Tuesday, December 29, 2020

जहरीला आदमी


                बहुत समय पहले वर्ली नाम का एक व्यक्ति एक टापू पर रहता था और उस टापू से कुछ दूरी पर एक गांव था जिसका नाम बरपाना था उस गांव के लोग बहुत ही भोले भाले थे और खेती तथा मजदूरी से अपने जीवन यापन किया करते थे । एक बार उस गांव के कुछ लोग लकड़ी काटने के लिए जब उस टापू के पास पहुंचे तो उन्होंने वर्ली नामक उस व्यक्ति को टापू पर पूजा पाठ करते हुए देखा तो गांव के सभी लोगों ने निर्णय लिया कि.. यह व्यक्ति बहुत ही धार्मिक और सज्जन प्रतीत होता है । अतः इस व्यक्ति को हम अपने गांव लेकर चले ताकि हमारा गांव जो विषमताओं से गुजर रहा है तो हो सकता है इस व्यक्ति के कारण कुछ अच्छा होने लगे और हम सब इस व्यक्ति से सामाजिक , धार्मिक अनुष्ठान करा कर अपने गांव का भला कर सकते हैं ।

            यही सोच विचार कर सभी गांव वाले अगले दिन वर्ली के पास पहुंच जाते हैं तथा उसे अपने गांव बरपाना में चलने का निवेदन करते हैं  काफी मान मनौव्वल के बाद वर्ली उनके साथ गांव आने को तैयार हो गया । गांव आने के बाद वर्ली की दिनचर्या बहुत ही धार्मिक, सामाजिक सत्कर्म व लोगों को प्रवचन देना अर्थात् कर्मकांड का पाठ पढ़ाना नित्य कर्म उषाकाल में उठना पूजा पाठ करते हुए ग्रंथों का अध्ययन करना तथा सप्ताह में एक दिन सभी गांव वालों को प्रवचन के माध्यम से धार्मिक व सामाजिक गतिविधियों का महत्व बताते हुए उन्हे सत्कर्मों के रास्ते पर चलने हेतु मानव सेवा का पाठ पढाना बता कर कार्य करने के लिए प्रेरित करना  रहता । वर्ली के इस प्रकार के कामों सभी जगह सराहना होती व गाँव के सभी लोग बहुत प्रसन्न रहा करते थे । 

             ऐसा कई दिनों तक चलता रहा और गाँव के सभी लोग वर्ली को एक बहुत बड़ा पहुंचा हुआ संत व सत्कर्म वाला व्यक्ति मानकर उसकी आराधना पूजा करने लगे । इस तरीके से यह क्रमान्तर चलता रहा और गांव वाले भी बहुत खुश थे उनका गांव अब सत्कर्म और धार्मिक प्रवृत्ति वाला हो गया । परंतु अचानक एक दिन जिस झोपड़ी में वर्ली रहा करता था वहां पर एक कोबरे ने वर्ली को काट लिया तथा वर्ली चिल्लाता हुआ बाहर निकला गांव वालों ने जब बर्ली की आवाज सुनी तो सभी दौड़कर बर्ली के झोपड़ी के पास पहुंचे तब बर्ली ने पूरी बात बताई और झोपड़ी में जा कर गाँव बालों ने जब काला कोबरा नाग देखा जो कि एक कोने में दुबक कर बैठा था । 

              बर्ली जो कि दयालु था तो उसने गांव वालों को मारने से मना कर दिया इसके बाद सभी गांव वाले वर्ली को शहर के अस्पताल ले गए वहां पर इलाज कराने हेतु भर्ती करा दिया । अब गांव में यह चर्चा फैल गई वर्ली का बचना मुश्किल है क्योंकि जिस काले सांप ने काटा है वो बहुत ही जहरीला होता है और इसका काटा हुआ अभी तक कोई बचा नहीं है , ऐसी चर्चा होती रही और सब लोग कहने लगे कि कैसे इतने सच्चे, सहज, धार्मिक, कर्म प्रधान और दयालु व्यक्ति को सांप ने काट लिया कितना घोर अन्याय है । ये कैसे कलयुग के दिन आ गए हैं कि एक अच्छे व सज्जन व्यक्ति को साँप ने काट लिया है उसका जीवित रहना मुश्किल है और सभी गांव वालों में शोक की लहर दौड़ पड़ी । धीरे-धीरे एक तरह से गम के रूप में गांव वाले का माहौल बनने लगा और गांव वालों ने झोपड़ी में जाना भी कम कर दिया और चारों तरफ उदासी ही उदासी थी धीरे-धीरे यह माहौल और गम हीन होने लगा । 

