Tuesday, May 18, 2021

श्मशान में ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सब जल रहे हैं पास-2*

 ऐसी विपदा तो सौ सालों में,कभी नहीं थी आई।

कैसा ये परिदृश्य बना है, टीवी देखें आये रुलाई।

इंसानों ने विकास हेतु,किया प्रकृति से खिलवाड़।
वृक्ष एवं जंगल सब काटे,बंद ऑक्सीजन किवाड़।

बड़े बड़े तालाबों को पाटा,बिल्डर्स का है ये धंधा।
खनन माफियाओं का भी,काम हुआ नहीं ये मंदा।

वृक्षारोपण किए नहीं हैं,प्रदूषण भी ऐसा फैलाया।
साँस भी लेना दूभर है,कोरोना ने ऐसे पैर फैलाया।

पिघल रहा ग्लेशियर,ग्लोबल वॉर्मिंग का असर है।
भू जल भी क्षरण हो रहा,ऊर्जा ह्रास का असर है।

अपनी करनी का ये फल,मानव ही भोगा-भोगे गा।
धरती पर तो शुकून नहीं,हर घर में रोग है भोगे गा।

इन सब झंझावातों से कैसे,इंसान कोई संघर्ष करे।
आजिज आ गया है ये,इंसा कोविड से संघर्ष करे।

कितनी जानें रोज जा रहीं, हर तरफ है हाहाकार।
आपदा में भी अवसर का,कर रहे लोग हैं व्यापार।

नहीं रह गई इंसानियत कोई,ब्लैक में बेंचते दवाई।
लाशों का ढ़ेर लगा है,अस्पताल में बेड है न दवाई।

शमशान में जाते ही,मिट ये गया है सब छुआछूत।
पास पास ही जल रहे हैं,ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र।

राजनीति लाशों पर भी होये,कितनी है ये बेहयाई।
किसी नेता को भी बिलकुल,इसमें शर्म नहीं आई।

कभी-2 मरने वाले के दरवाजे,पे पहुँच भले जाते।
नेतागण दिखावे में अपना भी,ये शोक जता जाते।

डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*

वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

लडकियों को तहजीब सीखाएं- मायके पक्ष

हमारे सनातन धर्म में कहा गया है लड़की का सुहागन होना और ससुराल में होना शुभ है ,और संस्कारिक मर्यादा भी।लेकिन आज कल के माॅम डैड ने इसे वर्बाद कर रखा है।सबसे ज्यादा विकट स्थिति का माध्यम फोन का घंटो तक आदान प्रदान होना।जिस किसी घर में ऐसी बीमारी लगी है वह घर रिश्ते की लिहाज से दम तोड़ चुके हैं । जबसे यह आधुनिक फोन का प्रचलन बढा है मायके का हस्तक्षेप बढता गया है। जिसे कोई खुद्दार पति शायद बर्दाश्त नहीं करता और यही सम्बन्धों की एक दीवार खड़ी करती है जो आये दिन अदालतें थाने और विभिन्न आयोग के बढ़ती फाइलों में दम तोड़ रही है।

प्राचीन काल में ऐसा बिल्कुल नहीं था रिश्तों की एक बुनियाद होती थी ।मायके पक्ष कभी भी नादानी या ओछी बात नही करते थे बल्कि अपने बच्ची को समझाते थे ।जिससे रिश्ता प्रगाढ और निरंतर बना रहता था।जब कोई खास आयोजन में उनसे राय मांगी जाती थी तो वे मशवरा देते थे आज बिल्कुल अलग है ।आज दाल में नमक अधिक हो गया अगर पति ने डांट दी तो पति को डाटने के लिए प्रोग्राम बनाया जाता है जिसका माध्यम भी मोबाइल ही है जबकि पहले लोग हंसकर उड़ा डालते थे। यही फर्क है आज के इस नयी पीढी में जिसकी वजह से नौबत तालाक तक पहुंच जाती है।घरेलू हिंसा और प्रताड़ना की सारे हदें पार कर चुका यह समाज अब पतन की कगार पर खड़ा है जिसकी वजह है एकल मानसिकता से ग्रसित लडकियां शादी के बाद सिर्फ एकल परिवार को बढावा दे रही है।

