Thursday, December 23, 2021

'मगवाणी' की पहली वर्षगाँठ पर हुआ भव्य आयोजन, देश-विदेश में हो रही प्रशंसा

माजिक संस्था मगवाणी ने अपनी पहली वर्षगाँठ एक भव्य वीडियो कार्यक्रम के माध्यम से मनाई। इस कार्यक्रम को देश विदेश के लाखों लोगों ने यूट्यूब व फेसबुक व व्हाटसअप के माध्यम से देखा और सराहा । 'मगवाणी' एक समाचार पटल है जो देश की लगभग तीन दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के सहयोग से सामाजिक जागरण का प्रयास करती है। इस पटल के माध्यम से देश-विदेश के शाकद्वीपीय परिवारों व शाकद्वीपीय संस्थाओं के प्रेरक व महत्वपूर्ण गतिविधियों  को प्रसारित किया जाता है । इन प्रसारणों से प्रेरित 'शाकद्वीपीय समाज' अपने निजसशक्तिकरण से राष्ट्र के विकास में सहभागिता प्रदान करता है ।

     गत 20 दिसम्बर को सम्पन्न मगवाणी वार्षिकोत्सव के आलोक में देश- विदेश से प्राप्त शुभकामना सन्देशों को इस सामाजिक पटल अर्थात मगवाणी ने शृंखलावद्ध तरीके से प्रसारित किया । शुभकामना संदेश देने वाली महत्वपूर्ण विभूतियों में अयोध्यानरेश बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, दिल्ली के स्पेशल पुलिस कमिश्नर श्री दीपेंद्र  पाठक,  सीमा सुरक्षा बल के पूर्व महानिदेशक श्री देवेंद्र पाठक, लक्षद्वीप के कृषि व मत्स्यपालन सेक्रेटरी श्री ओम प्रकाश मिश्र,   राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त पूर्व आई. ए. एस. अधिकारी वैदेही शरण मिश्र,भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ पी. एस. पाण्डेय, उद्योगपति श्री सुरेश प्रसाद मिश्र, दैनिक हिंदुस्तान राँची के एसोसिएट एडिटर चंदन मिश्र, प्रख्यात साहित्यकार डॉ मदन मोहन तरुण, वेटरन जॉर्नलिस्ट प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र, काशी विश्वनाथ न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर नागेन्द्र पाण्डेय , शिक्षाविद श्री प्रदीप मिश्र, भाजपा महिला मोर्चा बिहार की सोशल मीडिया प्रभारी श्रीमती प्रीति पाठक , प्रख्यात ज्योतिर्विद पं विजयानन्द सरस्वती , बिमला हरिहर ग्रुप, राँची के संस्थापक निदेशक डॉ हरिहर प्रसाद पाण्डेय  ,पटना विश्वविद्यालय  के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रोफेसर उमाशंकर शर्मा ऋषि , प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक डॉ चंद्र भूषण मिश्र एवं दैनिक सन्मार्ग के पूर्व सम्पादक श्री ज्ञानवर्धन मिश्र इत्यादि  के नाम शामिल हैं ।
     वार्षिकोत्सव कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए मगवाणी कोर कमेटी सदस्य श्री बिमल कुमार मिश्र, श्री अनन्त कुमार मिश्र एवं श्री राजन राजेश्वर नायक ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी करते हुए बताया कि कार्यक्रम की शुरुआत नागपुर में रहने वाली मगवाणी प्रवाचिका श्रीमती श्रुति मिश्रा द्वारा प्रस्तुत गणेश वंदना से हुई । इसके बाद देश की लगभग दो दर्जन शाकद्वीपीय संस्थाओं के अध्यक्षो के साथ-साथ मगवाणी के कई प्रान्त प्रतिनिधियों , जिला प्रतिनिधियों व प्रसार प्रतिनिधियों के वीडियो संदेशों का प्रसारण हुआ । बिहार की बेटी काव्या मिश्रा द्वारा प्रस्तुत नृत्य एवं जहानाबाद के श्री राजेश मिश्र व उनकी टीम द्वारा प्रस्तुत 'मगोपाख्यान गायन' भी आकर्षण के केंद्र रहे । सभी तेरह प्रवाचक-  प्रवाचिकाओं में श्रुति मिश्रा, राजीव नन्दन मिश्र,डॉ नारायण दत्त मिश्र,श्रीमती अनुपमा मिश्रा,मीनाक्षी मिश्रा,दीन दयाल शर्मा,अक्षिता मिश्रा,भगवानदत्त मिश्र,डॉली मिश्रा,नीरज उमेश शर्मा,भरत कुमार,प्रियंका चन्द्र शर्मा ने मगवाणी द्वारा प्रदत्त उपहारों व प्रशास्तिपत्रों को हाथ मे लेकर अपने आभार ज्ञापन भी प्रस्तुत किये। इसके बाद मगवाणी उपसमन्वयक श्री महेंद्र पाण्डेय व समन्वयक डॉ भारती भोजक ने अपने विचार व्यक्त किये ।सबसे अंत मे मगवाणी संयोजक श्री विवेकानंद मिश्र ने अपने महत्वपूर्ण वक्तव्य में मगवाणी के समस्त प्रयासों की प्रासंगिकता तथा  मगवाणी प्रसारण से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश डालते हुए आभार ज्ञापन प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन दिल्ली से डॉ नारायण दत्त मिश्र, पटना से श्रीमती अनुपमा मिश्रा तथा जोधपुर से श्री दीन दयाल शर्मा ने किया ।

