Wednesday, January 26, 2022

कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना है

हिम्मत और हौसला आज भारत की पहचान है 

वैश्विक रूप से नए युग का नेतृत्व करने के लिए भारतीय युवा पूर्णता सक्षम हैं - एड किशन भावनानी 
गोंदिया - भारत जिस तेजी के साथ आज हर क्षेत्र में आजादी के 75 में अमृत महोत्सव के उपलक्ष में अनेक नवाचार, नवोन्मेष, इनोवेशन, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे अनेक कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं में कामकाज का जांबाज़ी से ज़ज़बा, हिम्मत, हौसला कायम कर रहे हैं वह तारीफें काबिल है!! 
साथियों बात अगर हम कुछ महीनों से भारत के हर मंत्रालय स्तरपर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के हस्ते नजर घुमाएं तो हम पाएंगे कि करीब-करीब हर दिन अपने वेबनार, कार्यक्रमों के द्वारा युवाओं को अपने-अपने क्षेत्रों में हिम्मत, हौसला अफ़जाई कर रहे हैं। युवाओं आगे आओ, और नए युग का नेतृत्व करो, उसके लिए भिन्न भिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध मौकों को समझो और अपने जीवन में अपनाकर सफ़लता की ओर कदम बढ़ाओ!! 
साथियों बात अगर हम हिम्मत और हौसले की करें तो कौशलता विकास करिक्रम, हुनर हाट, स्टार्टअप इंडिया, डिजिटल इंडिया के अनेक कार्यक्रम द्वारा युवाओं को आकर्षित कर उन्हें कर्तव्य पथ से आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है,जिसके लिए अनेक योजनाएं हर विभाग द्वारा बनाई गई है जिसमें युवाओं को रोज़गार के भी अनेक अवसर उपलब्ध कराने की कोशिश की जा रही है 
साथियों बात अगर हम भारतीय युवाओं की करें तो आज भारतीय युवाओं की बौद्धिक क्षमता, कार्य क्षमता, युवाश्रम की गुणवत्ता का वैश्विक स्तर पर भारी सम्मान है!! आज अगर हम अनेक वैश्विक कंपनियों के सीईओ पर नज़र डालें तो वे हमें मूल भारतीय ही मिलेंगे। अमेरिका, ब्रिटिश जैसे बड़े विकसित देशों में हम स्वास्थ्य,अभियांत्रिकी, सॉफ्टवेयर क्षेत्र पर नजर डालें तो हमें अधिकतम भारतीय ही इंप्लायड दिखेंगे क्योंकि भारतीय मूल की बौद्धिक क्षमता, हिम्मत, हौसले, जांबाजी और ज़ज्बे का संपूर्ण वैश्विक स्तरपर एक रुतबा है। 
मेरा मानना है कि वैश्विक स्तरपर जॉब रिक्वायरमेंट में भारतीय मूल के प्रतिस्पर्धीयों को ही प्राथमिकता में रखा जाता है क्योंकि उनके द्वारा बनाई गई विभिन्न नीतियां, रणनीतियों से सर्वोच्च आर्थिक क्षमता, अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण सकारात्मक वृद्धि का आंकलन किया जाता है। यहां तक कि,हमने हाल ही में आई दोबारा एक रिपोर्ट में देखे के भारतीय पीएम को 71 प्रतिशत के साथ वैश्विक लीडर की रैंकिंग में प्रथम क्रमांक दिया गया है जो भारत के लिए गौरवविंत और गर्व की बात है। 
साथियों बात अगर आम भारतीय युवाओं के वैश्विक नेतृत्व की करे तो आज भारत में नीतियां, रणनीतियां, शिक्षा प्रणाली, कौशलता विकास सहित औद्योगिक समूहों में ऐसे गुण विकसित किए जा रहे हैैं, जिसके गुणों से भारतीय युवाओं में एक अनमोल, अद्भुत क्षमता विकसित हो रही है, जिसके आधार पर भारतीय युवा वैश्विक रूप से नए युग का नेतृत्व करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम होने की राह पर हैं। साथियों बात अगर हम दिनांक 24 जनवरी 2022 को एक कार्यक्रम में माननीय पीएम के संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र में नीतियां और पहलों के केंद्र में युवाओं को रखा जाता है। उन्होंने स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया के साथ-साथ आत्मनिर्भर भारत के जन आंदोलन और आधुनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण जैसी पहलों के बारे में चर्चा की। 
उन्होंने कहा, यह भारत के युवाओं की गति के अनुरूप है जो भारत और बाहर दोनों जगह इस नए युग का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने नवाचार और स्टार्ट-अप के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कौशल के बारे में बताया। उन्होंने भारत के युवा सीईओ द्वारा प्रमुख वैश्विक कंपनियों के नेतृत्व के बारे में राष्ट्र की ओर से गर्व की अभिव्यक्ति करते हुए कहा, आज हमें गर्व होता है जब देखते हैं कि भारत के युवा स्टार्ट अप की दुनिया में अपना परचम फहरा रहे हैं। 
आज हमें गर्व होता है, जब हम देखते हैं कि भारत के युवा नए-नए इनोवेशन कर रहे हैं, देश को आगे बढ़ा रहे हैं। उन्होंने सराहना करते हुए कहा कि भारत के बच्चों ने, अभी वैक्सीनेशन प्रोग्राम में भी अपनीआधुनिक और वैज्ञानिक सोच का परिचय दिया है। 3 जनवरी के बाद से सिर्फ 20 दिनों में ही चार करोड़ से ज्यादा बच्चों ने कोरोना वैक्सीन लगवाई है। उन्होंने स्वच्छ भारत अभियान के नेतृत्व के लिए उनकी सराहना की। उन्होंने उनसे मांग करते हुए कहा कि जैसे आप स्वच्छता अभियान के लिए आगे आए, वैसे ही आप वोकल फॉर लोकल अभियान के लिए भी आगे आइए। 
उन्होंने कहा कि जिन क्षेत्रों में बेटियों को पहले इजाजत भी नहीं होती थी, बेटियाँ आज उनमें कमाल कर रही हैं। यही तो वो नया भारत है, जो नया करने से पीछे नहीं रहता, हिम्मत और हौसला आज भारत की पहचान है। उन्होंने कहा कि कल दिल्ली में इंडिया गेट के पास नेताजी सुभाषचंद्र बोस की डिजिटल प्रतिमा भी स्थापित की गई है। उन्होंने कहा, नेताजी से हमें सबसे बड़ी प्रेरणा मिलती है- कर्तव्य की, राष्ट्रप्रथम की। नेताजी से प्रेरणा लेकर आपको देश के लिए अपने कर्तव्यपथ पर आगे बढ़ना है। 
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ना है। हिम्मत और हौसला आज भारत की पहचान है तथा वैश्विक रूप से नए युग का नेतृत्व करने के लिए भारतीय युवा पूर्णत सक्षम है जो भारत के लिए गौरव की बात है।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

