तौर पर बहुत कुछ गलत हो रहा है। हम सभी को वह भी देखना चाहिए जैसे बहुत सारे स्कूलों में किसी देवी की मूर्ति बना देना, किसी देवी की पूजा करना यह भी तो संवैधानिक 
तौर पर गलत ही है।
अगर देश को संवैधानिक तौर पर चलना या चलाना है तो फिर हम सभी को अपनी धार्मिक विचारधारा को घर में बंद करके रखना होगा। आपको लग रहा होगा कि हम किसी विशेष समुदाय 
का समर्थन कर रहे हैं या फिर आलोचना कर रहे हैं। आप स्वयं सोचिए जब हमारा देश धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है तो फिर हमारे स्कूल, कॉलेज में किसी विशेष समुदाय या धर्म से संबंधित परंपराएं 
क्यों चल रही है ?
खैर छोड़िए हमारा मुख्य विषय- हिजाब, घुंघट और बुर्का है। आज मुस्लिम समाज अपने ही समाज की औरतों के बुर्के के समर्थन में खड़ा है। 
इसे आप सभी अलग-अलग दृष्टि से देख सकते हैं। हिंदू समाज में भी एक तबका ऐसा है जो लड़कियों के जींस पहनने पर संस्कृति, सभ्यता और परिवार की परंपराओं का हवाला देते हैं। 
इसके बावजूद भी हिंदू समाज में रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ सदियों से आवाज उठती आई है। चाहे वह राजा राममोहन राय द्वारा चलाया गया आंदोलन हो, सावित्रीबाई फुले और
 महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा महिलाओं के लिए स्कूल की शुरुआत हो या फिर डॉक्टर भीमराव आंबेडकर जी द्वारा हिंदू कोड बिल लाया
 गया हो। हम सभी को पुरानी परंपराओं को पीछे छोड़ते हुए आगे देखने की जरूरत है। आज जो मुस्लिम समाज की छात्राएं बुर्का और हिजाब का
 समर्थन कर रही है क्या वह अपने ही समाज के राजनेताओं, अभिनेताओं और पूंजीपतियों के बच्चों और उनकी पत्नियों को कह सकते हैं कि आप लोग भी हिजाब पहनो ? क्या मुस्लिम
 समाज उन लोगों के खिलाफ भी जा सकता है ?
मुस्लिम समाज यह बताएं कि कौन से नेता, कौन से अभिनेता और कौन से पूंजीपतियों का परिवार बुर्खा और हिजाब पहनता है ? यही सवाल हिंदू समाज से भी है कि आपके समाज के कितने
 राजनेता, अभिनेता और पूंजीपतियों का परिवार मांग में सिंदूर, हाथों में चूड़ियां, पैरों में पायल, बड़ों और पराए मर्दों के सामने घुंघट करता है ?
अगर आपको अपने समाज में किसी चीज का विरोध करना ही है तो बुरी चीजों का विरोध करो। जैसे बढ़ता नशे का कारोबार, सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही नफरत, सरकार की गलत 
नीतियों इत्यादि। इसके अलावा आपको किसी चीज का समर्थन ही करना है तो अच्छी चीजों का समर्थन करो। जैसे सरकार द्वारा चलाई जा रही योजना, महिलाओं का सशक्तिकरण, समानता भाईचारा इत्यादि।

