Tuesday, May 4, 2021

ज़ुकाम

मौसमी जुकाम के इलाज में हल्दी काफी फायदेमंद है। बहती नाक के इलाज के लिए हल्दी को जलाकर इसका धुआं लें, इससे नाक से पानी बहना तेज हो जाएगा व तत्काल आराम मिलेगा। यदि नाक बंद है तो दालचीनी, कालीमिर्च, इलायची और जीरे के बीजों को बराबर मात्रा में लेकर एक सूती कपड़े में बांध लें और इन्हें सूंघें जिससे छींक आएगी। 


10 ग्राम गेहूं की भूसी, पांच लौंग और कुछ नमक लेकर पानी में मिलाकर इसे उबाल लें और काढ़ा बनाएं। एक कप काढ़ा पीने से लाभ मिलेगा। हालांकि जुकाम आमतौर पर हल्का-फुल्का ही होता है जिसके लक्षण एक हफ्ते या इससे कम समय के लिए रहते हैं, लेकिन खान-पान की आदतों को लेकर हमें काफी सतर्क रहना चाहिए और यदि जुकाम वगैरह के लक्षण दिखाई दे तो समुचित दवाओं आदि से इलाज कराना चाहिए। डिप्थीरिया होने पर अमलतास के काढ़े से गरारा करने पर जबर्दस्त आराम मिलता है। 
तुलसी और अदरक इस मौसम में लाभदायक होते हैं। तुलसी में काफी उपचारी गुण समाए होते हैं, जो जुकाम और फ्लू आदि से बचाव में कारगर हैं। तुलसी की पत्तियां चबाने से कोल्ड और फ्लू दूर रहता है। इसी तरह तुलसी और बांसा की पत्तियां (प्रत्येक 5 ग्राम) पीसकर पानी में मिलाएं और काढ़ा तैयार कर लें। इससे खांसी और दमा में काफी फायदा मिलेगा।
डॉ. दुर्गा प्रसाद पांडेय
प्राकृतिक चिकित्सक
मुंबई

टॉन्सिल के दर्द से राहत दिलाने वाले घरेलु उपाय

गला जहाँ से शुरू होता है वहीं प्रवेश द्वार पर एक लोरी होती है माँस के छोटे, पतले व लंबे टुकड़े की भांति, इसे घाटी भी कहते हैं। इसमें जब सूजन आ जाता है तो इसे टांसिल या घाटी बढ़ना कहते हैं। देखने में छोटा यह लोरी जैसा माँस का टुकड़ा शरीर की सारी क्रियाओं को संतुलित करता है, जब इस लोरी में असंतुलन पैदा होता तो शरीर के पंचतत्वों में भी असंतुलन पैदा होने लगता है और इसकी वजह से कई प्रकार के रोग जन्म लेने लगते हैं। छोटे बच्चों में टांसिल्स या घाटी बढ़ जाने की वजह से वह कुछ पिलाने पर उल्टी कर देते हैं।

पहले गांवों में कुछ ऐसी वैद्य महिलाएं होती थीं जो राख से घाटी को दबाकर ठीक कर देती थीं। लेकिन अब कोई यह जोखिम नहीं लेता है और चिकित्सक की सलाह पर दवा करना ज़्यादा पसंद करता है। आइए टांसिल के बारे में सही जानकारी प्राप्त करते हैं।
टांसिल्स दो तरह के होते हैं।
पहले प्रकार में दोनों तरफ़ या एक तरफ़ के टांसिल में सूजन आता है और वह सुपारी की तरह मोटा हो जाता है। उसके बाद उपजिह्वा में भी सूजन होकर वह रक्त वर्ण की हो जाती है। धीरे-धीरे यह खाने-पीने की नली को भी संक्रमित कर देता है और कुछ भी खाने-पीने में दर्द होता है। यह दर्द कान तक फैल जाता है। इस अवस्था में 103 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा बुखार चढ़ सकता है, जबड़े में दर्द हो सकता है तथा मुंह पूरा खुलता नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि समय पर उचित इलाज न मिला तो टांसिल पक कर फूट सकता है।
 दूसरे तरह के टांसिल क्रोनिक होते हैं। जिसे बार-बार टांसिल्स की बीमारी होती हैं, वह क्रोनिक हो जाती है। टांसिल का आकर बड़ा हो जाता है और सांस लेने व छोड़ने में तकलीफ़ होने लगती है।
 टांसिल के मुख्य कारण
 चावल, मैदा, ठंडे पेय पदार्थ, खट्टी चीज़ों का ज़्यादा सेवन टांसिल्स का मुख्य कारण है।– 
मौसम में अचानक परिवर्तन, गर्मी से अचानक ठंडे मौसम में आ जाना व सर्दी लगने से भी टांसिल्स हो सकते हैं।
 टांसिल के लक्षण

