Saturday, May 1, 2021

लूट मचाने वालों सोचो

गलियां सूनी सड़कें सूनी,

      सूने पार्क, माल, मुहल्ले।
इस बिपत्ति की घडी में,
     कुछ की है बल्ले बल्ले।
कुछ की है बल्ले बल्ले,
     कुछ तो चांदी कूट रहे।
कोरोना के कहर में यारों,
     दिया जला के लूट रहे।
वह सोच रहे हैं ऐसे ही,
     बिपदा की आंधी रोज बहे।
हो अवैध कमाई हर दिन,
     कुबेर हमारा हाथ  गहें ।।

लूट की कमाई जो खाये,
     उन्नति हो उसकी आठ गुनी।
जब प्रकृति की मार पड़े ,
     तो रोये बेचारा सिर धुनी।
तो रोये बेचारा सिर धुनी,
     पीटे दोनों हाथ से छाती ।
क्या बिगाड़ा राम बताओ,
     कह रोवे दुष्ट का नाती ।
लूट मचाने वालों सोचो,
      बिना आवाज उसकी लाठी।
पड़ेगी मार जब उसकी,
      तो मिलेगा न जग में साथी।।

विलुप्त होते प्रकृति के सफाई कर्मी

प्रकृति ने अपनी व्यवस्था को अनवरत चलाने के लिए अपने ऊपर तरह तरह के पेड पौंधों तथा जीव जन्तुओं का सृजन किया है। निरन्तरता को बनाए रखने के लिए इन सभी को एक दूसरे पर निर्भर बनाया है। एक दूसरे पर निर्भरता ही आपसी सामंजस्य की जननी है। इस प्रकृति में रहने वाला हर जीवधारी एक श्रृंखला में बंधा हुआ है। जिस तरह से जंजीर की एक कड़ी के टूट जाने पर उसकी उपयोगिता नहीं रह जाती है ठीक उसी तरह से इस प्रकृति के किसी भी प्राणी के न होने पर प्रकृति की श्रृंखला टूटने लगती है। इस टूटन के कारण प्रकृति के अन्य 

प्राणियों के लिए भी समस्याएं खड़ी होने लगती है। 

इस प्रकृति में हर चीज उपयोगी है। जो चीज हमारे लिए अनुपयोगी हैं वही वस्तु दूसरे के लिए उपयोगी है। इस प्राकृतिक सत्य को समझने के लिए हम बेकार फेंके गये कचरे को उदाहरण के लिए देखते हैं। एक सामान्य व्यक्ति अपने घर में काटी हुई सब्जियों के डंठल तथा बचे हुए खाने के अवशेष को कचरा समझकर फेंक देता है। बेकार समझकर फेंके गये कचरे से अपना जीवन यापन करने वालों की एक श्रृंखला काम करती है। सब्जी के डंठल तथा बेकार खाने को जानवर खा लेते हैं जिससे कि वे अपनी भूख को मिटाकर दूध तथा गोबर उत्पन्न करते हैं। दूध से मनुष्य दही तथा घी बनाता हैं तथा गोबर मिट्टी में मिलकर धरा को उपजाऊ बनाता है। मिट्टी के उपजाऊ होने पर ज्यादा मात्रा में उपज प्राप्त होती है।यही उपज फिर मनुष्य के खाने के काम आती है।