- दीपक कोहली

Thursday, February 17, 2022

बाल श्रम की विभीषिका, बगले झांकती मानवाधिकार संस्थाएं

संविधान के अनुसार 18 साल से कम उम्र का बच्चा यदि घरेलू कामों से अलग अन्य कार्यों जैसे कारखाना, होटल हलवाई या अन्य जगह कार्य करता है तो उसे बाल श्रमिक माना जाता है। कानूनी रूप से बाल श्रम पर प्रतिबंध लगाया गया है। पर पूरे भारत सहित अन्य विकासशील देशों में बाल श्रम की बहुतायत पाई गई है। बाल श्रम केवल एक ही रूप में मौजूद नहीं है बल्कि कई अन्य रूपों में भी वह प्रचलित है, इसमें घर पर कार्य करने वाले घरेलू श्रमिकों चाय खाने-पीने की होटलों पर कार्य करते बच्चे पटाखा उद्योगों में दिन रात काम करते बच्चों के छोटे-छोटे शहरों में कचरा कूड़ा बीनते और भीख मांगते बच्चों से कार्य लिया जाना भी बाल श्रम माना जाता है। यह भी कानूनी रूप से अवैध ही है। बाल श्रम मूल रूप से भारत में व्याप्त गरीबी, भुखमरी, कुपोषण तथा बेरोजगारी जैसे कारण के कारण परिवार के लोगों द्वारा स्वयं अपने बच्चों को बाल श्रम के दलदल में फसा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त समाज में शिक्षा का अभाव, अंधविश्वास जागरूकता का अभाव तथा बच्चों के अधिकार के प्रति जानकारी का नितांत अभाव और बाल श्रम को लागू करने वाली संस्थाओं की कमजोरी के कारण बाल श्रम को बल मिलता है। बाल श्रम रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया में इतनी लंबी तथा महंगी होती है की इस प्रक्रिया पर रोक लगाना लगभग असंभव प्रतीत दिखाई देता है। कई परिवारों में बहुत बच्चे होने के कारण और परिवार के अभिभावकों की असामयिक मृत्यु अथवा बीमारी के कारण बच्चों पर ज्यादा जिम्मेदारी आने से बाल श्रम का सिलसिला शुरू होता है, और वह निर्बाध गति से आगे बढ़ता है। इसमें बच्चों का समाजिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, प्रशासनिक जैसे सभी स्तरों पर शोषण होता है। भारत में बाल श्रम इसीलिए भी प्रचलित है क्योंकि बाल श्रमिकों को वयस्क श्रमिक से आधे से भी कम पारिश्रमिक दिया जाता है। बाल श्रमिक बहुत कम दाम पर आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इसलिए इस सिलसिले को रोकने का प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए। बालकों के श्रम करने से उनमें मस्तिष्क का तनाव मानवी कुंठा तथा उन्हें दिग्भ्रमित करने की दिशा में कई स्तरों पर शोषण किया जाता है। इस तरह लाखों बच्चे सामाजिक बुराई के शोषण का शिकार होते हैं। बाल श्रम के कारण अनेक विसंगतियां के प्रमाण मिले थे जैसे मानव दुर्व्यवहार, बाल वेश्यावृत्ति जैसे अपराधों में बड़ी संख्या में वृद्धि होती है,और बाल श्रमिकों का जीवन एक दुर्घटना तथा अभिशाप बनकर रह जाता है । समाज के लिए कई परेशानियों का जन्म भी होता है। बाल श्रम करने के पश्चात भी बालकों बालिकाओं को पर्याप्त भोजन नहीं मिलने से वह कुपोषण के भी शिकार होते हैं, और बाद में कई बीमारियों के संवाहक भी बन जाते हैं। जो बालक बालिकाओं की जिंदगी के लिए अत्यंत खतरनाक एवं कष्ट दायक होता है। बाल श्रम रोकने के लिए भारत सरकार द्वारा कई प्रयास किए बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 का यदि कड़ाई से पालन किया जाए तो बाल श्रम को रोका जा सकता है । इसका क्रियान्वयन करने वाली एजेंसियां ही एकदम ढीली एवं संदेशों से परे नहीं है। इन एजेंसियों में नियोजक द्वारा क्रियान्वयन की जाने वाली एजेंसियों के अधिकारियों के साथ भ्रष्टाचार करके इसे लालफीताशाही की चादर ओढ़ा दी जाती है। ऐसे में लाखों बच्चे बाल श्रम की आग में झोंक दिया जाते हैं। भारत में बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम 1986 एवं प्राथमिक शिक्षा अधिकार 2009, राष्ट्रीय पोषण मिशन, राष्ट्रीय बाल श्रम निवारण योजनाएं बनाई गई है। इनके क्रियान्वयन में को की लेटलतीफी के कारण लाखों बच्चे अभी भी बाल श्रम में उलझे हुए हैं। अपनी जिंदगी को स्वयं अपने कंधों पर ढोने पर मजबूर हो रहे हैं। ऐसे में दुनिया भर की मानव अधिकार संस्थाएं क्यों मौन है। इतने कानून बनने के बाद भी बाल श्रमिकों की संख्या हर वर्ष क्यों बढ़ते जा रही है। यह एक विचारणीय प्रश्न है। बाल श्रमिकों पर जब भी संसद या विधायिका में प्रश्न उठाए जाते हैं तो मानव अधिकार की संस्थाएं क्यों बगले झांकने लगती है। बाल श्रमिक होना और बाल श्रम करवाना दोनों अलग-अलग मुद्दे हैं। बाल श्रमिक मजबूरी के कारण अपनी आजीविका चलाने के लिए बाल श्रमिक बनता है। पर इनको नियोजन में रखने वाली संस्थाओं पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। वरना बाल श्रमिक की विभीषिका दिन दूनी और रात चौगुनी बढ़ती जाएगी और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे। बाल श्रमिकों की संख्या को तत्काल रोका जाना चाहिए और इन्हें देश की मुख्यधारा में शामिल किया जा कर देश के विकास में इनका सहयोग लिया जाना चाहिए। अन्यथा आज के ये बच्चे भविष्य के मजबूत नागरिक कैसे बन पाएंगे और एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कैसे हो पाएगा।