गणतंत्र दिवस!

26 जनवरी 1950 में भारतीय संविधान लागू किया,
भारत को पूर्ण रूप से गणतंत्र घोषित कर दिया!
परेड, भाषण, विद्यालय में मिठाइयां, 26 जनवरी का दिन राष्ट्रीय पर्व ,
सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि के साथ मनाते हुए होता है गर्व!
पहली बार गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 को मनाया,
डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 21 तोपों की सलामी के साथ तिरंगा फहराया!
इस मुख्य दिवस पर शहीदों को श्रद्धांजलि करते हैं अर्पित ,
सलामी देते हैं उनको, जिनका जीवन है देश के लिए समर्पित!
भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिल्ली के लाल किले पर भारतीय ध्वज फहराया जाता,
देश की राजधानी दिल्ली मे बड़ी ही धूम धाम से अस्त्र शस्त्र का प्रदर्शन होता!
सामूहिक रूप में खड़े होकर  हम सब राष्ट्रगान गाते ,
देशभक्त बनकर अपने देश की उन्नति के लिए काम करने की कसम खाते!
जिनकी शहादत से देश हुआ गणतंत्र,
झुक कर करते हैं उन वीरों के चरणों में नमन,
चलो हम सब भी, हमारे देश की जिम्मेदारी, पूर्ण हृदय से निभाए,
जय हिंद, वंदे मातरम का मिलके नारा लगाए!!

अक्षरों की दुविधा

किसी को भी पूछ लो कि अंग्रेजी में कितने अक्षर होते हैं तो वे फट से बता देते हैं – छब्बीस। हिंदी में ऐसा नहीं है। कोई कहता है यह अक्षर संयुक्ताक्षर है इसे वर्णमाला में नहीं गिनना चाहिए। कोई कहता है अं, अः अयोगवाह है इसलिए इन्हें स्वर के रूप में स्थान नहीं देना चाहिए। बारहखड़ी लिखते समय ऋ की मात्रा का उपयोग करते हैं। ऋ की मात्रा का उपयोग करने से वह तेरहखड़ी हो जाती है। फिर भी कहने को बारहखड़ी ही कहते हैं। हो सकता है कि इसके पीछे भाषाई कारण हो,  फिर भी सामान्य लोगों के पल्ले यह बात कैसे पड़ेगी?”

