Thursday, December 23, 2021

बच्चू...कच्ची गोटियाँ नहीं खेली हैं

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त

एक भड़कीला युवक अपने स्थानीय सांसद से जा भिड़ा। सांसद जी बड़े संयमी थे। सो, युवक को डाँटने-फटकारने अथवा लताड़ने की जगह उसे बड़े प्रेम से बैठने के लिए कहा। बड़ी विनम्रता से पूछा क्या बात है भाई! ऐसी क्या मुसीबत आ पड़ी जो तुम मुझे इतनी सुबह-सुबह डाँट रहे हो?” इस पर युवक ने कहा, आपने झूठे-झूठे वायदे कर चुनाव तो जीत लिया और हम जैसे लोगों को भूल गए। खुद तो चैन की नींद सोते हो और हमें दर-दर की ठोकर खाने के लिए छोड़ दिया है। महँगाई के मारे न खाए बनता है न पीए। बेरोजगारी से हमारे जैसे लोगों की हालत खस्ता है। जेब में एक फूटी-कौड़ी भी नहीं है। अब आप ही बताइए ऐसे में आदमी गरियायेगा नहीं तो उसकी आरती उतारेगा?”

सांसद जी को सारा मामला समझ में आ गया। वे कुछ समझाते इससे पहले ही युवक भड़क उठा और बोला, आपको क्या है? आपको तो सरकार की ओर से बत्तीवाली चार चक्का गाड़ी, बड़ा बंगला, नौकर-चाकर, खाने-पीने में पाँच सितारा होटल सा भोजन, आए दिन हवाई सफर करने का मौका, बीमार पड़ने पर एक से बढ़कर एक अस्पताल। और बदले में हम जैसे लोगों को क्या मिलता है – ठेंगा!” सांसद जी को लगा कि युवक तो बड़ा जागरूक है। इसे यों ही बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। वे कुछ जुगाड़ करने लगे। थोड़ी देर सोचने-समझने के बाद उन्होंने मुस्कुराते हुए उससे कहा, तो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है। एक फूटी-कौड़ी भी नहीं?” हाँ युवक ने मुँह फुलाते हुए उत्तर दिया। ठीक है तो मैं तुम्हें एक लाख रुपये देने के लिए तैयार हूँ, लेकिन शर्त यह है कि तुम्हें मुझे अपना एक हाथ काटकर देना होगा। अरे भाई यदि मैं आपको अपना हाथ दे दूँगा, तो अपने काम कैसे करूँगा?” ठीक है तो अपना एक पैर ही दे दो। इसके बदले में मैं तुम्हें दस लाख रुपये दूँगा। सोच लो। सौदा फायदे का है। क्या कमाल की बात करते हैं आप! यदि मैं अपना पैर दे दूँगा तो इधर-उधर चलूँगा कैसे? कुछ सोच-समझकर बात कीजिए। बड़े अजीब आदमी हो। कुछ भी माँगता हूँ तो न-नुकूर करते हो। चलो ठीक है, एक काम करो तुम अपनी जीभ ही काटकर दे दो इसके एवज में मैं तुम्हें एक करोड़ रुपये दूँगा। तुम्हारी गरीबी हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाएगी। सोच लो ऐसा मौका बार-बार नहीं मिलेगा। युवक का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह झल्लाकर बोला, लगता है जब से आप सासंद बने हैं तब से आपका दिमाग सिर में कम घुटने में ज्यादा रहता है। दिमाग-विमाग खराब तो नहीं हो गया। कैसी बे-फिजूल की बातें कर रहे हैं। मैं यदि अपनी जीभ दे दूँगा तो जीवन भर बात कैसे करूँगा। अपनी जरूरतों के लिए सामने वाले से पूछूँगा कैसे?”

