Wednesday, February 16, 2022

खामोश...तुम्हारी इतनी जुर्रत

अब दिन कुछ ऐसे आ गए हैं कि सांस लेने से पहले हवा से अनुमति लेनी होगी कि क्या मैं सांस ले सकता हूं? हवा को सख्त आदेश दे दिए जायेंगे कि वह बहने से पहले बताएं आज कहांकब और किस दिशा में बहेगी और कितना बहेगी। बहने से पहले अपनी मंशा भी बतानी होगी कि वह क्यों बहना चाहती हैं। अन्यथा उसके बहने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा।

ऐसा ही एक नया कानून तूफानी हवाओं पर भी लगा दिया गया। उन्हें देश से तड़ीपार हो जाने के कड़े निर्देश दिए गए हैं। यदि वे इसका उल्लंघन करते हैं तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। कारण, सताने वाले शेखचिल्ली के ख्वाब बुन रहे हैं और गहरी निद्रा के बाद हवाई किलो को वास्तविक रूप देने का प्रयास कर रहे हैं। इसलिए नए कानूनों का पालन करना तूफानी हवाओं की मौत पर बन आयी है। इतना ही नहीं नए कानून का चाबुक समुद्र की लहरों पर भी पड़ा है। अब वह बड़ी-बड़ी लहरों के साथ किनारे को छूने का प्रयास नहीं कर सकता। यदि ऐसा करता है तो उसकी लहरें कैद कर ली जाएंगी। इसके अतिरिक्त समस्त जल राशि दंड स्वरूप वसूल ली जाएगी। इसलिए जितनी भी हलचलउथल-पुथल आक्रोश हो उसे अपने भीतर ही दबाकर रखना होगा। उसका प्रदर्शन करना कानूनी अपराध माना जाएगा।

नए कानून के अनुसार बगीचे के फूल सारे एक जैसे ही उगने चाहिए। उगने वाले फूल भी एक जैसे रंग के होने चाहिए। यदि फूल इन बातों का कहा नहीं मानते तो उन पर कानून की दंड संहिता लागू कर दी जाएगी। जब देश एक है तो फूल का रंग भी एक होना चाहिए। हवाएं जब हमारी सीमाओं में बहती है तो उन्हें हमारी सीमाओं का पालन करना चाहिए। समुद्र की लहरें जब हमारी जमीन पर उछल-कूद करती है तो उन्हें भी हमारी कानूनी उछल-कूद का पालन करना होगा। काश कानून बनाने वाले जान पाते कि हवासमुद्र और सांसें जब तक चुप हैं तब तक नए कानूनों की मनमानी चलती है। किंतु यही जब सुनामी बन जाते हैं तब कानूनों की गुमनामी इतिहास के पन्नों में पढ़नी पड़ती है।  

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 


Sunday, February 13, 2022

प्यार सब कुछ नहीं जिंदगी के लिए

प्रेम नाम की अद्भुत बख़्शीश को फिल्म के माध्यम से जबरदस्त लोकप्रिय बनाया गया है। प्रेम को केंद्र में रख कर बनती फिल्में इस तरह बनती हैं कि गरीबों से ले कर अमीरों तक को दुखी कर देती हैं। आलमआरा से पुष्पा तक प्रेम से मिलने वाले आनंद के साथ-साथ प्रेम के लिए बलिदान की भी बातें बताई जाती हैं। पुरानो फिल्मों में एक लंबे दौर तक गरीब प्रेमी और अमीर प्रेमिका वाली स्टोरी चलती रही। एक अंतराल में संगम टाइप प्रणय त्रिकोण आया, पर ज्यादातर प्रेम का निर्दोष स्वरूप ही रहा। जिसमें बेवफाई कम ही देखने को मिलती थी। परंतु धीरे-धीरे कुछ नए के चक्कर में जो लोगों को अच्छा लगे, उस थीम पर फिल्में बनने लगीं। यह कुछ गलत भी नहीं था, क्योंकि फिल्में बनाना भी तो आखिर एक धंधा ही है। परंतु हिंदुस्तान देश में जहां आज भी लोग भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र  के चक्कर में पड़े रहते हैं, सांप-बिच्छू काटे तो इमरजेंसी ट्रीटमेंट के बजाय तंत्र-म॔त्र के पीछे भागते हैं, आज भी घटिया-टुटपुंजिया नेताओं के कहने पर तोड़-फोड़ करते हैं, वहां सार्वजनिक रूप से जनता को प्रभावित कर सके, इस तरह के हर माध्यम को इतना तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि किसी भी मुद्दे को समझदारी के साथ अर्थघटन करे इतनी परिपक्वता हमारे यहां आई नहीं है। ऐसे समय में जो सचमुच परिपक्व और प्रतिभाशाली लोग हैं, उन्हें जिम्मेदारी के साथ अपना फर्ज निभाना चाहिए। बल्गैरिटी से भरपूर अनेक वेबसिरीज के युग में यह मुद्दा डिबेट का विषय होने के साथ बहुत ही महत्वपूर्ण है।