ऐसा नही कि एकल होने के बाद यह सिलसिला समाप्त हो जाता है अपितु बढ़ जाता है।कई पुरूष चुपचाप सहकर जीवन निर्वाह कर लेते है तो कई डिप्रेशन के शिकार हो जाते है।क्योंकि कलह की निरंतरता बनी रहती है।आज अदालतों में सबसे ज्यादा मुकदमे तालाक के है,महिला थाना में परिवारवाद की केस की संख्या इतनी ज्यादा है कि नम्बर आने में महीनो लग जाते है।महिला आयोग मानवाधिकार आयोग में भी प्रायः यही स्थिति है।
अब सवाल उठता है ऐसा क्यों है ऐसा इसलिए है क्योंकि ""एको अहम द्वितीयो नाश्ती। की मानसिकता जब पनपने लगती है तो सामने वाला बडा हो बुजुर्ग हो अथवा गेस्ट हो आप तरजीह नही देते और अपनी बात को सबसे उपर रखते है ।आप समझने की कोशिश नही करते कि आपकी बच्ची सही है या दामाद आप सिर्फ और सिर्फ अपनी एको हम द्वितीयो नाश्ती की परिभाषा को परिभाषित करते है जिससे सम्बन्ध विच्छेद होता है।
 युग कितना भी बदल जाय पर संस्कार तो घर और परिवार ही देता है और जब एकल परिवार ही रहेगा तो संस्कार कहां से आएगा ।यह आज की वास्तविकता है जिसे स्वीकार करना होगा।रिश्ते करने से पहले यह एक आवश्यक पहलू है जिसे हरकोई देखता है। मायके का बढ़ता प्रचलन विगत दशको से खूब फल फूल रहा जरूरत से ज्यादा उनकी भागीदारी ससुराल पक्ष में भी कटुता पैदा करता है ।यह भी घरेलू हिंसा का एक कारण है।कारण अनेको हैं जिसे समझने की जरूरत है।
देखा जाय तो संयुक्त परिवार का विधटन ऐसे तमाम परेशानियों को जन्म दे गया जो आज समाज में अभिशाप बना हुआ है। हमारे हिन्दु समाज में तालाक महिला थाना या महिला आयोग नही हुआ करती थी । इन सभी चीजो को बढ़ती घटनाओ को देखकर समयानुसार बनाया गया है।अलग कानून बनाकर महिला को सशक्त किया गया है ।लेकिन ऐसी सशक्तिकरण का क्या जहां पुरूष प्रताडित होते रहे।
आज महिला प्रताड़ना से ज्यादा पुरूष प्रताडित किए जाते है ।पुरूष की हालत ऐसी है कि वह चाहकर भी अपनी बात किसी से नही करता जबकि हकीकत तो सभी जानते हैं ।आखिर सरकार द्वारा बनाये गये कानून का कोई सदुपयोग करे यह सुनिश्चित भी तो नही क्योंकि शातिर दिमाग दुरूपयोग की ज्यादा सोच रखता है। आज ऐसे करोडो पुरूष है जो किसी न किसी रूप से अपनी पत्नी अथवा किसी महिला द्वारा प्रताडित है। क्या सरकार पुरूष आयोग बनाएगी ? वैसे कईयों को महिला कानून के गलत इस्तेमाल पर दंड भी दिया गया है लेकिन इसकी तादाद कम है।इसलिए मां बाप लड़कियों को मन विषैला करने के वजाय ससुराल में रहने का तरीका सीखाना चाहिए।तभी इन अदालतों का बोझ कम हो सकेगा।
                                             आशुतोष 
                                           पटना बिहार 

मृत्यु का अमृत भाव

यह जीवन मूल रूप में अमरता की ही यात्रा है। जीवन को यदि सरलतम ढंग से कहा जाय तो यहीं कहेंगे कि यह वह अवस्था है जिसमें जीवित होने का भाव होता है। इस भाव के अन्तरगत प्राणी अपनी इन्द्रियों द्वारा विभिन्न व्यवहार करता है। उपनिषद का यह सूत्र कहता है कि हमे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। यह पूरा सूत्र नही हैं। इसके पूर्व सूत्र कहता है कि असत्य से सत्य की ओर, अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो। जब यह दोनों बातें घट जाँय तो तीसरी बात बहुत सरल हो जाती है। जब सत्य और प्रकाश मिल जाते हैं तो मृत्यु अमरता में परिवर्तित हो जाती है।

मृत्यु भयभीत करती है। व्यक्ति को मरने में मात्र क्षणभर या उससे भी कम समय लगता है किन्तु मृत्यु की पूर्वसूचना पूरे जीवन साथ चलती रहती है। मृत्यु की अनुभूति और उसका शब्द सम्प्रेषण भी असम्भव है ; क्योंकि यह वह घटना है जिसमें आप समूचे घट जाते हैं। आपका समूचा व्यक्त चला जाता है। चेतना की यात्रा रह जाती है। किन्तु चेतना जिससे अभिव्यक्त होती है, वह समाप्त हो जाता है। इस भय को सनातन दर्शन ने बरसों पहले समझा था। सनातन की जो सूक्ष्म दृष्टि है उसका पूरा बल इसी बात पर है कि व्यक्ति का जीवन कैसे सुखमय और भयमुक्त हो। वह इस जीवनकाल में ही अमृत की बात करता है। प्राणी इसी जीवन-वृत्त में, पूर्ण जागरण में ही अमरता को अनुभूत कर सकता है।

अमरता क्या है ? अमरता यह नही कि हम मृत्यु को प्राप्त ही नहीं होंगे, अपितु यह कि मृत्यु के पश्चात भी इस अविच्छिन्नता में, इस नैरन्तर्य में, हम सदा ही रहेंगे। इस निरंतरत्व में हमारा अस्तित्व समाप्त होगा भी तो कैसे ? इसके समाप्त हो जाने का कोई उपाय, कोई सम्भावना तो नही दिखती ! इस ज्ञात जीवन की छोटी सी अवधि का व्यतीत हो जाना भर मृत्यु तो नही है ! हमारे ऋषि जीवन को ही उत्तरोत्तर सम्भावना मानते हैं। 