सांसद जी अब बड़े इत्मनान में थे। युवक की बातें सुन उन्हें लगा कि अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे। उन्होंने एक लंबी साँस ली और कहा, भाई! जब तुम्हारे पास एक लाख रुपये से अधिक कीमती हाथ है, दस लाख रुपये से अधिक कीमती पैर है और एक करोड़ रुपये से भी अधिक कीमती जीभ है तो तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारे पास फूटी-कौड़ी भी नहीं है। मैंने चुनाव जीतने के लिए बहुत से पापड़ बेले हैं। मैं यूँ हीं सांसद नहीं बना। इसी को मेहनत कहते हैं। यदि मैं भी तुम्हारी तरह सुबह-सुबह डाँटने-फटकारने या लताड़ने का काम करता तो आज सांसद नहीं तुम्हारी तरह दर-दर की ठोकरें खाते फिरता। जाओ, मेहनत करो और मेरा-तुम्हारा समय बर्बाद मत करो।

पाप बेचारा युवकवह इतना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

तुम अपने और मैं अपने घर

 सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त


दुनिया की विरासत में एक डायलाग कभी नहीं मिटेगा। वह है- अपने पैरों पर खड़े होना सीखो। यह इस दुनिया का सदाबहार डायलाग है। जब हम छोटे थे तब हमारे बुजुर्ग यह डायलाग कह-कहकर हमारे कान पका देते थे। जब हम बड़े हुए तो हमने अपने बच्चों के कान पका दिए। स्वाभाविक है कि हमारे बच्चे भी अपने बच्चों के कान पकायेंगे। यही दुनिया का दस्तूर है। हँसी तो तब आती जब यह सोच-सोचकर दिमाग खपा देते कि हम अपने पैरों पर नहीं तो किनके पैरों पर खड़े हैं। खैर, किताबों की खाक़ छानी तो पता चला कि यह कथन तो एक मुहावरा है। इस मुहावरे का अर्थ है- आत्मनिर्भर बनना। फिर मैंने आत्मनिर्भर शब्द का पोस्टमार्टम किया। पता चला यह दो शब्दों से बना है- आत्म और निर्भर। आत्म शब्द आत्मा का सूचक है। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक की लगभग सभी भाषाओं में आत्मा के लिए आत्मा शब्द ही है। आत्मा के बारे में और अधिक जानने के क्रम में भगवत् गीता के अध्याय दो श्लोक 20 पर नजर पड़ी। इसमें आत्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी गयी है- जायतेम्रियतेवाकदाचित्अयम्भूत्वाभवितावा / भूयःअजःनित्यःशाश्वतःअयम्पुराणःहन्यतेहन्यमानेशरीरे। यानी आत्मा किसी काल में न तो जन्म लेता है और न मरता है न यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला है कारण, यह अजन्मा नित्य सनातन और पुरातन है शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो आत्मा न खाती न चलतीन हिलतीन पैदा होती न मरती है। अरे भाई! जो है ही नहीं उसे खाक़ निर्भर करेंगे?

हमारे देश में आत्मा के बारे में सभी लोगों के अलग-अलग मत हैं लेकिन हद तब हुई जब सरकार ने आत्मनिर्भरता को खरीदने की कीमत लगाई – पूरे बीस लाख करोड़ रुपये! गणित में कमजोर लोग इस आंकड़े से दूर रहने में ही भलाई है। बचा-खुचा गणित भी भूल जायेंगे। तब मुझे संदेह हुआ जो है ही नहीं उसकी निर्भरता के लिए इतनी बड़ी राशि का क्या होगायह रुपया किसे मिलेगायही सोच-सोचकर सर चकरा रहा था।

तभी मेरे एक मित्र ने मुझसे मेरी चिंता का कारण पूछा। मैंने बीस लाख करोड़ रुपये और आत्मनिर्भरता की बात छेड़ी। तब उसने कहा - बस इतनी-सी बात के लिए सर खपा रहे हो। मान लो मैं सरकार हूँ और तुम जनता। मैंने तुम्हें बीस लाख करोड़ रुपये दे दिए। अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने खुशी-खुशी कहा – अच्छा लग रहा है। यह हुई न बात! कहकर मित्र फिर से अपनी बात समझाने लगा। उसने पूछा इन रुपयों का तुम क्या करोगे? मैंने कहा- यह भी कोई प्रश्न है? खाने-पीने और जरूरत की चीज़ें खरीदूँगा। मित्र ने लंबी साँस लेते हुए कहा- अब बताओ तुम्हें कैसा लग रहा है? मैंने कहा – बहुत अच्छा लग रहा है। तब मित्र ने कहा – हो गया हिसाब बीस लाख करोड़ रुपये का। जहाँ तक बात आत्मनिर्भरता की है, तो याद रखो तुम आत्मा हो और तुम्हारी खुशी निर्भरता। अब व्यर्थ की यह चिंता छोड़ो। घर जाओ और सो जाओ।

