Tuesday, February 2, 2021

4 फरवरी विश्व कैंसर दिवस


"खुशबू केसर की कैंसर तक ले गयी, शौक दो ग्राम सुपारी, सुपारी दे गयी"

                'कैंसर’ एक ऐसा शब्द है, जिसे अपने किसी परिजन के लिए डॉक्टर के मुंह से सुनते ही परिवार के तमाम सदस्यों के पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। दरअसल परिजनों को अपने परिवार के उस सदस्य को हमेशा के लिए खो देने का डर सताने लगता है। बढ़ते प्रदूषण तथा पोषक खानपान के अभाव में यह बीमारी एक महामारी के रूप में तेजी से फैल रही है। कैंसर के संबंध में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन अगर इसका सही समय पर पता लगा लिया जाए तो उपचार संभव है। कैंसर एक ऐसी बीमारी बन चुकी है। जिसके मरीज दिन प्रति दिन बढ़ते जा रहे है। इसका इलाज काफ़ी महंगा है। एक गरीब को हो जाने पर उसके बचने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है। यदि यह बीमारी अमीरों को होती है तो वो काफी पैसा खर्च इलाज करवा लेते है। मेरा प्रश्न यह है कि आखिर क्यों कैंसर की बीमारी होती है? तीन-चार दशक पहले की बात करें तो कैंसर मरीजों की संख्या इतनी नहीं थी।
               आधुनिक विश्व में कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिससे सबसे ज़्यादा लोगों की मृत्यु होती है। विश्व में इस बीमारी की चपेट में सबसे अधिक मरीज़ हैं।
उद्देश्य कैंसर से होने वाले नुकसान के बारे में बताना और लोगों को अधिक से अधिक जागरूक करना।
अन्य जानकारी कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज तो अभी तक मुमकिन नहीं हो पाया है पर इसे काबू करना और इससे बचाव संभव है। विश्व कैंसर दिवस प्रत्येक वर्ष 4 फ़रवरी को मनाया जाता है। आधुनिक विश्व में कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिससे सबसे ज़्यादा लोगों की मृत्यु होती है। विश्व में इस बीमारी की चपेट में सबसे अधिक मरीज़ हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद कैंसर के मरीजों की संख्या में कोई कमी नहीं आ रही है। इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस की तरह मनाने का निर्णय लिया ताकि लोगों को इस भयानक बीमारी कैंसर से होने वाले नुकसान के बारे में बताया जा सकें और लोगों को अधिक से अधिक जागरूक किया जा सकें।
            विश्व कैंसर दिवस के इतिहास के बारे में बात करें तो इसकी सही शुरुआत वर्ष 2005 से हुई थी। और तब से यह दिन विश्व में कैंसर के प्रति निरंतर जागरुकता फैला रहा है। भारत में भी इस दिन सभी स्वास्थ्य संगठनों ने जागरुकता फैलाने का निश्चय लिया है। भारत उन देशों में काफ़ी आगे है जहां तंबाकू और अन्य नशीले पदार्थों की वजह से कैंसर के मरीजों की संख्या बहुत ज़्यादा है। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज तो अभी तक मुमकिन नहीं हो पाया है पर इसे काबू करना और इससे बचाव संभव है। वैसे कैंसर हो जाने पर इससे छुटकारा पाना मुश्किल होता है पर नामुमकिन नहीं। मरीज़ अगर दृढ़ इच्छाशक्ति से इस बीमारी का सामना करे और सही समय पर इलाज मुहैया हो तो इलाज संभव हो जाता है। साथ ही हमेशा से माना जाता है कि उपचार से बेहतर है बचाव। इसी तरह कैंसर होने के बचे रहने में ज़्यादा समझदारी है।
                कैंसर से बचने के लिए तंबाकू उत्पादों का सेवन बिलकुल न करें, कैंसर का ख़तरा बढ़ाने वाले संक्रमणों से बचकर रहें, चोट आदि होने पर उसका सही उपचार करें और अपनी दिनचर्या को स्वस्थ बनाए। कैंसर के ज़्यादातर मामलों में फेफड़े और गालों के कैंसर देखने में आते हैं, जो तंबाकू उत्पादों का अधिक सेवन करने का नतीजा होता है। ऐसे मामलों में उपचार बेहद जटिल हो जाता है और मरीज़ के बचने के चांस भी कम हो जाते हैं। इसके साथ ही आजकल महिलाओं में स्तन कैंसर काफ़ी ज़्यादा देखने में आ रहा है जो बेहद खतरनाक होने के साथ काफ़ी पीड़ादायक होता है। यदि सही समय पर अगर इसके लक्षणों को पहचान कर उपचार किया जाए तो इसका इलाज बेहद सरल बन जाता है। कैंसर से सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है युवाओं को जो आजकल की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए धूम्रपान का सहारा लेते हैं। विश्व को कैंसर मुक्त करने के लिए आप भी कदम बढ़ाएं और खुद तथा अपने सगे सबंधियों को तंबाकू, सिगरेट, शराब आदि से दूर रहने की सलाह दीजिए।