हिंदी अक्षरों को लेकर शुरु हुई बातचीत बेनतीजा रही। सभी मित्र रात होते ही अपने-अपने घर लौट गए। मैं भी लौट आया। उस रात मैं भी सोचने लगा कि मित्रों की बात में दम तो है। अंग्रेजी की तरह हिंदी अक्षरों की संख्या एकदम सुलझी हुई क्यों नहीं है? हो सकता है यह मेरा हिंदी भाषाई ज्ञान के प्रति अज्ञान का परिणाम है, फिर भी मैं संशय में था। यही सब सोचते-सोचते मैं सो गया। सपने में     अक्षरों की महासभा शुरु हुई। मानो ऐसा लगा जैसे सारे स्वर हाथ बाँधे व्यंजनों के सामने याचनार्थी के रूप में खड़े थे। अनुस्वार और विसर्ग को तो मानो कोई पूछने वाला ही न था। वे तो कोने में पड़े-पड़े रो रहे थे। साथ ही अपने भाग्य पर खुशी मना रहे थे कि लुप्त होते अक्षरों की सूची से बाल-बाल बचते रह गए। किंतु लुप्त होते अक्षरों की याद रह-रह कर आती और बदले में जब-तब आँसू बहा देते। कुछ अक्षर तो अपने बदलते आकारों और उच्चारणों को लेकर भीतर ही भीतर कूढ़ते जा रहे थे। मानव उच्चारण के आगे अपनी निस्साहयता को लेकर अपनी दुस्थिति पर रो रहे थे।

अंतस्थ अक्षर अपने अंतर में झाँककर अपने खोखलेपन को ढूँढ़ने की लाख कोशिश कर रहे थे। दुर्भाग्य से उनका अंतस्थ अब अंत की कगार पर आ चुका था। अघोष सघोष के दबाव में बिखरते जा रहे थे, जबकि सघोष अपने में रह-रहकर पागलों की तरह बतिया रहे थे। सरल अक्षर अपनी सरलता का खामियाजा तो संयुक्ताक्षर अपनी संयुक्तता की खिचड़ी संस्कृति से कराह रहे थे। अनुनासिक अपने स्वामी की नाक की इज्जत बनाये रखने के लिए नथुनी फुला-फुलाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। महाप्राण तो निराला के जाने के बाद से ही मात्र दिखावे के महाप्राण रह गए थे। अब वे हथेली में अपने प्राण धरे अपनी खैर मना रहे थे। समाज में हो रही अराजकता को देखकर भी जिनके खून की ऊष्मा ठंडी पड़ चुकी हो, उन्हें देख ऊष्माच्चारण वाले अक्षर अपने जन्म को कलंक मानने लगे थे। संयुक्ताक्षर अपने जन्मदाता अक्षरों पर अपनी धौंस दिखाने से बाज़ नहीं आ रहे थे। रह-रहकर शेष अक्षरों की क्लास लगाने की फिराक में रहते थे।

दीर्घ स्वर अब पहले जैसे दीर्घ नहीं रहे। प्रदूषण के चलते गले की रूँधता दीर्घ उच्चारणों से कतराते नजर आ रहे थे। दीर्घता की कमी के चलते अब आवाज उठाने वाले स्वर लुप्त होते जा रहे थे। यहाँ सारे के सारे व्यंजन अपनी-अपनी कौम को बचाने में पीसते जा रहे थे। कोई देशज उच्चारण में देशभक्ति तो कोई विदेशज उच्चारण में वैश्वीकरण की गंध देखता था। कोई तत्सम के पीछे अपना समस्तम खोने को तैयार था तो कोई तद्भव के बल पर अपना उद्भव करना चाहता था। कोई कंठाक्षरी होकर गले तक तो कोई तालु भर की ताल बजाकर सामने वाले की मूर्धन्यता से दो-दो हाथ करने की फिराक़ में था। कोई दंताक्षरी बनकर अपने दाँत बजाता था तो कोई ओष्ठाक्षरी की गरिमा के विरुद्ध समाज की बुराई से बचने के लिए अपने ओष्ठ सीकर बैठा था।

