Saturday, January 2, 2021

नशे में संलिप्त व्यक्ति कुंठा का जीवन यापन करता है- रेनू राघव

प्रयास संस्था शाखा द्वारा निकाली गयी पैदल जागरूकता यात्रा

कुरुक्षेत्र. प्रयास संस्था शाखा कुरुक्षेत्र द्वारा आज पलवल में जाकर नशे के विरुद्ध जागरूकता यात्रा निकाली. इस यात्रा में डीएवी पब्लिक स्कूल की प्राचार्या और प्रयास संस्था शाखा कुरुक्षेत्र की महिला उपप्रधान श्रीमती रेनू राघव ने विशेष रूप से भाग लगा. उन्होंने बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को सम्बोधित करते हुए नशे के परिणामों से अवगत कराते हुए कहा कि नशा व्यक्ति के जीवन, परिवार और समाज पर कुप्रभाव डालता है. परिणामस्वरूप व्यक्ति समाज से अलग थलग होकर कुंठा का जीवन व्यतीत करता है. प्रयास संस्था शाखा कुरुक्षेत्र के कार्यकारी प्रधान और नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो के उप निरीक्षक डॉ. अशोक कुमार वर्मा ने बताया कि नशा एक बुराई है जो जीवन की सच्चाई है. उन्होंने बताया कि नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो हरियाणा के प्रमुख अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री श्रीकांत जाधव साहब ने नशे को समूल नष्ट करने के लिए भरसक प्रयास आरम्भ कर दिए हैं. श्री श्रीकांत जाधव साहब ने वर्ष 1999 मे फतेहाबाद जिला से इसका शुभारम्भ किया था और आज 21 वर्षों से यह संस्था निरंतर प्रयास कर रही है. वे जब फतेहाबाद के पुलिस अधीक्षक थे तो अपराधियों में उनका बहुत अधिक भय था. नशे के कारोबार में संलिप्त अपराधियों को पकड़कर सलाखों के पीछे किये गया था और जो पीड़ित थे उनका विधिवत उपचार कराया गया. फलस्वरूप बहुत परिवारों के घर पुन: बस गए थे. इस अवसर पर उप प्रधान कर्म चंद, रक्षा चौहान, अशोक आदि उपस्थित रहे.  

प्रेम और करुणा के मार्ग से साक्षात बुद्ध के दर्शन

[ महात्मा बुद्ध बड़े व्यवहारिक सुधारक थे। उन्होंने अपने समय की वास्तविकताओं को खुली आँखों से देखा। वे उन निरर्थक वाद-विवादों में नहीं उलझे जो उनके समय में आत्मा यानि जीव और परमात्मा यानि ब्रह्म के बारे में जोरों से चल रहा था। उन्होंने अपना सारा ध्यान सांसारिक समस्याओं के निदान में लगाया। जीवन मरण के चक्र से मनुष्य को मुक्ति दिलाने में लगाया। ]


महात्मा बुद्ध ने कहा है “ मेरे पास आना, लेकिन मुझसे बंध मत जाना। तुम मुझे सम्मान देना, सिर्फ इसलिए कि मैं तुम्हारा भविष्य हूँ। तुम मेरे जैसे हो सकते हो, मैं इसकी सूचना हूँ। तुम मुझे सम्मान दो, यह तुम्हारा बुद्धत्व को ही दिया गया सम्मान है। लेकिन तुम मेरा अंधानुकरण मत करना, क्योंकि तुम अंधे होकर मेरे पीछे चले तो बुद्ध कैसे हो पाओगे। बुद्धत्व तो खुली आँखों से उपलब्ध होता है, बंद आँखों से नहीं। बुद्धत्व तभी मिलता है जब तुम किसी के पीछे नहीं चलते, खुद के भीतर जाते हो।“

करीब ढाई हजार साल पहले कहे गए महात्मा बुद्ध के ये शब्द आज भी पूरी मानव जाति को जीवन का मूल्य और जीने की कला सीखा रहा है। यह उनके विचार और दर्शन की महत्ता ही थी जो भारत तक ही सीमित न रह कर पूरी दुनिया में फैल गई। प्रेम और करुणा का जो संदेश  बुद्ध ने दिया वह आज भी मानवता को आलोकित कर रहा है।