*टांसिल होने पर ठंड लगने के साथ बुखार चढ़ता है। कुछ भी खाने-पीने में तकलीफ़ होती है और उसका स्वाद नहीं मिलता है। गले में तेज़ दर्द होता है, यहाँ तक कि थूक निगलने में भी दिक्कत होती है।*
 टांसिल के घरेलू उपचार
टांसिल यदि हो गया है तो गर्म पानी में नमक डालकर गरारा करने से लाभ मिलता है, सूजन कम हो जाती है।–
 दालचीनी या तुलसी की मंजरी का एक चुटकी चूर्ण, मधु में मिलाकर दिन में नियमित तीन बार सेवन करने से आराम मिलता है।–
 एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में उबाल लें और उसे ठंडा करके गरारा करने से लाभ होगा।– 
 हल्दी का चूर्ण दो चुटकी व काली मिर्च का चूर्ण आधी चुटकी लेकर एक चम्मच अदरक के रस में मिलाकर आग पर गर्म कर लें। रात को सोते समय मधु में मिलाकर इसका सेवन करें। नियमित दो-तीन दिन के प्रयोग से ही टांसिल का सूजन चला जाता है।– 
पानी में सिंघाड़ा उबाल लें और उसी पानी से कुल्ला करें। लाभ मिलेगा।
टांसिल्स की समस्या है तो बिना नमक की उबली हुई सब्ज़ियों का प्रयोग करना चाहिए। 
मिर्च-मसाला, तेल, खट्टी व ठंडी चीज़ों के सेवन से परहेज़ करना चाहिए।
गला जहाँ से शुरू होता है वहीं प्रवेश द्वार पर एक लोरी होती है माँस के छोटे, पतले व लंबे टुकड़े की भांति, इसे घाटी भी कहते हैं। इसमें जब सूजन आ जाता है तो इसे टांसिल या घाटी बढ़ना कहते हैं। देखने में छोटा यह लोरी जैसा माँस होता है !!
डॉ. दुर्गा प्रसाद पांडेय
प्राकृतिक चिकित्सक
मुंबई

सुबह-सुबह क्यों बढ़ जाता है ब्लड शुगर लेवल, कम करने के लिए क्‍या करें

सुबह-सुबह शुगर बढऩे की एक वजह रात में शरीर से रिलीज होने वाले हार्मोन्स हैं। कुछ अच्छे उपाय इस स्थिति से बचने के लिए किए जा सकते हैं।

सुबह-सुबह क्यों बढ़ जाता है ब्लड शुगर लेवल, जानें कम करने के लिए क्‍या करें

डायबिटीज के मरीजों को शुगर लेवल का बेहद ख्याल रखना पड़ता है। इसे नियंत्रित करने के