मैं प्रमाणित करता हूँ कि मेरी रचना मौलिक, स्वरचित है।

मातापिता

माता पिता भी तो इंसान हैं हमारे सपनों को पूरा करने के लिए न जाने अपने कितने अरमानों को अधूरें  सपनों को त्याग दिये  होंगे बिना पूरा किये। उनके सपने चाहें पूरे हुए या नहीं वो उसे भूल नहीं पाते उन अधूरे सपनों की एक पोटली बनाकर रख देते हैं। और हमारा भविष्य संवारने में जुट जाते हैं स्वयं को भूल जाते हैं।


और हम बच्चें बस उनसे मांगते ही रहते  हैं कभी ये नहीं सोंच पाते कि हमें भी उनके लिये कुछ करना  चाहिए ।
हमारे सपनों को पूरा करते करतें वो खुद खो जाते हैं ।
समय अपनी गति से चलते रहता है और एक वक़्त ऐसा आता है जब हम उनकी जगह स्वयं को  पाते हैं जब हम माता पिता बनते हैं और अपने सपनों को अपने बच्चों के लिए त्यागते है। पर तब भी हमारा स्वार्थी मन अपने माता पिता के बारे में नहीं सोच पाता एक पुराना सामान समझकर या तो फेंक देते हैं या घर के किसी कोने में निरर्थक सा रख देते हैं हमें ये तक याद नहीं रहता कि आज हम जो भी हैं ये उनकी देन हैं अपने सुख सुविधाओं के मद में खोये रहतें हैं मिटा देते हैं उनके त्याग और प्यार को ।

जितना प्यार और दुलार हम अपने बच्चों से करते   हैं हमारें माता पिता ने  भी हमें उतने ही प्यार दुलार से पाला पोषा था। जितनी सुख सुविधाएं हम  अपने बच्चों को देते हैं वो भी हमें दिये थें। हाँ ये जरूर हो सकता हैं कि कुछ अभावों के चलतें वो हमें सबकुछ नहीं दे पाये होंगे परंतु हमारी ज़रूरतें  और जिम्मेदारियां बखूबी निभाये और पूरे कियें। ये उनके सफलतापूर्वक निर्वहन किये गये  जिम्मेदारियों का ही प्रतिफल है कि आज हम सफल हैं।

हमसे वो चाहते ही  क्या हैं बस थोड़ा सा प्यार और सम्मान क्या हम इतना भी नहीं दे सकते उन्हें जिन्होनें हमें जीवन दिया जीना सिखाया ,हमारे डगमगाते क़दमों को चलना सिखाया तो क्या हम उनके लड़खड़ाते क़दमों को अपनी मजबूत बांहों का सहारा नहीं दे सकते ??

क्या सही और क्या ग़लत सोचिएगा जरूर मेरी सोंच तो यही कहती हैं जो काम करने से पहले सोचना न पड़े वो सही। और जो करने से पहले और करने के  बाद सोचना पड़े वो गलत। सही का मार्ग मुश्किल जरूर होता है किन्तु सही होता है जबकि गलत का रास्ता बहुत आसान होता है फिर भी गलत ही होता है।

माता पिता बनने में और होने में बहुत अंतर होता है मां बाप कोई भी बन सकता हैं कितुं माता पिता वो होते हैं जो अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं सिर्फ हमें जीवन ही नहीं देते अपितु जीने  योग्य जिन्दगी देते हैं ।

आज हम जो भी हैं इसलिए हैं कि हमें इतने अच्छे माता पिता मिले जिन्होंने अपनी खुशियों की परवाह किये बिना हमें कामयाब बनाया  जिसका ऋण  हम जीवन भर नही उतार सकते ।

