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बरसात खत्म होते ही जैसे ही ठंड की शुरुआत होती है, उसी के साथ दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, नोएडा, कानपुर जैसे महानगर जहरीली हवा की चादर से ढ़ंक जाते हैं। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम ओर फरीदाबाद यानी एनसीआर में करोड़ो की आबादी है तो लाखों वाहन हैं,ं उसी तरह अनगिनत कारखाने हैं। राजधानी क्षेत्र होने की वजह से हजारों पाहन बाहर से भी आते हैं। इस मौसम मेें हवा की गति मंद पड़ जाती है, जिसकी वजह से शहर गैस चैंबर में तब्दील हो जाते हैं।
लाखों वाहनों से निकलने वाली कार्बन मोनोक्साइड और कारखानों से निकलने वाला धुआं सुबह सुबह इन शहरों पर डर्टी स्मैल का आवरण तान देता है। एक समय था, जब इन बड़े शहरों की सड़कें धोई जाती थीं। जबकि आज प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के बावजूद जगह-जगह गंदगी के ढ़ेर दिखाई दे जाते हैं। दिल्ली के आसपास तथा पंताब-हरियाणा के खेतों में जलाई जाने वाली पराली का धुआं दिल्ली ही नहीं उसके आसपास के शहरों को काली चादर से ढ़क देता है। दिल्ली-नोएडा में तो कभी-कभी प्रदूषण इतना बढ़ जाता है कि यहां किसी आदमी के आसपास 16 सिगरेट पिए जा रहे हों, इस तरह की परिस्थिति बन जाती है।
सही बात तो यह है कि शहरों पर आज मानव बस्ती को बोझ बढ़ता जा रहा है। जबकि आज शहर मनुष्य के रहने लायक नहीं रह गए हैं। आज देश के ज्यादातर शहर लगभग प्रदूषित हैं। अगर प्रदूषण की समस्या हल नहीं हुई तो भविष्य में मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भारी खतरा पैदा हो सकता है।
ब्रिटेन के रॉयल कालेज आफ फिजीसियंस एंड रॉयल कालेज आफ पीडियाट्रिक्स एंड चाइल्ड हेल्थ की एक सूचना के अनुसार विश्व में वायु प्रदूषण के कारण हर साल 40 हजार लोगों की मौत होती है। आने वाले सालों में