पंच निर्णय, सुलह, मध्यस्थता और ऑनलाइन विवाद समाधान, आपसी सहमति से विवाद निपटाने शीघ्र न्याय पाने का सशक्त माध्यम - एड किशन भावनानी
कोविड-19 महामारी ने वैश्विक रूप से हर क्षेत्र को बुरी तरह से प्रभावित किया जिसमें न्यायपालिका क्षेत्र भी शामिल है। 2020 में महामारी की भयंकर त्रासदी में उच्चतम न्यायपालिका द्वारा अंतिम तारीखों में अगले आदेश तक रोक, अनेक दिशानिर्देश, आदेश, जनहित, लोकहित व महामारी के प्रभाव से बचने के लिए न्यायालय में केवल अर्जेंट मैटर तक ही सीमित किए थे और अपनी जिम्मेदारी का खूबसूरती के साथ निर्वहन किया जो काबिले तारीफ है। साथियों परंतु इस अवधि में निचली कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक हजारों, लाखों मामलों पर कार्यवाही के स्थगन से माननीय न्यायपालिका के ऊपर बोझ बढ़ा। हालांकि अभी पूरी क्षमतासे न्यायपालिका अपने कार्यों का निर्वहन कर रहे हैं परंतु पुराने व नए मामलों का बैलेंस तो रहेगा ही। अतः हम जनता का भी फ़र्ज बनता है कि अनेक ऐसे मामले होते हैं जो हम आपस में ही निपटा सकते हैं या फिर एडीआर यानेने पंचनिर्णय, सुलह और मध्यस्थता, विवाद समाधान कानून के तहत या फिर ओडीआर याने ऑनलाइन विवाद समाधान की ओर ले जा सकते हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि कोरोना महामारी के पीक अवधि में न्यायालयीन कार्य पूर्ण रूप से ऑनलाइन लेवल पर ही चल रहे थे, जिसका बहुत गहरा अनुभव न्यायपालिका से जुड़े हर व्यक्ति को भी हो गया है। साथियों बात अगर हम नीति आयोग की करें तो आयोग ने 2020 में कोविड-19 संकट के दौरान ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) पर रिपोर्ट देने के लिए उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश माननीय ए के सीकरी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। उस समिति ने अपनी रिपोर्ट डिजाइनिंग द फ्यूचर ऑफ डिसप्यूट रिजॉल्युशनः द ओडीआर पॉलिसी प्लान फॉर इंडिया, याने विवाद समाधान का भविष्यकालीन ढांचा - भारत के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान नीति योजना रिपोर्ट, नीति आयोग को सौंपी दी है। साथियों बात अगर हम नीति आयोग की दिनांक 29 नवंबर 2021 को जारी पीआईबी की करें तो नीति आयोग ने उपरोक्त रिपोर्ट जारी कर दी है रिपोर्ट में उल्लिखित सिफारिशों के लागू होने से भारत को तकनीक के इस्तेमाल से और हर व्यक्ति के लिए न्याय की प्रभावी पहुंच के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान (ओडीआर) के माध्यम से नवाचार में भारत को वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने में सहायता मिल सकती है। रिपोर्ट भारत में ओडीआर फ्रेमवर्क को अपनाने से जुड़ी चुनौतियों से पार पाने के लिए तीन स्तरीय उपायों की सिफारिश करती है। ढांचागत स्तर पर यह डिजिटल साक्षरता, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार और ओडीआर सेवाओं के वितरण के लिए पेशेवरों को तटस्थ रूप में प्रशिक्षित करने की दिशा में काम करने का सुझाव देती है। व्यवहारगत स्तर पर, रिपोर्ट सरकारी विभागों और मंत्रालयों से जुड़े विवादों के समाधान के लिए ओडीआर को अपनाने की सिफारिश करती है। नियामकीय स्तर पर, रिपोर्ट ओडीआर प्लेटफॉर्म और सेवाओं के विनियमन के लिए नरम रुख अपनाने की सिफारिश करती है। इसमें इकोसिस्टम में विकास को प्रोत्साहन और नवाचारों को बढ़ावा देते हुए स्व-विनियमन के उद्देश्य से ओडीआर सेवा प्रदाताओं को मार्गदर्शन के लिए डिजाइन और नैतिक सिद्धांतों का निर्धारण शामिल हैं।