Wednesday, December 22, 2021

किसान दिवस

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     हमारा देश भारत कृषि प्रधान देश है। देश की 70 प्रतिशत आबादी किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़ी हुई है। आज देश में कुल आबादी का 86.21 फीसदी हिस्सा लघु सीमांत किसान(दो हेक्टेयर से कम जोत वाले), अर्ध मध्यम और मध्यम आकार वाली जोतों (02 से 10 हेक्टेयर तक की जोत वाले ) की संख्या 13.22 प्रतिशत और बड़ी जोत (10 हेक्टेयर या ऊपर) वाले किसान 0.57 प्रतिशत है।

     आजादी से पहले और भूमि सुधार कानून लागू होने तक खेतों की जोत का आकार बड़ा होता था। खेती की जमीन बड़े बड़े जमींदारों के पास होती थी। गांवों के ज्यादातर लोग जमींदारों से खेत लेकर खेती करते थे। बदलें में पैदा हुए अनाज का एक निश्चित भाग जमींदार को देते थे। पर्याप्त मात्रा में सिंचाई के साधन न होने, मौसम की मार पड़ जाने तथा आज जैसे खाद और कीटनाशकों के न होने से उपज अच्छी नहीं होती थी। जनमानस हमेशा अभाव में जीता था। किसान के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल था।
     यह वह दौर था जब देश में किसान और कृषि क्षेत्र अनेकों समस्याओं  से जूझ रहा था।  ऐसे समय में चौधरी चरण सिंह एक किसान नेता के रूप में उभरे।  जमीन और किसान से जुड़ी समस्याओं को व्यापक रूप से सरकार के सामने लाना शुरू किया। उन्होंने समाजवाद के नारे "जो जमीन को जोते-बोये वो जमीन का मालिक है" के साथ काम करना शुरू किया।  वे जानते थे कि जब तक सभी के पास जमीन नहीं होगी तब तक देश से गरीबी और भुखमरी का अंत नहीं हो सकता। देश की आर्थिक हालत ठीक नहीं हो सकती। 
     उस समय राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में किए वादे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते थे।  उस समय सत्ता में कांग्रेस पार्टी की सरकार थी। उनके घोषणा पत्र के अधिकांश वादे देश के विकास और नव निर्माण से संबंधित थे।  उनके घोषणा पत्र में भूमि सुधार एक मुख्य कार्यक्रम था।  उस समय उत्तर प्रदेश में पंडित गोविंद बल्लभ पंत  की सरकार थी। चौधरी चरण सिंह उनकी सरकार में राजस्व मंत्री थे। उन्होंने उत्तर प्रदेश में  भूमि सुधार  के  काम को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके प्रयासों से 01 जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश में  जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ।  लेख पाल का पद उनके ही प्रयासों से सृजित किया गया।  उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।     03 अप्रैल 1967 को वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने कुछ कारणों से मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। वह उत्तर प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। मध्यावधि चुनाव हुए जिसमें उन्हें अच्छी सफलता मिली।  17 फ़रवरी 1970 को वे फिर  मुख्यमंत्री बने। उनकी कार्यशैली के कारण आज भी उनकी गणना सबसे प्रभावी जननायक, कुशल प्रशासक और ईमानदार राजनेता के रूप में होती है।     उन्होंने सन् 1974 में  राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया और कांग्रेस के विरोध में एक नयी पार्टी का गठन किया। जिसमें भारतीय क्रांति दल के साथ-साथ बीजू जनता दल, समाजवादी पार्टी,  स्वतंत्र पार्टी जैसे कई दल शामिल हुए। आपातकाल के बाद और जे पी आंदोलन के समय यह दल काफी करीब आ गये और सबने साथ मिलकर एक नयी पार्टी का गठन किया। जो कि जनता पार्टी  कहलायी। 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक देश के पांचवें प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली।
