कोविड-19 की भयंकर त्रासदी से चिकित्सा पेशे से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभव से दो-चार हुए कोविड पीड़ितों की दासतां का स्वतःसंज्ञान नीति निर्धारकों को लेना ज़रूरी - एड किशन भावनानी
गोंदिया - वैश्विक रूप से खासकर भारत में आदि-अनादि काल से ही चिकित्सक पेशे से जुड़े व्यक्तियों को खासकर डॉक्टरों को एक भगवान ईश्वर अल्लाह का दर्जा दिया हुआ है। हमारे बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जमाने में और सैकड़ों वर्षो पूर्व डॉक्टरों को वैद्य के रूप में जाना जाता था। उस समय भी हम उन्हें ईश्वर अल्लाह ही दर्जा देते थे। क्योंकि उनमें समर्पण का भाव, नैतिकता, संवेदनशीलता, सहयोग और सेवा का भाव कूट-कूट कर भरा रहता था। उस समय पैसों की इतनी अहमियत नहीं थीं, जितनी सेवा, सहयोग, समर्पण का भाव था। साथियों बात अगर हम वर्तमान चिकित्सा पेशे से जुड़े डॉक्टरों सहित हर व्यक्ति जिनमें हम फार्मा को भी शामिल कर सकते हैं की करें तो हम सब ने टीवी चैनलों, प्रिंट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा दिखाए कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर देखें कि किस तरह का माहौल था। बीते डेढ़ वर्ष में मैंने स्वयं भी कोविड संबंधी अनेक ग्राउंड रिपोर्टिंग देखी और अपने सिटी में कुछ ग्राउंड रिपोर्टिंग स्थलों पर भी गया और पाया था कि बुजुर्गों द्वारा बताए गए ईश्वर अल्लाह के दर्जे से अपेक्षाकृत कहीं ना कहीं थोड़ा अलग रास्ता दिखाई दिया!! हालांकि इस स्थिति, परिस्थिति में कोविड पीड़ितों, मरीजों के रिश्तेदारों का भी रवैया कहीं ना कहीं परिस्थितिवश दिखा पर हम पूर्ण रूप से दोनों पक्षों को एकदम सही नहीं दर्शा पाए!! जिसमें अपेक्षाकृत अधिक ज़वाबदारी चिकित्सक पेशे से जुड़े फार्मा सहित पूरे समुदाय की बनती है जिसे हमें उन परिस्थितियों से सबक सीख कर उसका स्वतःसंज्ञान लेकर अपेक्षाकृत सेवा, सहनशीलता, संवेदनशीलता, समर्पण व नैतिकता का अधिकतम भाव लाने की ज़रूरत है। साथियों बात अगर हम चिकित्सा क्षेत्र के पेशे में सरकारी और निजी लेवल पर करें तो हमें उस त्रासदी दरमियान दोनों लेवल पर साफ फर्क देखने को मिला। साथियों मैंने देखा एक क्षेत्र में अपेक्षाकृत पैसों के वजन का भाव अधिक था अनेक टीवी चैनलों पर भी इस विषय पर अनेक ग्राउंड रिपोर्टिंग दिखाई गई। लेकिन समय का चक्र चलता गया!! और कई जानें बचाई गई तो कई जानें चली गई परंतु हमें इस त्रासदी से भाव सीखने का मौका नहीं छोड़ना चाहिए। चिकित्सक नीति निर्धारको द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर त्रासदी पीड़ितों से उनके खट्टे-मीठे अनुभव के डाटा कलेक्शन कर आगे की सकारात्मक राह बनाने में उपयोग करना ज़रूरी है ताकि चिकित्सा क्षेत्र में नैतिकता, सवेंदनशीलता, सहयोग सेवा, समर्पण का भाव कूट-कूट कर भरने ज़वाबदारी, जवाबदेही तय करने की नीतियां बनाई जा सके। साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा दिनांक 17 नवंबर 2021 को एक प्राइवेट लिमिटेड चिकित्सालय का उद्घाटन करने पर संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार उन्होंने भी इस अवसर पर चिकित्सा क्षेत्र में नैतिक व्यवहार का पालन करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि कुछ गलत लोगों के कारण इस नेक पेशे का नाम खराब होता है। उन्होंने रोगियों को अनावश्यक जांच की सलाह देने से बचने का आह्वान किया। कोविड-19 वैश्विक महामारी के बारे में बात करते हुए उन्होंने फ्रंटलाइन कोविड वॉरियर की कड़ी मेहनत, समर्पण और बलिदान के लिए प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि इस वैश्विक महामारी ने हमें कई कठिन सबक सिखाए हैं जिसमें हमारे घरों एवं कार्यालयों में वेंटिलेशन का महत्व और हमारी प्रतिरक्षा को बेहतर करने वाले पारंपरिक स्वस्थ आहार अपनाने की आवश्यकता आदि शामिल हैं। रिकॉर्ड समय में कोविड टीका तैयार करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की सराहना करते हुए उन्होंने सभी से आगे बढकर टीका लगवाने का आग्रह किया। उन्होंने लोगों को सलाह दी कि वे अपने बचाव में लापरवाही न करें और कोविड संबंधी उचित व्यवहार का पालन करें। उन्होंने भारतमें गैर-संक्रामक रोगों के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए युवाओं को स्वस्थ एवं अनुशासित जीवन शैली अपनाने की सलाह दी। उन्होंने उनसे कहा कि गलत आदतों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आहार से बचने और नियमित योगाभ्यास अथवा साइक्लिंग जैसी शारीरिक गतिविधियां शुरू करें। उन्होंने आज सभी के लिए सस्ती एवं सुलभ स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने आधुनिक मल्टी - स्पेशिएलिटी अस्पतालों को भी ग्रामीण क्षेत्रों में सैटेलाइट सेंटर शुरू करने का सुझाव दिया। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि चिकित्सा पेशे से जुड़े हर व्यक्ति में नैतिकता संवेदनशीलता, सहयोग, सेवा, समर्पण का भाव होना अत्यंत ज़रूरी है तथा कोविड-19 की भयंकर त्रासदी ने चिकित्सा पेशे से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभवों से दो-चार हुए कोविड पीड़ितों की दासतां का स्वतः संज्ञान चिकित्सा नीति निर्धारकों को लेना ज़रूरी है।
-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र