मैं घर पहुँचा। लेकिन मैं इसी उधेड़बुन में परेशान था कि जो रुपये मुझे मिले ही नहीं उसकी खुशी कैसी? आत्मनिर्भरता कैसी? यही सोचते-सोचते मैं सो गया। सपने में किसी ने मुझसे कहा – जिन बीस लाख करोड़ रुपयों को तुमने देखा नहीं, उसके लिए चिंता क्यों? उस चिंता के लिए चिता बनना क्यों? चिता बनकर यूँ सोना क्यों? जागो! अपने चारों ओर देखो। जिस प्रकार बिजली के प्रवाह को देख या छू नहीं सकते उसी प्रकार सरकारी रुपये देख या छू नहीं सकतेये रुपये बस सुनने में अच्छे लगते हैं। सोचो! ये रुपये सच में होते तो क्या लोग गरीबी से मरते? भूख से तड़पते-बिलखते? दर-दर की ठोकरें खातें? नहीं नइसीलिए जो नहीं है उसके होने का आभास दिलाने के लिए बीच-बीच में ऐसी बातें कह दी जाती हैं। ऐसा करने से जीने का झूठा दिलासा मिलता है। फिर चाहे वह बीस लाख करोड़ रुपये हो या फिर आत्मनिर्भरताआत्मा निर्भर बनने के लिए चाहे लाख डिसको करे, लेकिन निर्भरता का उसके लिए एक ही डायलाग होगा – खिसकोखिसको! खिसको


भोर-भिनसार

विधा - छंद मुक्त


परिचय - निशा खैरवा पुत्री मनोज खैरवा
छात्रा रामकुमारी कॉलेज
मु.पो. बिदासर,लक्ष्मणगढ़, सीकर राज.



भोर भिनसार शोर नित्य चहुँओर
कलरव निकुंज-खग निशा कंठ
उड़ फुर्र चाह उर-नभ वेग-तेग
भोर-भोर कजरारे अलसाये नैन।

अँगड़ाई अलसाई अंग-अंग मोरनि
प्रातः उच्छ्वास जैसे झंझावात
मृदु मुस्कान जैसे छवि कलीकंज
दृष्टि भोरी चंचल जैसे गोवत्स।

मन कोमल-अमल भाव निर्मल
विवेक एक नेक हित समरूप
मृदु बोल-तौल-मोल हित जान
कमी न, कमाई गुण जान न रूप।

'मगवाणी' की पहली वर्षगाँठ पर हुआ भव्य आयोजन, देश-विदेश में हो रही प्रशंसा

माजिक संस्था मगवाणी ने अपनी पहली वर्षगाँठ एक भव्य वीडियो कार्यक्रम के माध्यम से मनाई। इस कार्यक्रम को देश विदेश के लाखों लोगों ने यूट्यूब व फेसबुक व व्हाटसअप के माध्यम से देखा और सराहा । 'मगवाणी' एक समाचार पटल है जो देश की लगभग तीन दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के सहयोग से सामाजिक जागरण का प्रयास करती है। इस पटल के माध्यम से देश-विदेश के शाकद्वीपीय परिवारों व शाकद्वीपीय संस्थाओं के प्रेरक व महत्वपूर्ण गतिविधियों  को प्रसारित किया जाता है । इन प्रसारणों से प्रेरित 'शाकद्वीपीय समाज' अपने निजसशक्तिकरण से राष्ट्र के विकास में सहभागिता प्रदान करता है ।