बहुत कम कपड़ों में गरमागरम किसिंग के दृश्यों का विरोध करने वाले को रूढ़िवादी में खपाने वाले लोग यह नहीं समझते कि एक शिक्षित प्रेक्षक और एक अशिक्षित-अर्धशिक्षित प्रेक्षक के बीच जमीन-आसमान का फर्क होता है। अमेरिका में पोर्न फिल्में खुलेआम मिलती हैं, सेक्स टाॅयस की दुकाने हैं, तमाम देशों में कालगर्ल के लिए छूट है। पर जरा सोच कर देखिए, अपने यहां इस तरह की छूट हो तो इसमें समाज के कितने लोग विवेकपूर्ण व्यवहार करेंगें। हमें स्वीकार करना चाहिए कि हम एकदम गैरजिम्मेदार लोकतंत्र वाले लोग हैं, जिसमें ट्रेन और बस की गद्दियां बिना मतलब तोड़ डालते हैं। टेलीफोन का तांबे का तार चोरी हो जाता है। ट्रेन में सार्वजनिक सुविधा को फिट करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसे कोई निकाल न ले जाए।
गरीब-अमीर, पढ़ेलिखे-अनपढ़, सभी लोगों का यह देश है। सभी की मानसिकता अलग-अलग है। पर फिल्म और टीवी सभी को आकर्षित करने वाला माध्यम है। इसलिए लोग चाहें तो मनोरंजन के साथ-साथ एक जबरदस्त जनहित का माध्यम बना सकते हैं। मदर इंडिया से वेडनसडे तक हमने देखा है कि ऐसा हो सकता है। यहां कहने का मतलब यह नहीं कि बिपासा और करीना को समाजसेविका या फिर आमिर और सलमान खान को पूरी तरह देशभक्त की भूमिका में ही दिखाएं। कहने का तात्पर्य यह है कि करोड़ो लोगों के रोल माडल को बिलकुल नाजुक इस तरह के विषयों पर एकदम गैरजिम्मेदारी से पेश करने के बजाय थोड़ी जिम्मेदारी निभाएं।
जिस तरह जिम्मेदारी से शाहरुख खान अपनी रियल लाइफ में प्रेम के नाम पर कुरबान नहीं होते और सैकड़ो लड़कियों के बीच रहने के बावजूद अपनी पत्नी का गौरव बनाए हुए हैं, यह आज के टीनजरों को बताएं। अपने बच्चों के लिए समय निकालना, अपने व्यवसाय के विकास के लिए सचेत रहना और चेन स्मोकिंग छोड़ कर बहादुरी दिखाना, यह है रियल शाहरुख, वरना कमर हिला कर 'जोड़ी' बनाना डांस पर चांस लेता शाहरुख।
'डर' में शाहरुख ने एक प्रेमी के रूप में भयानक भूमिका अदा की थी। 'मेरी नहीं तो किसी की नहीं' इस तरह के उसके रोल से कितनी लड़कियों को तकलीफ झेलनी पड़ी होगी। 'एक दूजे के लिए' में कमल हसन और रति अग्निहोती की करुणांतिका से दुखी हो कर न जाने कितने प्रेमी-प्रेमिकाओं ने आत्महत्या कर ली थी। हम यह जानते हैं कि अगर हीरो परदे पर सिगरेट पीता है तो उसका समाज पर खासा असर पड़ता है। तो हम यह क्यों नहीं समझते कि जब टपोरियों की भूमिका कर के प्रेम के नाम पर गलत चेष्टा करेंगे, तब नादान उम्र के युवक-युवतियों पर क्या असर पड़ेगा? फिल्मों ने आज की जनरेशन को प्रेम के बारे में बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया है। शादी के पहले पढ़ने वाले जिस लड़के की कोई गर्लफ्रेंड नहीं है, उसकी हंसी उड़ाई जाती है। प्रेम करना ही है, यह जरूरी नहीं है। दोस्ती भी तो ऐसी ही है। इस पवित्रतम संबंध को बनाने के लिए हृदय से उठे तभी इस में पड़ें। और पड़ें तो पूरी पारदर्शिता के साथ संबंध निभाएं। बाकी देखादेखी या नासमझी से 'फूल तुम्हें भेजा है...' करने से परेशानी ही होगी।
ऐसे तमाम तेजस्वी लोग हैं, जो जवानी में अपनी पढ़ाई या व्यवसाय में इस तरह व्यस्त रहे कि उन्हें उस उम्र में प्यार नहीं हुआ। एक निश्चित उम्र में शादी की और अपने जीवनसाथी को भरपूर प्यार किया। पढ़ने की उम्र में खूब पढ़ाई की, अच्छी नौकरी प्राप्त की या व्यवसाय को आगे बढ़ाया और घर वालों की इच्छा से ब्याह किया। इस तरह के तमाम दंपत्ति बेहद सुखी हैं। हां, बच्चों के साथ जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। पर बच्चों को भी इस तरह की फालतू बातों से दूर रहना चाहिए।
बीस साल, तीस साल में प्रेम नहीं हुआ तो नहीं हुआ। दोस्त की बाइक पर पीछे सीट पर हर महीने नई लड़की बैठी दिखाई दे और तुम्हें कोई लिफ्ट न दे तो दुखी न हों। प्रेमी-प्रेमिका के इस स्वरूप के बदले प्रेम की अभिव्यक्ति मान कर व्यक्तिगत रूप से अनेक तरह से कर सकते हैं।
पढ़ने या कैरितर बनाने की उम्र में लक्ष्य पर नजर रखें। प्रेम के नाम पर इधर-उधर भटकते रहेंगें तो बहुत कुछ खो बैठेंगें। प्रेम के नाम पर बहुत ज्यादा भावुक होने या बहकने की जरूरत नहीं है। जिस उम्र में और जब यह तुम्हें मिलेगा, आप महक उठेंगें। 'थ्री ईडियट' का रेंचो (आमिर) याद है न? वह अपने काम में मशगूल रहता है और अंत में करीना विवाह के मंडप तक पहुंच जाती है, इसके बावजूद दोनों मिल जाते हैं। प्रेम ऐसा ही होता है, इसके लिए बहुत ज्यादा गंभीर न बनें, सहज बनें।