     उस समय किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी।  सरकार अपने तरीके से फसलों के दाम घोषित किया करती थी। उनके कार्यकाल में ही आढ़तियों की मनमानी  पर अंकुश लगा। किसानों को कर्ज दिलाने के लिए उन्होंने नाबार्ड की व्यवस्था की। इसकी स्थापना से किसानों को खेती के लिए ऋण मिलना आसान हो गया। किसानों को कुछ हद तक साहूकारों से मुक्ति मिली।
     उन्होंने 1937 में  किसानों और सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछडे़ वर्ग के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का मुद्दा उठाया ।  उन्हीं के प्रयासों से मंडल कमीशन का गठन हुआ। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवाद से इत्तेफाक रखने वाली पार्टियों  के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने।    वह गरीब, किसान और मजदूर के नेता थे। वे सादगी, सच्चाई, ईमानदारी के पक्षधर और भ्रष्टाचार के खिलाफ थे। एक बार उन्हें एक थाने के पुलिस कर्मियों द्वारा घूस लेने की बात पता चली। उस समय वह देश के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने खुद किसान बनकर सच्चाई का पता लगाया। पुलिस द्वारा रिपोर्ट लिखने के लिए उनसे भी घूस मांगा गया। सच्चाई साबित होते ही उन्होंने पूरे थाने को सस्पेंड कर दिया ।  इतने निचले स्तर पर जाकर ऐसी कार्यवाही को अंजाम देना जनमानस के प्रति उनकी भावना को दर्शाता है।
     चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर 1902 को बाबूगढ़ छावनी के निकट नूरपुर , तहसील हापुड़, जनपद गाजियाबाद  में एक मध्यम वर्गीय किसान मीर सिंह के यहां हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक तथा 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से एल एल बी की  शिक्षा पूरी किया और गाजियाबाद में वकालत करने लगे।  
     सन् 1929 में आजादी के लिए पूर्ण स्वराज्य आंदोलन में जुड़ गये। सन् 1930 में महात्मा गाँधी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत् नमक कानून तोडने के आह्वान पर हिंडन नदी पर नमक बनाकर अंग्रेजों के बिरूद्ध शंखनाद किया। इसके लिए उन्हें 6 माह की सजा सुनाई गई। 1940 में सरकार ने उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया और 1941 में छोड़ा। अब तक वे आजादी के दीवाने बन चुके थे। अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी सरकार को खूब छकाया। अंग्रेज सरकार उनकी गतिविधियों से परेशान हो उठी। उसने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया। काफी मशक्कत के बाद आखिरकार अंग्रेज पुलिस उन्हें पकड़ने में कामयाब हो गयी। उन्हें डेढ़ साल की सजा हुई। 
     चौधरी चरण सिंह ने लम्बे समय तक गांव, गरीब और किसान की सेवा की। सादगी की मिसाल बने। 29 मई 1987 को दिल्ली में किसानों का मसीहा चिर निद्रा में लीन हो गया। खुशहाल किसान का उनका सपना आज तक पूरा न हो सका।  किसानों की समस्याओं को किसान ही समझ सकता है। गन्ने के रस को जूस कहने वाले जब तक किसान के लिए योजनाएं बनाएंगे तब तक किसान खुशहाल नहीं हो सकता। किसानों के लिए योजनाएं राजधानियों के वातानुकूलित कमरों में नहीं बल्कि खेतों की मेड़ों पर बैठकर  बनायी जाने की आवश्यकता है। जब इस स्तर पर योजनाएं बनेंगी तब ही चौधरी चरण सिंह का सपना साकार हो सकता है।