दरअसल ईसा पूर्व छठी सदी के उतरार्द्ध में मध्य गंगा के मैदानों में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हुआ लेकिन जो प्रसिद्धि, महत्व और लोकप्रियता गौतम बुद्ध और बौद्ध धर्म को मिली वह किसी और को नसीब नहीं हुई…. और इसकी वजह थी महात्मा बुद्ध के विचार और उनके द्वारा चलाए गए धर्म की उदारता… जो थोड़े ही वक्त में लाखों-करोंड़ों लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया। महात्मा बुद्ध ने न केवल भारत के बल्कि संपूर्ण एशिया के धार्मिक विचारों और भावनाओं को क्रांतिकारी रूप से प्रभावित किया।

बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद उनका पहला सवाल स्वयं से था कि “ मैं पूर्णतया सुखी क्यों नहीं हूँ?”  होता था। यह एक आत्मनिरीक्षणात्मक प्रश्न था। यह स्पष्ट रूप से उस आत्मविस्मरणशील मूर्तरूप जिज्ञासा से गुणात्मक रूप से बहुत अलग प्रश्न था। जिसके साथ थेल्स और हेराक्लिटस उस दौर में संसार की समस्याओं पर विचार कर रहे थे। इन सब के बीच भगवान बुद्ध ने स्वयं को नहीं भुलाया। उन्होंने ‘स्व’ पर ध्यान केंद्रित किया और इसे खत्म कर देने का प्रयास किया। उन्होंने शिक्षा दी कि सभी दुखों का कारण मनुष्य की तृष्णा है। जब तक मनुष्य अपनी तृष्णा पर विजय नहीं प्राप्त कर लेता तब तक उसका जीवन कष्टमय है और उसका अंत दुख। जीवन के तृष्णा के तीन प्रमुख रूप हैं जो निर्वाण की प्राप्ति में अवरोधक हैं। इनमें से पहला है भूख की इच्छा, लालच और ऐंद्रिकता के सभी रूप। दूसरा है व्यक्तिगत और अंहकारी अमरता की इच्छा और तीसरा है व्यक्तिगत सफलता की इच्छा, सांसारिकता और धन लोलुपता। जीवन के दुख और संताप से उबरने के लिए तृष्णा के इन सभी रूपों से उबरना होगा। जब ये इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं तब ‘स्व’ पूरी तरह से नष्ट हो जाता है और तभी आत्मा की शांति, निर्वाण और परम सत्य की प्राप्ति होती है। भगवान बुद्ध ने इन तृष्णाओं यानि इच्छाओं से उबरने के लिए अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया।

बुद्ध ने बुद्धत्व की प्राप्ति की बाद अपने ज्ञान का प्रथम प्रवचन सारनाथ के नजदीक मृगदाव में दिया। यह उपदेश ‘धर्म चक्र परिवर्तन’ कहलाया जो बौद्ध मत की शिक्षाओं का मूल बिंदू है। महात्मा बुद्ध के उपदेशों और बौद्ध धर्म के विचारों को त्रिपिटकों में समाहित किया गया।

बुद्ध ने ईश्वर और आत्मा को नहीं माना। उन्होंने सृष्टि का विश्लेषण कारणवाद के आधार पर किया जिसमें विवेक पर आधारित तर्क की प्रधानता थी। यह एक तरह से भारत के धर्मों के इतिहास में क्रांति थी। हालांकि यह धर्म काफी उदार और जनतांत्रिक भी था। जिसमें सत्य, अहिंसा, प्रेम और करुणा पर काफी जोर था। भगवान बुद्ध ने यथार्थ के सही स्वरूप को पहचान कर मनुष्य को अपनी पूरी मानवीय क्षमताओं का विकास करने और जीवन मरण के चक्र से छुटकारा पाकर मुक्ति प्राप्त करने के सरल, सहज और सुगम राह दिखाई।