अब अक्षरों में क्रांति की लहर दौड़ रही थी। उनका क्रोधावेश अपने चरम पर था। वे अन्याय का विरोध करने वाले गीतों में मौन होकर अपना विरोध जताना चाहते थे। अक्षरमाला अपने उच्चारण स्वामी के स्वार्थ से मोहभंग हो चुके थे। वे सत्ता की आड़ में घमंड करने वालों नेता के झूठे प्रलोभन वाले भाषणों में अक्षरक्रांति करना चाहते थे। ऐसा न करने वाले अपने कौम के अक्षरों को देशनिकाला की भांति अक्षरनिकाला करने की शपथ लेकर बैठे थे। सच तो यह है कि अक्षर सारे कब के मर जाते, वे तो जी रहे हैं उन प्रश्नों के लिए जिनसे समाज की रक्षा हो रही है। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 


दुनिया का सबसे खूबसूरत दस्तावेज है भारतीय संविधान

                         - मुकेश बोहरा अमन

संविधान निर्माण में लगा 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय, 26 जनवरी 1950 को हुआ लागू

  दुनिया भर में भारत कई मायनों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है । जिसमें भारतीय संविधान भी अपने आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए है । भारत का संविधान भारत का सर्वाेच्च विधान है, जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी, 1950 से प्रभावी हुआ। ऐसे में 26 नवम्बर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, वहीं 26 जनवरी को गणतन्त्र दिवस के रूप में हर्ष और उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। भारतीय संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे खूबसूरत दस्तावेज है । जिसमें अनेकानेक खूबियां व विशेषताएं समाहित है । भारतीय संविधान में प्रस्तावना का आगाज हम भारत के लोग से होता है । जो यह साबित करता है कि भारत की जनता में ही सब कुछ निहित है ।

  भारतीय संविधान बहुत विशाल व विस्तृत नियमों, उपनियमों का एक ऐसा लिखित दस्तावेज है, जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है। भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र थे । जिनके नेतृत्व में भारतीय संविधान का निर्माण किया गया । वहीं संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अम्बेडकर थे । डॉ. भीमराव आम्बेडकर को भारतीय संविधान का प्रधान वास्तुकार या निर्माता भी कहा जाता है। संविधान के निर्माण में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा । मूल संविधान में भारतीय संविधान, हमारे लोकतांत्रिक आदर्शों, उद्देश्यों व मूल्यों का दर्पण है । संवैधानिक विधि देश की सर्वोच्च विधि है ।

  मूल भारतीय संविधान में 22 भागों में 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियाँ थी । कालांतर भारतीय संविधान में समय-समय पर हुए संविधान संशोधनों से वर्तमान में भारतीय संविधान में 25 भागों में 470 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां है । भारत का मूल संविधान हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में हस्तलिखित है । जिसे प्रेम बिहारी रायजादा ने अपने हाथों से लिखा जिसके अंग्रेजी संस्करण में 146385 शब्दों का प्रयोग किया गया है । इस लिहाज से भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लम्बा लिखित संविधान है । भारतीय संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को दिल्ली संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में सभा के अस्थायी अध्यक्ष डॉ. सच्चिानन्द सिन्हा की अध्यक्षता में बुलाई गई ।

  भारतीय संविधान के निर्माण में सबसे अधिक भारत शासन अधिनियम 1935 का प्रभाव रहा है । जिसमें से तकरीबन 250 अनुच्छेद लिए गए । इसके अलावा अलग-अलग देशों  के संविधान से भी महत्वपूर्ण व उपयोगी व्यवस्थाओं को भारतीय संविधान में स्थान दिया गया है । जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, साउथ अफ्रीका, कनाडा, सोवियत संघ रूस, जापान, फ्रांस आदि देशों से अलग-अलग व्यवस्थाओं को भारतीय संविधान में जोड़ा गया है । और भारतीय संविधान को सशक्त व कारगर बनाया गया ।

  भारतीय संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ लेकिन भारतीय संविधान को 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया । इस उपलक्ष में प्रतिवर्ष गणतंत्र दिवस मनाया जाता है । वहीं संविधान को 26 जनवरी को लागू करने के पीछे भी विशेष कारण रहा है । 26 जनवरी 1930 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की थी जिसको महत्व देने को लेकर 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान विधिवत् लागू किया गया । हम वर्ष 2022 में भारतीय गणतंत्र का 73वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे है । जिसकी आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ।
 
मुकेश बोहरा अमन