उपराष्ट्रपति श्री एम.वेंकैया नायडू ने आज ऐसा मीडिया अभियान चलाने का आह्वान किया, जिससे प्लास्टिक उत्पादों के निपटान के संबंध में लोगों के व्यवहार में बदलाव लाया जा सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि समस्या प्लास्टिक के साथ नहीं है, बल्कि समस्या प्लास्टिक केउपयोग के बारे में हमारे दृष्टिकोण में है।
विजयवाड़ा स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोकेमिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीआईपीईटी)के छात्रों, संकाय सदस्यों और कर्मचारियों को आज यहां संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने प्लास्टिक के स्थायित्व और लंबे समय तक कायम रहने के चलते पैदा होने वाली पर्यावरण चुनौतियों पर चिंता जताई। उन्होंने प्लास्टिककचरे के प्रबंधन की प्रक्रिया को अपनाने और जनता को तीन आर-रिड्यूस, रीयूज और रीसाइकल (यानी प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करना, दोबारा इस्तेमाल करनाऔर दोबारा इस्तेमाल योग्य उत्पाद बनाना) के संबंध में जागरूक बनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इसका समाधान यह नहीं है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल ही नहीं किया जाए, बल्कि यह है कि इसे जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया जाए और उचित रूप से दोबारा इस्तेमाल योग्य बनाया जाए।
स्वच्छ भारत अभियान का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि लोगों को एकल उपयोग वालीप्लास्टिक के बारे में जागरूक करने का राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया जाना चाहिए। उन्होंने मीडिया, नागरिक समाज के संगठनों, छात्रों और सक्रिय कार्यकर्ताओं से इस जागरूकता अभियान में शामिल होने का आग्रह किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोगों को यह समझना होगा कि एकल उपयोग वाली प्लास्टिक का हमारे पर्यावरण पर कितना हानिकारक प्रभाव पड़ता है। उन्हें मानवता मात्र के भविष्य के बारे में सोचना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा दायित्व है कि हम अपने बच्चों के लिए एक स्वच्छ और हरित ग्रह को कायम रखें। उन्होंने सभी से अपील की कि वे एकल उपयोग वालेप्लास्टिक उत्पादों का जिम्मेदार ढंग से उपयोग करें।
उन्होंने बताया कि भारत में प्लास्टिक को दोबारा इस्तेमाल योग्य बनाने का बाजार 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़कर 2023 के अंत तक 53.72 अरब डॉलर हो जाएगा। श्री नायडू ने इस बात को रेखांकित किया कि कचरा प्रबंधन हमारे उद्यमियों को एक सुनहरा अवसर उपलब्ध करा सकता है।
उन्होंने गुवाहाटी में एक मॉडल प्लास्टिक कचरा प्रबंधन केन्द्र स्थापित करने के लिए सीआईपीईटी की प्रशंसा की। यह केन्द्र प्लास्टिक को रीसाइकल करने और कचरा प्रबंधन के क्षेत्रों में कुशलता विकास संबंधी प्रशिक्षण कार्यक्रम उपलब्ध कराता है।
पॉलीमर को एक अदभुत तत्व बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसने जीवन की गुणवत्ता को काफी बढ़ा दिया है और वह अपने कम वजन, स्थायित्व और संसाधन सम्पन्नता के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है। उन्होंने कहा कि विविधता और कम लागत पर निर्माण तकनीकों के विकास की क्षमता की वजह से प्लास्टिक ने जीवन के विविध क्षेत्रों में पारम्परिक तौर से इस्तेमाल होने वाली सामग्रियों की जगह ले ली है।
श्री नायडू ने देश में जारी कोविड-19 महामारी के दौरान प्लास्टिक की महत्ता की खासतौर से प्रशंसा की, क्योंकि इस महामारी के प्रसार को रोकने और इससे निपटने के लिए चिकित्सा सुरक्षा उपकरण और पीपीई किट के निर्माण में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया। प्लास्टिक के अलावा पॉलीमर सामग्री का इस्तेमाल भी चिकित्सकीय उपकरण और इन्सुलिन पेन्स, आईवी ट्यूब्स, इम्प्लांट्स और टिश्यू इंजीनियरिंग में किया गया।