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हरी राम यादव
स्वतंत्र लेखक

उठो वीर जवानों

उठो वीर जवानों भारत के भारत माता की यही पुकार 

साधो अपने लक्ष्य को साधना की बस यही पुकार ।। 

 यह धरती है वीरों का जिनके कर्मो का गवाह इतिहास 
उस इतिहास के पन्ने में दर्ज कराना अपना इतिहास।। 

 परशुराम की कर्म भूमि है जहाँ परसु उठता अन्याय 
पर एक एक कर अधर्मी और अन्यायी का परशु हिसाब करता न्याय पर।। 

 तुम वंशज हो राम के जिनके आदर्श का गाथा है 
धर्म पथ और कर्म पथ के सामंजस का गाथा है।। 

 हरिश्चंद्र हो जिसके पूर्वज वो बोलो कैसे असत्य पर धरे मौन 
राजपाट को तुच्छ ही जाना सत्य पथ पर चलकर मौन।। 

 भीष्म जहाँ की अटल प्रतीज्ञा अर्पण किये जीवन का सुख 
राष्ट्र रक्षा का विडा मन में अर्पण किये जीवन का सूख।। 

 इतिहास पुरूष हैं अर्जुन तेरे जिनके वाणों की टंकार 
बड़े बड़े और वीर योद्धा भी करते थे उन्हें नमस्कार।।

 देश तुम्हारे ही जन्मे थे लीला धर लेकर अवतार
 मुरली गैया और सुदर्शन जिनके थे प्रिय हथियार।। 

 कितने वीरों का नाम कहूँ यह भारत माता स्वतः गवाह
 क्या एक एक कर नाम गिनाऊं जिनके कृत्यों का है भंडार।। 

 चन्द्रगुप्त उस मलेच्छ पर भारी जिसने जीत पूरा विश्व
 विश्व विजेता को घुटनों बैठकर चंद्रगुप्त ने जीता दिल।। 

 चौहान चलाए सब्दबेधी चित किया उस जालिम को 
भारत माता के रक्षा में आहुति दे दिया अपने आप को।। 

 चंद्रशेखर ,भगत और वीर सुभाष जन्म लिए जिस मिट्टी पर 
आजादी का लहर उठाकर स्वाहा हो गए उस  मिट्टी पर ।। 

लाखों लाख सपूत हुए आर्यावर्त की पुण्य धरा 
अब उनके किये कृत्य पर पानी जैसे है फिर रहा।। 

 अब भी अगर जग गए तो मिट जाएगा अंधियारा
 धवल किरण लेकर आएंगे रश्मि रथी का उजियारा।।।।
श्री कमलेश झा भागलपुर

प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम् - जो प्रत्यक्ष है, जो सामने है, उसे साबित करने के लिए कोई प्रमाण की ज़रूरत नहीं पड़ती।

प्रौद्योगिक और डिजिटल क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते भारत में कार्यक्रमों के संबोधनों में नेताओं द्वारा बड़े बुजुर्गों की कहावतों, संस्कृति, महाकाव्य, पौराणिक ग्रंथों के वचनों का उदाहरण देना सराहनीय - एड किशन भावनानी