बुद्ध के मार्गदर्शन ने अहिंसा और जीवमात्र के प्रति दया की भावना जगाकर न केवल मनुष्य बल्कि पशुओं के प्रति भी अपने प्रेम को उजागर किया। प्रचीनतम बौद्ध ग्रंथ सुत्तनिकाय में गाय को भोजन, रूप और सुख देने वाली यानि ‘अन्नदा वन्नदा सुखदा’ कहा गया है। उन्होंने भलाई करके बुराई को भगाने और प्रेम करके घृणा को भगाने का प्रयास जीवन भर किया और यही उपदेश दुनिया को दिया, जो आज भी बेहद प्रांसगिक है।

दूसरे राज्य की लॉटरी बिक्री को विनियमित और नियंत्रित करने के नियम हाईकोर्ट ने रद्द किए- कहा कानून संसद द्वारा पारित है


संघीय कानूनों का सम्मान और न्यायव्यस्था पर विश्वास यही भारत की खूबसूरती- एड किशन भावनानी

गोंदिया-भारत सरकार के लॉटरी रेगुलेशन एक्ट (1998) के अनुसार लॉटरी एक ऐसी स्कीम को कहा जा सकता है, जिसमें टिकट खरीदकर भाग लेने वाले लोगों को एक साथ इनाम जीतने का मौका दिया जाता है, यानी लॉटरी कहलाने के लिए ऐसे किसी भी खेल में ढेर सारे लोगों का एक साथ भाग लेना ज़रूरी है। टिकटों की खरीद-फ़रोख्त ज़रूरी है।भारत में लॉटरी गैर कानूनी है,फिर कुछ राज्यों में कैसे खेली जाती है?भारत में लॉटरी रेगुलेशन एक्ट(1998)लागू है,ये एक्ट साफ़-साफ़ तौर पर लॉटरी खेलने पर प्रतिबंध लगाता है,लेकिन इसमें एक छूट है,अगर राज्य सरकारें अपनीआधिकारिक लॉटरी चलाना चाहें, तो ऐसा कर सकती हैं,इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी ज़रूरी हैं। किन राज्यों में लॉटरी को कानूनी मान्यता मिली हुई है? पूरे देश में लॉटरी पर बैन नहीं है. जिन राज्यों मेंआपको लॉटरी खेलने की छूट है, वो हैं- केरल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पंजाब, वेस्ट बंगाल, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर, सिक्किम, नागालैंड, और मिजोरम. पहले कर्नाटक और तमिलनाडु में भी लॉटरी खेली जाती थी, अब वहां भी बैन है।अब मान लीजिए आप उत्तर प्रदेश से हैं, लेकिन आपने केरल की लॉटरी खरीदी है,आपका इनाम निकला है, तो आपको वहां जाकर ओरिजिनल टिकट और अपना आईडी प्रूफ देना होगा अपना प्राइज इकठ्ठा करने के लिए,सरकारी बैंक, या रजिस्टर्ड टिकट वेंडर को,समय सीमा है- ड्रॉ निकलने के बाद 30दिन. रोक विक्रेताओं पर है। वो स्टेट के बाहर लॉटरी टिकट नहीं बेच सकते,लेकिन अगर आप खरीद रहे हैं,तो आप पर ऐसी कोई रोक नहीं है। लॉटरी से संबंधित ही एक प्रकरण माननीय केरला हाईकोर्ट एर्नाकुलम की सिंगल जज बेंच के माननीय न्यायमूर्ति मोहम्मद मुस्ताक के सम्मुख दिनांक 5 अक्टूबर 2020 को रिट पिटिशन क्रमांक (सिविल) 34025/2019 फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड बनाम मुख्य सचिव केरला सरकार व अन्य पांच के रूप में आया, और सुनवाई हुई, और आदेश सुरक्षित रखा गया, और मंगलवार दिनांक 22 दिसंबर 2020 को माननीय बेंच ने अपना 57 पृष्टोऔर 28 प्वाइंटों व अनेक एक्सबिटों में अपना आदेश सुनाया और बेंच ने केरल सरकार द्वारा पारित उस कानून को रद्द कर दिया है, जिसमें दूसरे राज्य की लॉटरी की बिक्री को विनियमित करने के  नियम बनाए गए थे। हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के पास लॉटरी (विनियमन) अधिनियम 1998 के तहत ऐसे नियम बनाने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि यह संसद द्वारा पारित कानून है। एकल बेंच ने अवलोकन किया, "कोई राज्य लॉटरी के आयोजन, संचालन और संवर्धन के लिए अन्य राज्यों के प्राधिकरण पर प्रभाव डालने के लिए इस तरह से नियमों को बनाकर अपने अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। अधिकार विशेष रूप से (लॉटरी विनियमन अधिनियम 1998) धारा 6 के तहत केंद्र सरकार को दिया गया है। केंद्र सरकार के पास लॉटरी का नियमन, नियंत्रण और हस्तक्षेप करने का अधिकार है।" यह फैसला केरल में नागालैंड राज्य की लॉटरी बेचने वाले एक एजेंट (फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरल राज्य और अन्य) द्वारा दायर रिट याचिका में दिया गया है। याचिकाकर्ता ने केरल सरकार द्वारा 2018 में केरल पेपर लॉटरी (विनियमन) नियम, 2005 में लाए गए संशोधनों को चुनौती दी, जिसने केरल सरकार के अधिकारियों को अन्य राज्यों द्वारा संचालित लॉटरी को विनियमित करने और नियंत्रित करने का अधिकार दिया है।न्यायालय ने उल्लेख किया कि केरल पेपर लॉटरी (नियमन) नियम, 2005 को राज्य सरकार द्वारा उन शक्तियों के प्रयोग में फंसाया गया था, जो कि लॉटरी (विनियमन अधिनियम) 1998 की धारा 4 द्वारा प्रत्यायोजित हैं, जो एक केंद्रीय अधिनियम है। धारा 4 एक लॉटरी का "आयोजन, संचालन और बढ़ावा देने" के लिए राज्य पर अधिकार प्रदान करती है। लॉटरी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों की एक जांच पर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि राज्य की शक्ति बनाने वाला नियम अन्य राज्य लॉटरी की बिक्री में हस्तक्षेप करने तक विस्तारित नहीं होता है जब राज्य स्वयं लॉटरी व्यवसाय में संलग्न होता है। निर्णय में कहा गया है, "धारा 5 के तहत पेपर लॉटरी या ऑनलाइन लॉटरी पर रोक लगाने की राज्य सरकार का अधिकार केवल तभी उपलब्ध होता है, जब राज्य अपनी उक्त प्रकार की लॉटरी नहीं चला रहा होता है। इसलिए, राज्य केरल लाटरी के नियम 9A (12) को भी लागू कर सकते हैं। (विनियमन) नियम, 2005 अन्य राज्य लॉटरी की बिक्री पर रोक लगाने के लिए यदि राज्य इस प्रकार की लॉटरी नहीं चला रहा है, तो।" इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऑल केरल ऑनलाइन लॉटरी डीलर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य और अन्य (2016) के मामले में दिए गये फ़ैसले को मिसाल के तौर पर इस्तेमाल किया गया। इसलिए, पीठ ने कहा कि अन्य-राज्य लॉटरी में हस्तक्षेप करने की शक्ति को केवल तब ही बहिष्कृत किया जा सकता है, जब राज्य को नो-लॉटरी क्षेत्र घोषित किया जाता है। "अन्य राज्य लॉटरी में हस्तक्षेप करने का अधिकार केवल लॉटरी टिकटों की बिक्री की सीमा तक है। यह केवल तभी संभव है, जब राज्य ने इसे लॉटरी मुक्त क्षेत्र के रूप में घोषित किया है। उस पृष्ठभूमि में अदालत को प्रकृति को समाप्त करना होगा।केंद्र सरकार की यह शक्ति अधिनियम की धारा 6 से ली गई है। केरल सरकार को नागालैंड में लॉटरी की बिक्री में हस्तक्षेप करने से रोक दिया। न्यायालय ने संशोधित नियमों को अल्ट्रा वायर्स के रूप में केंद्रीय अधिनियम को रद्द कर दिया और उन्हें अस्वीकार्य माना। नतीजतन, अदालत ने घोषणा की कि याचिकाकर्ता को नागालैंड राज्य द्वारा केरल राज्य में आयोजित लॉटरी को बेचने और विपणन करने का हर अधिकार है,अदालत ने कहा कि नागालैंड राज्य द्वारा संचालित लॉटरी को बेचने के लिए याचिकाकर्ता के अधिकार के साथ केरल राज्य को रोकना होगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी लॉटरी का विक्रय अवैध रूप से किया जाता है, तो केवल केंद्र सरकार ही इस मामले में हस्तक्षेप कर सकती है न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन किए बिना नागालैंड लॉटरी की बिक्री की जाती है, तो केरल सरकार केंद्र से संपर्क कर सकती है।