वीरेंद्र बहादुर सिंह 
जेड-436ए, सेक्टर-12,

भिक्षुकों और ट्रांसजेंडर समुदाय की आजीविका, उद्यमों, कल्याण और व्यापक पुनर्वसन के लिए नायाब तोहफा

भीख मांगने के कार्य में से संलग्न और ट्रांसजेंडर समुदाय को सुरक्षित जीवन जीने में यह केंद्रीय स्माइल अंब्रेला स्कीम मील का पत्थर साबित होगी- एड किशन भावनानी 

गोंदिया - भारत आज हर क्षेत्र में जैसे, विज़न 2047, 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था, नया भारत सहित अनेक विज़नों के अनुकूल मज़बूत आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर ढांचों को स्थापित करते हुए नए-नए रणनीतिक रोडमैप बनाकर इस भविष्य कालीन खाकें पर काम कर रहें है। याने हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मज़बूत सुखी जीवन जीने की प्रणाली का पहिया अभी से डाला जा रहा हैं। 
साथियों इसका मतलब यह नहीं कि हम वर्तमान जीवन की सुखद प्रणाली के ढांचागत सुधारों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं आज हम देखते हैं कि करीब 80 करोड़ लोगों के लिए किसी ना किसी रूप में कोई ना कोई योजना का लाभ प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है जिसमें बच्चों, युवाओं बुजुर्गों, दिव्यांगों, भिक्षुकों, ट्रांसजेंडरों, किसानों, गरीबों सहित हर वर्ग को योजनाओं में स्थान देने की कोशिश की जा रही है।
साथियों उपरोक्त कड़ी में आज हम बात भीक्षुकों और ट्रांसजेंडर की करेंगे क्योंकि आज एक पक्ष हम डिजिटल, प्रौद्योगिकी और विकसित नए भारत की कर रहें हैं तो हमारे सामने दूसरा पक्ष भिक्षकों, ट्रांसजेंडरों, गरीबों, दिव्यांगों का भी है। विकास की आंधी में हम इन्हें भुला नहीं सकते यह हमारे समाज का एक हिस्सा है। हाल ही में हमने मीडिया में सुनें कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा लोकसभा में एक प्रश्न का लिखित उत्तर देते हुए यह सूचित किया गया कि मंत्रालय द्वारा स्माइल, आजीविका और उद्यमों के लिए सीमांत व्यक्तियों हेतु इस्माइल नामक योजना तैयार की गई है जिसमें भिक्षुकों, ट्रांसजेंडरों के लिए व्यापक पुनर्वसन की योजना भी शामिल है। 
साथियों बात अगर हम केंद्रीय योजना स्माइल अंब्रेला के नई दिल्ली में शुरू करने की करें जो 11 फरवरी 2022 को पीआईबी के अनुसार, यह अम्ब्रेला स्कीम ट्रांसजेंडर समुदाय और भीख मांगने के कार्य में संलग्न लोगों को कल्याणकारी उपाय प्रदान करने के मकसद से बनाई गई है। इसके तहत दो उप-योजनाएं शामिल हैं, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना और भीख मांगने के कार्य में संलग्न व्यक्तियों के व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना’। 
यह योजना उन अधिकारों की पहुंच को मजबूती प्रदान करती है और उनका विस्तार करती है जो लक्षित समूह को आवश्यक कानूनी सुरक्षा और एक सुरक्षित जीवन का वचन देते हैं। यह सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखता है जिसकी पहचान, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, व्यावसायिक अवसरों और आश्रय के कई आयामों के माध्यम से आवश्यकता होती है। मंत्रालय ने योजना के लिए वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक के लिए 365 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
उप-योजना - ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के कल्याण के लिए व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय क्षेत्र की योजना’ में निम्नलिखित घटक शामिल हैं- अ) ट्रांसजेंडर छात्रों के लिए छात्रवृत्ति: नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले छात्र और स्नातकोत्तर तक के छात्रों को उनकी शिक्षा पूरी करने में सक्षम बनाने के लिए के लिए छात्रवृत्ति।ब) कौशल विकास और आजीविका- विभाग की पीएम-दक्ष योजना के तहत कौशल विकास और आजीविका क) समग्र चिकित्सा स्वास्थ्य: पीएम-जेएवाई के साथ सम्मिलन में एक व्यापक पैकेज चयनित अस्पतालों के माध्यम से लिंग-पुष्टिकरण सर्जरी का समर्थन। ड) गरिमा गृह’ के रूप में आवास आश्रय गृह ’गरिमा गृह’ जहां भोजन, वस्त्र, मनोरंजन सुविधाएं, कौशल विकास के अवसर, मनोरंजक गतिविधियां, चिकित्सा सहायता आदि प्रदान की जाएंगी।