प्रकृति की इसी श्रृंखला की एक कड़ी प्राकृतिक सफाई कर्मी हैं जिनका अस्तित्व आज खतरे में है। इन कर्मियों में मुख्य रूप से गिध्द,चील, गीदड़, मछलियां तथा कछुए मुख्य हैं। इनमें से सबसे ज्यादा खतरे में गिध्द जाति लगभग सामाप्ति की ओर है। श्री रामचन्द्रजी के लंका विजय अभियान के समय सीताजी का पता बताने वाले गिध्दराज जटायु तथा उनके भाई सम्पाती से हर भारतीय परिचित है। गिध्द एक बलशाली पक्षी है। ऐसा कहा जाता है कि यह चार योजन तक देखने की क्षमता रखते हैं।  किसी जानवर के मर जाने पर मनुष्य उपयोग के लिए उसका चमड़ा निकाल लेता है तथा जानवर का मांस तथा हड्डियॉं पड़ी रह जाती है। किसी जानवर के मर जाने पर यह पक्षी आसमान में ऊॅचा उड़ते हुए भी देख लेता है और तत्काल मांस पर टूट पड़ता है। देखते ही देखते इनका पूरा समूह आ जाता है और पलक झपकते ही मांस को नोच नोचकर खा जाता है। इनके पाचनतंत्र की यह विशेषता है कि मांस चाहे जैसा भी हो या मांस मे किसी भी तरह के कीटाणु हों पूरे के पूरे इनके पाचनतंत्र में जाते ही समाप्त हो जाते हैं। 

कुछ वर्षों पहले तक यह आबादी के पास पीपल के ऊँचे वृक्षों पर ज्यादातर रहते हुए दिखायी पडते थे। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के साथ ही इनके अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा। जानवरों के बीमार होने पर विभिन्न तरह की दवाएं प्रयोग में लायी जाने लगीं तथा फसलों को कीडों से बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग अंधाधुंध किया जाने लगा। फसलों के ऊपर किया जाने वाला छिड़काव भी जानवरों के शरीर में भोजन के साथ जाने लगा। जानवरों के अन्दर भोजन के माध्यम से गया हुआ कीटनाशक जानवरों के मांस को विषाक्त बना देता है। इस विषाक्त मांस के उपयोग के कारण मांसाहारी पक्षियों तथा जानवरों पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा जिसके कारण इनकी प्रजनन दर में कमी तथा मृत्यु दर में बढ़त देखी जाने लगी। पिछले कुछ ही वर्षो में गिध्द तथा चीलों की संख्या लुप्तप्राय स्थिति तक पहुँच गयी है।

आधुनिकता के चलन के चलते पालतू जानवरों जैसे गाय, बैल, भैंस एंव घोडों के पालने वालों की संख्या में भारी कमी आयी है। जहॉ गॉवों में हर परिवार में कम से कम बैलों की एक जोड़ी होती थी तथा साथ में दूध के लिए दो चार गाय या भैंसें पाली जाती थीं। इन जानवरों के मरने के बाद मांसाहारी पक्षियों तथा जानवरों को भोजन मिलता रहता था।

 किन्तु आज तेजी से बढ़ती आबादी के कारण चरागाह समाप्त हो गये। कुछ वर्ष पहले तक गॉवों तथा कस्बों के पास खाली जमीन पड़ी रहती थी जिसमें उगी हुई घास पशुओं के चारे के रूप में प्रयुक्त होती थी। आज इन चरागाहों तथा बेकार में पड़ी जमीन पर ट्रैक्टर से खेती 
की जाने लगी। आवास की बढ़ती आवश्यकता के कारण जंगलों तथा पेड़ पौंधों की संख्या में सिकुड़न जारी है जिसके कारण मॉसाहारी पक्षियों तथा जानवरों के सामने भोजन की कमी की समस्या भी इनके बिलुप्त होने  का कारण बन रही है।

बेचारी चील भी इन्हीं सम्स्याओं का शिकार हो गयी है। अपने सटीक निशाने के लिए मशहूर यह पक्षी आज समाप्ति के कगार पर है। दूर आसमान में उड़ती हुई एक झपट्डे में ही अपने भोजन को अपने मजबूत पंजों में पकड़ कर उड़ जाने के लिए मशहूर है। यह शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन करती है। यह ऐसे धार्मिक स्थलों के पास भी देखी जाती है जहॉं पर प्रसाद के रूप में पूड़ी या हलवा चढ़ाया जाता है।  यह नीले आसमान में इतना ऊपर उड़ती है कि धरती से एक बिन्दु की तरह दिखायी देती है। 

