प्राणवायु भी बहने दो
मानव के मानवता को
यूँ न हरपल मरने दो,
वृक्षों को जिंदा रहने दो
प्रकृति के श्रृंगार को यूँ ही न बर्बाद होने दो
मानवता को भी जिंदा रहने दो
मानव ने जब भी प्रकृति पर पर वार किया
प्रकृति ने फिर भी सम्मान किया
धरा को हरा भरा रहने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
मानव ने वृक्षों को बेदर्दी से काट दिया
इसे विकास का नाम दिया
अब और प्रकृति पर प्रहार न करो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
निर्माण नया नित करते हैं
कल की परवाह न करते हैं
जो होता है वो होने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
कल क्या होगा कुछ तो सोचो
प्रकृति हिसाब जब मांगेगी
तब सोई आँखें ये जगेंगी
मेघ नहीं जब बरसेंगे
सभी जीव बूँद बूँद को तरसेंगे
तब प्राणवायु के लिए तरसेंगे
जब प्रलय की घरी आएगी
सब कुछ ध्वंस हो जाएगा
तब अर्थ काम नहीं आएगा
ये बात मुझे अब कहने दो
वृक्षों को जिंदा रहने दो
अब और न देर होने दो
वृक्षों को जिन्दा रहने दो
हम बीज नया लगाएंगे
धरती को हरा भरा बनाएंगे
प्रकृति का श्रृंगार लौटाएंग।
- प्रमोद कुमार सहनी (शिक्षक)सह जिला सलाहकार, भारत स्काउट गाइड वैशाली,बिहार