संजीव ठाकुर, चिंतक, लेखक,


संजीव-नी

शहरों की नीयत ठीक नहीं,

टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों के बीच,

नन्हें-नन्हें पैरों के निशान,

तोतली बोली में झूमती हवाएं,

लहरा लहरा कर  उड़ता दुपट्टा,

अनाज की बालियां,

खेतों की हरियाली,

छल छल कर बहता पानी,

पहली बरसात की 

काली मिट्टी की सोंधी गंध,

गोधूलि की फैली संध्या,

बैलों का मुंडी हिला हिला कर चलना,

छोटी सकरी सड़क पर,

बकरी और गाय हांकने की आवाज,

दूर दिखाई देता,

घास फूस का मचान,

और उस पर बैठा प्रसन्न मंगलू,

सब कुछ धुंधला दिखता,

फ्लैशबैक की तरह मलीन,

घिसटता मित्टता सहमता दिखाई देता,

कसैला धूंआ 

गोधूलि की बेला को धूमिल करता,

निश्चल पानी  कसैला हो उठा,

नन्हें पैर भयानक बन गए,

काली सौंधी मिट्टी पथरीली हो चली,

छोटी पगडंडी हाईवे में बदल गई,

मशीनी हाथियों का सैलाब झेलती,

दूर लकड़ी का मचान नहीं,

गगनचुंबी इमारत दिखती,

उस पर बैठा बिल्डर लल्लन सिंह,

गाड़ियों की गड़गड़ाहट,

कहीं कोई चिन्ह निशान नहीं दिखते,

अब खुशहाल हरीतिमा के,

इमारतों की फसल, लोहे का जंगल,

सब कुछ कठोर,

शायद खुशहाल हरे हरे गांव और जंगल

को देखकर,

शहरों की नीयत ठीक नहीं दिखती?

संजीव ठाकुर,रायपुर छ.ग.9009415415,

प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2022-27 के लिए एक नई योज़ना - प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया

सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैर साक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय - एड किशन भावनानी

वैश्विक स्तरपर किसी भी देश के तीव्रता से विकास करने के कारणों के मुख्य स्तंभों में से एक साक्षरता, शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे, आधारभूत साक्षरता का महत्वपूर्ण रोल होता है जो, उच्च शिक्षा, उच्चतम शिक्षा की नींव होती हैं। अगर मनीषियों की बुनियादी शिक्षा गुणवत्ता पूर्ण है, आधारभूत साक्षरता उच्च स्तर की है, तो अपेक्षाकृत तीव्र और तत्परता से उस देश में डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक सहित अनेक तकनीकों के विशेषज्ञ निकलते हैं जो तीव्रता से उस देश को विकास में आगे बढ़ाकर पूर्ण विकसित देश की श्रेणी में लाकर खड़ा करते हैं यह है गुणवत्तापूर्ण बुनियादी शिक्षा का कमाल!!! 