जो हमें दिन रात अनमोल दुआंएं देते रहते हैं बिना किसी स्वार्थ के हमारी सारी बलाएं स्वयं के लिए मागते रहते हैं ईश्वर से  और हमारे लिए सिर्फ दुआएं, कितने अनमोल होते हैं हमारे माता पिता। अब ये हम पर निर्भर हैं हम अपना कल कैसा चाहते हैं हमारा कल उतना ही सुखद होगा जितना उनका आज।

"आदर एक निवेश हैं"


प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

यह बजट किसानों,गरीबों, महिलाओं के उम्मीदें पूरी ना कर रही है

यह बजट किसानों की आय को दुगना करने के लिए पूरी तरह अपर्याप्त है, यह भी देखने की बात है कि  वित्त मंत्री जी ने जो किसानों के आय में वृद्धि की बाते कहीं है ये आखिर  वृद्धि  किसान की लागत में कितनी वृद्धि होगी  ,हर वर्ष बजट में बड़ी बड़ी बाते तो कहीं जाती है ,लेकिन उस पर सरकार 10 प्रतिशत भी अमल कहां करती है , वहीं देखे तो   यह भी वित्त मंत्री ने इस बजट में नहीं बताया है कि अन्नदाता का आय 2022 तक कैसे दुगुनी होगी , इसलिए किसान की आय में शुद्ध वृद्धि बहुत कम ही दिखती है। सरकार का उद्देश्य बीते वर्षों में ही किसान की आय को दुगना करने का था, लेकिन दुगना करने के स्थान पर सरकार अधिकतम केवल पांच प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकी है। इसलिए इस दिशा में और ठोस कदम उठाने चाहिए थे, जो कि बजट में नहीं उठाए गए हैं। कुल मिलाकर यह बजट विशिष्ट नहीं, बल्कि किसान ,महिला , युवाओं के उम्मीद का बजट नहीं कहा जा सकता है ।तमाम दावों के बावजूद किसानों की आशंकाओं को दूर करने में सरकार अब तक असफल रही है। यही सच है कि कोरोना महामारी ने सरकार की ही नहीं, आम आदमी की भी बैलेंस शीट बिगाड़ी है,अर्थव्यवस्था पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा है। ऐसे में सरकार और वित्त मंत्री से सबकी उम्मीदें बहुत ज्यादा थी ,लेकिन इस बजट में सरकार किसानों ,महिलाओं, युवाओं सभी को निराश ही किया है , लॉकडाउन में बहुत से लोगो का नौकरी चली गई, बहुतों का रोजगार काम सब चौपट हो गया ,लेकिन सरकार इन वर्गों को मदद होने वाली बजट के जगह पर बल्कि लगभग 23 सरकारी विभागों को निजी क्षेत्र को देने की घोषणा कर रही है ।


व्यास जी

 (दैनिक अयोध्या टाइम्स)

*इटावा व्यूरो चीफ*
(नेहा कुमारी गुप्ता)


एक दस्ता है अनकही सी मेरे जसबातों में  
जो आज लिख रहा हूं मेरे अल्फाजों में ।

जो कभी सपने थे मेरे  लब्जों में तेरे 
वो आज  बन गए है सपने  मेरे ।।

कागज की एक कास्ती थी मेरी 
तुझसे ही एक हस्ती थी मेरी ।

समुंदर को पार करने की तमन्ना थी 
कभी ना रुकने की एक सक्ती थी ।

पर आज राहें अधूरी सी लगती है 
चल तो रहे है पर तेरी यादें ही चलती हैं।।

बहुत समझाते है अपने आप को हर वक्त
पर जब तुझे ना सोचें ऐसा नई कोई वक्त ।

कभी बढ़ते है कदम तो कभी रुक जाते हैं
जब आती है तेरी यादें तो सांस रुक जाती है ।

वैसे तो है बहुत गुरूर अपनी सक्सियत का मुझे ।
पर जब हो बात तेरे प्यार की तो हम झुक जाते हैं।।

खुद को लिखना है अभी वाकी 
जो पा लिया वो नहीं है काफी ।

अभी तो बस सुरूवात है मेरी 
हर जीत दिखती है बस हार तेरी।

वो सब मेरी कहानी का हिस्सा है 
जो गुजर गया वो एक किस्सा है ।

अभी वो बस पंख खोलें है 
पूरी उड़ान वाकी है 

जा  जीले तू अपनी जिंदगी 
अभी भी मुझमें जान वाकी है ।

लोगों  के दिल में आज भी हूं में
क्योंकि मेरे कर्मो की शान वाकी है।।

एक दिन पा लूंगा मंजिल अपनी 
क्योंकि मेरे भोले की पहचान काफी है ।।