बाद भी कुछ मरीजों का ब्लड शुगर लेवल सुबह अचानक से बढ़ जाता है। इस तरह अपने दिन की शुरूआत करना वाकई खतरनाक हो सकता है। अगर ऐसा अक्सर होने लगे, तो यह आपके मधुमेह को प्रबंधित करने के गोल को मुश्किल बना सकता है।
चाहे आपको टाइप-1 डायबिटीज हो या फिर टाइप 2 , सुबह के समय ब्लड शुगर का बढऩा कई कारणों से हो सकता है। इससे बचने के लिए कारणों को जानने के बाद जल्द कोई कदम उठाना या उपाय करना बेहद जरूरी है। बता दें कि डायबिटीज मरीजों में यह स्थिति सोमोगी प्रभाव के कारण बनती है।
​सोमोगी प्रभाव क्या होता है
सोमोगी प्रभाव तब होता है, जब आप बिस्तर पर जाने से पहले इंसुलिन लेते हैं और ज्यादा ब्लड शुगर लेवल के साथ सुबह उठते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, जब इंसुलिन आपके ब्लड शुगर को बहुत कम करता है, तो शरीर से हार्मोन रिलीज होता है।
इससे ब्लड शुगर ज्यादा होने की संभावना बढ़ जाती है। टाइप-2 डायबिटीज की तुलना में यह टाइप-1 वाले मरीजों में ज्यादा सामान्य माना जाता है।
सुबह-सुबह क्यों बढ़ जाती है ब्लड शुगर-
दरअसल, दिनभर शरीर को ज्यादा एनर्जी की जरूरत होती है, इसलिए सबुह के समय ब्लड शुगर बढऩे लगता है। दूसरा रात में सोते समय व्यक्ति के शरीर में इंसुलिन की मात्रा बहुत कम हो जाती है। इसके लिए यदि मरीज ने दवा लेने में कोई लापरवाही की हो, तो भी ब्लड शुगर सुबह के दौरान बढ़ सकता है।
एक अन्य कारण है कि यदि आपको मधुमेह है ,इसके लिए आप बहुत ज्यादा इंसुलिन इंजेक्ट कर लेते हैं और पर्याप्त भोजन किए बिना सोने जाते हैं तो यह आपके ब्लड शुगर लेवल को बहुत कम कर देता है। इसे हाइपोग्लाइसीमिया कहा जाता है। इसके बाद शरीर एपिनेफ्रिन और ग्लेकाबन जैसे हार्मोन रीलिज करता है। ये हार्मोन आपके रक्त शकर्रा के स्तर को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं।
​कहीं रात में तो नहीं खाया मीठा
सबसे पहले आपको सुराग जुटाना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। यदि ब्लड शुगर की रीडिंग सोते समय बढ़ जाती है, तो इसके लिए आपका भोजन और दवा जिम्मेदार है। अगर सोने से पहले आपकी ब्लड शुगर ज्यादा है, तो संभावित रूप से यह सुबह तक बनी रह सकती है।
रात में कुछ भी हैवी और मीठा खाने से ब्लड शुगर के स्तर को बढ़ा सकता है। इसलिए अपनी दवा को समायोजित करें और आप क्या खा रहे हैं उस पर ध्यान दें।
स्थिति को पहचानना जरूरी-
सुबह ब्लड शुगर को बढऩे से रोकना है, तो स्थिति की पहचानना करना भी उतना ही जरूरी है। इसके लिए नींद पैटर्न के बीच में ब्लड शुगर की जांच करनी होगी। अगर आप 11 बजे बिस्तर पर सोने जाते हैं तो सुबह के 3 बजे उठना बेहतर है।
3 बजे तक लगातार ब्लड शुगर का बढऩा मॉर्निंग ब्लड शुगर का संकेत देता है । इसके लिए आपको एक ग्लूकोज मीटर अपने पास रखना चाहिए। यह उच्च और निम्न रक्त शकर्रा के पैटर्न की पहचान करने में मदद करेगा।
यदि आपको डायबिटीज है, तो इंसुलिन पंप का यूज करें। इससे आप ब्लड शुगर को अचानक बढऩे से रोक सकते हैं।
कई लोगों का सोने से पहले ब्लड शुगर हाई होता है, जो सुबह तक हाई बना रहता है। इसलिए सोने से पहले ब्लड शुगर की जांच जरूर करें। विशेषज्ञों के अनुसार बढ़े हुए ब्लड शुगर के साथ सोने की गलती ना करें।
अगर सुबह आपका रक्त शकर्रा का स्तर बढ़ जाता है, तो वास्तव में आपको दवाओं के समय या प्रकार को बदलना होगा।
सोमोगी प्रभाव का अनुभव करने वालों को प्रोटीन और कार्ब का एक हेल्दी स्नैक लेना चाहिए। ये रात में आपके ब्लड शुगर के बढऩे पर रोक लगा सकता है।
दिन के समय शारीरिक रूप से एक्टिव रहने से आपको ब्‍लड शुगर को मैनेज करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा देर रात में खाने के बाद सीधे सोने ना जाएं, बल्कि कुछ देर टहलें।
सुबह के समय ब्लड शुगर बढ़ जाना चिंता की बात है। खासतौर से अगर ये स्थिति रोजाना बन रही हो, तो खतरे का संकेत है। लेकिन इस पर काबू पने के लिए आप ऊपर बताए गए उपाय कर सकते हैं इससे डायबिटीज में सुधार होगा और डायबिटीज से जुड़ी जटिलताओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
डॉ. दुर्गा प्रसाद पांडेय
प्राकृतिक चिकित्सक
मुंबई