साथियों बात अगर हम भारत की करें तो यह एक कृषि,गांव प्रधान देश है। अधिकतम आबादी गांव में रहती है, लेकिन भारत को शिक्षा का विस्तार और गुणवत्तापूर्ण ढांचे को दूर-दराज के गांव, इलाकों में पहुंचाने में समय की दरकार है जबकि शहरी क्षेत्रों में आधारभूत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के आधारभूत ढांचे को तीव्रता से स्थापित करने में शासकीय प्रशासकीय स्तर पर तीव्रता से योजनाएं जारी है। 

साथियों बात अगर हम ऐसे मनीषियों की करें जिनका शिक्षा का समय अपेक्षित था पर उम्र निकल गई है उन्हें शिक्षित करने साक्षरता अभियान की करें तो शिक्षा मंत्रालय ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि प्रौढ़ शिक्षा शब्दावली में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैरसाक्षरों को उचित रूप से शामिल नहीं किया जा रहा है इसका संज्ञान लेकर अभी सरकार ने उस योजना का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा रखा गया है, जो निर्णय एक प्रगतिशील कदम के रूप में है। 

साथियों बात अगर हम दिनांक 16 फरवरी 2022 को मंजूरी दिए गए न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022 -27 की करें तो इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और 2021-22 के बजट की घोषणा के अनुसार वयस्क शिक्षा के सभी पहलुओं को कवर करने के लिए लाया गया है,ऐसा पीआईबी में कहा गया है।

साथियों बात अगर हम न्यू इंडिया साक्षरता कार्यक्रम योजना 2022-27 की विशेषताओं और इससे एक जनांदोलन के रूप में देखने की करें तो शिक्षा मंत्रालय की पीआईबी के अनुसार, योजना की मुख्य विशेषताएं-1)स्कूल इस योजना के क्रियान्वयन की इकाई होगा। 2) लाभार्थियों और स्वैच्छिक शिक्षकों (वीटी) का सर्वेक्षण करने के लिए उपयोग किए जाने वाले स्कूल। 3) विभिन्न आयु समूहों के लिए अलग-अलग रणनीति अपनाई जाएगी। नवोन्मेषी गतिविधियों को शुरू करने के लिए राज्यों/ केंद्रशासित प्रदेशों को लचीलापन प्रदान किया जाएगा। 4)15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के सभी गैर-साक्षर लोगों को महत्वपूर्ण जीवन कौशल के माध्यम से मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता प्रदान की जाएगी।

5) योजना के व्यापक कवरेज के लिए प्रौढ़ शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रौद्योगिकियों का उपयोग। 6)राज्य/केंद्रशासित प्रदेश और जिला स्तर के लिए प्रदर्शन ग्रेडिंग इंडेक्स (पीजीआई) यूडीआईएसई पोर्टल के माध्यम से भौतिक और वित्तीय प्रगति दोनों के बीच संतुलन कायम करते हुए वार्षिक आधार पर योजना और उपलब्धियों को लागू करने के लिए राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन को दिखाएगा। 7) आईसीटी समर्थन, स्वयंसेवी सहायता प्रदान करने, शिक्षार्थियों के लिए सुविधा केंद्र खोलने और सेल फोन के रूप में आर्थिक रूप से कमजोर शिक्षार्थियों को आईटी पहुंच प्रदान करने के लिए सीएसआर/ परोपकारी सहायता प्रदान की जा सकती है। 

8) साक्षरता में प्राथमिकता और पूर्ण साक्षरता - 15-35 आयु वर्ग को पहले पूर्ण रुप से साक्षर किया जाएगा और उसके बाद 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को साक्षर किया जाएगा। लड़कियों और महिलाओं, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ओबीसी/अल्पसंख्यकों, विशेष आवश्यकता वाले व्यक्तियों (दिव्यांगजन), हाशिए वाले/घुमंतू/निर्माण श्रमिकों/मजदूरों/आदि श्रेणियों को प्राथमिकता दी जाएगी, जो प्रौढ़ शिक्षा से पर्याप्त रूप से और तुरंत लाभ उठा सकते हैं। स्थान/क्षेत्र के संदर्भ में, नीति आयोग के तहत सभी आकांक्षी जिलों, राष्ट्रीय/राज्य औसत से कम साक्षरता दर वाले जिलों, 2011 की जनगणना के अनुसार 60 प्रतिशत से कम महिला साक्षरता दर वाले जिलों, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अल्पसंख्यक की अधिक जनसंख्या, शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक, वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों/ब्लॉकों पर ध्यान दिया जाएगा।