     गत 20 दिसम्बर को सम्पन्न मगवाणी वार्षिकोत्सव के आलोक में देश- विदेश से प्राप्त शुभकामना सन्देशों को इस सामाजिक पटल अर्थात मगवाणी ने शृंखलावद्ध तरीके से प्रसारित किया । शुभकामना संदेश देने वाली महत्वपूर्ण विभूतियों में अयोध्यानरेश बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, दिल्ली के स्पेशल पुलिस कमिश्नर श्री दीपेंद्र  पाठक,  सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री देवेंद्र पाठक, लक्षद्वीप के कृषि व मत्स्यपालन सेक्रेटरी श्री ओम प्रकाश मिश्र,   राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पूर्व आई. ए. एस. अधिकारी वैदेही शरण मिश्र,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ पी. एस. पाण्डेय, उद्योगपति श्री सुरेश प्रसाद मिश्र, दैनिक हिंदुस्तान राँची के एसोसिएट एडिटर चंदन मिश्र, प्रख्यात साहित्यकार डॉ मदन मोहन तरुण, वेटरन जॉर्नलिस्ट प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र, काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेन्द्र पाण्डेय , शिक्षाविद श्री प्रदीप मिश्र, भाजपा महिला मोर्चा बिहार की सोशल मीडिया प्रभारी श्रीमती प्रीति पाठक , प्रख्यात ज्योतिर्विद पं विजयानन्द सरस्वती , बिमला हरिहर ग्रुप, राँची के संस्थापक निदेशक डॉ हरिहर प्रसाद पाण्डेय  ,पटना विश्वविद्यालय  के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमाशंकर शर्मा ऋषि , प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक डॉ चंद्र भूषण मिश्र एवं दैनिक सन्मार्ग के पूर्व सम्पादक श्री ज्ञानवर्धन मिश्र इत्यादि  के नाम शामिल हैं ।
     वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए मगवाणी कोर कमेटी सदस्य श्री बिमल कुमार मिश्र, श्री अनन्त कुमार मिश्र एवं श्री राजन राजेश्वर नायक ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करते हुए बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत नागपुर में रहने वाली मगवाणी प्रवाचिका श्रीमती श्रुति मिश्रा द्वारा प्रस्तुत गणेश वंदना से हुई । इसके बाद देश की लगभग दो दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के अध्यक्षो के साथ-साथ मगवाणी के कई प्रान्त प्रतिनिधियों , जिला प्रतिनिधियों व प्रसार प्रतिनिधियों के वीडियो संदेशों का प्रसारण हुआ । बिहार की बेटी काव्या मिश्रा द्वारा प्रस्तुत नृत्य एवं जहानाबाद के श्री राजेश मिश्र व उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत 'मगोपाख्यान गायन' भी आकर्षण के केंद्र रहे । सभी तेरह प्रवाचक-  प्रवाचिकाओं में श्रुति मिश्रा, राजीव नन्दन मिश्र,डॉ नारायण दत्त मिश्र,श्रीमती अनुपमा मिश्रा,मीनाक्षी मिश्रा,दीन दयाल शर्मा,अक्षिता मिश्रा,भगवानदत्त मिश्र,डॉली मिश्रा,नीरज उमेश शर्मा,भरत कुमार,प्रियंका चन्द्र शर्मा ने मगवाणी द्वारा प्रदत्त उपहारों व प्रशास्तिपत्रों को हाथ मे लेकर अपने आभार ज्ञापन भी प्रस्तुत किये। इसके बाद मगवाणी उपसमन्वयक श्री महेंद्र पाण्डेय व समन्वयक डॉ भारती भोजक ने अपने विचार व्यक्त किये ।सबसे अंत मे मगवाणी संयोजक श्री विवेकानंद मिश्र ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में मगवाणी के समस्त प्रयासों की प्रासंगिकता तथा  मगवाणी प्रसारण से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालते हुए आभार ज्ञापन प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से डॉ नारायण दत्त मिश्र, पटना से श्रीमती अनुपमा मिश्रा तथा जोधपुर से श्री दीन दयाल शर्मा ने किया ।