नदियों में प्रदूषण की समस्या तो विख्यात ही है। हम मनुष्यों ने अपनी सुविधा के साधन जोड़ने के चक्कर में पृथ्वी के अन्य जीवों की अनदेखी की है। हम यह भूल गये कि हम भी इस धरती की आहार श्रृंखलाखला की एक कड़ी मात्र हैं। हमारे द्वारा फसलों, बागों तथा घरों में ज्यादा उपज लेने के लिए तथा कीड़ों को मारने के लिए प्रयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थ, शरीर तथा कपडों को साफ करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला डिटरजेन्ट तथा घरों को साफ रखने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले फिनाइल जैसे पदार्थ पानी के साथ बहकर नदियों में मिल रहे हैं। इन्हीं रसायनों के कारण मछलियों के भोजन शैवाल पर भी संकट गहरा गया है। शैवाल लगभग स्थिर पानी में उगने वाली एक जलीय घास है। यह ज्यादा छोटी नदियों या तालाबों में देखी जाती है।  प्रदूषण के कारण मछलियों का यह भोजन समाप्त हो रहा है। 

मछलियों के चारे में कमी के चलते इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। नदियों में मछलियों की कमी की दूसरी सबसे बडी वजह है इनके अंडों को खाने का बढ़ता चलन। मछलियॉं प्रकृति की दूसरी सबसे बड़ी सफाई कर्मचारी हैं। इसी कारण लोग पहले मछली को कुएं में भी पालते थे जिससे कि पीने वाला पानी साफ बना रहे। मछली पानी में आने वाली सभी गंदगी को खाकर पानी को साफ रखने में हमारी मददगार हैं। आज इनकी कमी के चलते ही नदियों में प्रदूषण बढ़ा है जिसका सबसे बड़ा जिम्मेदार मनुष्य है। अपने सुस्तपन तथा आलसी स्वभाव के कारण मशहूर कछुआ भी आज संकट में है। यह प्रकृति का सबसे ज्यादा दिनों तक जीवित रहने 
वाला प्राणी है। 

समुद्र में आने वाले ज्वार भाटे के कारण काफी मात्रा में इनके अंडे बह जाते हैं तथा कुछ को मांसाहारी पक्षी तथा जानवए खा जाते हैं। शेष बचे अंडों में से कुछ को मनुष्य नुकसान पहॅुंचा देते हैं। जो अंडे अंत मे बच जाते हैं उनमें से बच्चे बाहर निकलते ही पुन : शोषण शुरू हो जाता है। धन के लालची शिकारी इनको पकड़कर बाजारों में बेच रहे हैं। लोग इनके मांस को खा रहे हैं। कई मामले ऐसे भी प्रकाश में आये है जब कस्टम विभाग के लोगों ने अन्य देशों में निर्यात के लिए काफी मात्रा में ले जाये जा रहे कछुओं को मुक्त कराया है। 

आज हम अपने लिए ज्यादा सुविधा साधन जोेड़ने के लिए प्रकृति की आनदेखी किए जा रहे हैं। हम प्रकृति द्वारा निश्चित क्रम को तोड रहे हैं। इस धरती का हर जीव जन्तु प्रकृति के लिए महत्वपूर्ण है। हर जीव जन्तु के लिए प्रकृति ने कुछ काम निश्चित किए हुए हैं। एक काम के भी 
छूट जाने पर प्रकृति के काम में व्यवधान पैदा हो जाता है। इन्ही व्यवधानों के कारण ही जल, थल तथा नभ में तमाम तरह की आपदाएं जैसे तूफान, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, सुनामी तथा विभिन्न तरह के नये नये रोग अपना विकराल रूप दिखा रहे हैं। मनुष्य इतना सब होने पर भी 
अनदेखी किए जा रहा है। मनुष्य स्वयं को सबसे बडा बुध्दिमान समझ रहा है। आज हम अपने अधिकारों के लिए ज्यादा सचेत होते जा रहे हैं किन्तु अपने कर्तव्यों की अनदेखी किए जा रहे हैं। जो कि मनुष्य के लिए घातक है।