गोंदिया - भारत आज तेजी से प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्षेत्र में अपेक्षा से अधिक लक्ष्यों को हासिल कर रहा है जो हर भारतीय के लिए फक्र की बात है कि हम शीघ्र ही एक वैश्विक रीडर की स्थिति में होंगे!!! साथियों इस प्रौद्योगिकी युग में भी हम अभी बीते कुछ दिनों, महीनों से एक बात बारीकी से महसूस कर रहे हैं कि हमारे राजनीतिक नेताओं, बुद्धिजीवियों विशेष रूप से वैश्विक लीडर सूची में प्रथम क्रमांक पर आए व्यक्तित्व द्वारा अपने करीब क़रीब हर संबोधन में चाहे वह राजनीति हो या गैर राजनीतिक, धार्मिक हो या सामाजिक उसमें बड़े बुजुर्गों की कहावतों, संस्कृति, साहित्य, पौराणिक ग्रंथों के वचनों, महाकाव्य के वचनों का उल्लेख कर उसका मतलब समझाया जाता है और उसपर वैचारिक सहमति दर्शाते हुए जनता से या सुनने वालों को उस राहपर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है!!! आज हम इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया पर संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तित्व का अगर हम संबोधन सुने तो उपरोक्त गुण उनके संबोधनों में पाए जाते हैं जो वर्तमान प्रौद्योगिकी और डिजिटल भारत में तारीफ़ ए काबिल है!!! साथियों बात अगर हम बीते कुछ महीनों सालों में नेताओं द्वारा संबोधनों में आध्यात्मिक,धार्मिक सांस्कृतिक, पौराणिक ग्रंथों, महाकाव्यों के वचनों, भारतीय पौराणिक संस्कृति इत्यादि के बारे में उपयोग में लाए गए कथनों की करो करें तो वह दिल को छू जाते हैं और हमें अपने भारतीय होने पर गर्व महसूस होता है!!! कुछ संबोधनों के अंश में शामिल निम्नलिखित वचन हैं। 1)- प्रत्यक्षे किम् प्रमाणम् - याने, जो प्रत्यक्ष है, जो सामने है, उसे साबित करने के लिए कोई प्रमाण की जरूरत नहीं पड़ती। 2) वसुधैव कुटुंबकम की बात कही। इसका अर्थ है- धरती ही परिवार है (वसुधा एवं कुटुम्बकम्) यह वाक्य भारतीय संसद के प्रवेश कक्ष में भी अंकित है। इसका पूरा श्लोक कुछ इस प्रकार है। अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम् ।उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्‍लोक ७१) अर्थ यह है - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है। 3) विश्वस्य कृते यस्य कर्मव्यापारः सः विश्वकर्मा।अर्थात, जो सृष्टि और निर्माण से जुड़े सभी कर्म करता है वह विश्वकर्मा है। हमारे शास्त्रों की नजर में हमारे आस-पास निर्माण और सृजन में जुटे जितने भी, हुनरमंद लोग हैं, वो भगवान विश्वकर्मा की विरासत हैं। इनके बिना हमअपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। 4) सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मङ्गलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े। 5)या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ यानी जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है. 'या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥' अर्थात जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है. 'या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्यभि-धीयते। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ इसका अर्थ है कि जो देवी सब प्राणियों में चेतना कहलाती हैं, उनको बारंबार नमस्कार है। 6) वयं राष्ट्रे जागृयाम -यानी  युजुर्वेद में ये सुक्ति है इसका अर्थ है हम राष्ट्र को जीवंत और जागृत बनाए रखेंगे। 