रिपोर्ट कानूनों में जरूरी संशोधन करके ओडीआर के लिए मौजूदा विधायी ढांचे को मजबूत बनाने पर भी जोर देती है। रिपोर्ट भारत मेंओडीआर के लिए चरणबद्ध कार्यान्वयन के फ्रेमवर्क की पेशकश करती है। हमें ओडीआर की क्यों जरूरत है ? कोविड-19 महामारी के चलते समाज का एक बड़ा तबका समय से न्याय हासिल करने में नाकाम रहा है। महामारी के चलते पहले से लंबी अदालती प्रक्रियाओं पर और अधिक बोझ बढ़ाने वाले विवादों की बाढ़ आ गई है। भारत सरकार के प्रमुख नीतिगत थिंकटैंक के रूप में, नीति आयोग ने उन लोगों को किफायती, प्रभावी और समयबद्ध न्याय दिलाने में सहायता के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग करने के लिए एक परिवर्तनकारी पहल की, जिनको इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। ओडीआर में अदालत के बोझ को कम करने में सहायता करने और मामलों की विभिन्न श्रेणियों के कुशलतापूर्वक समाधान की पूरी क्षमता है। इसे ई-लोकअदालत के माध्यम से अदालत से जुड़े वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) केंद्रों में तकनीक के एकीकरण के माध्यम से न्यायपालिका को समर्थन देने के लिए एकीकृत भी किया जा सकता है और इसे आंतरिक विवादों के लिए सरकारी विभागों के भीतर भी पेश किया जाना चाहिए।नीति आयोग द्वारा तमाम हितधारकों के साथ मिलकर 20 हितधारक परामर्श और संस्थागत व व्यक्तिगत स्तर पर लगभग 100 संवादों सहित व्यापक चर्चा कराई गई। विचार-विमर्श के दौरान जनता से भी राय मांगी गई थी। हर अदालत के सामने आने वाले विविध मुकदमों में, बेहद मौलिक और बहुत छोटे नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण विवादों का समूह होता है, जिन्हें अदालत के सामने नहीं आना चाहिए। मोटर दुर्घटना दावे, चेक बाउंस के मामले, व्यक्तिगत आघात के दावे जैसे मामले और ऐसे मामले जो निपटारे के लिए ओडीआर के पास जा सकते हैं, इनमें शामिल हैं। नीति आयोग की ओडीआर पहल सराहनीय है और मसौदा रिपोर्ट को सावधानीपूर्वक संकलित कर लिया गया है। यह विवाद समाधान और तकनीक के बीच इंटरफेस व भारत में इसके लिए संभावनाओं का अनूठा विश्लेषण है। ओडीआर क्या है ? ओडीआर डिजिटल प्रौद्योगिकी और पंच निर्णय, सुलह व मध्यस्थता जैसे एडीआर के उपायों के इस्तेमाल से विशेष रूप से लघु और मध्यम मूल्य के मामलों से जुड़े विवादों का समाधान है। यह पारम्परिक अदालती व्यवस्था के बाहर विवाद से बचने, रोकथाम और संकल्प के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की प्रक्रिया का उल्लेख करती है।विवाद समाधान के माध्यम के रूप में यह सार्वजनिक अदालती व्यवस्था के विस्तार और उससे इतर दोनों के तौर पर प्रदान किया जा सकता है। दुनिया भर में, विवाद समाधान की क्षमता विशेष रूप से प्रौद्योगिकी के माध्यम से पहचानी जा रही है। ओडीआर को कोविड-19 के कारण पैदा बाधाओं से निपटने के लिए सरकार, व्यवसायों और यहां तक कि न्यायिक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन मिला है। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि रिपोर्ट में न्याय तक त्वरित पहुंच के लिए ऑनलाइन विवाद समाधान पर जोर दिया गया है तथा पंचनिर्णय, सुलह, मध्यस्थता, वैकल्पिक विवाद समाधान और ऑनलाइन विवाद समाधान, आपसी सहमति से विवाद निपटाने, शीघ्र न्याय पाने का सशक्त माध्यम है जिसे जनता ने अपनाना चाहिए।