गोखरू

गोखरू(corn) हथेली अथवा पैरों के तलवों या तलवे के आस-पास गोलाकार, कठोर और गांठ के रूप में हो जाता है। इसे चर्म कील भी कहते हैं। पैर में होने पर इसके कारण चलने-फिरने मे परेशानी होती है। कुछ लोग इसे उस्तरे से कटवाते भी हैं फिर भी यह ठीक नहीं होता। Corn ज्यादातर अधिक मेहनत करने वाले लोगों की हथेली में होता है। अधिक घर्षण एवं दबाव के कारण उस जगह की त्वचा dead हो जाती है। Dead त्वचा गांठ का रूप धारण कर लेती है जिसे गोखरू(corn) अथवा चर्म कील


कहते हैं। पैरों में छोटे size अथवा plastic के जूता चप्पल पहनने से corn की समस्या उत्पन्न होती है। तलवे के जिस हिस्से में घर्षण एवं दबाव ज्यादा होता है उस हिस्से में गोखरू होने के ज्यादा chance होते हैं। यदि आप भी इस गोखरू से परेशान हैं तो निम्न घरेलू नुस्खा को बेझिझक आजमा  सकते हैं। 

उपचार:*--  गर्म पानी से पैर को धोकर साफ कर लें। गर्मी के मौसम में ठंडे पानी से भी धोकर साफ कर सकते हैं। अब मोटे कपड़े से रगड़ कर प्रभावित हिस्से को अच्छे से पोंछ लें। अपनी हथेली पर दो-तीन बूंद सरसो के तेल (mustard oil) में जरा सा नमक मिला लें। अब इस नमक और तेल के मिश्रन को गोखरू पर लगा दें। प्रतिदिन रात्रि में सोने के पहले लगा लें। कुछ ही दिनों के प्रयोग से लाभ होने लगता है। यदि चर्म कील नया हो तो 15 से 20 दिन में ठीक हो जाता है। पुराने चर्म कील को ठीक होने में समय लगता है परन्तु यह भी ठीक हो जाता है। यह एक आजमाया हुआ लाभप्रद नुस्खा है।
         *ध्यान रहे जिन लोगो के पैर में गोखरू हो गया हो* अथवा होने का भय हो उन्हें सही साइज का मुलायम जूता चप्पल का इस्तेमाल करना चाहिए। मोजा साफ सुथरा एवं सूती ही प्रयोग करना चाहिए।

*मूलेठी*- जब कॉर्न बनना शुरू होता है तब मूलेठी इसके दर्द को कम करने में असरदार रूप में काम करता है। मूलेठी में ग्लीसेरइज़ेन नामक तत्व होता है जो दर्द को कम करने और कड़क त्वचा को मुलायम बनाने में प्रभावकारी रूप से काम करता है।