             परंतु ये क्या एक सप्ताह बाद वर्ली पुनः स्वस्थ होकर वापस लौटा तो गाँव के लोगो को अविश्वसनीय लगा कि इतने जहरीले सापों के काटने के बाद भी वर्ली जिंदा है, तो ये कोई दैवीय शक्ति का ही चमत्कार है खैर वर्दी के जिंदा आने की खुशी में उन्होंने ढोल धमाकों के साथ बर्ली का जुलूस निकालते हुए झोपड़ी तक लेकर गए पर जैसे ही झोपड़ी में प्रवेश किया तो वहाँ का नजारा देख सभी आश्चर्य चकित रह कि जिस सांप ने बर्ली को काटा था वह सांप झोपड़ी के बीचों बीच मरा हुआ बड़ा था । अर्थात जिस सांप के काटने से कोई नहीं बचता है पर व्यक्ति तो ठीक हो गया परंतु साँप मर गया जो इतना जहरीला था । इसके बाद तो गाँव बाले बर्ली की पूजा ही करने लगें कि बर्ली एक महान आत्मा बाला सज्जन पुरूष है ये बर्ली के सत्कर्मों का ही प्रतिफल है कि आज वह जीवित है । परन्तु गाँव के भोले भाले लोग ये नही जानते थे कि जिस व्यक्ति की गाँव के लोग पूजा पाठ कर रहे है वास्तव में वह व्यक्ति अन्दर से बहुत विष बाला है कि धार्मिक प्रवृत्ति और सामाजिक प्राणी होने के बाद भी उसके अंदर कितना जहर है कि वह ठीक हो गया और एक जहरीला सांप मर गया । ये कही न कही गाँव बालों की अज्ञानता और अंधविश्वास को दर्शाता है ।  

            इस प्रकार से हम कह सकते है कि व्यक्ति दिखता कुछ और है, होता कुछ और है व करता कुछ और है । हर शख्स के चेहरे पर बना हुआ मुखौटा रहता है जरूरी नहीं है कि व्यक्ति ऐसा ही हो लेकिन अंदर से वह कितना जहरीला होता है । उसकी कार्य पद्धति व जीवन शैली कितनी नकारात्मकता वह अपने अंदर रखता है, यह कोई नहीं जानता है । इसलिए दिखावे पर नहीं उसके बिचार पर जाना चाहिए, उसके व्यवहार पर जाना चाहिए क्योंकि जरूरी नहीं है कि समाज में रहने वाला व्यक्ति जो कर्मकांड में लिप्त हो तो वह बहुत अच्छा हो । हो सकता है कि वह ये सब दिखावा करता हो परंतु उसकी नसों में बहने वाला खून बहुत ही जहरीला हो । इसलिए हमे ऐसे लोगों से बचना चाहिए ऐसे लोग समाज और देश के लिए बहुत ही घातक होते हैं । 

गजलकार दुष्यंत कुमार की पुण्य तिथि पर विशेष

दुष्यंत कुमार और हम


आज के माहौल में जब माइनस डिग्री का तापमान है,तब किसान आंदोलन कर रहे हैं,जवान भी सड़क पर खड़े हैं और जनता परेशान है,लोग भूखे पेट सो जाते हैं,महिलाओं की सुरक्षा नहीं है,अन्याय का बोलबाला है तो दुष्यंत कुमार की गजल का शेर याद आता है कि:--

तू  किसी रेल  सी  गुजरती है।
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ।

सच में रेल सत्ता है और पुल जनता है जो हर बार, बार- बार थरथराती रहती है।असल में आज या आज से पूर्व कोई भी पार्टी ऐसी नहीं रही जिसने आम गरीब,किसान और मजदूर का भला किया हो क्योंकि इन्हें सिर्फ वोट बैंक समझा और हर बार,बार-बार बहकाया गया और आज भी बहकाया जा रहा है।तभी तो कलमकारों ने अपनी कलम को तलवार की तरह से तेज करना पड़ा।परिणाम यह हुआ कि कलमकारों को भी कोप का भाजन बनना पड़ा।इसका उदाहरण खुद दुष्यंत कुमार भी हैं क्योंकि दुष्यंत कुमार जब लिखते तो स्याही से नहीं दिल और दिल के अंदर खौलते खून से लिखते थे।तभी तो वो कह पाए कि--

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए।
मैंने नाम पूछा तो बोला कि हिन्दुस्तान हूँ।।