हमारे चतुर्दिक ऐसे विचार आवें जो कल्याणकारी हैं, जिन्हें दबाया न जा सके, जिन्हें बाधित न किया जा सके और वह जो अज्ञात है उसको प्रकट करने वाले हों। हमारी रक्षा में सदैव तत्पर रहने वाले, प्रगति को बढाने वाले देवता प्रतिदिन हमारी वृद्धि को तत्पर रहें। अब जो अज्ञात है उसको प्रकट करने वाले विचारों की अभ्यर्थना ही अमरता की पुकार है।
व्यक्ति सूक्ष्म का अन्वेषण नहीं करता। वह जो बचा है उसको देख हर्षित नही होता। वह जो चला गया और कोटि प्रयास के उपरान्त भी आने वाला नही है, उसमें ही निर्विष्ट रहता है। दुःख प्रबल होता है और उससे प्रबल होती है दुःख  की छोड़ी गयी प्रातिच्छाया। इस प्रातिच्छाया को पाटना सरल नहीं होता। किन्तु दुख को छाती से चिपका लेने से कुछ नहीं बदलता। हाँ दुख इतना भ्रम अवश्य दे देता है कि व्यक्ति उसी से लुबधा जाय।

व्यक्ति जीवन पर्यन्त प्रक्रमण करता रहता है। एक मृत्यु ही है जिसको ढूँढने की आवश्यकता नही होती। वह स्वयं ढूँढ़ लेती है। मृत्यु अविद्यमान है। जीवन प्रत्यक्ष है। जीवन प्रकृतिस्थ है। जीवन की प्रकृतिलय ही मृत्यु है। मानवता के इतिहास में जीवन के हार जाने का कहीं कोई उदाहरण नही मिलता। जीवन तो तंकन में भी अक्षुण्ण है। इसे ऐसे ही जीना चाहिये
मैं ऐसे ही जीवित मर जाता हूँ। जीवन को बचा ले जाता हूँ। पिव को देख दिखाकर आनन्द पाता हूँ। समय का यह चक्र तपनीय है। काल का यह अंकपरिवर्तन भी अस्थायी है। वह पुनः करवट बदलेगा। 

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"
युवा लेखक/स्तंभकार/साहित्यकार
लखनऊ, उत्तर प्रदेश

Monday, May 17, 2021

नारायणी नदी में बहते हुए देखी गयी लाश

सारण (ब्युरो चीफ संजीत कुमार) दैनिक आयोध्या टाईम्स 

सोनपुर--- सूबे के कई जगहों पर गंगा नदी में कई शव मिलने के बाद जहाँ सरकार एक्शन मूड में है वहीं दूसरी  सोनपुर के गंगा- गंडक के संगम नारायणी नदी स्थल के थोड़ी ही दूरी पर गजेंद्र मोक्ष देवस्थानम ,नौलखा मंदिर के समीप रविवार को शव देखे जाने से सनसनी फैल गई।नदी मे बहते शव को देखने के लिए कुछ लोग गंडक नदी घाट पर इकट्ठा हो गए। शव धीरे-धीरे नदी में बहते हुए काफी दूर निकल गया। इस संबंध में पूछे जाने पर हरिहरनाथ ओपी प्रभारी बिभा रानी  ने बताई की पुलिस को नदी में शव देखे जाने की सूचना नहीं है। वही शव नदी में यहाँ कहां से आया इस बात की चर्चा लोगों में खूब हो रही है लोगो मे यह भी बात उठ रही हैं कि कोरोना संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद अगर नदी में प्रभावित किया गया है ऐसे में संक्रमण फैलने की आशंका है। 

बता दे कि गंगा नदी में बड़ी संख्या में लावारिस शव मिलने के बाद राज्य सरकार एक्शन में है। गृह विभाग ने शवों की अंत्येष्टि को लेकर कई दिशा निर्देश जारी किया है।जारी दिशा-निर्देशों के तहत शवदाह स्थलों या अन्य किसी स्थान पर शवों को बिना जला, अधजला या बिना दफनाया हुआ नहीं छोड़ा जाएगा। लावारिस शव मिलने पर नियम के तहत सम्मानपूर्वक अंत्येष्टि की जाएगी। शवों के अंतिम संस्कार के लिए सरकार द्वारा दी जा रही सहायता जिसमें कोरोना मरीज के शव या लावारिस शव का बिना शुल्क अंत्येष्टि, बीपीएल को मिलनेवाला कबीर अंत्येष्टि अनुदान लाभुकों को दिलाना सुनिश्चित करने को कहा गया है।इसके अलावा निजी अस्पताल से समन्वय बनाकर शवों की पूर्ण अंत्येष्टि सुनिश्चित करने को कहा गया है। साथ ही, शवदाह स्थलों, घाटों पर पुलिस की तैनाती करने और शवों के सम्मानपूर्वक अंत्येष्टि को जागरूकता अभियान चलाने को कहा गया है।