आवश्यकता इस बात की है कि हम प्रकृति के किसी भी जीव को छोटा न समझें। सभी को जीने का अधिकार दें। हर छोटे बड़े जीव का अपना महत्व है। जहॉं पर जिसकी आवश्यकता है उस काम को उसके लिए निर्धारित जीव ही कर सकता है। रहीम दास जी ने इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए लिखा है :-

रहिमन देख बडे़न को, लघु न दीजिए डारि।
जहॉं काम आवे सुई, कहां करे तरवारि।। 

इस संसार को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रकृति के इन सफाई कर्मियों को बचाना होगा। निरीह सफाई कर्मियों के विरूध्द काम कर रहे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की आवश्यकता है। ऐसे लोग जो कम समय में बिना काम किए हुए इनको नुकसान पहुँचाकर धनपति बनने के काम में लगे हैं उनके खिलाफ समाजिक दण्ड की कार्यवाही करके हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

इन सफाईकर्मियों के न रहने पर समाज को एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। हमें यदि अपनी भावी पीढी को आगे ले जाना है तो हर उस क्रियाकलाप को बन्द करना होगा जो कि इनके बंशानुक्रम तथा जीवन के लिए घातक हैं।

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 -हरी राम यादव फैजाबादी
  पूर्व संवाददाता
  श्रीराम जन्मभूमि साप्ताहिक

तुम मुझ मैं

वक्त की दौड़ में

वक्त की हौड़ में
सब कुछ
बहता चला जा रहा है।
सिवाए मेरे हृदय में
खनखनाती हुई तेरी
स्थिर यादों के।

वक्त के शोर में
वक्त के हिलोर में
सब जगह
खामोशी का एक सन्नाटा
बिखरे जा रहा है।
सिवाए मेरे अंतर्मन में
तेरी गुनगुनाती यादों के।

राजीव डोगरा 'विमल'
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा

Thursday, April 29, 2021

सोनपुर रेलवे अस्पताल में 2 पुरूष एक महिला की हुई कोरोना से मौत,रेल कर्मियों में मचा हड़कंप


सारण(ब्यूरो चीफ) दैनिक अयोध्या टाइम्स सोनपुर रेल मंडल में कार्यरत पदाधिकारी से लेकर कर्मचारी एवं उसके परिजन लगातार कोरोना संक्रमित हो रहे हैं वहीं रेलवे कर्मचारी एवं उनके परिवार के लोग संक्रमित होने के बाद ईलाज के दौरान कोरोना रूपी राक्षस ने उनलोगों को अपने चपेट में ले लिया है ।सोनपुर  रेलवे कोरोना नोडल अधिकारी डॉ विजय कुमार सिंह ने गुरुवार को बताया कि रेलवे अस्पताल में कुल 5 कोरोना संक्रमित मरीज भर्ती है उन्होंने यह भी बताया कि गुरुवार को 2 पुरुष 1 महिला की मौत कोरोना संक्रमित होने के बाद इलाज के दौरान रेलवे अस्पताल सोनपुर में हो गई ।  उन्होंने बताया कि सुरेंद्र प्रसाद सिंह  उम्र 68 वर्ष पिता स्वर्गीय भखिलनाथ प्रसाद सिंह जो एएसएम के पद से रिटायरमेंट थे।दूसरा सत्यजीत कुमार उम्र 30 वर्ष पिता जीवनदास जो हरनौत में खलासी के पद पर कार्यरत था । वह गुरुवार को ही भर्ती हुआ था ज्योही ईलाज शुरू किया गया उसी दौरान उसकी मौत हो गयी तीसरा सोनपुर के राहर दियर के रिटायरमेंट कामेश्वर राय की 47 वर्षीय पत्नी  की मौत हो गई है । सभी मृतक  को कोविड-19 के प्रोटोल को पालन करते हुए उनकी अंतिम संस्कार उनके परिजनों एवं प्रशासन के देखरेख में किया गया ।