*विधि*- मूलेठी के तीन-चार स्टिक ले लें और इनको ग्राइन्ड करके पेस्ट बना लें। इस पेस्ट में तिल का तेल या सरसों का तेल मिलायें। अब इस पेस्ट को सोने के पहले कॉर्न पर धीरे-धीरे रगड़ें। रात भर इसको काम करने दें, इससे स्किन नरम हो जाएगा और ये आकार में छोटा होने लगेगा।
*नींबू*– नींबू का एन्टीफंगल और एन्टीबैक्टिरीयल गुण कॉर्न के उपचार में काम आता है। इन गुणों के अलावा नींबू का एसिडीक गुण हार्ड स्किन को सॉफ्ट और हिल-अप करने में बहुत मदद करता है।
*विधि*– ताजे नींबू का स्लाइस लेकर कॉर्न के ऊपर रखकर कपड़ा या गॉज से अच्छी तरह से बांधकर रातभर रख दें। रोज़ाना इस्तेमाल करने के बाद दो हफ़्ते के बाद आपको इसका असर दिखने लगेगा।
*कच्चा पपीता-*  कच्चा पपीता स्किन के लिए बहुत फायदेमंद होता है। पपीते का रस कॉर्न के कष्ट से आराम दिलाने में बहुत काम करता है।
*विधि*- कच्चे पपीते के स्लाइस काट कर उनका रस निचोड़ लें। अब उस रस को कॉर्न पर लगाकर रात भर यूं ही रख दें।
*जंगली प्याज़*- प्याज़ का बल्ब या कंद कॉर्न के सूजन और त्वचा में जो कड़ापन आ जाता है उसको कम करने में असरदार रूप से काम करती है। प्याज़ का एन्टीफंगल गुण इंफेक्शन से भी बचाता है और कॉर्न को कम करने में मदद करता है।
*विधि*-प्याज़ के कंद को भून लें और कॉर्न पर रखकर अच्छी तरह से बांध लें। रात भर इसको बांधे रहने दें।
*लहसुन*– लहसुन का एन्टीबैक्टिरीयल और एन्टीफंगल गुण कॉर्न के त्वचा को नरम करने में बहुत मदद करता है।
*विधि*- ज़रूरत के अनुसार लहसुन के कुछ फांक ले लें और उनको अच्छी तरह से पिसकर पेस्ट बना लें। अब उस पेस्ट को कॉर्न पर लगाकर अच्छी तरह से रात भर बांधकर रखें।
*बेकिंग सोडा*– बेकिंग सोडा के एसिडिक नेचर के कारण ये कॉर्न के आस-पास के रफ स्किन को सॉफ्ट बनाने में बहुत मदद करता है। बेकिंग सोडा में नींबू का रस मिलाने से और भी वह प्रभावकारी बन जाता है।
*विधि*- ज़रूरत के अनुसार बेकिंग सोडा लें और उसमें पेस्ट बन जायें इतना नींबू का रस मिलायें। अब इस पेस्ट को कॉर्न पर अच्छी तरह से लगाकर रात भर कपड़ा या गॉज से बांधकर रखें। लेकिन कॉर्न का मुँह अगर खुल गया है या इंफेक्शन हो गया है तो कभी भी इस उपचार को प्रयोग में न लायें, इससे जलन होगा और कॉर्न की अवस्था और भी बदतर हो जायेगी।
• पपीता कई तरह के बीमारियों से राहत दिलाने में बहुत मदद करता है। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पपीता का दर्दनिवारक गुण गोखरू के दर्द से राहत दिलाने में भी बहुत मदद करता है। आधा चम्मच पपीते का रस गोखरू के कारण दर्द वाले जगह पर दिन में तीन बार लगायें।
डॉ. दुर्गा प्रसाद पांडेय
प्राकृतिक चिकित्सक
मुंबई