दूसरों के कल्याण के लिये अपने आप को समर्पित कर देना ही जीवन का वास्तविक सार

सहयोग, सहानुभूति और सेवा ही जीवन का आधार-स्वामी चिदानन्द सरस्वती


2 जनवरी, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पूरी दुनिया एक ऐसे दौर से गुजरी जिसमें सभी को ’सहयोग, सहानुभूति और सेवा’ की सबसे अधिक जरूरत पड़ी। पूरा वर्ष कभी आशा और कभी निराशा में बीत गया परन्तु ’कालेन समौषधम्’ समय सबसे बेहतर मरहम लगाने वाला होता है। अब जो समय हम सभी को मिला है उसे साधना, समर्पण और सेवा में लगायें इससे जीवन में शान्ति और तनाव से मुक्ति मिलेगी तथा इन तीन स्तंभों को जीवन का आधार बना कर जीवन का आनन्द लें।
स्वामी जी ने कहा कि महात्मा गांधी जी ने बड़े ही सुन्दर तरीके से सेवा को परिभाषित किया है कि ‘स्वयं को खोजने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप स्वयं को दूसरों की सेवा में खो दें’। ऋषियों ने भी जीवन के यही सूत्र दिये हैं कि दूसरों के कल्याण के लिये अपने आप को समर्पित कर देना ही जीवन का वास्तविक सार है। वैदिक ऋषि दधीचि ने लोक कल्याण के लिये अपने शरीर की हड्डियों को दान कर दिया था। उनका मानना था कि दूसरों का हित करना ही परम धर्म है। भारतीय इतिहास में अनेक दानियों का उल्लेख मिलता हैं जो अपने लिये नहीं बल्कि मानव कल्याण के लिये ही जियें।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह समय आत्म केंद्रित जीने का नहीं बल्कि परमार्थ केंद्रित होकर जीने का है। श्री मद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है ’सर्वभूत हिते रताः।’ व्यक्तित्व की सही पहचान और आंतरिक शक्ति की अनुभूति परोपकार और परमार्थ की भावना से ही होती हैं। जैसे-जैसे स्वभाव में परोपकार और सेवा के दिव्य गुणों का समावेश होता है वैसे ही अहंकार, घृणा और भेदभाव समाप्त हो जाता है। स्वामी जी ने कहा कि सेवा और सहानुभूति से समाज में एकजुटता आती हैं तथा जीवन का वास्तविक आनन्द एवं तृप्ति की अनुभूति भी तभी होती है जब हम परोपकार के लिये जियें।
स्वामी जी ने कहा कि अपनी इच्छाओं के लिये जीना स्वार्थ पूर्ण जीवन है और आवश्यकताओं के लिये जीना से परोपकार और परमार्थ का मार्ग भी स्पष्ट होता है।  आवश्यकतायें सार्वभौमिक भी हो सकती है जिससे कई व्यक्तियों को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त हो सकता है इसलिये सहायता, सहानुभूति और सेवा से युक्त जीवन जियें ताकि अन्तिम छोर पर खड़ा व्यक्ति भी गरिमापूर्ण जीवन जी सके।