यकीन मानिए कि आज भी हालात बदले नहीं है बल्कि वो चीथड़े अब लीर-लीर हो चुके हैं मगर लानत किसी को आती नहीं।कमाल की बात तो यह भी है आज के दौर का कलमकार भी बदल गया है,उसके वो तेवर हैं हीं नहीं जो एक रचनाकार  के होने चाहिए।अब तो हाल यह है कि बस छपना चाहिए,बेशक पैसे देकर ही सही।इनामों की बौछार होनी चाहिए बेशक ले-देकर ही सही।रातों-रात नाम होना चाहिए बस,और परिणाम हम सबके सामने है।आज के चिल्लाऊ मीडिया,पक्षपाती रचनाकारों को देखकर तो ऐसा लगता है कि शायद दुष्यंत कुमार सही ही कह गए हैं कि:---

गूंगे निकल पड़े हैं,जुबां की तलाश में।
सरकार के खिलाफ ये साजिश तो देखिए।।

सम्भवतः ऐसा ही हो रहा है।पहले भी ऐसा होता रहा है तभी तो दुष्यंत लिख पाए मगर अब सीमा पार हो चुकी है।हर बात की लेबलिंग की जाती है।हर जुबान को खामोश करने का षड्यंत्र रचा जाता है।कम से कम कवियों को,लेखकों को,पत्रकारों को तो जागरूक और मुखर होना पड़ेगा, दुष्यंत की तरह।आज उनकी पुण्य तिथि है।आज ही के दिन यानि 30 दिसम्बर,1975 को भोपाल में दुष्यंत कुमार को दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी मगर मात्र 44 साल हमारे बीच में रहे और ऐसा कुछ कर गए कि जमाना सदियों तक दुष्यंत कुमार को याद करता रहेगा।01 सितम्बर 1933 को बिजनौर के राजपुर नकदा गाँव में जन्में,इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम ए किया।मुरादाबाद से बी एड किया और आकशवाणी भोपाल में सहनिर्माता के पद पर कार्य किया।उनका एक गजल संग्रह "साए में धूप" पूरे भारत की तस्वीर पेश कर देता है।उनके तीन कविता संग्रह भी रहे--सूर्य का स्वागत,आवाजों के घेरे और जलते हुए वन का बसंत।बहुत कम लोग जानते होंगे कि उनका एक लघुकथा संग्रह भी आया जिसका नाम है "मन के कोण"।उन्होंने उपन्यास भी लिखा और नाटक :--"और मसीहा मर गया"भी लिखा।उनकी एक मूवी भी आई जिसका नाम था--हल्ला बोल।दिलचस्प बात यह है कि दुष्यंत ने दसवीं कक्षा से ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था।गजल को हिंदी गजल की और ले जाने का श्रेय भी दुष्यंत को ही जाता है।निश्चित रूप से सही ही कहा है दुष्यंत ने कि:--

मत कहो आकाश में कुहरा घना है।
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है।।
मतलब साफ़ है कि भगत सिंह अब तो खुद ही बनना पड़ेगा और वर्तमान दौर में देश और समाज जिस दौर से गुजर रहा है,उस दौर में एक और क्रान्ति की जरूरत है,वैचारिक क्रान्ति की क्योंकि यदि आगाज अब नहीं किया गया तो आने वाली संतानें हम सबको कोसेंगी,हम पर लानत भेजेंगी।अगर हम उम्मीद करते हैं कि भगत सिंह पड़ौसी के घर में तो फिर याद रखिए दुष्यंत कुमार की गजल का वो शेर कि:--

कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता।
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो।।
अगर शेर की भाषा में कहें तो फिर शेर अपनी जगह और उसका मिजाज अपनी जगह।वास्तव में अब हमें खड़ा होना होगा और इंकलाब के लिए यह कहना ही होगा कि:----
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है।
मेरी कोशिश है कि हर सूरत बदलनी चाहिए।।

डॉ. हर्ष वर्धन ने वीडियो कॉन्फ्रेन्स के माध्यम से अच्छे, अनुकरणीय व्यवहारों पर 7वें एनएचएम राष्ट्रीय सम्मेलन का डिजिटल रूप में उद्धघाटन किया

केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज वीडियो कॉन्फ्रेन्स के माध्यम से अच्छे और अनुकरणीय व्यवहारों पर 7वें राष्ट्रीय सम्मेलन का डिजिटल रूप में उद्घाटन किया। डॉ. हर्ष वर्धन ने एबी-एचडब्ल्यूसी में टीबी सेवाओं के लिए संचालन दिशा निर्देशों तथा सक्रिय पहचान तथा कुष्ठ रोग के लिए नियमित निगरानी पर संचालन दिशा निर्देश 2020 के साथ नई स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) भी लॉन्च की।स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय अच्छे, अनुकरणीय व्यवहारों तथा भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में नवाचार पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करता है। पहला सम्मेलन सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में विभिन्न श्रेष्ठ व्यवहारों तथा नवाचारों की मान्यता, प्रदर्शन और प्रलेखन के लिए 2013 में श्रीनगर में आयोजित किया गया था और पिछला सम्मेलन गुजरात के गांधी नगर में हुआ था।

डॉ. वर्धन ने सम्मेलन के आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की और महामारी की स्थिति में सम्मेलन आयोजित करने के लिए सभी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि नवाचारी कनवरजेंस रणनीति पर फोकस आवश्यक है। यह भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को नई ऊंचाई तक ले जाएगा। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा नावाचार पोर्टल पर 2020 में 210 नए कदमों को अपलोड किया गया। इन नवाचारों का अंतिम उद्देश्य एक ओर लोगों की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना है तो दूसरी ओर स्थायी रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत बनाना है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवा इको सिस्टम में नवाचार पर चिंतन के लिए जमीनी स्तर के स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को शामिल और एकीकृत किया जाना चाहिए तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य डिलीवरी प्रणाली में काम कर रहे लोगों के वर्षों के अनुभव और विशेषज्ञता से प्राप्त सामूहिक समझ का लाभ उठाया जाना चाहिए। डॉ. हर्ष वर्धन ने दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में पोलियो उन्नमूलन अभियान के अपने अनुभव को साझा किया और स्वास्थ्य कार्यक्रमों में लोगों तथा समुदाय की भागीदारी की शक्ति के बारे में बताया।

स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत बनाने में विचारों और नवाचार की भूमिका पर बल देते हुए डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में नवाचार महत्वपूर्ण गुणांक है। उन्होंने कहा कि कोविड-19 पर कार्य से हमें कार्यक्रम लागू करने तथा नवाचार सृजन के नए मार्गों को अपनाने का प्रोत्साहन मिला है। उन्होंने कहा कि महामारी ने हमें पीपीई किट, वेंटीलेटर, मास्क, टीका आदि बनाने के क्षेत्र में हमें आत्मनिर्भर बनाया है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ई-संजीवनी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर एक मिलियन टेली कन्सल्टेशन किए गए हैं। यह नवाचारी दृष्टिकोण का परिणाम है जो समन्वित प्रयासों से निकला है।

 

स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने में डिजिटल तथा सूचना प्रौद्योगिकी के महत्व को दोहराते हुए डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि डिजिटल बदलाव से हम राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य इको सिस्टम विकसित करने में सक्षम हुए हैं। यह इको सिस्टम कारगर, पहुंच योग्य, समावेशी, किफायती, समयबद्ध तथा सुरक्षित तरीके से सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को समर्थन देती है। नई स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली (एचएमआईएस) व्यापक सूचना तथा अवसंरचना के माध्यम से अबाधित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म प्रदान करती है। उन्होंने कहा कि सूचना के अधिकतम आदान-प्रदान से बेहतर स्वास्थ्य परिणाम, बेहतर निर्णय प्रणाली तथा राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के सुधारों में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने हाल में ई-संजीवनी डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए ओपेन डाटा चैम्पियन श्रेणी में प्रतिष्ठित डिजिटल इंडिया पुरस्कार जीता है।

 

टीबी सेवाओं के लिए संचालन दिशा निर्देश जारी करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि टीबी नियंत्रित करने की दिशा में भारत सरकार के निरन्तर प्रयासों से टीबी अधिसूचना में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है और निदान, अनुपालन और इलाज परिणामों में सुधार हुआ है। 2019 में लापता मामलों की संख्या घटकर 2.9 लाख रह गई जबकि यह संख्या 2017 में 10 लाख मामलों की थी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2025 तक टीबी मुक्त भारत का साहसी लक्ष्य तय किया है। यह 2030 के एसडीजी लक्ष्यों से पांच वर्ष पहले तय किया गया लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें एक साथ मिलकर टीबी के शीघ्र निदान, सभी टीबी रोगियों का इलाज करने की आवश्यकता है ताकि उचित रोगी समर्थन प्रणाली सुनिश्चित हो और समुदाय में टीबी की श्रृंखला टूटे।