7)हजारों साल पहले हमारे मनीषियों ने इसी विचार को आत्‍मसात कर विश्‍व को राह दिखाने का काम किया और आज हम भी उसी विचार मानने वाले हैं। प्रकृति से प्‍यार करने की सीख हमारे ग्रंथों में, हमारी जीवन शैली में शामिल है।पूरे विश्‍व कोपरिवार मानने की सीख हमारे मनीषियों ने दी। 8) अमृतम् संस्कृतम् मित्र, सरसम् सरलम् वचः।एकता मूलकम् राष्ट्रे, ज्ञान विज्ञान पोषकम्। अर्थात, हमारी संस्कृत भाषा सरस भी है, सरल भी हर संस्कृत अपने विचारों, अपने साहित्य के माध्यम से ये ज्ञान विज्ञान और राष्ट्र की एकता का भी पोषण करती है, उसे मजबूत करती है। संस्कृत साहित्य में मानवता और ज्ञान का ऐसा ही दिव्य दर्शन है जो किसीको भी आकर्षित कर सकता है। 9) कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म योग। 10) हजारों साल पहले हमारेमनीषियों ने इसी विचार को आत्‍मसात कर विश्‍व को राह दिखाने का काम किया और आज हम भी उसी विचार मानने वाले हैं। प्रकृति से प्‍यार करने की सीख हमारे ग्रंथों में, हमारी जीवन शैली में शामिल है। पूरे विश्‍व को परिवार मानने की सीख हमारे मनीषियों ने दी। 11) महा-योग-पीठेतटेभीम-रथ्याम् वरम् पुण्डरी-काय,दातुम् मुनीन्द्रैः। समागत्य तिष्ठन्तम् आनन्द-कन्दं,परब्रह्मलिंगम्,भजे पाण्डु-रंगम्॥ अर्थात्, शंकराचार्य जी ने कहा है- पंढरपुर की इस महायोग भूमि में विट्ठल भगवान साक्षात् आनन्द स्वरूप हैं।इसलिए पंढरपुर तो आनंद का ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। 12) अध्यात्म और सेवा अलग नहीं हैं और वे अनिवार्य रूप से समाज का कल्याण चाहते हैं। 13) जिस तरह से देश के स्वाधीनता संग्राम में भक्ति आंदोलन ने भूमिका निभाई थी,उसी तरह आजआत्मनिर्भरता भारत के लिए देश के संतों महात्माओं, महंतों और आचार्यों की मदद की आवश्यकता है। 14) हमारा देश इतना हजरत है कि यहां जब भी समय विपरीत होता है तो कोई ना कोई संत विभूति समय की धारा को जोड़ने के लिए अवतरित हो जातेहैं यह भारत ही है जिसकी आजादी के सबसे बड़े नायक को दुनिया महात्मा बुलाती है। 15) हमारे पुराणों ने कहा है जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। साथियों बात अगर हम ऐसे कई संबोधनों की करें तो यह अनेक नेताओं के हजारों की संख्या में संबोधन हैं!! साथियों यही भारतीय संस्कृति की पहचान है कि हमारे लीडरशिप में चाहे वह पक्ष हो या विपक्ष हो, भारत माता की मिट्टी में पैदा हुआ है और उन्हें यह संस्कृति गॉड गिफ्टेड है कि इतने बड़े पदों पर बैठे हुए भी आज अपने हर संबोधन में अपने धार्मिक ग्रंथों आध्यात्मिक संस्कृति के श्लोक पढ़े जाते हैं, उनका अर्थ समझाया जाता है जो काबिले तारीफ है!!! हालांकि राजनीति, हार जीत, पक्ष विपक्ष अपनी जगह है हर पक्ष विपक्ष द्वारा आपसी शाब्दिक हमले जनसभाओं में हम देखते रहते हैं परंतु यह आध्यात्मिक सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों का अर्थ समझा कर जनता में अपनी पैठ बढ़ाने की एक सफल कोशिश है!!! क्योंकि यह आस्था का प्रतीक होने में मील का पत्थर साबित होगा। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम -जो प्रत्यक्ष है वह सामने है उसे साबित करने के लिए किसी प्रमाण की ज़रूरत नहीं पड़ती, तथा प्रौद्योगिकी और डिजिटल क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ते भारत में कार्यक्रमों के संबोधन में बड़े बुजुर्गों, की कहावतों, संस्कृति, साहित्य, पौराणिक ग्रंथों महाकाव्य के वचनों का उदाहरण देकर शिक्षित करना सराहनीय है।