भारतीय अर्थव्यवस्था में पॉलीमर्स के महत्व को बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि 30,000 से ज्यादा प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयां देशभर में 40 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं। उन्होंने बताया कि प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति करीब 12 किलोग्राम की औसत राष्ट्रीय खपत के साथ भारत का स्थान विश्व के पांच सबसे बड़े पॉलीमर उपभोक्ताओं में है।
उन्होंने कहा कि पॉलीमर की मांग 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है और अनुमान है कि वैश्विक पेट्रो-केमिकल उद्योग 2025 तक 958.8 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच जाएगा। उन्होंने बताया कि मेक इन इंडिया और स्टार्टअप्स इंडिया जैसे सरकार के विभिन्न कार्यक्रम पेट्रो-कैमिकल क्षेत्र में अगली पीढ़ी के अनुसंधान और स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास के अनुकूल इको-सिस्टम बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि पॉलीमर उद्योग की एक बड़ी ताकत घरेलू तौर पर निर्मित कच्चे माल की उपलब्धता है, जो इसकी तरक्की में मददगार होगी। भारत के प्लास्टिक निर्यात के मौजूदा रूख को काफी उत्साहवर्धक बताते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय प्लास्टिक निर्यात उद्योग ने हमेशा क्षमता, संरचना और कुशल मानव शक्ति के तौर पर बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
उन्होंने सीआईपीईटी की इस बात के लिए प्रशंसा की कि उसने कुशलता विकास कार्यक्रमों, तकनीकी सहायता सेवाओं, अकादमिक और अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्रों में अपनी विविध गतिविधियों से राष्ट्र के विकास में योगदान किया है। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त कि सीआईपीईटी ने 50 से ज्यादा बड़ी अनुसंधान परियोजनाओं को पूरा किया है और 12 पेटेंट्स के लिए आवेदन किया है। उन्होंने इच्छा जताई कि संस्थान पर्यावरण और विकास को संतुलित करने के लिए बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे पर्यावरण अनुकूल उत्पाद विकसित करे।
श्री नायडू ने कहा कि 30 वर्ष से कम की औसत आयु के साथ, भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। उन्होंने इच्छा जाहिर की कि इस युवा ऊर्जा को उचित कौशल और सही प्रेरणा के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के लिए रचनात्मक रूप से जोड़ा जाए। श्री नायडू ने इस उद्देश्य के लिए एक अलग कौशल विकास मंत्रालय बनाने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि 'फ्यूचर इज स्किलिंग'।
उन्होंने इस बात के लिए सीआईपीईटी की सराहना की कि वह कौशल विकास के क्षेत्र में अच्छा काम कररहा है और पिछले पांच वर्षों में उसनेअपने कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से तीन लाख से अधिक बेरोजगार/कम-रोजगार प्राप्त युवाओं को प्रशिक्षित कियाहै।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 2015-16 से 16 नए सीआईपीईटीकेन्द्र स्थापित किए गए हैं, जो पेट्रोकेमिकल उद्योग की कुशल कर्मचारियों की बढ़ती आवश्यकता को पूरा करने के लिए काम करेंगे। इस क्षेत्र में सीआईपीईटीहमारे देश के तकनीकी वर्चस्व की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
इस अवसर पर, श्री नायडू ने सीआईपीईटी, विजयवाड़ा के साथ अपने जुड़ाव को याद किया, जब उन्होंने 2016 में तत्कालीन रसायन और उर्वरक मंत्री और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ इसकीआधारशिला रखी थी। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि सीआईपीईटी, विजयवाड़ा आंध्र प्रदेश में उद्योगों के साथ अपने गठजोड़ के माध्यम से उत्कृष्टता की ओर बढ़ रहा है।
इस अवसर पर आंध्र प्रदेश के धर्मादा मंत्रीश्री एम. श्रीनिवास राव, रसायन और उर्वरक मंत्रालय में संयुक्त सचिव श्री काशीनाथ झा,सीआईपीईटी के महानिदेशकप्रो. (डॉ) एस. के. नाइक,सीआईपीईटी,विजयवाड़ा केकेंद्र प्रमुख, श्री चिन्ता शेखर,सीआईपीईटी के प्रमुख निदेशकश्री आर. राजेंद्रन और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।