डॉ. हर्ष वर्धन ने आशा व्यक्त की कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय राष्ट्रीय विचार-विमर्श आयोजित करने और देश के विभिन्न भागों में स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सुधार के लिए नए नवाचारी उपायों को अपनाने की संस्कृति को बढ़ावा देने और इस संदर्भ में एक दूसरे के अनुभवों को साझा करने तथा उनसे सीखने का काम जारी रखेगा।

 

इस अवसर पर स्वास्थ्य सचिव श्री राजेश भूषण, एएसएंडएमडी (एनएचएम) वंदना गुरनानी, महानिदेशक (राज्य) सुश्री रत्ना अंजन जेना, ए एस (पॉलिसी) श्री विकास शील तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और राज्य/केन्द्र शासित प्रदेशों के अन्य वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी और डॉ. रॉड्रिक ऑफरीन, डब्ल्यूआर, डब्ल्यूएचओ भी उपस्थित थे।



ट्राइब्स इंडिया के संग्रह में जुड़ा तमिलनाडु के मलयाली जनजातियों का विशिष्ट शहद जाइंट रॉक बी हनी

ट्राइब्स इंडिया के आउटलेटों तथा आठवें ‘हमारे घर से आपके घर’ अभियान में इसकी वेबसाइट में 35 से अधिक नए आकर्षक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उत्पाद शामिल किए गए हैं। यह अभियान जनजातीय कार्य मंत्रालय के अंतर्गत ट्राइफेड द्वारा 8 सप्ताह पहले शुरू किया गया था। इस अभियान का उद्देश्य पूरे देश के विभिन्न जनजातीय समूह से कारगर, प्राकृतिक तथा आकर्षक उत्पादों को मंगाना है ताकि इन उत्पादों की पहुंच विभिन्न प्रकार के लोगों तक हो सके।इस सप्ताह के प्रमुख उत्पादों में तमिलनाडु के मलयाली जनजाति का प्राकृतिक, ताजा, ऑर्गेनिक उत्पाद जाइंट रॉक बी हनी प्रमुख है। यह शहद ज्वार, इमली तथा काली मिर्च के रस से तैयार होता है। मलयाली जनजातीय समूह उत्तर तमिलनाडु में पूर्वी घाट से आता है। उस क्षेत्र में इनकी आबादी लगभग 3,58,000 है और सबसे बड़े जनजातीय समूह हैं। जनजातीय लोग सामान्य रूप से पर्वतीय किसान हैं और विभिन्न प्रकार के ज्वार उत्पादन करते हैं।

जनजातीय समूह से प्राप्त अन्य उत्पादों में आकर्षक बारीक मालों से बने जेवर (मुख्यतः गले की शोभा वाले) हैं जिसे मध्य प्रदेश के पतेलिया जनजातीय लोग तैयार करते हैं। इन लोगों का मुख्य आधार कृषि है लेकिन झाबुआ के दस्तकारों द्वारा बनाए गए सुंदर रंगीन जेवर उनकी असाधारण दस्तकारी दिखाते हैं। अन्य उत्पादों में जैविक दाल और मसाले हैं जो गुजरात के वसावा जनजातीय लोगों से प्राप्त हुए हैं। अन्य उत्पादों में शहद, जैम तथा झारखंड के खरवार तथा ओराव जनजातीय लोगों द्वारा उपजाए गए दो विशिष्ट प्रकार के चावल तथा झारखंड के आदिम जनजातीय लोगों तथा लोहरा जनजाति द्वारा तैयार उत्पाद (चकला और बेलन) तथा धातु की बनी जालियां हैं।

पिछले सप्ताह प्राप्त सभी नए उत्पाद ट्राइब्स इंडिया के 125 आउटलेटों, ट्राइब्स इंडिया मोबाइल वैन तथा ट्राइब्स इंडिया ई-मार्केट प्लेस (tribesindia.com) तथा ई-टेलर्स जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर उपलब्ध हैं। भारत का सबसे बड़ा दस्तकारी और ऑर्गेनिक मार्केट प्लेस - ट्राइब्स इंडिया ई-मार्केट प्लेस – हाल में लॉन्च किया गया। इसका उद्देश्य 5 लाख जनजातीय उद्यमों को राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय बाजारों से जोड़ना, उनके जनजातीय उत्पादों और दस्तकारियों को दिखाना है ताकि देशभर के उपभोक्ताओं तक पहुंच सकें।

अनेक प्रकार के प्राकृतिक और स्थायी उत्पादों के साथ ट्राइब्स इंडिया ई-मार्केट प्लस हमारे जनजातीय भाइयों की सदियों पुरानी परम्पराओं को दिखाता है। market.tribesindia.com पर जाएं। बाई लोकल बाई ट्राइबल!