ट्रांसजेंडर सुरक्षा प्रकोष्ठ का प्रावधान- अपराधों के मामलों की निगरानी के लिए प्रत्येक राज्य में ट) ट्रांसजेंडर सुरक्षा की स्थापना करना और अपराधों का समय पर पंजीकरण, जांच और अभियोजन सुनिश्चित करना। ज) ई-सेवाएं (राष्ट्रीय पोर्टल और हेल्पलाइन एवं विज्ञापन) और अन्य कल्याणकारी उपाय। उप-योजना भीख मांगने के कार्य में संलग्न व्यक्तियों का व्यापक पुनर्वास’का फोकस इस प्रकार है-1)सर्वेक्षण और पहचान: लाभार्थियों का सर्वेक्षण और पहचान कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा किया जाएगा।2) लामबंदी: भीख मांगने वाले व्यक्तियों को आश्रय गृहों में उपलब्ध सेवाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करने का कार्य किया जाएगा। 3) बचाव/आश्रय गृह: आश्रय गृह भीख मांगने के कार्य में संलग्न बच्चों और भीख मांगने के कार्य में संलग्न व्यक्तियों के बच्चों के लिए शिक्षा की सुविधा प्रदान करेंगे।4) व्यापक पुनर्वास। 
इसके अतिरिक्त,क) क्षमता, काबिलियत और अनुकूलता प्राप्त करने के लिए कौशल विकास/व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ताकि वे स्वरोजगार में संलग्न होकर गरिमापूर्ण जीवन जी सकें।ख);दस शहरों जैसे दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई, हैदराबाद, इंदौर, लखनऊ, मुंबई, नागपुर, पटना और अहमदाबाद में व्यापक पुनर्वास को लेकर पायलट परियोजनाएं शुरू की गईं।
उप योजनाओं को राष्ट्रीय समन्वयकों की एक पार्टी द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा, साथ ही मंत्रालय में एक उपयुक्त टीम बनाई जाएगी। राष्ट्रीय समन्वयक की योग्यताएं, परिलब्धियां, शक्तियां और कार्य एवं अधिकार क्षेत्र विभाग द्वारा निर्धारित की जाएगी। इसके अतिरिक्त, परियोजना निगरानी इकाई (पीएमयू) या सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा नियुक्त किसी अन्य एजेंसी/इकाई सहित मंत्रालय द्वारा नियमित अंतराल पर घटकों की निगरानी की जाएगी। 
यह योजना उन अधिकारों की पहुंच को मजबूती प्रदान करती है और उनका विस्तार करती है जो लक्षित समूह को आवश्यक कानूनी सुरक्षा और एक सुरक्षित जीवन का वचन देते हैं। यह सामाजिक सुरक्षा को ध्यान में रखता है जिसकी पहचान, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, व्यावसायिक अवसरों और आश्रय के कई आयामों के माध्यम से आवश्यकता होती है।
साथियों में बात अगर हम भिक्षावृत्ति के कारणों की करें तो यह कोई ऐसी चीज नही नही जिसे करके व्यक्ति को खुशी मिलती हो। व्यक्ति अनेक कारणों से जब परेशान व दुखी हो जाता है और उसके जीवन मे आशा की कोई किरण नही दिखती तो वह भिक्षुक बन अपना और अपने परिवार का पेट भरता है। भिक्षावृत्ति की पृष्ठभूमि में जहाँ एक तरफ वैयक्तिक कारण है जैसे शारीरिक और मानसिक दोष अथवा बीमारियाँ जैसे लूला, लंगड़ा, अपाहिज, पागल, विक्षिप्त वहीं दूसरी और आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कारण है। प्रथम कारण इस तथ्य का घोतक है कि व्यक्ति अपने शरीर से लाचार है कि वह किसी भी प्रकार का कठिन परिश्रम नही कर सकता है। इसलिए वह भीख मांगता है और दूसरा कारण इस बात का प्रमाण है कि यह समाज व्यक्ति को नौकरी तथा जीने की सामान्य सुविधाएं नही देता और जब व्यक्ति भूखों मरने लगता है तब भीख मांगने के सिवा उसके पास कोई दूसरा विकल्प नही होता। 