साथियों बात अगर हम इस योजना को जनांदोलन के रूप में करें तो पीआईबी के अनुसार 1) जनांदोलन के रूप में एनआईएलपी-अ) यूडीआईएसई के तहत पंजीकृत लगभग 7 लाख स्कूलों के तीन करोड़ छात्र / बच्चे के साथ-साथ सरकारी, सहायता प्राप्त और निजी स्कूलों के लगभग 50 लाख शिक्षक स्वयंसेवक के रूप में भाग लेंगे।

ब) शिक्षक शिक्षा और उच्च शिक्षा संस्थानों के अनुमानित 20 लाख छात्र स्वयंसेवक के रूप में सक्रिय रूप से शामिल किए जाएंगे। क) पंचायती राज संस्थाओं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा कार्यकर्ताओं और नेहरू युवा केंद्संगठन, एनएसएस और एनसीसी के लगभग 50 लाख स्वयंसेवकों से सहायता प्राप्त की जाएगी।ड) स्वैच्छिकता के माध्यम से और विद्यांजलि पोर्टल के माध्यम से समुदाय की भागीदारी, परोपकारी / सीएसआर संगठनों की भागीदारी होगी। स) राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश विभिन्न मंचों के माध्यम से व्यक्तिगत/परिवार/गांव/जिले की सफलता की गाथाओं को बढ़ावा देंगे।ज) यह फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब, टीवी चैनल, रेडियो आदि जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सहित इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट, लोक और इंटर-पर्सनल प्लेटफॉर्म जैसे सभी प्रकार के मीडिया का उपयोग करेगा। 2) मोबाइल ऐप, ऑनलाइन सर्वेक्षण मॉड्यूल, भौतिक तथा वित्तीय मॉड्यूल एवं निगरानी संरचना आदि से लैस समेकित डेटा कैप्चरिंग के लिए एनआईसी द्वारा केंद्रीय पोर्टल विकसित किया जाएगा।

3) कार्यात्मक साक्षरता के लिए वास्तविक जीवन की सीख और कौशल को समझने के लिए वैज्ञानिक प्रारूप का उपयोग करके साक्षरता का आकलन किया जाएगा। मांग पर मूल्यांकन भी ओटीएलएएस के माध्यम से किया जाएगा और शिक्षार्थी को एनआईओएस तथा एनएलएमए द्वारा संयुक्त रूप से ई-हस्ताक्षरित ई-प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। 4)प्रत्येक राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश से चुने गए 500-1000 शिक्षार्थियों के नमूनों और परिणाम-उत्पादन निगरानी संरचना (ओओएमएफ) द्वारा सीखने के परिणामों का वार्षिक उपलब्धि सर्वेक्षण। 

साथियों बात अगर हम इस योजना के बजट और 15 वर्ष से ऊपर गैरसाक्षर मनीषियों की करें तो, नव भारत साक्षरता कार्यक्रम का अनुमानित कुल परिव्यय 1037.90 करोड़ रुपये है, जिसमें वित्त वर्ष 2022-27 के लिए क्रमशः 700 करोड़ रुपये का केंद्रीय हिस्सा और 337.90 करोड़ रुपये का राज्य हिस्सा शामिल है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग में गैर-साक्ष्यों की कुल संख्या 25.76 करोड़ (पुरुष 9.08 करोड़, महिला 16.68 करोड़) है। 2009-10 से 2017-18 के दौरान साक्षर भारत कार्यक्रम के तहत साक्षर के रूप में प्रमाणित व्यक्तियों की 7.64 करोड़ की प्रगति को ध्यान में रखते हुए, यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में भारत में लगभग 18.12 करोड़ वयस्क अभी भी गैर-साक्षर हैं।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि न्यू इंडिया साक्षरता योजना प्रौढ़ शिक्षा के लिए वित्त वर्ष 2024-27 के लिए एक नई योजना लाई गई है,प्रौढ़ शिक्षा का नाम बदलकर सभी के लिए शिक्षा किया गया है तथा सभी राज्यों केंद्र शासित प्रदेशों में 15 वर्ष और उससे ऊपर आयु के गैरसाक्षर लोगों को कवर करने वित्त वर्ष 2022-27 के लिए आधारभूत साक्षरता और संख्यात्मकता का लक्ष्य सराहनीय कार्य है। 


-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र