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे देश विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भिक्षुकों और ट्रांसजेंडर समुदाय की आजीविका, उद्यमों, कल्याण और व्यापक पुनर्वास के लिए केंद्रीय योजना स्माइल नायाब तोह़फा है तथा भीख मांगने के कार्य में संलग्न और ट्रांसजेंडर समुदाय को सुरक्षित जीवन जीने में यह योज़ना मील का पत्थर साबित होगी। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

सच्चा भक्त

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं।

मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन में तो कुछ इसके विपरित ही विचार चल रहा था। जब वो वोट डालने के लिए घर से मतदान केन्द्र की तरफ निकले तो वो रास्ते में सोच रहे थे कि आज तक उन्होंने जिस भी नेता को वोट दिया है चाहे वो ग्राम प्रधान हों या जिला पंचायत वो सिर्फ हारा है।
जैसे ही विदेश चौधरी ई बी एम मशीन पर पहुंचे तो उन्होंने सोचा कि यदि वो साइकिल का बटन दवा दे तो साइकिल तो कैसा रहेगा? ज्यों ही उन्होंने साइकिल का बटन दबाने के लिए हाथ आगे बढाया त्यों ही उनके दिल के अन्दर से आवाज आई कि तू कमल ही दबा दें जो होगा देखा जायेगा और उन्होंने कमल का बटन दबा दिया।
लेखक
नितिन राघव